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Monday, November 4, 2024

त्योहारों की तिथियों में विवाद क्यों?

बीते कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि जब भी कोई त्योहार आता है तो उसकी स्थिति को लेकर काफ़ी विवाद पैदा हो जाते हैं। इन विवादों को बढ़ावा देने में सोशल मीडिया की भूमिका को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। इसी संदर्भ में आज के लेख का विषय कई पाठकों की उत्सुकता के कारण चुना है। इस दीपावली पर मुझे कई फ़ोन आए और सभी ने इस विषय को छेड़ा और मुझे इस मुद्दे पर लिखने को कहा। मैंने शास्त्र आधारित तथ्यों पर वृंदावन में जानकारों से चर्चा की। उन विद्वानों के अनुसार इसके पीछे कई कारण हैं। 


कई वर्षों के अनुभवी और ज्योतिष व कर्मकांड के विशेषज्ञ आचार्य राजेश पांडेय जी का कहना है कि, इसका मुख्य कारण है भारत की भौगोलिक स्थिति। सूर्योदय और सूर्यास्त होने के समय में अंतर होने से तिथियों का घटना व बढ़ना हो जाता है। इससे त्योहार मनाने का समय बदल जाता है। कहीं पर वही त्योहार पहले मनाया लिया जाता है और कहीं पर बाद में। इसके साथ ही एक अन्य कारण है पंचांग का गणित भेद। कुछ पंचांगकर्ता ‘सौर पंचांग’ के अनुसार गणित रचना कर त्योहारों को स्थापित करते हैं। लेकिन अधिकतर अनन्य पंचांग द्रिक पद्धति से देखे जाते हैं। इसीलिए त्योहारों में मतेकता नहीं हो पाती है। 



सौर पंचांग एक ऐसा कालदर्शक है जिसकी तिथियां ऋतु या लगभग समतुल्य रूप से तारों के सापेक्ष सूर्य की स्पष्ट स्थिति को दर्शाती हैं। ग्रेगोरी पंचांग, जिसे विश्व में व्यापक रूप से एक मानक के रूप में स्वीकार किया गया है, सौर कैलेंडर का एक उदाहरण है। पंचांग के अन्य मुख्य प्रकार चन्द्र पंचांग और चन्द्रा-सौर पंचांग हैं, जिनके महीने चंद्रकला के चक्रों के अनुरूप होते हैं। ग्रेगोरियन कैलेंडर के महीने चन्द्रमा के चरण चक्र के अनुरूप नहीं होते।


इसके अलावा त्योहारों की तिथि के भेद का एक अन्य कारण संप्रदाय भेद भी है। विभिन्न संप्रदायों में मतभेद के पीछे कई कारण हैं। संप्रदायों में विभिन्नता या ज़िद्द के कारण भी त्योहारों की तिथि में अंतर आने लग गये हैं। एक संप्रदाय दूसरे संप्रदाय की तिथि से अक्सर अलग ही तिथि की घोषणा कर देता है और उस संप्रदाय को मानने वाले आँख मूँद कर उसका पालन करते हैं। इसके साथ ही संप्रदायों में धृष्टता होना भी एक कारण माना गया है। कई मठ-मंदिर आदि के मानने वाले इतने कट्टर होते हैं कि वे अपने मठाधीशों के फ़रमान के अनुसार ही त्योहारों को मनाने की ठान लेते हैं। फिर वो चाहे पंचांग आधारित हो या स्वयंभू सद्गुरुओं या जगद्गुरुओं की सुविधानुसार हो, उसी का पालन किया जाता है।      

 


इन सबसे हट कर एक और अहम कारण है सोशल मीडिया पर चलने वाला अधपका ‘ज्ञान’। ह्वाट्सऐप यूनिवर्सिटी द्वारा बाँटे जा रहे इस ज्ञान ने भी तिथि विवाद की आग में घी डालने का काम किया है। अधपके ज्ञान को इस कदर फॉरवर्ड किया जाता है कि मानो वही वास्तविक और शास्त्र आधारित तथ्य हो। इतना ही नहीं एक घर परिवार में भी इस सोशल मीडिया की महामारी ने ऐसा असर किया है कि बाप-बेटे में ही विवाद उत्पन्न हो चले हैं। जबकि इस विवाद और ऐसे अन्य विषयों पर विवाद पैदा होने के पीछे ‘भेड़-चाल’ प्रवृत्ति एक मूल कारण है। किसी भी स्थिति में अधपके ज्ञान और संदेश को सत्य मन लेना नासमझी ही कहलाती है। वहीं यदि हम तथ्यों पर आधारित प्रमाणों को माने तो अधपके ज्ञान से बच सकते हैं। 



तिथियों के विवाद को लेकर विद्वानों का मानना है कि सौर पंचांग को मानने वाले इस बात पर ज़ोर देते हैं कि जिस रात्रि में दीपावली मिलती है वे उसी के अनुसार दीपावली मनाएँगे। वहीं द्रिक पद्धति और धर्म शास्त्र के अनुसार जिस तिथि में सूर्योदय हुआ है और उसी तिथि में सूर्यास्त हुआ है तो वह तिथि संपूर्ण मानी जाती है। परंतु जहां पर दो अमावस्या पड़ रहीं हों, तो धर्मशास्त्र के अनुसार परे विग्राहिया का पालन करना चाहिये । यदि दो अमावस्या परदोष को स्थापित हो रही हैं तो प्रथम दिवस की अमावस्या को छोड़ कर दूसरे दिन की अमावस्या को ही मानना चाहिए। 



देखा जाए तो शास्त्रों के अनुसार दीपावली का अर्थ केवल नए कपड़े पहनना, मिठाई बाँटना, दीपोत्सव और आतिशबाजी ही नहीं है। दीपावली पितरों के स्वर्ग प्रस्थान का पर्व है और हम दीपक इसलिए प्रज्ज्वल्लित करते हैं ताकि पितरों का मार्ग प्रकाशित हो सके पद्म-पुराण के उत्तर खण्ड में दीपावली का वर्णन है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में एकादशी से अमावस्या तक दीप जलाने का विशेष उल्लेख किया गया है। इन पाँच दिनों में भी अन्तिम दिन को वहाँ विशेष महत्त्वपूर्ण माना गया है। इसके महात्म्य में इसे पितृ कर्म मानते हुए कहा गया है कि स्वर्ग में पितर इस दीप-दान से प्रसन्न होते हैं। 


ज्वलते यस्यसेनानीरश्वमेधेन तस्य किम् । 

तेनेष्टं क्रतुभिः सर्वैः कृतं तीर्थावगाहनम् ॥ 

पितरश्चैव वाञ्छन्ति सदा पितृगणैर्वृतः। 

भविष्यति कुलेऽस्माकं पितृभक्तः सुपुत्रकः॥ 

कार्तिके दीपदानेन यस्तोषयति केशवम् । 

घृतेन दीपको यस्य तिलतैलेन वा पुनः ॥ 


कार्तिक मास के इन दिनों में सूर्यास्त के बाद रात्रि में घर, गोशाला, देवालय, श्मशान, तालाब, नदी आदि सभी स्थानों पर घी और तिल के तेल से दीप जलाने का महत्व है। ऐसा करने से दीप जलाने वाले के उन पितरों को भी मुक्ति मिलती है जिन्होंने पापाचरण किया हो या जिनका श्राद्ध उचित ढंग से नहीं हुआ हो। 

पापिनः पितरो ये च ये च लुप्तपिण्डोदकक्रियाः

तेऽपि यान्ति परां मुक्तिं दीपदानस्य पुण्यतः ॥


दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली प्रेतचतुर्दशी उत्तर भारत में व्यापक रूप से मनाई जाती है। वर्षक्रियाकौमुदी में उद्धृत एक कथा के अनुसार, एक धार्मिक व्यक्ति को तीर्थ यात्रा के दौरान पाँच प्रेत मिले, जो भयंकर कष्ट में थे। प्रेतों ने उसे बताया कि वे उन घरों में रहते हैं जहां गंदगी फैली हो, सामान बिखरा हो, झूठे  बरतन हों और लोग शोक व गंदगी में डूबे हों। इस कथा का उद्देश्य लोगों को स्वच्छता और सकारात्मक वातावरण बनाए रखने की शिक्षा देना है।


कुल मिलाकर यह कहना सही होगा कि हमारे शास्त्रों में हर त्योहार के पीछे जो आधार हैं स्थापित हैं उन्हें सुविधानुसार तोड़-मरोड़ कर संशोधन करना सही नहीं है। इसलिए फिर वो चाहे पंचांग भेद हो या संप्रदाय भेद हो इनका समाधान निकालना है तो सभी संप्रदायों और विभिन्न पंचांग पद्धति के मानने वालों को एकजुट हो कर ही इसका हल निकालना होगा नहीं तो हर वर्ष इसी तरह के विवाद होते रहेंगे। 

Monday, April 29, 2019

सूचना क्रांति के फायदे

जहां एक तरफ भारत के समाचार टीवी चैनल सतही, ऊबाऊ, भड़काऊ, तथ्यहीन सनसनीखेज समाचारों और कार्यक्रमों से देश की जनता का समय बर्बाद कर रहे हैं, उनका ध्यान असली मुद्दों से हटाकर फालतू की बहसों में उलझा रहे हैं। वहीं सूचना क्रांति का एक लाभ भी हुआ है। भारत और विदेश के अनेक टीवी चैनलों ने अनेक तथ्यात्मक और ऐतिहासिक सीरियल बनाकर दुनियाभर के दर्शकों को प्रभावित किया है। इन सीरियलों से हर पीढ़ी के दर्शक का खूब ज्ञानबर्द्धन हो रहा है। मनोरंजन तो होता ही है। यहां मैं कुछ उन सीरियलों का जिक्र करना चाहूंगा, जिन्होंने मुझ जैसे गंभीर दर्शक को भी आकर्षित किया है। वह भी तब जबकि मैं सबसे कम टीवी देखने वालों में हूं।
इस श्रृंखला में एक महत्वपूर्णं सीरियल है, जिसने मेरे दिल और दिमाग पर गहरा असर डाला, वो हैबुद्ध भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी पर आधारित इस सीरियल को हर आयु का व्यक्ति पसंद करेगा और उसे भारत की उस दिव्य शक्सियत के बारे में पता चलेगा, जिसने दुनिया के तमाम देशों में अपने संदेश को प्रसारित किया। आज भी चीन, जापान, कोरिया, वियतनाम, इंडोनेशिया भारत जैसे तमाम देश हैं, जहां के लोग भगवान बुद्ध में आस्था रखते हैं। इस सीरियल के अंतिम लगभग 1 दर्जन एपिसोड भगवान बुद्ध की शिक्षाओं पर आधारित हैं, जो किसी भी गंभीर दर्शक को प्रभावित किये बिना नहीं रहेंगे। बुद्ध के किरदार में जयपुर से निकले युवा कलाकार हिमांशु सोनी ने कमाल का अभिनय किया है। उन्हें देखकर ऐसा लगता है, मानों हम ईसा से 600 वर्ष पूर्व मगध साम्राज्य में पहुंच गऐ हैं, जहां हमें भगवान बुद्ध के साक्षात दर्शन हो रहे हैं। हिमांशु के अभिनय का ऐसा प्रभाव पड़ा कि बुद्ध धर्म को मानने वाले सभी देशों के लोग यहां तक कि बौद्ध धर्मगुरू तक हिमांशु के मुरीद हो गए और अपने-अपने देशों में बुलाकर उनका सम्मान किया।
दूसरा सीरियल जिसने मुझे बहुत ज्यादा जानकारी दी, वो हैवाइल्ड वाइल्ड कंट्रीये ओशो यानि आचार्य रजनीश के अमरीका स्थित ध्यान केंद्र आश्रम के अंदर हुई गतिविधियों का बड़े रोचक ढंग से दर्शन कराता है। इससे पता चलता है कि उन दिनों ओशो पूरे विश्व के  मीडिया में इतना क्यों छाए रहे थे। ये सीरियल है तो अंग्रेजी में, पर इसके मुख्य पात्र ज्यादातर भारतीय हैं, जो विवादों में रहकर पूरी दुनिया की सुर्खियों में छाए रहे।
इसी क्रम में एक और अंग्रेजी सीरियल जिसने पूरी दुनिया के दर्शकों को बेमोल खरीद लिया, वो हैक्राउन इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के राज्याभिषेक से लेकर अगले दो दशकों के बीच महारानी के जीवन पर इतनी बढिया प्रस्तुति की गई है कि अगर आप एक एपिसोड देख लो, तो अगले 6-8 एपिसोड देखे बिना उठोगे नहीं, ऐसा नशा चढता। इस सीरियल में दिखाया है कि कैसे नौकरशाह अपने राजा या मंत्री तक को अपनी ऊंगलियों पर नचाते हैं। शासक को कितने दबाव झेलने पड़ते हैं, इसका बहुत बेहतरीन प्रदर्शन इस सीरियल में है। चूंकि भारत पर अंग्रेजों ने 190 साल राज किया और हमारी प्रशासनिक कानूनी व्यवस्था इंग्लैण्ड के संविधान से प्रभावित है। इसलिए हम भारतीयों के लिए यह सीरियल और भी रूचि का है। इसे देखकर हम समझ सकते हैं कि आज भी हमारे देश की नौकरशाही राजनेताओं को कैसे ऊल्लू बनाती है।
एक और सीरियल जो आम भारतीयों को पसंद आया और मुझे भी बहुत अच्छा लगा, वो हैझांसी की रानीहालांकि यह सीरियल अंतराष्ट्रीय स्तर का नहीं है और ऐसा लगता है कि इसे नाहक लंबा खीचा गया है। फिर भी देशभक्ति का जज्बा पैदा करने के लिए और उस वीरांगना के जीवन को समझने के लिए ये एक अच्छा प्रयोग है। वो झांसी की रानी जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी अंगेजों से लोहा लिया और हमारे इतिहास की अमर गाथा बन गई।
इसके अलावा कई अन्य सीरियल आजकलनैटफ्लिक्सयाअमेजनचैनल पर दिखाए जा रहे हैं, जो हमारी जानकारी में तेजी से वृद्धि कर रहे हैं। जैसे भारत की पाक विद्या पर, भारत के मंदिरों पर, हिंदू धर्म के देवी-देवताओं पर डा. देवदत्त पटनायक का विश्लेषण, विश्व पर्यटन के सीरियल, हमारे ग्रह पृथ्वी पर जो जीवन है, उसके विभिन्न आयामों पर दुनिया के तमाम उन देशों के इतिहास पर जिन्हें हम बचपन में अपनी किताबों में संक्षेप में पढते आऐ थे। जैसे- चीन का इतिहास, रोमन साम्राज्य का इतिहास जापान का इतिहास आदि।
दुनिया की कई बड़ी शक्सियतें ऐसी हुई हैं, जिनके जीवन के विषय में हर सदीं में लोगों को उत्सुकता बनी रही है। इस श्रेणी में ईसा मसीह, दलाईलामा जैसे व्यक्तित्व उल्लेखनीय हैं। इन पर भी बहुत अच्छे सीरियल अंतर्राष्ट्रीय चैनलों पर दिखाऐ जा रहे हैं। यहां मैं उन सीरियलों का उल्लेख नहीं कर रहा, जिनमें अपराध की जांच, खेल, सामाजिक सारोकार वाली फिल्में या कार्टून आदि शामिल हैं। ऐसे बहुत सीरियल हैं, जिनकी गुणवत्ता अति उत्तम है। हमारे देश के सीरियल निर्माताओं को उनसे सीखना चाहिए कि कैसे सार्थक सीरियल बनाकर भी लोगों का मनोरंजन किया जा सकता है।
आज इस चुनाव के दौर में जब सब ओर अनिश्चितता है, सरकारी कामकाज भी कछुए की गति से चल रहा है, ऐसे में जीवन की नीरसता को दूर करने में, ये तमाम सीरियल, भादों की फुहार बनके आऐ हैं। मुझे लगा कि आप पाठकों से ये अनुभव साझा करूं, जिससे आप भी इसका लाभ उठा सकें।