Showing posts with label Ajmer. Show all posts
Showing posts with label Ajmer. Show all posts

Monday, August 26, 2024

अजमेर कांड के फ़ैसले का क्या असर होगा?


जहां कोलकाता की डॉक्टर के बलात्कार और नृशंस हत्या को लेकर सारे देश में निर्भया कांड की तरह भारी बवाल मच रहा है। वहीं 1992 में अजमेर में हुए देश के सबसे बड़े बलात्कार कांड का फ़ैसला भी पिछले हफ़्ते ही आया। इस फ़ैसले में 6 आरोपियों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई गई। जबकि 5 आरोपी पहले ही सज़ा काट चुके हैं और एक आरोपी ने आत्महत्या कर ली थी। अजमेर के एक प्रतिष्ठित महिला कॉलेज की 100 से अधिक छात्राओं को ब्लैकमेल करके उनसे बलात्कार किए गए। जिनकी अश्लील फ़ोटो शहर भर में फैल गई। इस कांड का मास्टर माइंड ज़िला यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष फ़ारूक़ चिश्ती था, जिसके साथ यूथ कांग्रेस का उपाध्यक्ष नफ़ीस चिश्ती और संयुक्त सचिव अनवर चिश्ती शामिल थे। इनके अलावा फ़ोटो लैब डेवलपर, पुरुषोत्तम, इक़बाल भाटी, कैलाश सोनी, सलीम चिश्ती, सोहेल गनी, ज़मीर हुसैन, अल्मास महाराज (फ़रार), इशरत अली, परवेज़ अंसारी, मोइज़ुल्ला, नसीम व फ़ोटो कलर लैब का मलिक महेश डोलानी भी शामिल थे। प्रदेश भर में भारी आंदोलन और देश भर में तहलका मचाने वाले इस कांड की जाँच राजस्थान के तत्कालीन मुख्य मंत्री भैरों सिंह शेखावत ने ख़ुफ़िया विभाग को सौंपी। ये पूरा मामला अजमेर से प्रकाशित ‘नवज्योति’ अख़बार के युवा पत्रकार, संतोष गुप्ता की हिम्मत से बाहर आया। चौंकाने वाली बात यह थी कि इस जघन्य कांड में शामिल ज़्यादातर अपराधी ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की मज़ार के ख़ादिम (सेवादार) थे।
 


इनकी हवस का शिकार हुई लड़कियाँ प्रतिष्ठित हिंदू परिवारों से थीं। जिनमें से 6 ने बदनामी के डर से आत्महत्या कर ली। दर्जनों अपनी पहचान छुपा कर जी रही हैं। क्योंकि जो ज़ख़्म इन्हें युवा अवस्था में मिला उसका दर्द ये आजतक भूल नहीं पाईं हैं। चूँकि इस कांड में शामिल ज़्यादातर अपराधी मुसलमान हैं और शिकार हुई लड़कियाँ हिंदू, इसलिए इसे मज़हबी अपराध का जामा पहनाया जा सकता है और वो ठीक भी है। पर हमारे देश में हर 16 मिनट में एक बलात्कार होता है। इन सब बलात्कारों में शामिल अपराधी बहुसंख्यक हिंदू समाज से होते हैं। इतना ही नहीं, साधु, पादरी और मौलवी के वेश में, धर्म की आड़ में, अपने शिष्यों या शागिर्दों की बहू-बेटियों से दुष्कर्म करने वालों की संख्या भी ख़ासी बड़ी है। इसे राजनैतिक जामा भी पहनाया जा सकता है क्योंकि इस जघन्य कांड के मास्टर माइंड यूथ कांग्रेस के पदाधिकारी थे। पर क्या ये सही नहीं है कि देश भर में भाजपा व अन्य दलों के भी तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं के नाम लगातार बलात्कार जैसे कांडों में सामने आते रहते हैं। इसलिए महिलाओं के प्रति इस पाशविक मानसिकता को धर्म और राजनीति के चश्मे से हट कर देखने की ज़रूरत है। 



दुर्भाग्य से जब कभी ऐसी कोई घटना सामने आती है तो हर राजनैतिक दल उसका पूरा लाभ लेने की कोशिश करता है। ताकि जिस दल की सरकार के कार्यकाल में ऐसा हादसा हुआ हो उसे या जिस दल के नेता या उसके परिवार जन ने ऐसा कांड किया हो तो उन्हें घेरा जा सके। जब हमारे देश में हर 16 मिनट पर एक बलात्कार होता है और बच्चियों के साथ भी होता है, उनकी नृशंस हत्या भी होती है, तो क्या वजह है कि बलात्कार की एक घटना पर तो मीडिया और राजनीति में इतना बवाल मचता है और दूसरे हज़ारों इससे बड़े मामलों की बड़ी आसानी से अनदेखी कर दी जाती है, मीडिया द्वारा भी और समाज व राजनेताओं द्वारा भी। तब ये ज़रूरी होता है जब कभी बलात्कार के किसी कांड पर बवंडर मचे तो उसे इस नज़रिए से भी देखना चाहिए। ये बवंडर समस्या के हल के लिए हो रहा है या अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेंकने के लिए। 


अब प्रश्न है कि ऐसे अपराधी को क्या सजा दे जाए? अपराध शास्त्र के विशेषज्ञ ये सिद्ध कर चुके हैं कि किसी अपराधी को मृत्यु दंड जैसी सज़ा सुनाने के बाद भी उसका दूसरों पर कोई असर नहीं पड़ता और इस तरह के अपराध फिर भी लगातार होते रहते हैं। पर दूसरी तरफ़ पश्चिमी एशिया के देशों में शरीयत क़ानूनों को लागू किया जाता है जिसमें चोरी करने वाले के हाथ काट दिए जाते हैं और बलात्कार करने वाले की गर्दन काट दी जाती है। पिछले ही हफ़्ते सोशल मीडिया पर दिल दहलाने वाला एक वीडियो प्रचारित हुआ, जिसमें दिखाया है कि कैसे 6 पाकिस्तानी युवाओं को 16 साल की लड़की से सामूहिक बलात्कार के आरोप में उनकी सरेआम तलवार से गर्दन काट दी गई। हादसे के अगले दिन वहाँ की अदालत ने अपना फ़ैसला सुना दिया। अक्सर इस बात का उदाहरण दिया जाता है कि शरीयत क़ानून में ऐसी सज़ाओं के चलते इन देशों में चोरी और बलात्कार की घटनाएँ नहीं होती। पर ये अर्धसत्य है। क्योंकि अक्सर ऐसी सज़ा पाने वाले अपराधी तो आम लोग होते हैं जो दुनिया के ग़रीब देशों से खाड़ी के देशों में रोज़गार के लिए आते हैं। जबकि ये तथ्य अब दुनिया से छिपा नहीं है कि खाड़ी के देशों के रईसज़ादे और शेख़ विदेशों से निकाह के नाम पर फुसला कर लाई गई सैंकड़ों लड़कियों का अपने हरम में रात-दिन शारीरिक शोषण करते हैं। फिर उन्हें नौकरानी बना देते हैं। इन सब पर शरीयत का क़ानून क्यों नहीं लागू होता? 


हमारे भी वेद ग्रंथों में बलात्कारी की सजा सुझाई गयी है। बलात्कारी का लिंग काट दिया जाए। उसके माथे पर एक स्थायी चिह्न बनाकर समाज में छोड़ दिया जाए। जिसे देखते ही कोई भी समझ जाए कि इसने बलात्कार कर किसी की जिंदगी बर्बाद की है। फिर ऐसे व्यक्ति से न कोई रिश्ता रखेगा, न दोस्ती। उसका परिवार भी उसे रखना पसंद नहीं करेगा। कोई नौकरी नहीं मिलेगी। कोई धंधा नहीं कर पायेगा। भीख भी नहीं मिलेगी। कोई डॉन भी हुआ, तो उसकी गैंग उसे छोड़ देगा। क्योंकि कोई गैंग नहीं चाहेगा कि उनकी गैंग किन्नरों की गैंग कहलाये। ऐसे में बलात्कारी या तो खुद ही आत्महत्या कर लेगा या अछूत बनकर जिल्लत भरी जिंदगी जियेगा। उसका यह हाल देख समाज में किसी और की यह अपराध करने की हिम्मत ही नहीं होगी। मगर जेल भेजने या फाँसी देने से अपराध नहीं रुकेगा।


अजमेर के मामले में 32 साल बाद आए फ़ैसले पर भी हमारी यही प्रतिक्रिया है कि ऐसे फ़ैसलों से समाज में कोई बदलाव नहीं आएगा। क्योंकि ‘जस्टिस डिलेड इज़ जस्टिस डिनाईड’ अर्थात् देर से न्याय मिलना न मिलने के समान होता है। इसलिए बात फिर वहीं अटक जाती है। महिलाओं के प्रति पुरुषों की इस पाशविक मानसिकता का क्या इलाज है? ये समस्या आज की नहीं, सदियों पुरानी है। हर समाज, हर धर्म और हर देश में महिलाएँ पुरुषों के यौन अत्याचारों का शिकार होती आयी हैं। बहुत कम को न्याय मिल पाता है, इसलिए 32 साल बाद अजमेर बलात्कार कांड का फ़ैसला कोई मायने नहीं रखता।