Friday, June 23, 2000

इस्का¡न के ‘धर्म गुरूओं’ पर 1600 करोड़ रुपए के हर्जाने का दावा क्यों ?


पिछले हफ्ते दुनिया भर के अखबारों में खबर छपी कि 44 किशोरों ने अमरीका के शहर डल्ला¡स में इस्का¡न (अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ) के गुरूओं के विरूद्ध 1600 करोड़ रुपए (400 मिलियन डा¡लर) के हर्जाने का दावा दायर किया है। दावा दायर करने वाले किशोर इस्का¡न द्वारा चलाए जा रहे गुरूकुलों में पढ़ कर बड़े हुए हैं। इन बच्चों ने शपथ पत्र दाखिल करके आरोप लगाए हैं कि जब वे इस्का¡न के मायापुर (पश्चिमी बंगाल), वृंदावन (उत्तर प्रदेश) व टैक्सास (अमरीका) आदि स्थानों पर स्थित गुरूकुलों में पढ़ते थे तो उनके शिक्षकों और इस्काॅन के गुरूओं ने उनका यौन शोषण किया, उन्हें प्रताडि़त किया, उन्हें अमानवीय अवस्थाओं में रहने पर मजबूर किया व आतंकित करके रखा। इस्का¡न गुरूकुल के इन पूर्व विद्यार्थियों का यह भी आरोप है कि इस्का¡न की सर्वोच्च प्रशासनिक इकाई जीबीसी (गवर्निंग बा¡डी कमीशन) के सदस्यों ने उन वर्षों में इन छात्रों व उनके अभिभावकों की शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया। इतना ही नहीं छात्रों को प्रताडि़त करने वाले और उनका यौन शोषण करने वाले गुरूओं को संरक्षण दिया। इस्का¡न के धर्म गुरूओं के ऐसे गैर-जिम्मेदाराना और अनैतिक आचरण से दुखी होकर मजबूरी में इन बच्चों को यह कानूनी कदम उठाना पड़ा। जबसे इस मुकदमे की खबर पूरी दुनिया के अखबारों में छपी है तब से इस्का¡न से जुड़े लाखों कृष्ण भक्त परिवारों के मन खिन्न हैं। जिनमें एक तरफ तो बंगाल और उड़ीसा के निर्धन कृषक परिवारों से इस्का¡न में आने वाले हजारों युवा भक्त हैं तो दूसरी तरफ डाक्टरी, इंजीनियरी, चार्टड एकाउंटेंसी जैसी डिग्रियां प्राप्त हजारों मेधावी लोग भी हैं। भारत और विदेशों में रहने वाले लाखों साधारण परिवार हैं तो भारत के सबसे धनी परिवारों में से एक के मुखिया श्रीचंद्र हिन्दूजा व अमरीका की फोर्ड कार कंपनी के निर्माता के पौत्र एलफ्रैड फोर्ड तक इस्का¡न के सदस्यों में शामिल हैं। क्योंकि अन्य भक्तों की तरह ही श्रीचंद्र हिन्दूजा दुनियां के जिस शहर में भी हों रोजाना सुबह इस्का¡न के मंदिर में श्रृंगार आरती में बड़ी श्रद्धा से हिस्सा लेते हैं। एलफ्रैड फोर्ड ने तो दो दशक पहले ही इस्का¡न के संस्थापक आचार्य स्वामी प्रभुपाद की शरण ले ली थी। उनका दीक्षा नाम अम्बरीश दास है व उन्होंने एक भारतीय मूल की कृष्ण भक्तिन से विवाह किया है। यह फोर्ड परिवार इस्का¡न की पूजा पद्धति व नियमों का कड़ाई से पालन करता है। अमरीका के सबसे धनी परिवारों में से एक परिवार के प्रमुख सदस्य का दो दशकों तक निष्ठा से कृष्ण भक्त बने रहना असाधारण बात नहीं है। इसी तरह भारत के ही नहीं पूरी दुनिया के लाखों परिवार इस्का¡न से भावनात्मक रूप से जुड़े हैं। इन भक्तों ने प्रभुपाद की शिक्षाआs को समझने के बाद ही इस्का¡न को अपनाया है।
दरअसल इस्का¡न के मंदिरों की भव्यता, वहां स्थापित श्री श्री राधाकृष्ण भगवान के अत्यंत आकर्षक विग्रहों का नित्य होने वाला भव्य श्रृंगार इन मंदिरों में निरंतर होने वाला हरिनाम संकीर्तन व श्रीमद् भागवत् प्रवचन, सुस्वादु प्रसादम्, मन मोहक पुस्तकें, आडियो कैसेट व कृष्ण भक्ति रस में डूब कर अनके भारतीय उत्सवों का मनाया जाना, हर आगंतुक का मन मोह लेता है। जैसी सफाई और व्यवस्था  इस्का¡न के विश्व भर में फैले लगभग 500 मंदिरों और केंद्रों में रोज देखनेे को मिलती है वैसी व्यवस्था आमतौर पर हिंदू मंदिरों में दिखाई नहीं देती। इस सबसे भी ज्यादा आकर्षण इस बात का है कि  इस्का¡न के संस्थापक आचार्य स्वामी प्रभुपाद ने भगवत् गीता, श्रीमद् भागवतम् व श्री चैतन्य चरितामृत सहित अनेक अन्य वैदिक ग्रंथों का जो अनुवाद व जैसी टीकाएं की हS, वे आध्यात्मिक ज्ञान के पिपासुओं और भक्त-हृदयों को तृप्त कर देती है। यही कारण है कि प्रभुपाद जी न सिर्फ यूरोप और अमरीका के ईसाईयों को बल्कि साम्यवादी देशों के लोगों को, कुछ मुसलमानों को और यहां तक कि रागरंग में डूबने वाले अफ्रीका के लोगों तक को भी कृष्ण भक्त बनाने में सफल हो सके। इसलिए जब  इस्का¡न के विरूद्ध कोई समाचार छपता है तो यह स्वभाविक ही है कि  इस्का¡न से जुड़े देश-विदेश में रहने वाले भारतीय व विदेशी, सभी भक्तों को बहुत पीड़ा होती है। एक तो वैसे ही भौतिक संसार दुख और व्याधियों का घर है। जिसमें हर कदम पर संकट मार्ग रोके खड़े रहते हैं। ऐसे में अगर किसी भाग्यशाली जीव को आध्यात्मिक मार्ग मिल जाए तो  उसके आनंद का ठिकाना नहीं रहता। ये एक ऐसी अनुभूति है जिसे केवल अनुभव से ही जाना जा सकता है। निरीश्वरवादियों को यह कोरी बकवास लगेगा। पर उन्हें भी सोचना चाहिए कि ऐसा क्यों है कि जिन देशों में पिछले आठ दशक से साम्यवाद का बोलबाला रहा वहां भी लोगों की आध्यात्मिक जिज्ञासाओं को कुचला नहीं जा सका। आज इन देशों में सभी आध्यात्मिक आंदोलन बहुत तेजी से फैलते जा रहे हैं।
इसका अर्थ यह नहीं कि जिस आंदोलन पर धर्म या आध्यात्म का ठप्पा लग गया उसमंे कोई दोष होगा ही नहीं। बल्कि देखने में तो यह आ रहा है कि धर्म और आध्यात्म के नाम पर बहुत सारे धर्म गुरू भोगमय और अनैतिक आचरण कर रहे हैं। वैसा दुराचरण करने से पहले सामान्य लोग दस बार सोचेंगे। फिर वो चाहे ईसाई मिशनरियों के बीच फैले अवैध संबंधों की बात हो या किसी और धर्म के मठाधीशों के बीच पनप रहा लालच, भ्रष्टाचार, पद के लिए मारधाड़, ईष्या, द्वेष या हिंसा का वातावरण हो। कोई धार्मिंक आंदोलन इन बुराइयों से अछूता नहीं है। इसलिए यह जरूरी है कि जो लोग जिस धर्म या सम्प्रदाय से जुड़ें, उसकी पवित्रता सुनिश्चित करने के लिए हमेशा तत्पर रहें। उससे  बच कर भागें नहीं। यह न सोचें कि हम तो ध्यान करने या भजन करने आए हैं। हमारी बला से धर्म गुरू, सन्यासी या संस्थाओं के प्रबंधक चाहे जो करें । वरना फिर अचानक जब धर्म गुरूओं के आचरण के बारे में अप्रिय समाचार मिलता है तो हमारा दिल टूट जाता है। हमारी आस्थाएं हिल जाती है। हमारी आध्यात्मिक प्रगति रूक जाती है। कई बार तो हम धर्म विमुख हो जाते हैं। इसलिए हमें यह याद रखना होता है कि कबूतर के आंख मीच लेने से बिल्ली के रूप में आई मौत भागा नहीं करती।
 इस्का¡न के धर्म गुरूओं द्वारा बालकों का गुरूकुलों में मानसिक और शारीरिक शोषण किया जाना कोई
साधारण घटना नहीं है। जरा सोचिए कि उन अभिभावकों के मन पर क्या गुजरी होगी जिन्होंने दुनियां के कोनों-कोनों से अपने लाड़ले सपूतों को इसलिए  इस्का¡न के गुरूकुलों में पढ़ने भेजा था जिससे कि वे भारत के सनातन वैदिक ज्ञान व संस्कृति की शिक्षा पा सकें। पर बदले में उनके अबोध बच्चों को मिला क्या, प्रताड़ना और यौन शोषण ? ऐसे दुर्भाग्यशाली अनुभव  इस्का¡न गुरूकुलों में पढ़े लगभग एक हजार बच्चों को हुए। जिससे आज इन किशोरों के मन में  इस्का¡न के धर्म गुरूओं के प्रति घृणा भरी है। क्योंकि इन किशोरों ने  इस्का¡न के अनेक धर्म गुरूओं के केसरिया चोलों के भीतर पनप रहीं वासनाओं को देखा और भोगा है।
जिन शिकायतों को लेकर इन किशोरों ने मुकदमा दायर किया है वे पिछले बीस वर्षों में घटी घटनाओं पर
आधारित है। इसलिए  इस्का¡न के धर्म गुरूओं के लिए यह और भी शर्म की बात है कि यह सब इतने लंबे समय तक उनकी नाक के नीचे होता रहा और वे ऐसी गंभीर शिकायतों को नजरंदाज करते रहे। इतना ही नहीं ऐसे निकृष्ट कार्यों में लिप्त अपने साथी धर्म गुरूओं को संरक्षण देते रहे। अब जब पानी सर के ऊपर से गुजर गया तो घबड़ा रहे हैं। आने वाले दिनों में जब इस मुकदमे की हर तारीख पर इन बच्चों के बयानों की खबरें दुनिया भर के अखबारों में छपेंगी तो  इस्का¡न के ये धर्म गुरू किस-किस का मुंह रोकेंगे ? इनकी लापरवाही और गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार का नतीजा  इस्का¡न के दुनिया भर में फैले लाखों भक्तों को नाहक भुगतना पड़ेगा। हर ऐसी घटना के बाद इस्काॅन के मंदिरों में जाने वाले लोगों को  ये धर्म गुरू आज तक यही कह कर बहकाते आए हैं कि ऐसी खबर छापने वाले उनके प्रचार की क्षमता और व्यापकता से ईष्या करते हैं। ये लोग प्रभुपाद जी के पुण्य आंदोलन को बदनाम करना चाहते हैं। ये लोग विधर्मियों द्वारा  इस्का¡न को बदनाम करने के लिए छोड़े गए हैं। ये लोग नर्क को जाएंगे। जो इनकी बात सुनेगा वह वैष्णव अपराध व गुरू अपराध का दोषी होगा। मंदिर में रहने वाले पूर्णकालिक भक्तों को यह कह कर डराया जाता रहा कि ऐसे लोगों की बात सुनने वालों को  इस्का¡न से निकाल दिया जाएगा और निकाला भी गया। प्रभुपाद ने  इस्का¡न को एक ऐसा विशाल घर बनाया था जिसमें सारा विश्व सुख रह सके। पर आज इन छद्म-धर्म गुरूओं के अहंकारी, लोभी और भोगी आचरण के कारण प्रभुपाद के हजारों समर्पित शिष्य इस्का¡न छोड़कर अलग-थलग पड़े हैं। अकेले वृंदावन में ही तमाम विदेशी महिलाएं ऐसी हैं जो  इस्का¡न जीबीसी के रवैए से नाजारा होकर वृंदावन में अलग रह रही हैं। फिर भी जीबीसी को समझ नहीं आ रहा। अभी हाल ही में उसने भारत के कुछ वरिष्ठ भक्तों को  इस्का¡न से निकालने का असफल प्रयास किया। जिनमें मधु पंडित दास शामिल हैं। जिन्होंने बंग्लौर में  इस्का¡न के सर्वश्रेष्ठ मंदिर की स्थापना व हजारों लोगों को भक्त बनाने का कीर्तिमान बनाया है। इन वरिष्ठ भक्तों ने अब जीबीसी को कलकत्ता हाई कोर्ट में चुनौती दी है। एक के बाद एक मुकदमों में हारने के बाद भी जीबीसी को अपनी गलती समझ में नहीं आ रही। जीबीसी के गैर-जिम्मेदाराना कार्यों के कारण प्रभुपाद का यह गंभीर आंदोलन दुनियां के मीडिया में निंदा और उपहास का पात्र बन रहो है। पर अब तो किशोरों ने बीड़ा उठाया है और मामला अदालत में है। आरोप लगाने वाले कोई बाहर के लोग नहीं हैं। भक्त परिवारों के ही भुक्त-भोगी बच्चे हैं, जिनके हलफिया बयान को कानूनन पूर्ण वैधता प्राप्त है। यह मुकदमा कोई मजाक नहीं। कुछ वर्ष पहले अमरीका में ही रोबिन जार्ज नाम की एक किशोरी ने  इस्का¡न के धर्म गुरूओं के विरूद्ध मानसिक प्रताड़ना का मुकदमा जीत कर  इस्का¡न से करोड़ों रूपए का हर्जाना वसूल किया था। यह मुकदमा तो उससे सौ गुना ज्यादा नुकसान कर सकता है। इसका मुआवजा देने में तो  इस्का¡न के अमरीका में स्थित पचासों मंदिरों की संपत्ति बेचनी पड़ सकती है। इस्काॅन के प्रचार कार्य पर जो विपरीत प्रभाव पड़ेगा वह अलग। इसलिए इस घटना की उपेक्षा नहीं की जा सकती।
ऐसी स्थिति आई क्यों ? दरअसल  इस्का¡न के संस्थापक आचार्य श्री प्रभुपाद जी ने यह साफ निर्देश दिए थे कि उनकी शिक्षाओं को बिना फेरबदल के यथावत आने वाली पीढि़यों को सौपा जाएगा तो यह आंदोलन दस हजार वर्ष तक चलेगा। पर उनके अति महत्वाकांक्षी अमरीकी शिष्यों ने खुद की लाभ, पूजा, प्रतिष्ठा के लोभा में प्रभुपाद के शरीर त्यागते ही 1977 में खुद को गुरू घोषित कर दिया। यहां तक कि उन्होंने 9 जुलाई 1977 को प्रभुपाद द्वारा सभी मंदिरों के लिए जारी, भविष्य में इस्का¡न में दीक्षा दिए जाने संबंधी, लिखित आदेश की भी अवहेलना की। साजिशन इस स्पष्ट आदेश को इस्का¡न के अब तक हुए हजारों प्रकाशनों में नहीं छपने दिया। ताकि लोगों तक सच न पहुंच सके। अपनी कारस्तानियों को छिपाने के लिए प्रभुपाद द्वारा रचित ग्रंथों में बदलाव किए। आध्यात्मिक योग्यता या गुरू द्वारा प्रदत्त आदेश के बिना ही एक हास्यादपद चुनाव प्रक्रिया द्वारा गुरू बनाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते गुरू जैसे महाभागवत् पद को पाने के लालचियों की इस्का¡न में कतार लग गई। परिणाम स्वरूप जीबीसी को धमकी और दबाव के चलते भी बहुत से लोगों को गुरू बनाना पड़ा। अपने आचार्य के चरणों में किए गए इस गुरू अपराध के कारण ही इस तरह बने स्वघोषित लगभग सौ गुरूओं में से आधों का पिछले बीस वर्षों में पतन हो गया। कोई अपनी शिष्या ले भागा तो कोई गुरूकुल के बालकों से अप्राकृतिक यौनाचार में लिप्त पाया गया। कोई इस्का¡न का धन ही ले भागा तो कोई दूसरे अवैध धंधों में फंस गया। यहां तक कि इस्का¡न की सर्वोच्च प्रशासनिक इकाई जीबीसी के अध्यक्ष व हजारों भक्तों को शिष्य  बनाने वाला गुरू तो जर्मनी की एक मालिश करने वाली महिला के साथ ही भाग गया। अगर यह स्वघोषित गुरू आध्यात्मिक योग्यता और गुरू के आदेश के अनुसार चले होते तो शायद इनका पतन थोक में नहीं हुआ होता। आज जीबीसी में 95 फीसदी सदस्य ऐसे ही स्वघोषित गुरू हैं। जो अपने गुरू क्लब के सदस्यों के विरूद्ध कोई शिकायत सुनने को तैयार नहीं होते। उल्टा अनैतिक कृत्यों में लिप्त अपने साथी गुरूओं को अंत तक बचाने में लगे रहते हैं। जीबीसी कहती है कि उसने प्रभुपाद के आदेश अनुसार ही गुरू बनाए हैं। फिर क्या वजह है कि उसे पिछले बीस वर्ष में कई बार गुरू बनाने की प्रक्रिया बदलनी पड़ी ? जाहिर है कि वे अपने आचार्य प्रभुपाद के आदेश से हट कर चल रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे प्रभुपाद ने लिखित आदेश दिए थे कि गुरूकुल के बच्चों को कभी प्रताडि़त न किया जाए। उन पर कभी हाथ न उठाया जाए। उन्होंने तो यह तक कहा था कि जो शिक्षक बच्चों पर हाथ उठाता है वह शिक्षक बनने के योग्य नहीं। पर प्रभुपाद के अन्य आदेशों की तरह ही जीबीसी ने इस आदेश की भी अवहेलना की। परिणाम स्वरूप आज इस्का¡न को 1600 करोड़ रुपए के मुआवजे के दावे का मुकदमा अमरीका में झेलना पड़ रहा है। इधर कलकत्ता हाई कोर्ट में जीबीसी जिस महत्वपूर्ण मुकदमे में फंसी है, वहां उसे सिद्ध करना है कि उसने गुरू बनाने के मामले में प्रभुपाद के 9 जुलाई 1977 के आदेश की अवहेलना नहीं की है। यह कितने दुख की बात है कि मुट्ठी भर महत्वाकांक्षी स्वघोषित धर्म गुरूओंके कारण इतना सुंदर आंदोलन अपनी शक्ति और साधनों को बेकार के मुकदमों में बर्बाद कर रहा है । इससे पहले कि रोबिन जार्ज केस की तरह इस्का¡न एक बार फिर भारी हर्जे-खर्चे की मार सहे, इस्का¡न के शुभचिंतकों और भक्तों को सामूहिक रूप से जीबीसी पर दबाव डालना चाहिए कि वह गुरू परंपरा के बारे में उठाए गए सभी सवालों का, प्रभुपाद की शिक्षाओं के आधार पर, संतुष्टिपूर्ण उत्तर दे और अगर जीबीसी ऐसा नहीं कर पाती है तो इस्का¡न को बर्बाद करने से पहले अपनी महत्वाकांक्षाओं को त्याग कर इस शक्तिशाली आंदोलन को आगे बढ़ाने में सहायक बने, बाधक नहीं।

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