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Monday, March 5, 2018

एक योद्धा आई.ए.एस. की प्रेरणास्पद जिंदगी

ब्रज परिक्रमा के विकास के लिए सलाह देने के सिलसिले में हरियाणा के पलवल जिले के डीसी. मनीराम शर्मा से हुई मुलाकात जिंदगी भर याद रहेगी। अपने 4 दशक के सार्वजनिक जीवन में लाखों लोगों से विश्वभर में परिचय हुआ है। पर मनीराम शर्मा जैसा योद्धा एक भी नहीं मिला। वे एक पिछडे गांव के, अत्यन्त गरीब, निरक्षर मजदूर माता-पिता की गूंगी-बहरी संतान हैं। फिर भी पढ़ाई में लगातार 10 सर्वश्रेष्ठ छात्रों में आने वाले मनीराम ने तीन बार आईएएस. की परीक्षा पूरी तरह उत्तीर्ण की। फिर भी भारत सरकार उनके दिव्यांगों का हवाला देकर, उन्हें नौकरी पर लेने को तैयार नहीं थी। भला हो ‘टाइम्स आफ इंडिया’ की संवाददाता रमा नागराजन का जिसने जुनून की हद तक जाकर मनीराम के हक के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी। इंडिया गेट पर हजारों लोगों के साथ ‘कैडिंल मार्च’ किये। रमा का कहना था कि ‘गूंगा-बहरा’ मनीराम नहीं ‘गूंगी-बहरी’ सरकार है।

आखिर ये संघर्ष सफल हुआ और मनीराम शर्मा को मणिपुर काडर आवंटित हुआ। मैंने जब रमा नागराजन को इस समर्पित पत्रकारिता के लिए बधाई दी, तो उसका कहना था कि मैंने कुछ नहीं किया, सबकुछ मनीराम के अदम्य साहस, कड़े इरादे और प्रबल इच्छा शक्ति के कारण हुआ। वास्तव में मनीराम के संघर्ष की कहानी जहां एक तरफ पत्थर दिल इंसान को भी पिघला देती है, वहीं इस देश के हर संघर्षशील व्यक्ति को जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

राजस्थान के अलवर जिले के गांव बंदनगढ़ी में 1975 में जहां मनीराम का जन्म हुआ, वहां कोई स्कूल नहीं था। केवल गांव के मंदिर में कुछ हिंदी धर्मग्रंथ रखे थे। इस तरह श्री रामचरित मानस जी व श्रीमद्भागवत् जी को मनीराम ने दर्जनों बार घोट-घोटकर पढ़ा। ये भी इस गूंगे-बहरे बच्चे को पिता की मार से बचकर करना पढ़ता था, जो इसे भेड़ चराने को कहते थे। दुर्भाग्यवश बहरापन उसके परिवार में है। उसकी मां, दादी व दोनो बहनें भी बहरी थी।

मनीराम को तपती रेत पर नंगे पैर 5 किमी. चलकर स्कूल जाना पड़ता था। उसके मन में एक ही लगन थी कि बिना पढ़े-लिखे, वह अपने परिवार को इस गरीबी से उबार नहीं पायेगा। उसने इतनी मेहनत की कि दसवीं और बारहवी में बोर्ड की परीक्षा में क्रमशः पांचवी और सांतवी स्थिति पर आया। माता-पिता के लिए पटवारी या स्कूल का अध्यापक बनना, किसी कलैक्टर बनने से कम नहीं था। जो अब वो बन सकता था। पर उसे तो आगे जाना था। उसके प्राध्यापक ने उसके पिता को राजी कर लिया कि मनीराम को अलवर के कालेज में भेज दिया जाए, जहां ट्यूशन पढ़ाकर मनीराम ने पढ़ाई की और राज्य की लिपिक वर्ग की परीक्षा में सफल हो गया। पर वो आगे बढ़ना चाहता था । उसे पीएचडी करने का वजीफा मिल गया। पीएचडी तो की पर मन में लगन लग गई कि आईएएस में जाना है। सबने हतोत्साहित किया कि बहरे लोगों के लिए इस नौकरी में कोई संभावना नहीं है, पर उसने फिर भी हिम्मत नहीं हारी।

2005 के संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। फिर भी भारत सरकार ने उसे बहरेपन के  कारण नौकरी देने से मना कर दिया। मनीराम ने हिम्मत नहीं हारी और 2006 में फिर ये परीक्षा पास की। इस बार उन्हें पोस्ट एंड टैलीग्राफ अकांउट्स की कमतर नौकरी दी गई। जो उन्होंने ले ली। तब उन्हें पहली बार एक बड़े डाक्टर ने बताया कि आधुनिक तकनीकी के आपरेशन से उनका बहरापन दूर हो सकता है। पर इसकी लागत 7.5 लाख रूपये आयेगी। मनीराम के क्षेत्र के सांसद ने विभिन्न संगठनों से 5.5 लाख जुटाये, बाकी कर्ज लिया। आपरेशन सफल हुआ और इस तरह 25 वर्ष बाद मनीराम शर्मा सुन सकते थे। पर इतने साल बहरे रहने के कारण उनकी बोली स्पष्ट नहीं थी। जब कुछ सुना ही नहीं, तो बोल कैसे पाते? ‘स्पीच थेरेपी’ के लिए एक लाख रूपया और बहुत समय चाहिए था। पर उन्हें तो लाल बहादुर शास्त्री अकादमी में प्रशिक्षण के लिए जाना था। मनीराम ने इन विपरीत परिस्थतियों में कड़ा अभ्यास जारी रखा। नतीजतन अब वो बोल और सुन सकते थे।

एक बार फिर उसी सिविल सेवा परीक्षा में बैठे और 2009 में फिर तीसरी बार उत्तीर्ण हुए। इस बार उन्हें मणिपुर में उप जिलाधिकारी बनाया गया। 2015 में उनका काडर बदलकर हरियाणा मिल गया। तब से वे मुस्तैदी से अपना दायित्व निभा रहे हैं। उनके हृदय में गरीबों और दिव्यांगों के लिए सच्ची श्रद्धा है। जिनके कल्याण के कामों में वे जुटे रहते हैं। पिछले महीने जब मैं उनसे मिला, तो वे गदगद हो गये और बोले कि अपने छात्र जीवन से वे मेरे बारे में और मेरे लेखों को अखबारों में पढ़ते आ रहे हैं। जिस बच्चे के माता-पिता निरक्षर और मजदूर हों और गांव में अखबार भी न आता हो, उसने ये लेख कैसे पढ़े होंगे? मनीराम बताते हैं कि दूसरे गांव के स्कूल से आते-जाते रास्ते में चाट-पकौड़ी के ठेलों के पास जो अखबार के झूठे लिफाफे पड़े होते थे, उन्हें वे रोज बटोरकर घर ले आते थे। फिर पानी से उनका जोड़ खोलकर उनमें छपी दुनियाभर की खबरे पढ़ते थे। इससे उनका सामान्य ज्ञान इतना बढ़ गया कि उन्हें सिविल सेवा परीक्षा में सामान्य ज्ञान में काफी अच्छे अंक प्राप्त हुए। क्यों है न कितना प्रेरणास्पद मनीराम शर्मा का जीवन संघर्ष ?