बिजली आज सभ्य समाज की बुनियादी जरूरत
बन चुकी है। गरीब-अमीर सबको इसकी जरूरत है। विकासशील देशों में बिजली का उत्पादन
इतना नहीं होता कि हर किसी की जरूरत को पूरा कर सके। इसलिए बिजली उत्पादन के
वैकल्पिक स्त्रोत लगातार ढू़ढे जाते है। पानी से बिजली बनती है, कोयले से बनती है, न्यूक्लियर रियेक्टर
से बनती है और सूर्य के प्रकाश से भी बनती है। लेकिन वैज्ञानिक सूर्य प्रकाश कपूर
जिन्होंने वैदिक विज्ञान के आधार पर आधुनिक जगत की कई बड़ी चुनौतियों को मौलिक रूप
से सुलझाने का काम किया है, उनका दावा है कि
बादलों में चमकने वाली बिजली को भी आदमी की जरूरत के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
यह कोई कपोल कल्पना नहीं बल्कि एक हकीकत है। दुनिया के विकसित देश जैसे अमेरिका, जापान, चीन, फ़्रांस आदि तो इस बिजली के दोहन के लिए संगठित भी हो चुके हैं । उनकी संस्था का नाम है ‘इंटरनेशनल कमीशन आन एटमास्फारिक इलैक्ट्रिसिटी’। दुर्भाग्य से भारत इस संगठन का सदस्य नहीं है। अलबत्ता यह बात दूसरी है कि भारत के वैदिक शास्त्रों में इस आकाशीय बिजली को नियंत्रित करने का उल्लेख आता है। देवताओं के राजा इंद्र को इसकी महारत हासिल है। सुनने में यह विचार अटपटा लगेगा। ठीक वैसे ही जैसे आज से सौ वर्ष पहले अगर कोई कहता कि मैं लोहे के जहाज में बैठकर उड़ जाउंगा! तो दुनिया उसका मजाक उड़ाती।
पृथ्वी की सतह से 80 किमी. उपर तक तो हमारा वायुमंडल है। उसके उपर 220 किमी. का एक अदृश्य गोला पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है। जिसे ‘आईनों स्फियर’ कहते हैं। जो ‘आयन्स’ से बना हुआ है। इस आयनो स्फियर के कण बिजली से चार्ज होते हैं। उनके और पृथ्वी की सतह के बीच लगातार आकाशीय बिजली का आदान प्रदान होता रहता है। इस तरह एक ग्लोबल सर्किट काम करता है। जो आंखों से दिखाई नहीं देता लेकिन इतनी बिजली का आदान प्रदान होता है कि पूरी दुनिया की 700 करोड़ आबादी की बिजली की जरूरत बिना खर्च किये पूरी हो सकती है। उपरोक्त अंर्तराष्ट्रीय संस्था का यही उद्देश्य है कि कैसे इस बिजली को मानव की आवश्यक्ता के लिए प्रयोग किया जाये।
जब आकाश में बिजली चमकती है, तो ये प्रायः पहले पहाड़ों की चोटियों पर लगातार गिरती हैं। डा. कपूर बताते हैं कि इस बिजली से 30000 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान पैदा होता है। जिससे पहाड़ की चोटी खंडित हो जाती है। उपरोक्त अंर्तराष्ट्रीय संस्था ने अभी तक मात्र इतनी सफलता प्राप्त की है कि इस बिजली से वे पहाड़ों के शिखरों को तोड़कर समतल बनाने का काम करने लगे हैं। जो काम अभी तक डायनामाईट करता था। ऋग्वेद के अनुसार देवराज इंद्र ने शंभर राक्षस के 99 किले इसी बिजली से ध्वस्त किये थे। ऋग्वेद में इंद्र की प्रशंक्ति में 300 सूक्त हैं। जिनमें इस बिजली के प्रयोग की विधियां बताई गई है।
वेदों के अनुसार इस बिजली को साधारण विज्ञान की मदद से ग्रिड में डालकर उपयोग में लाया जा सकता है। न्यूयार्क की मशहूर इमारत इंम्पायर स्टेट बिल्डिंग के शिखर पर जो तड़िचालक लगा है, उस पर पूरे वर्ष में औसतन 300 बार बिजली गिरती है। जिसे लाइट्निंग कंडक्टर के माध्यम से धरती के अंदर पहुंचा दिया जाता है। भारत में भी आपने अनेक भवनों के उपर ऐसे तड़िचालक देखे होंगे, जो भवनों को आकाशीय बिजली के गिरने से होने वाले नुकसान से बचाते हैं। अगर इस बिजली को जमीन के अंदर न ले जाकर एडाप्टर लगाकर, उसके पैरामीटर्स बदलकर, उसको ग्रिड में दे दिया जाये तो इसका वितरण मानवीय आवश्यक्ता के लिए किया जा सकता है।
मेघालय प्रांत जैसा नाम से ही स्पष्ट है, बादलों का घर है। जहां दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश होती है और सबसे ज्यादा बिजली गिरती है। इन बादलों को वेदों में पर्जन्य बादल कहा जाता है और विज्ञान की भाषा में ‘कुमुलोनिम्बस क्लाउड’ कहा जाता है। किसी हवाई जहाज को इस बादल के बीच जाने की अनुमति नहीं होती। क्योंकि ऐसा करने पर पूरा जहाज अग्नि की भेंट चढ़ सकता है। बादल फटना जो कि एक भारी प्राकृतिक आपदा है, जैसी उत्तराखंड में हुई, उसे भी इस विधि से रोका जा सकता है। अगर हिमालय की चोटियों पर ‘इलैट्रिकल कनवर्जन युनिट’ लगा दिये जाए और इस तरह पर्जन्य बादलों से प्राप्त बिजली को ग्रिड को दे दिया जाए तो उत्तर भारत की बिजली की आवश्यक्ता पूरी हो जायेगी और बादल फटने की समस्या से भी छुटकरा मिल जायेगा।
धरती की सतह से 50000 किमी. ऊपर धरती का चुम्बकीय आवर्त (मैग्नेटो स्फियर) समाप्त हो जाता है। इस स्तर पर सूर्य से आने वाली सौर्य हवाओं के विद्युत आवर्त कण (आयन्स) उत्तरी और दक्षिणी धु्रव से पृथ्वी में प्रवेश करते हैं, जिन्हें अरोरा लाईट्स के नाम से जाना जाता है। इनमें इतनी उर्जा होती है कि अगर उसको भी एक वेव गाइड के माध्यम से इलैट्रिकल कनवर्जन युनिट लगाकर ग्रिड में दिया जाये तो पूरी दुनिया की बिजली की आवश्यक्ता पूरी हो सकती है। डा. कपूर सवाल करते हैं कि भारत सरकार का विज्ञान व तकनीकी मंत्रालय क्यों सोया हुआ है ? जबकि हमारे वैदिक ज्ञान का लाभ उठाकर दुनियों के विकसित देश आकाशीय बिजली के प्रयोग करने की तैयारी करने में जुटे हैं।
Excellent sir
ReplyDeleteExcellent sir
ReplyDeleteGreat idea
ReplyDeleteAmazing thoughts. Reading first time on this concept. But solar power which is developed and booming now world wide can be compared with cloud electricity for potential benefits and ease of implementation.
ReplyDeleteIt would be better if references from Vedas be quoted here.
ReplyDeleteI have not done any study of Vedas but Sun as a central point of planet system (Brahammand) and source of energy.
ReplyDeleteVery impressive article indeed, Vineet Bhai. I am your fan(you know it).
ReplyDelete-Vinay Gulati, Moradabad