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Monday, February 26, 2024

स्पेन की बहुमंज़िला इमारत की आग से सबक़

बीते सप्ताह स्पेन के शहर वैलेंसिया से एक आगजनी की खबर सामने आई जिसने दुनिया भर के बहुमंज़िला इमारतों में रहने वालों के बीच सवाल खड़े कर दिये हैं। वहाँ एक 14 मंजिला इमारत में आग लग गई। आग इतनी भयानक थी कि जान बचाने के लिए लोगों ने बिल्डिंग से छलांग तक लगा दी। परंतु जिस तरह इस रिहायशी कॉम्प्लेक्स के 140 मकान कुछ ही मिनटों में धू-धू कर राख हुए उससे इन मकानों में लगे पॉलीयुरेथेन क्लैडिंग को आग की भयावहता में योगदान देने का दोषी पाया जा रहा है। आज आधुनिकता के नाम पर ऐसे कई उत्पाद देखने को मिलते हैं जो देखने में सुंदर ज़रूर होते हैं परंतु क्या वे ऐसी आपदाओं से लड़ने के लिए सक्षम होते हैं?



2009 में स्पेन के शहर वैलेंसिया में बने इस रिहायशी कॉम्प्लेक्स को बनाने वाली कंपनी ने दावा किया था कि इस बिल्डिंग के निर्माण में एक अत्याधुनिक अल्युमीनियम उत्पाद का इस्तेमाल किया गया है जो न सिर्फ़ देखने में अच्छा लगेगा बल्कि मज़बूत भी होगा। वेलेंसिया कॉलेज ऑफ इंडस्ट्रियल एंड टेक्निकल इंजीनियर्स के उपाध्यक्ष, एस्तेर पुचाडेस, जिन्होंने एक बार इमारत का निरीक्षण भी किया था, मीडिया को बताया कि जब पॉलीयुरेथेन क्लैडिंग को गर्म किया जाता है तो यह प्लास्टिक की तरह हो जाती है और इसमें आग लग जाती है। इसके साथ ही बहुमंज़िला इमारत होने के चलते तेज़ हवाओं ने भी आग को भड़काने का काम किया। 


उल्लेखनीय है कि जून 2017 में लंदन के ग्रेनफेल टॉवर में लगी भीषण आग में भी पॉलीयुरेथेन क्लैडिंग लगी थी, जो 70 से अधिक लोगों की मौत का कारण बनी। उसके बाद से दुनिया भर में इसकी ज्वलनशीलता को कम करने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा उपायों के बिना इमारतों में पॉलीयुरेथेन का अब व्यापक रूप से उपयोग नहीं किया जाता। परंतु स्पेन के शहर वैलेंसिया में बने इस रिहायशी कॉम्प्लेक्स में पॉलीयुरेथेन क्लैडिंग का इस्तेमाल इस हिदायत को दिमाग़ में रख कर हुआ था या नहीं यह तो जाँच का विषय है। 



लेकिन इस दर्दनाक हादसे ने दुनिया भर में बहुमंज़िला इमारतों में रहने या काम करने वालों के मन में यह सवाल ज़रूर उठा दिया है कि क्या बहुमंज़िला इमारतों में आगज़नी जैसी आपदाओं से लड़ने के लिए उनकी इमारतें सक्षम हैं? क्या विभिन्न एजेंसियों द्वारा आगज़नी जैसी आपदाओं की नियमित जाँच होती है? क्या इन ऊँची इमारतों में लगे अग्नि शमन यंत्र जैसे कि फायर एक्सटिंगशर और आग बुझाने वाले पानी के पाइप जैसे उपकरणों आदि की गुणवत्ता और कार्य पद्धति की भी नियमित जाँच होती है? क्या समय-समय पर विभिन्न आपदा प्रबंधन एजेंसियाँ आपदा संबंधित ‘मॉक ड्रिल’ करवाती हैं? क्या स्कूलों में बच्चों को आपदा प्रबंधन एजेंसियों द्वारा आपात स्तिथि में संयम बरतने और उस स्थिति से निपटने का प्रशिक्षण दिया जाता है? यदि इन सवालों को विदेशों की तुलना में भारत पर सवाल उठाएँ तो इनमें से अधिकतर सवालों का उत्तर ‘नहीं’ में ही मिलेगा।



स्पेन के शहर वैलेंसिया में हुए इस भयावह हादसे ने एक बार यह फिर से सिद्ध कर दिया है कि सावधानी हटी - दुर्घटना घटी। वैलेंसिया की इस इमारत को बनाते समय इसके बिल्डर ने ऐसी क्या लापरवाही की जिससे इतना बड़ा हादसा हुआ? इसके साथ ही जिस तरह वहाँ के अग्निशमन दल और अन्य आपदा प्रबंधन एजेंसियों ने बचाव कार्य किए उसके बावजूद कई जानें गयीं। इससे वहाँ की आपदा प्रबंधन पर भी सवाल उठते हैं। वहीं यदि देखा जाए तो यदि ऐसा हादसा भारत में हुआ होता तो मंज़र कुछ और ही होता। 



आज भारत के कई महानगरों और उसके आसपास वाले छोटे शहरों में बहुमंज़िला इमारतों का चलन बढ़ने लगा है। परंतु जिस तरह देश की जनसंख्या बढ़ती जा रही है उसके साथ-साथ आपात स्थितियों से निपटने की समस्या भी बढ़ती जा रही है। मिसाल के तौर पर इन महानगरों और उनसे सटे उपनगरों में बढ़ती ट्रैफ़िक की समस्या। ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से लगने वाले रेढ़ी और फेरी वालों की दुकानें। सड़कों पर ग़लत ढंग से की जाने वाली पार्किंग आदि। यह कुछ ऐसे प्राथमिक किंतु महत्वपूर्ण कारण हैं जो आपात स्थिति में आपदा प्रबंधन में रोढ़ा बनने का काम करते हैं। इन कारणों से जान-माल का नुक़सान बढ़ भी सकता है। एक ओर जब हम विश्वगुरु बनने का ख़्वाब देख रहे हैं वहीं इन बुनियादी समस्याओं पर हम शायद ध्यान नहीं दे रहे। 


एक कहावत है कि ‘जब जागो-तभी सवेरा’, इसलिए हमें ऐसी दुर्घटनाओं के बाद सचेत होने की ज़रूरत है। देश में आपदा प्रबंधन की विभिन्न एजेंसियों को नागरिकों के बीच नियमित रूप से जा कर जागरूकता फैलानी चाहिए। इसके साथ ही सभी नागरिकों को आपात स्थिति में संयम बरतते हुए उससे लड़ने का प्रशिक्षण भी देना चाहिए। इतना ही नहीं देश भर में मीडिया के विभिन्न माध्यमों से सभी को इस बात से अवगत भी कराना चाहिए कि विभिन्न सार्वजनिक स्थानों पर या बहुमंज़िला इमारतों में लगे आपात नियंत्रण यंत्रों का निरीक्षण कैसे किया जाए। यदि किसी भी यंत्र में कोई कमी पाई जाए तो उसकी शिकायत संबंधित एजेंसी या व्यक्ति से तुरंत की जाए। 

कुल मिलाकर देखा जाए तो वैलेंसिया में हुआ हादसा एक दुखद हादसा है। इस हादसे में न सिर्फ़ करोड़ों का माली नुक़सान हुआ बल्कि अमूल्य जानें भी गईं। परंतु क्या हम ऐसे दर्दनाक हादसों से सबक़ लेंगे? यह एक महत्वपूर्ण सवाल है। ऊँची इमारतों या आलीशान शॉपिंग मॉल में जा कर हम काफ़ी प्रसन्न तो होते हैं। परंतु क्या हमने कभी ऐसा सोचा है कि यदि इन स्थानों पर कोई आपात स्थिति पैदा हो जाए तो हम क्या करेंगे? क्या हम उस समय अपने स्मार्ट फ़ोन पर गूगल करेंगे कि आपात स्थिति से कैसे निपटा जाए? या हमें पहले से ही दिये गये प्रशिक्षण (यदि मिला हो तो) को याद कर उस स्थिति से निपटना चाहिए? जवाब आपको ख़ुद ही मिल जाएगा। इसलिए सरकार को आपदा प्रबंधन जागरूकता पर विशेष ध्यान देते हुए एक अभियान चलाने की ज़रूरत है। जिससे न सिर्फ़ जागरूकता फैलेगी बल्कि आपदा प्रबंधन विभागों में रोज़गार भी बढ़ेगा और जान-माल का नुक़सान भी बचेगा। 

Monday, May 3, 2021

विपदा क़ानून क्या ढिंढोरा पीटने को बनाये थे ?


जब चारों तरफ़ मौत का भय, कोविड का आतंक, अस्पताल, ऑक्सिजन और दवाओं की कभी न पूरी होने वाली माँग के साये में आम ही नहीं ख़ास आदमी भी बदहवास भाग रहा है, तब हिंदी के कुछ मशहूर कवियों का आशा जगाने वाला एक गीत फिर से लोकप्रिय हो रहा है। पर्दे पर इस गीत को सुरेंद्र शर्मा, संतोष आनंद, शैलेश लोढ़ा, आदि ने गाया है। गीत का शीर्षक ‘फिर नई शुरुआत कर लेंगे’ है।


जब से कोविड का आतंक फैला है तब से सोशल मीडिया पर ज्ञान बाँटने वालों की भी भीड़ लग गई है। दुनिया भर से हर तरह का आदमी चाहे वो डाक्टर हो या ना हो, वैद्य हो या न हो या फिर स्वास्थ्य विशेषज्ञ हो या न हो, कोविड से निपटने या बचने के नुस्ख़े बता रहा है। उसमें कितना ज्ञान सही है और कितना ग़लत तय करना मुश्किल है। उधर देश की स्वास्थ्य सेवाएँ इस बुरी तरह से चरमरा गई हैं कि बड़े-बड़े प्रभावशाली आदमी भी मेडिकल सुविधाओं के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। सरकारों के हाथ पाँव फूल रहे हैं। दुनिया दिल थाम कर भारत में चल रहे मौत के तांडव का नजारा देख रही है। कल तक हम सीना ठोक कर कोविड पर विजय पाने का दावा कर रहे थे पर आज दुनिया के रहमोकरम के आगे घुटने टेक रहे है। अच्छी बात यह है कि हर सक्षम देश भारत की मदद को आगे आ रहा है। अब भारत सरकार ने भी तेज़ी से हाथ-पैर मारने शुरू कर दिए हैं। पर जिस तरह चेन्नई और प्रयाग में उच्च न्यायालयों ने सरकार की नाकामी पर करारा प्रहार किया है और चुनाव आयोग को हत्यारा तक कहा है। उससे यह साफ़ ज़ाहिर है कि कहीं तो सरकार ने भी लापरवाही की है। पर जनता भी कम ज़िम्मेदार नहीं जिसने कोविड की पहली लहर मंद पड़ जाने के बाद खुलकर लापरवाही बरती। 



जहां तक इस आपदा से निपटने की तैयारी का सवाल है तो गौर करने वाली बात यह है कि 2005 में देश में ‘आपदा प्रबंधन क़ानून’ लागू किया गया था। जिसमें राष्ट्रीय व प्रांतीय आपदा प्रबंधन समितियों के गठन का प्रावधान है। उक्त क़ानून की धारा 2 (ई) के तहत आपदा का मूल्यांकन तथा धारा 2 (एम) के तहत तैयारियों का प्रावधान है। धारा 3 के अंतर्गत राष्ट्रीय आपदा प्राधिकरण के अध्यक्ष माननीय प्रधान मंत्री होते हैं। उक्त क़ानून की धारा 42 के तहत एक आपदा संस्थान भी स्थापित करने का प्रावधान है। इसी क़ानून के तहत आपदा कोश बनाने का भी प्रावधान है। उक्त क़ानून की धारा 11 के तहत राष्ट्रीय योजना बनाने का भी प्रावधान है। दुर्भाग्य से न तो कोई योजना बनी, न संस्थान स्थापित हुआ। यही नहीं उक्त क़ानून की धारा 13 के तहत ये भी प्रावधान बनाया गया था की ऋण अदायगी के तहत भी छूट दी जाएगी। इसके अलावा ‘नेशनल डिज़ास्टर रेस्पॉन्स फ़ोर्स’ की धारा 44 व 46 के तहत नेशनल डिज़ास्टर रेस्पॉन्स फंड, धारा 47 के तहत नैशनल डिज़ास्टर लिटिगेशन फंड तथा धारा 48 के तहत नैशनल डिज़ास्टर लिटिगेशन फंड को राज्यों में भी बनाने का प्रावधान है। धारा 72 के तहत आपदा के तहत सभी मौजूदा क़ानून निशप्रभावी रहेंगे। 


2005 से 2014 तक देश में डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी और 2014 से श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार है। आपदा प्रबंधन के इन क़ानूनों की उपेक्षा करने के लिए ये दोनों सरकारें बराबर की ज़िम्मेदार हैं। 



उक्त क़ानून के अध्याय 10 के तहत दंडनीय अपराधों का प्रावधान भी है। धारा 55, 56 तथा 57 के तहत यदि कोई प्रांतीय सरकार या सरकारी विभाग आपदा प्रबंधन के समय उक्त क़ानून के प्रावधानों की अवहेलना करता है तो यह उसका दंडनीय अपराध माना जाए। कोविड काल में देश में हुए विभिन्न धर्मों के सार्वजनिक आयोजन अन्य राजनैतिक कार्यक्रमों का इतने वृहद् स्तर पर, बिना सावधानियाँ बरते, आयोजन करवाना या उनकी अनुमति देना भी इस क़ानून के अनुसार सम्बंधित व्यक्तियों को अपराधी की श्रेणी में खड़ा करता है। ख़ासकर तब जबकि पिछले वर्ष मार्च से आपदा प्रबंधन क़ानून लागू कर दिया गया था तथा धार 72 के तहत समस्त दूसरे क़ानून निष्प्रभावी थे। ऐसे में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की अनुमति के बिना, विभिन्न धार्मिक, राजनैतिक व सामाजिक आयोजन कराना क्रमशः राज्य सरकारों तथा भारत के चुनाव आयोग के सम्बंधित अधिकारियों को दोषी ठहराता है।


फ़िलहाल जो आपदा सामने है उससे निपटना सरकार और जनता की प्राथमिकता है। जब विधायक और सांसद तक चिकित्सा सुविधाएँ नहीं जुटा पाने के कारण गिड़गिड़ा रहे हैं क्योंकि इनकी देश भर में सरेआम काला बाज़ारी हो रही है। नौकरशाही इस आपदा प्रबंधन में किस हद तक नाकाम सिद्ध हुई है इसका प्रमाण है कि उत्तर प्रदेश के राजस्व बोर्ड के अध्यक्ष तक को 12 घंटे तक लखनऊ के सरकारी अस्पताल में बिस्तर नहीं मिला और जब मिला तो बहुत देर हो चुकी थी और उनका देहांत हो गया। इसलिए समय की माँग है कि ऑक्सिजन, दवाओं और अस्पतालों में बिस्तर के आवंटन और प्रबंधन का ज़िम्मा एक टास्क फ़ोर्स को सौंप देना चाहिए। प्रधान मंत्री श्री मोदी को फ़ौज और टाटा समूह जैसे बड़े औद्योगिक संगठनों को मिलाकर एक राष्ट्रीय समन्वय टास्क फ़ोर्स गठित करनी चाहिए जो इस आपदा से सम्बंधित हर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हो।



अब जब भारत सरकार भारतीय वायु सेना को इस आपदा प्रबंधन में लगा रही है तो उसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि हवाई जहाज़ अन्य वाहन एवं वायु सेना के सम्बंधित कर्मचारी व अधिकारी पूरी तरह से कोविड से बचाव करते हुए काम में लगाए जाएं। ऐसा न हो कि लापरवाही के चलते वायु सेना के लोग इस महामारी की चपेट में आ जाएं। सावधानी यह भी बरतनी होगी कि कोविड उपचार में जुटे डाक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों का उनकी क्षमता से ज़्यादा दोहन न हो। अन्यथा ये व्यवस्था भी चरमरा जाएगी।