जो यश सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर निर्माण करवा कर या जगमोहन ने वैष्णो देवी श्राईन बोर्ड बना कर अर्जित किया था, उससे कहीं ज़्यादा यश आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्री राम मंदिर के निर्माण की आधारशिला रख कर अर्जित कर लिया। क्योंकि अयोध्या, मथुरा और काशी पर मौजूद मस्जिदें दुनिया के हिंदू बाहुल्य देश की जन भावनाओं पर नासूर की तरह रहीं हैं। इसलिए आज वहाँ मंदिर निर्माण का सपना साकार होते देख दुनिया भर के हिंदुओं में हर्ष है।
कुछ मोदी आलोचकों का आरोप है कि धर्म निरपेक्ष सम्विधान की शपथ खाने वाले प्रधानमंत्री ने मंदिर के भूमिपूजन में जा कर उसका उल्लघन किया है। उनका यह भी आरोप है कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई से मंदिर के पक्ष में निर्णय एक ‘डील’ के तहत हुआ। जिसमें गोगोई को राज्य सभा में भेज दिया गया।
इन आलोचकों को मैं बताना चाहूँगा कि 1989 में मैंने एक बार दिल्ली के दबंग कांग्रेसी नेता एच.के.एल. भगत से पूछा था कि आपके किस गुण के कारण आपकी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से इतनी निकटता थी ? उनका जवाब सुनकर 33 वर्ष का मैं युवा पत्रकार धक्क रह गया था। जवाब था, “मैं इंदिरा जी के लिए न्यायपालिका को मैनेज करने का काम करता था।” इसके 20 वर्ष बाद जब मैंने भारत के पदासीन मुख्य न्यायाधीशों के घोटाले खोले तो सारा खेल समझ में आ गया। इसलिए इसमें नया कुछ भी नहीं है।
वैसे भी क़ानून जनता के हित के लिए होते है, जनता क़ानून के लिए नहीं होती। मोदी जी ने बहुसंख्यक समाज की सदियों पुरानी पीड़ा को समझा और साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति अपनाकर प्रबल इच्छा शक्ति का प्रमाण दिया। जिससे निश्चय ही हिंदू समाज अभिभूत है। अगर यह कहा जाए कि मोदी का लक्ष्य मंदिर को राजनैतिक रूप से भुनाना है, तो इसमें भी कौन सी नई बात है। सभी राजनैतिक दल वोटों पर निगाह रख कर ही तो अपना एजेंडा बनाते हैं। मैं तो कहूँगा कि अगर मोदी जी इसी माहौल में मथुरा और काशी को भी मुक्त करा दें तो सदियों की पीड़ा से हिंदू समाज को राहत मिलेगी।
5 अगस्त को अयोध्या में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में दो विशेष बात थीं। पहली; उन्होंने बिना किसी का नाम लिए ही बड़ी विनम्रता और दीनता के साथ उन सबका स्मरण किया जिन्होंने पिछले 500 वर्षों में राम मंदिर की मुक्ति के लिए कुछ भी योगदान किया था। दूसरी विशेषता; वे पूरी तरह राम भक्ति के रंग में रंगे हुए थे। उन्होंने भाजपा का राजनैतिक नारा ‘जय श्रीराम’ न लगा कर राम भक्तों में सदियों से प्रचलित ‘जय सियाराम’ का उदघोष किया। इतना ही नहीं उनका उद्बोधन भगवान राम के जीवन, आदर्शों व रामचरित मानस के आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित था। पूरे भाषण का भाव भक्तिमय था। उन्होंने भगवान श्री राम को और उनके राम राज्य को हर भारतीय के लिए आदर्श बताया और उस पर चलने की प्रेरणा लेने को कहा।
मोदी जी के इस भक्ति भाव का सम्मान करते हुए मैं अयोध्या के उस धोबी का स्मरण दिलाना चाहूँगा, जिसकी निराधार टिप्पणी को भी गम्भीरता से लेते हुए भगवान श्रीराम ने सीता माता का त्याग कर दिया था। ताकि समाज में लोकतांत्रिक मूल्यों का भी आदर हो।
6 वर्ष बीत गए जब मोदी जी ने ब्रज विकास की मेरी प्रस्तुति को डेढ़ घंटा बैठ कर देखा और सराहा था। इन 6 वर्षों में मैंने अनेक लेखों, सोशल मीडिया और मोदी जी के विश्वासपात्र अफ़सरों के माध्यम से बार-बार उनका ध्यान इस ओर आकर्षित करने का प्रयास किया है कि जिन पूर्ववर्ती सरकारों को वे हर भाषण में भ्रष्ट बताते हैं उन्हीं सरकारों के समय स्थापित हुए तौर तरीक़ों से आज भी तीर्थों के विकास के नाम पर जनता के धन की भारी बर्बादी और भ्रष्टाचार हो रहा है। इसके तमाम प्रमाण भी मैंने समय समय पर प्रकाशित किए। एक सनातनी हिंदू होने के कारण मेरी प्राथमिकता केवल ब्रज है। या यूँ कहें कि हमारी आस्था के सभी केंद्र हैं। हिंदूधर्म के प्रति आस्था जताने वाले राज में धर्मक्षेत्रों में ये लूट क्यों?
1993 से हवाला कांड उजागर करके मैं दुनिया को सप्रमाण यह बता चुका हूँ कि भ्रष्टाचार के मामले में सभी दलों का एक सा हाल होता है। यह आज की व्यवस्था में भी सप्रमाण सिद्ध किया जा सकता है। पर मैं उस ओर न जा कर केवल धर्म क्षेत्र की ही बात करना चाहता हूँ। क्योंकि न सिर्फ़ मोदी जी ने बल्कि सरसंघचालक डा मोहन भागवत जी ने और भाजपा ने लगातार भगवान राम के आदर्शों से प्रेरणा लेने का आवाहन किया है।
इस संदर्भ में इन सभी महानुभावों को सम्बोधित करते हुए मैंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पिछले हफ़्ते सोशल मीडिया पर यह खुला पत्र भेजा है, “आप जानते हैं कि दशरथ जी के देहांत के बाद भरत जी ननिहाल से अयोध्या लौटने पर विलाप करते हुए कहते हैं कि ‘अगर मैंने स्वप्न में भी भैय्या राम की जगह राजा बनने का सोचा हो तो मेरी वही दुर्गति हो जो ‘धर्मध्वजियों’ (जो धर्म का दोहन करते हैं) की होती है।’ यानि मुझे घोर नारकीय यातना मिले। धर्म के आवरण में अधर्म करने वालों को बिना दंड दिये छोड़ देना अपने धर्म का स्वयं नाश करने जैसा है।
आप जानते हैं कि सभी ब्रजवासियों, संतों व भक्तों द्वारा आजतक सराही जा रही ब्रज (मथुरा) की अभूतपूर्व सेवा जो द ब्रज फ़ाउंडेशन ने गत 18 वर्षों में की है, उसे विधर्मी औरंगज़ेब के तरीक़े से रोकने और नष्ट करने का घृणित कार्य गत 3 वर्षों में यूपी शासन में बैठे कुछ लोगों द्वारा, ‘उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद’ के साथ षड्यन्त्र करके, हम पर मिथ्या आरोप थोप कर किया गया, जिससे वे लोग ब्रज में धाम सेवा के नाम पर रोज़ाना ख़ूब घोटाले कर सकें और जगह- जगह गौशालाएँ हड़पने का काम बेरोकटोक कर सकें। जो ब्रज में धड़ल्ले से आज हो रहा है। ये सब कुछ जानकर भी आप मौन क्यों हैं ?
हमारे विनम्र प्रयास से गोवर्धन (मथुरा) के अन्योर गाँव के संकर्षण कुंड का जीर्णोद्धार करके 34 फ़ीट ऊँचा व तिरुपति बाला जी से से लाकर चिन्नाजीयरस्वामी द्वारा 2017 में प्राणप्रतिष्ठित संकर्षण भगवान का (ब्रज का सबसे बड़ा) विग्रह आज इनके कारण 3 वर्षों से बिना सेवा पूजा के मल मूत्र के गंदे पानी में उपेक्षित खड़ा है।
इन लोगों ने तो ईर्ष्यावश श्री राहुल बजाज और श्री अजय पीरामल जैसे दानदाताओं के नाम के व हमारे शिलालेख तक पुतवा दिये। जैसे भविष्य में कोई आने वाला प्रधानमंत्री अयोध्या में आपके ऐतिहासिक योगदान से ईर्ष्या करके वहाँ 5 अगस्त 2020 को लगे आपके नाम के शिलापट्ट को नष्ट कर दे, तो आपको कैसा लगेगा?
हिंदू धर्म की तन मन धन से निस्वार्थ सेवा करने वालों से ये कैसा हिंदुत्ववादी व्यवहार है? आशा है आप इस लम्बित विषय पर कुछ करेंगे ?”
तो क्या ये माना जाए कि मोदी जी, भागवत जी और योगी जी अयोध्या के अपने उद्बोधन के तारतम्य में रामराज्य के मुझ ‘धोबी’ की भावना का सम्मान करते हुए, मथुरा, काशी, अयोध्या जैसे धर्मस्थलों के विकास और सौंदर्यकरण में चले आ रहे भ्रष्ट और संवेदनाशून्य ढ़र्रे से हट कर हमारे अनुभवजन्य ज्ञान को महत्व देंगे? रामराज्य की दिशा में यह एक छोटा पर महत्वपूर्ण कदम होगा।
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