केन्द्रीय कानून मंत्री श्री राम जेठमलानी का बयान आया है कि क्रिकेट मैंच फिक्सिंग में आरोपित क्रिकेट खिलाडि़यों को देश माफ कर दे। जाहिर है कि उनकी इस दरियादिली के लिए क्रिकेट मैंच फिक्सिंग में आरोपित रहे सभी खिलाडि़यों ने बेहद राहत महसूस की होगी। यह इत्तेफाक ही है कि ऐसे कुछ खिलाडि़यों ने कानून मंत्री के सुपुत्र श्री महेश जेठमलानी को अपना वकील बनाया था। सही भी है कि इतने बड़े कांड में फंसने के बाद बहुत बड़े वकीलों की ही जरूरत होती है। अगर बड़े वकील न मिलें तो उनके सुपुत्रों से ही काम चलाया जाता है ताकि बड़े वकील की कृपा मिल सके। ऐसे वकील लेने पर फीस भी तगड़ी ही देनी होती है। इतनी कि आम आदमी अंदाजा भी नहीं लगा सकता। कानून मंत्री तो वकालत करते नहीं। इसलिए श्री राम जेठमलानी का उनके बेटे के मुवक्किल से कोई ताल्लुक होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। क्रिकेट खिलाडि़यों को माफी दिए जाने की बात तो उन्होंने अपने हृदय में उपजी करूणा के कारण कही है। पर उनके इस अप्रत्याशित वक्तव्य से देश की जनता जरूर हतप्रभ है। उसके मन में कई सवाल उठ रहे हैं।
जांच पूरी होने से पहले ही माफी की बात करना कहां तक उचित है। अगर यही बात है तो फिर देश की जेलों में लाखों लोग वर्षों से क्यों सड़ रहे हैं ? इनमें ऐसे नौजवान और युवतियां भी हैं जिन्हें छोटे-छोटे अपराधों के लिए वर्षों से गिरफ्तार करके रखा गया है। इन सब छोटे अपराधियों को भी ‘राम-राज्य’ स्थापित करने वाली भाजपा सरकार के चर्चित कानून मंत्री के दरबार में याचिका देनी चाहिए कि उन सबको भी आम माफी दे दी जाए। इससे कई फायदे होंगे। एक तो देश की अदालतों में वर्षों से लटके हुए करोड़ों मुकदमें एक झटके में समाप्त हो जाएंगे। दूसरा, इन मुकदमों में उलझे करोड़ गरीब किसान मजदूरों का मेहनत का पैसा वकीलों और कचहरियों में बर्बाद होने से बचेगा। तीसरा, भाजपा सरकार के वोट बैंक में आशातीत बढ़ोत्तरी होगी क्योंकि इस तरह रिहा हुए सभी लोग और उनके परिवारजन भाजपा सरकार की दरियादिली के मुरीद बन जाएंगे। खुद तो वे भाजपा को वोट देंगे ही अपनी ‘विशेष योग्यताओं’ के कारण लाठी-गोली के जोर पर दूसरों से भी वोट डलवा देंगे। इससे देश को लंबे समय तक एक ही सरकार के बने रहने का फायदा मिलेगा।
जब जेठमलानी जी इतनी दरियादिली पर उतर ही आए हैं तो उन्हें एक काम और करना चाहिए। 1986 से वे लगातार बोफोर्स कांड के पीछे पड़े हैं। अपनी काफी ऊर्जा और देश के काफी पैसा इस कांड की जांच के नाम पर देश और विदेशों में खर्च करवा चुके हैं। इस कांड की नौका पर बैठकर वो और उनके साथी राजनेता कई चुनावों की वैतरणी पार कर चुके हैं। फिर भी इस कांड में आज तक एक चूहा भी नहीं पकड़ा गया। क्यों न जेठमलानी जी बोफोर्स कांड के आरोपियों की भी आम माफी की घोषणा कर देते हैं। क्वात्रोची जैसे तमाम लोगों को नाहक अपना प्रिय देश भारत छोड़कर विदेशों में रहना पड़ रहा है। अगर उन पर भी जेठमलानी जी की निगाहेकरम हो जाए तो उनकी आने वाली सात पीढि़यां जेठमलानी जी को इस दरियादिली के लिए दिल से दुआ देंगी। इतनी ही नहीं उनकी इस दरियादिली से इंका नेता श्रीमती सोनिया गांधी खासतौर पर बड़ी राहत महसूस करेंगी। बेचारी को नाहक हर चुनाव के पहले ‘बोफोर्स-बोफोर्स’ की नाम-धुन सुननी पड़ती है। मन में तो वे जानती हैं कि यह सब चुनावी हथकंडा है जिसे वीपी सिंह से लेकर वाजपेयी जी तक प्रधानमंत्री पद हथियाने के लिए इस्तेमाल करते आए हैं। पर फिर भी अगर हर चुनाव के पहले इंकाईयों को ‘बोफोर्स-बोफोर्स’ सुनना पड़े तो उनके मन में चोट तो पहुंचती ही है। बोफोर्स मामले में अभयदान देकर जेठमलानी जी रातो-रात इंकाईयों के भी हृदय सम्राट बन जाएंगे। अबसे पहले चार बार भिन्न-भिन्न दलों के कंधे पर पैर रख कर राज्यसभा की सदस्यता का जुगाड़ करने वाले श्री जेठमलानी को अगली बार इंका ही राज्यसभा में भेज देगी।
वैसे देश के कानून की रक्षा के लिए जिम्मेदार बनाए गए केन्द्रीय कानून मंत्री जेठमलानी जी के लिए ऐसी दरियादिली दिखाना कोई नई बात नहीं है। आजकल उनकी दरियादिली अपने मंत्रालय की सीमाओं के बाहर जा पहुंची है। जिन मंत्रालयों में महत्वपूर्ण मामलों में फैसले लिए जा चुके हैं और उनमें बड़े-बड़े लोग फंसे हैं उनकी भी फाइलें जेठमलानी जी कानून मंत्रालय में मंगवा रहे हैं। उन पर नई ‘कानूनी’ राय दर्ज करवा कर उन फैसलों को बदलवा रहे हैं। दरअसल जेठमलानी जी का तो इतिहास ही ऐसी दरियादिली का रहा है। वे किसी भी बड़े घोटाले पर पहले खूब शोर मचाते हैं। जब उनके शोर से उनका लक्षित व्यक्ति पूरी तरह जख्मी हो जाता है और वह उनके चरणों में गिर कर ‘त्राहि माम्-त्राहि माम्‘ कहता है, फिर पता नहीं दोनो के बीच क्या होता है कि अचानक श्री राम जेठमलानी जी के हृदय में शरणागत के प्रति करूणा उपज जाती है। ऐसी अनेक घटनाए देशवासियों को याद है।
हर्षद मेहता कांड में क्या हुआ था ? श्री राम जैठमलानी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नरसिंह राव पर आरोप लगाया कि उन्होंने हर्षद मेहता से नोटो का भरा एक सूटकेस रिश्वत में लिया। जेठमलानी जी ने खूब बवाल मचाया। मीडिया में छाए रहे। सरकार का काम-काज ढीला पड़ गया। पर फिर अचानक पता नहीं क्या हुआ कि उनके मन में नरसिंह राव जी के करूणा उपजी और उनके मुवक्किल ने अपना बयान बदल दिया। उसे यही याद नहीं रहा कि वह प्रधानमंत्री निवास जैसे महत्वपूर्ण स्थान पर सूटकेस लेकर कितने बजे गया। 8 बजे या 11 बजे ? जब समय ही याद नहीं रहा तो बाकी आरोपों का भी क्या भरोसा किया जाता ? मामला अपने आप ठंडा पड़ गया।
1996 में भाजपा की अल्पमत की 13 दिन चली सरकार में बनाए गए कानून मंत्री श्री राम जेठमलानी ने अपना नया पदभार ग्रहण करते ही अपनी दरियादिली का नमूना पेश किया। उन्होंने घोषणा की कि हवाला कांड में आरोपित भाजपा नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी निर्दोष हैं। यह भी कि कानून मंत्री की हैसियत से श्री जेठमलानी इस आशय का शपथ पत्र दाखिल करेंगे। जब कानून मंत्री न्यायालय में चल रहे मुकदमें के बारे में ऐसी घोषणा करेंगे तो जांच एजेंसियों को क्या संकेत जाएगा, जांच बंद कर दो और आरोपियों के रिहा होने का रास्ता साफ कर दो ? ये जेठमलानी जी की दरियादिली ही तो है कि वे कानून मंत्री होकर भी गैर-कानूनी घोषणा करने से भी नहीं हिचकते।
2 सितंबर 1993 को तत्कालीन सांसद श्री राम जेठमलानी ने हवाला कांड उजागर करने वाली कालचक्र वीडियों कैसेट के प्रैस-प्रिव्यू के दौरान हवाला आरोपियों के खिलाफ खूब जहर उगला। उन्हें सख्त सजा दिलवाने की घोषणा की। इसके बाद उन्होंने हवाला कांड की ईमानदार जांच की मांग करने वाली जनहित याचिका तैयार करवाने में पूरी मदद की। पर फिर अचानक उनके मन में करूणा उपजी और उन्होंने कश्मीर के आतंकवादियों से जुड़े हवाला कांड के आरोपियों को बचाने का काम शुरू कर दिया। उनकी परोपकारिता इस हद तक बढ़ गई कि उन्होंने अपने मुवक्किल के विरोधी पक्ष की अदालत में रक्षा करने में भी कोई संकोच नहीं किया। इस बात की भी परवाह नहीं की कि उनका यह कदम वकालत के पेशे की सभी नैतिक सीमाओं को पार करने वाला था और इस जुर्म में वकालत करने का उनका अधिकार तक छिन जाने का खतरा था। दरअसल जेठमलानी जी का मानना है कि जब दरियादिली ही दिखानी हो तो कंजूसी क्यों की जाए ? चाहे अपना मान चला जाए या प्रैक्टिस करने का लाइसेंस ही क्यों न छिन जाए।
ये दूसरी बात है कि जेठमलानी जी प्रायः ऐसी दरियादिली बडे़ अपराधियों, ताकतवर, धनी और मशहूर लोगों के लिए ही दिखाते हैं। गरीब मुवक्किल तो उन जैसे महंगे वकील के दरवाजे पर दस्तक देने का भी हिम्मत नहीे कर सकता। पर कानून मंत्री बन कर तो उन्हें अब वकालत में अपना वक्त भी खराब नहीं करना है। बस कानून मंत्रालय के अधिकारियों से एक ऐसा विधेयक तैयार करवाना है जिसमें देश के हर अपराधी को अभयदान की घोषणा की जाए। आखिर को तो हमारा देश दुनियां का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। फिर इसमें कानून की निगाह में सब बराबर क्यों न हों? जब सैकड़ों करोड रुपए के घोटाले करके, देशवासियों से झूठ बोल कर तमाम लोग बड़े-बड़े पदों पर बैठे रहते हैं और उनका कानून कुछ नहीं बिगाड़ता तो फिर देश के करोड़ों मदतादाओं के मन में कानून का डर क्यों रहे ? उन्हें भी आजाद भारत में उसी आजादी से अपराध करने की छूट होनी चाहिए जिस आजादी से यह छूट देश के हुक्मरानों और कुलीन वर्ग को मिली हुई है। आम माफी का ऐसा विधेयक लाकर जेठमलानी जी अपने दायित्व का निर्वाह ही करेंगे। क्योंकि संविधान के अनुसार हर नागरिक को समान अधिकार प्राप्त है और कानून मंत्री के नाते उनका फर्ज है कि वे आम जनता के हक की रक्षा करें। वैसे भी पुलिस आम अपराधियों को सजा दिलवाना नहीं चाहती। उन्हें सजा का डर दिखा कर उनसे रकम ऐंठना चाहती है। जैसा आजकल मैंच फिक्सिंग के मामले में हो रहा है। एक तरफ तो कानून मंत्री मैंच फिक्सिंग के प्रमुख आरोपियों को माफ करने की बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ देश के लगभग दो सौ व्यापारियों को मैंच फिक्सिंग में गिरफ्तार किए जाने का डर दिखा कर उनसे पैसा वसूला जा रहा है।
वैसे भी अगर यही रवैया चलता रहा कि देश के ताकतवर अपराधी छूटते रहे और मध्यम वर्गीय पेशेवर लोग, व्यापारी व गरीब-किसान-मजदूर सरकारी जांच एजेंसियों की धौस, धमकियों और लूट का शिकार होते रहे तो हालात काबू के बाहर हो जाएंगे। फिर देश के हर राज्य में जनता का आतंकवाद पैदा होगा। अगर देश के सभी छोटे अपराधी संगठित हो जाएं और ‘अखिल भारतीय छोटे अपराधी महासंघ’ बना कर ये मांग करें कि या तो बड़े घोटालों में लिप्त हुक्मरानों के खिलाफ ईमानदारी से जांच करवा कर सजा दी जाए या फिर छोटे अपराधियों के विरूद्ध दर्ज सभी आपराधिक मामलों को बिना शर्त समाप्त कर दिया जाए, तो सरकार और उसके कानून मंत्री किस मुंह से मना करेंगे?
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