अंतिम चरण का चुनाव बचा है। तस्वीर अभी
भी साफ नहीं है। भक्तों को लगता है कि मोदी जी पूर्णं बहुमत लाकर फिर से प्रधानमंत्री
बनने जा रहे हैं। मगर जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है। ऐसा लगता है मोदी-अमित शाह
की जोड़ी ने अरबों रूपया खर्च करके और हर हथकंडा अपनाकर लोगों की ‘ब्रेन वॉशिंग’ की है, तभी हकीकत और तर्क से बचकर मोदी भक्त उनके नाम की माला जप रहे
हैं। मगर कुछ संकेत ऐसे हैं, जो उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है। मसलन जिस काशी में ‘घर-घर मोदी’ और ‘हर-हर मोदी’ का शोर था। जहां मोदी के ‘नामांकन’ और ‘रोड शो’ पर हवाई जहाज से गुलाब की पंखुड़ियाँ मंगवाकर काशी की सड़को को
पाट दिया गया, वहां भी आम
आदमी काफी मुखर होकर मोदी की कमियां और वादा खिलाफी बता रहा है। ये बात दूसरी है कि
सशक्त उम्मीदवार विरोध में न होने के कारण मोदी की जीत काशी से सुनिश्चित है। पर जिस
काशी पर मोदी ने पूरी भारत सरकार को जुटा दिया, उस काशी के समझदार लोगों का खुलकर मोदी विरोध उनके दिल के दर्द
को बयान करता है। साफ जाहिर कि मोदी की शोमैनशिप ने लोगों को दिगभ्रमित जरूर किया है,
पर उनके दिलों को नहीं छू पाए। इसलिए राजनैतिक विश्लेषकों का
मानना है कि मोदी की जो हवा समाचार मीडिया और सोशल मीडिया के सहारे बड़े-बड़े पंखे लगवाकर
बहाई जा रही है, उसका असर
मतदान में नहीं दिखाई देगा। क्योंकि मतदान करते समय मतदाता एक बार यह सोचेगा जरूर कि
मोदी ने 5 बरस पहले कितने सपने दिखाए थे और उसमें से उसे क्या हासिल हुआ।
प्रधानमंत्री कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों
का प्रधानमंत्री कार्यालय को छोड़कर जाना साधारण घटना नहीं है। उन्होंने भी समय रहते,
अपने दूसरे विकल्प के लिए रास्ता बनाने का काम शुरू कर दिया
है। भारत सरकार के एक मंत्रालय के सचिव ने अपने अधीन कार्य करने वाले वरिष्ठ अधिकारियों
से कहा कि वे कांगे्रस का घोषणा पत्र पढना शुरू कर दें, क्योंकि जल्द ही उस पर काम करना पड़ेगा। भारत के अर्टोनी जनरल
के साथ मोदी सरकार का मतभेद भी खुलकर सामने आ गया है। जिस तरह भारत के मुख्य न्यायधीश
श्री रंजन गोगोई को महिला उत्पीड़न के मामले में बिना निष्पक्ष जांच के ‘क्लीन चिट’ दे दी गई। उससे श्री केके वेणु गोपाल नाखुश हैं। उन्होंने सर्वोच्च
न्यायालय के सभी न्यायाधीशों से लिखकर अनुरोध किया था कि इस जांच समिति में बाहर के
सदस्य भी होने चाहिए। वरना निष्पक्ष जांच नहीं हो पाऐगी। उनकी सुनीं नहीं गई और इसलिए
वे मोदी सरकार से पल्ला झाड़ने का संकेत दे चुके हैं।
2014 के चुनाव में अरूण शौरी, राजेश जैन जैसे अनेक दिग्गज मोदी के साथ हर मंच पर खड़े थे। पर
इस बार ये सब मोदी के मंच से नदारद् हैं। या तो मोदी को अपने अलावा किसी और की जरूरत
नहीं महसूस होती या वे अपने हर शुभ चिंतक को इस्तेमाल करके पटकने में कोई संकोच नहीं
करते। इस मामले में मोदी और केजरीवाल दोनों एक जैसे हैं। जिनके कंधों पर पैर रखकर चढे,
उनके कंधे ही तोड़ दो, तो फिर चुनौती कौन देगा?
सट्टा बाजार और शेयर मार्केट का रूख भी
मोदी की हवा के विरूद्ध है। इतना ही नहीं मोदी द्वारा नियुक्त किये गए,
तीनों चुनाव आयुक्तों में से एक ने मोदी के खिलाफ फैसला दिया
है। इन चुनाव आयुक्त अशोक लवासा का कहना है कि अगर नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषणों में
चुनावी आचार्य संहिता का उल्लंघ्न किया है, तो उन्हें भी सजा दी जानी चाहिए।
अगर विपक्षी दलों के स्थाई रूप से समर्थक
एकजुट हैं, तो फिर भाजपा
उन्हें कैसे हरा पाऐगी? जबकि महागठबंधन की खासियत ही यही है कि उनके समर्पित वोट टस
से मस नहीं हुआ करते, जोकि
2014 में हिल गये थे।
एक और बात सुनने में आई है कि अमित शाह
ने 80 सीटों पर ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दी है,
जिनका न तो उस क्षेत्र में कोई योगदान है और न ही कोई पहचान।
ये सब वे लोग बताए जाते है, जो अमित शाह की गणेश प्रदक्षिणा करते आऐ हैं। इसलिए राजनैतिक
विश्लेषकों का अंदाजा है कि इनमें से 85 फीसदी उम्मीदवार चुनाव
हार जाऐंगे।
दूसरी तरफ भाजपा और संघ के खेमे में भी
सुगबुगाहट शुरू हो गई। भाजपा के महासचिव राम माधव का यह कहना कि भाजपा को सरकार बनाने
के लिए अनेक सहयोगी दलों की जरूरत पड़ेगी, इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि खुद भाजपा का नेतृत्व अपनी जमीन
हिलती हुई देख रहा है। अलबत्ता विपक्षी दलों को इस बात का अंदेशा जरूर है कि अगर ईवीएम
की मशीनों में घपला किया गया, तो मोदी फिर से रिकॉर्ड जीत हासिल कर लेंगे। इसी शंका को दूर
करने के लिए सभी विपक्षी दल गुहार लगाने सर्वोच्च न्यायालय गऐ थे और उससे मांग की थी
कि आधी मशीनों का पर्चियों से मिलान किया जाऐ, जिससे घपले की गुंजाईश न रहे। पर सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी
यह महत्वपूर्णं मांग ठुकरा दी। इसलिए विपक्षी खेमों में आशंका बनी हुई है कि कहीं ईवीएम
की मशीनों से खिलवाड़ न हो जाऐ।
‘नाई नाई बाल कितने-जजमान
अभी आगे आ जाऐंगे’।
अब अटकल लगाने का समय बीत गया। 23 मई पास ही है। जब इस चुनाव के नतीजे सामने आ जाऐेंगे। तब तक
मतदाता और राजनेताओं के बीच इस तरह की चिंताऐं व्यक्त की जाती रहेंगी।
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