Sunday, January 17, 2010

नये नहीं हैं राजनेताओं के सैक्स स्कैंडल

पिछले दिनों आंध्र प्रदेश के राज्यपाल को सैक्स स्कैंडल के मामले में बड़े बेआबरू होकर राजभवन और अपने राजनैतिक जीवन को अलविदा कहना पड़ा। पर राजनेताओं के सैक्स स्कैंडल कोई नई बात नहीं है। फ्रांस के बहुचर्चित राष्टृपति निकोलस सरकोजी साफ सरकार और मूल्य आधारित राजनीति के वायदों के साथ चुनाव जीते थे। पर आज उनके और उनके मंत्रीमण्डल के सहयोगियों के रंगीले जीवन के किस्से पेरिस की गलियों में चर्चा-ए-आम बन चुके हैं। उनके मंत्रीमण्डलीय सहयोगी फ्रैडरिक मित्रां ने खुलेआम स्वीकारा है कि वे थाईलैंड के वैश्यालयों में पैसे देकर नौजवान लड़कों के साथ सैक्स करते रहे हैं। यह अलग बात है कि फ्रांस और थाईलैंड दोनों ही सैक्स पर्यटन को हतोत्साहित करने का प्रयास कर रहे हैं। इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी के सैक्स कारनामों से जनता इतनी आजि़ज आ गई कि उनकी सरेआम पिटाई कर दी गयी। उन्हें बमुश्किल लहुलुहान हालत में भीड़ से बचाया गया। बहुत दिन नहीं बीते जब अमरीका के व्हाइट हाउस में अमरीका के तत्कालीन राष्टृपति बिल क्लिंटन को मोनिका लेवांस्की के रहस्योद्घाटन के बाद अपने अवैध सैक्स सम्बन्धों को स्वीकारने पर मजबूर होना पड़ा था।

देश की राजधानी दिल्ली और प्रांतों की राजधानियों में राजनीति के उच्चस्तरीय सामाजिक दायरों में हाईक्लास का¡लगर्लभेजने का काम औद्योगिक घराने जमाने से करते आ रहे हैं। ऐसी कुछ महिलायें तो इतनी बैखौफ होती हैं कि अपने सम्बन्धों को खुलेआम स्वीकारने में संकोच नहीं करतीं। हरियाणा के पुलिस महानिदेशक एस.पी.एस. राठौर का किस्सा अभी चर्चा में चल ही रहा है। प्रशासनिक सेवाओं में महत्वपूर्ण पदों पर बैठने वाले अधिकारी प्रायः लोगों को नौकरी या फायदे देने के ऐवज में अपनी कामवासनाओं की पूर्ति करते रहते हैं। कभी-कभी ऐसे किस्से चर्चा में भी आ जाते हैं।

हर धर्म के मठाधीशों के साये तले सैक्स के गुमनाम कारोबार पर भी दुनियाभर का मीडिया बीच-बीच में रहस्योद्घाटन करता रहता है। फिल्म जगत में व उद्योग जगत में तो इसे आम बात माना जाता है। शायनी आहूजा तो सूली चढ़ गया, पर उसके जैसे कितने शायनी मुम्बई में रोज यही जिंदगी जीते हैं। शैक्षिक संस्थानों और वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में छात्र-छात्राओं व शोधकर्ताओं के शारीरिक शोषण के किस्से काफी आम होते हैं।

कुल मिलाकर नाजायज सैक्स सम्बन्ध कोई ऐसी अनहोनी घटना नहीं जो कभी-कभी दुर्घटना के रूप में घटती हो। यह क्रम इतना व्यापक है कि अगर सारी घटनायें प्रकाश में आयें तो मीडिया में सैक्स स्कैंडलों को उछालने के अलावा कुछ बचेगा ही नहीं। गनीमत है कि ऐसी घटनायें कभी-कभी प्रकाश में आती हैं। अगर सामाजिक सर्वेक्षण करने वालों की मानें तो दस फीसदी घटनायें भी प्रकशित नहीं होतीं। ऐसे में क्या माना जाए कि जो पकड़ा गया वही अपराधी है या जो पकड़ा गया वो बद्किस्मत है?

पिछले दिनों मैंने पुराने टी.वी. सीरियल चाणक्य के 47 एपिसोड तन्मयता से बैठकर देखे। इस सीरियल में ईसा से 300 वर्ष पूर्व के राजनैतिक भारत का काफी सटीक दर्शन कराया गया है। उस समय भी सत्ता के दायरों में और धनिकों के समाज में वैश्याओं और नर्तकियों के उपभोग का प्रचलन आम था। यह बात उन हजारों ग्रंथों में भी दर्ज है जिन्हें समय-समय पर समकालीन इतिहासकारों ने दर्ज किया। बाबर की आत्मकथा बाबरनामामें तो खुद बादशाह बाबर इस बात का दुःख प्रकट करता है कि हिन्दुस्तान में उसे खूबसूरत लौंडे दिखाई नहीं देते इसलिए उसे गजनी के लौंडों की याद सताती है।

भारत के धर्मग्रन्थों में विशेषकर महाभारत जैसे पुराणों में जिस तरह के सामाजिक जीवन का वर्णन है, उसमें भी ऐसा नहीं लगता कि सैक्स के सम्बन्धों को लेकर नैतिकता के नियम बहुत कड़े रहे हों। संस्कृत के विद्वानों का तो यह तक कहना रहा है कि क्षत्रिय आचरण करने वाले को यदि कामवासना की पूर्ति न हो तो शासन करना और अपने दिमाग का संतुलन बनाये रखना सरल न होगा। इसीलिए पुराने जमाने के राजाओं की बहुपत्नियों की प्रथा को सहजता से स्वीकारा जाता है।

ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि राजनेताओं या प्रशासनिक पदों पर बैठे महत्वपूर्ण व्यक्तियों का निजी जीवन क्या पूरी तरह पारदर्शी होना चाहिए? क्या इसे नैतिकता के सर्वोच्च मानदण्डों पर खरा उतरना चाहिए? अगर हा¡ तो क्या  ऐसे शुद्ध आचरण वाले लोग थोक में ढू¡ढे जा सकेंगे और क्या यह सम्भव होगा कि सत्ता के शिखर पर केवल वही बैठें जो अपना आचरण सिद्ध कर सकें? प्रश्न यह भी उठाया जाता है कि शासन चलाने वाले का काम देखना चाहिए, उसके काम का परिणाम देखना चाहिए, किन्तु उसकी निजी जिन्दगी में ताकझांक करने का हक किसी को भी नहीं मिलना चाहिए, चाहे वह मीडिया ही क्यों न हो। यहा¡  यह बात भी रखी जाती है कि यदि ऐसा व्यक्ति अपनी कामवासना की पूर्ति के लिए अपने पद का दुरूपयोग करता है तो उसे अपराध की श्रेणी में माना जाना चाहिए। पर यह बहस शाश्वत है। इसका कोई समाधान नहीं। जब-जब राजपुरूषों के सैक्स स्कैंडल सामने आते हैं, ऐसी चर्चाऐं जोर पकड़ लेती हैं। फिर समाज में वही सब चलता रहता है और कोई कुछ नहीं कहता। 

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