कोविड के समय को छोड़ दे तो पूरी दुनिया में पिछले दो दशकों में पर्यटन उद्योग में काफ़ी उछाल आया है। पहले केवल उच्च वर्ग अंतरराष्ट्रीय पर्यटन करता था। मध्य वर्ग अपने ही देश में पर्यटन या तीर्थाटन करता था। निम्न आय वर्ग कभी-कभी तीर्थ यात्रा करता था। लेकिन अब मध्य वर्ग के लोग भी भारी संख्या में अंतरराष्ट्रीय पर्यटन करने लगे हैं। जिसके पास भी चार पहिए का वाहन है वो साल में कई बार अपने परिवार के साथ दूर या पास का पर्यटन करता है।
सूचना क्रांति के बाद से पर्यटन के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। पहले पर्यटन स्थल या तीर्थ स्थल पर पहुँच कर ये पता लगाना पड़ता था कि ठहरने की व्यवस्था कहाँ-कहाँ और कितने पैसे में उपलब्ध है। फिर यह पता लगाना पड़ता था कि दर्शनीय स्थल कौनसे हैं। उनकी दूरी बेस कैम्प से कितनी है और वहाँ तक जाने के क्या-क्या साधन हैं? ऐसी तमाम जानकारियाँ लेने के लिए अनेक देशों में पर्यटन सूचना केंद्र बनाए जाते थे। भारत में भी बनाये गये।
लेकिन आज सूचना क्रांति ने सब कुछ घर बैठे ही सुलभ कर दिया है। आज आप दुनिया ही नहीं बल्कि भारत के भी किसी भी शहर या छोटे से छोटे पर्यटन स्थल पर जाना चाहें तो आपको सारी सूचनाएँ घर बैठे उपलब्ध हो जाती हैं। उदाहरण के तौर पर वहाँ कौन-कौन से दर्शनीय स्थल हैं? उनका ‘वरचुअल टूर’ सोशल मीडिया पर किया जा सकता है। कहाँ ठहरना है, इसके सैंकड़ों विकल्प, कमरे की दर के अनुसार आप गूगल पर देख सकते हैं। देख ही नहीं सकते बल्कि कन्फ़र्म बुकिंग भी कर सकते हैं। इसके साथ ही आप घर बैठे उस शहर में अपने लिए लोकल टैक्सी और टूरिस्ट गाइड भी बुक कर सकते हैं। ज़ूम कॉल पर उस गाइड से वार्ता करके उसका चेहरा भी देख सकते हैं।
1984 के बाद 2010 में जब हमारा पूरा परिवार यूरोप यात्रा पर गया तो मुझे यह देख कर सुखद आश्चर्य हुआ कि हम जिस शहर में भी पहुँचते थे वहाँ हमारे लिए वाहन और गाइड पहले से ही तैयार खड़े मिलते थे। होटल भी बुक होता था। तकनीकी में कम रुचि होने के कारण तब मुझे इस सब की इतनी जानकारी नहीं थी। पर यह अनुभव बहुत अच्छा हुआ कि बच्चों ने हर शहर में सारी व्यवस्थाएँ पहले से ही ऑनलाइन बुक कर रखी थीं। यहाँ तक की किस शहर में शाम को कितने बजे कौन सा नाटक या बैले देखना है, उसकी भी टिकट एडवांस में आ चुकी थी। कुल मिला कर बात यह हुई कि किसी भी शहर में हमें यूरोप के पर्यटन सूचना केंद्र नहीं जाना पड़ा।
ये सब उल्लेख करने का उद्देश्य यह है कि भ्रष्टाचार से ग्रस्त और आधुनिक व्यवस्थाओं से अनभिज्ञ नौकरशाही आज भी भारत में सैंकड़ों करोड़ के पर्यटन सूचना केंद्रों के निर्माण में जुटी है। जिनका रख रखाव कैसा होता है इसका आपने भी खूब अनुभव किया होगा। इनके स्वागत कक्ष में या तो कोई होता ही नहीं। और यदि होता है तो वो बेरुख़ी से बात करता है। सूचना केंद्र के शौचालय प्रायः दुर्गंधयुक्त और गंदे रहते हैं। पर्यटन क्षेत्र के बारे में सूचना प्रपत्र (ब्रोशर) नदारद रहते हैं। सब जगह ऐसा नहीं होता। जहां अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक आते हैं, जैसे आगरा, गोवा, महाबलीपुरम, त्रिवेंद्रम या देश की राजधानी दिल्ली में आपको ये सब देखने को शायद नहीं मिलता। पर उत्तर प्रदेश में आमतौर पर यही स्थित पाई जाती है। आज जब हर गाँव और क़स्बे में स्मार्ट फ़ोन पहुँच चुका है। स्कूली बच्चों की पढ़ाई तक ऑनलाइन चल रही है, तब पर्यटन सूचना के लिए सैंकड़ों करोड़ रुपय के भवन बनवाने व जन धन बर्बाद करने का क्या लाभ? क्योंकि अब हर परिवार पर्यटन या तीर्थाटन पर जाने से पहले ही सारी सूचनाएँ गूगल या यूट्यूब से प्राप्त कर लेता है। मथुरा में ही जो पर्यटन सूचना केंद्र हाल में बने हैं उनका हाल देख लीजिए।
उत्तर प्रदेश पर्यटन का एक उदाहरण काफ़ी होगा। 80 के दशक में पूरे प्रदेश में जगह-जगह पर्यटकों के ठहरने के लिए ‘राही होटल’ बनाए गए जो कभी भी कारगर नहीं रहे। आज सभी ख़स्ता हाल में हैं। कोई व्यवसाई उन्हें किराए पर लेकर भी चलाने को तैयार नहीं। दरअसल सरकार की पर्यटन योजनाओं में सबसे बड़ी कमी रख-रखाव की होती है। बड़ी-बड़ी घोषणाओं और विज्ञापनों के सहारे पर्यटन की जिन महत्वाकांक्षी योजनाओं को चालू किया जाता है, वो योजनाएँ सैंकड़ों रुपया खपा कर भी चंद महीनों में ख़स्ता हाल हो जाती हैं।
तीर्थाटन के विकास में भगवान श्री राधा कृष्ण की लीला भूमि में पिछले 20 वर्षों में मैंने पूरे तन, मन, धन और मनोयोग से कृष्णक़ालीन धरोहरों के संरक्षण का बड़े स्तर पर कार्य किया है। इसलिए हमारा अनुभव ज़मीनी हक़ीक़त को देख कर विकसित हुआ है। बड़ी निराशा की बात यह है कि कोई भी सरकार क्यों न आ जाए वो हमारी बात सुन तो लेती है, लेकिन हमारे सुझावों पर अमल नहीं करती। यह अनुभव डॉ मनमोहन सिंह की सरकार में, उनसे सीधा संवाद होने के बावजूद हुआ। यही अनुभव मोदी जी की सरकार में, उनसे सीधा संवाद होने के बावजूद भी हुआ। इतना ही नहीं प्रदेश स्तर पर भी अखिलेश यादव जी की और योगी जी की सरकार में भी, उनसे सीधा संवाद होने के बावजूद हुआ। क्योंकि अधिकतर नौकरशाही की सार्थक बदलाव में कोई रुचि नहीं होती। इसलिए हम सबके बुरे बन जाते हैं। क्योंकि हम सच बताते हैं और ग़लत को सह नहीं पाते।
बहुत आशा थी कि हिंदुवादी सरकारों में हमारे धर्मक्षेत्रों का विकास संवेदनशीलता, पारदर्शिता और कलात्मक अभिरुचि से होगा। पर जो हो रहा है वो इसके बिलकुल विपरीत है। जब हिंदू धर्म में आस्था रखने वाली सरकार में अनुभव सिद्ध सनातन धर्मियों की बात नहीं सुनी जा रही तो धर्म निरपेक्ष सरकार में कौन सुनेगा? यही देश के हर जागरूक हिंदू की पीड़ा है।