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Monday, November 10, 2025

सुप्रीम कोर्ट का आदेश और आवारा कुत्तों की समस्या!

भारत में आवारा कुत्तों की समस्या एक जटिल सामाजिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा रही है। बीते शुक्रवार को  सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी किया है जिसमें रेलवे स्टेशनों, अस्पतालों, स्कूलों सहित अन्य सार्वजनिक स्थलों से आवारा कुत्तों को तुरंत हटाने और उन्हें नसबंदी, टीकाकरण के बाद निश्चित आश्रमों में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया गया है। साथ ही कोर्ट ने साफ किया है कि इन कुत्तों को उनकी मूल जगह वापस नहीं छोड़ा जाएगा, ताकि इन सार्वजनिक स्थलों से उनकी उपस्थिति खत्म हो सके। यह फैसला भारत में आवारा कुत्तों से जुड़ी बढ़ती समस्या, जैसे कि कुत्ते के काटने की घटनाओं में वृद्धि को देखते हुए लिया गया है। 

सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की बेंच ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि सभी राज्य सरकारें और स्थानीय निकाय दो सप्ताह के अंदर सभी सरकारी और निजी स्कूलों, अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों, बस स्टैंड आदि की पहचान करें जहां आवारा कुत्ते उपस्थित हैं। इसके बाद स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी होगी कि वे इन कुत्तों को पकड़कर सुरक्षित आश्रमों में स्थानांतरित करें, जहां उन्हें न सिर्फ नसबंदी और टीकाकरण दिया जाएगा, बल्कि उनकी देखभाल भी सुनिश्चित की जाएगी। कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी है कि यदि कोई व्यक्ति या संगठन इस कार्रवाई में बाधा डालता है तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। यह आदेश 13 जनवरी 2026 को समीक्षा के लिए पुनः लाया जाएगा।


जानवर प्रेमियों और पशु अधिकार संगठनों ने इस आदेश पर व्यापक असंतोष जताया है। उनका कहना है कि इस तरह के आदेश से कुत्तों के प्रति चिंता और संरक्षण कम हो सकता है। कई संगठन इस बात पर जोर देते हैं कि नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को उनके मूल क्षेत्र में ही जारी रखना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से इलाके में कुत्तों की आबादी नियंत्रित रहती है और कुत्तों के व्यवहार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वे पशु कल्याण बोर्ड के पुराने सुझावों का हवाला देते हैं, जिनमें कहा गया है कि आवारा कुत्तों का पुनः उनके क्षेत्र में छोड़ना बेहतर तरीका है न कि उन्हें जोर जबरदस्ती आश्रमों में बंद करना। कई जानवर प्रेमी और समाजसेवी समूह आशंकित हैं कि इस कदम से आवारा कुत्तों की संख्या और व्यवहार संबंधी समस्याएँ बढ़ सकती हैं।

पशु प्रेमी, जो जानवरों के कल्याण के प्रति संवेदनशील होते हैं, उन्हें इस निर्णय को एक सकारात्मक कदम के रूप में देखना चाहिए। यह आदेश केवल कुत्तों को सार्वजनिक स्थानों से हटाने की बात नहीं करता, बल्कि उनके लिए एक सुरक्षित और मानवीय वातावरण प्रदान करने पर भी जोर देता है। नसबंदी और टीकाकरण जैसे कदम न केवल कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करेंगे, बल्कि उनके स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाएंगे। सड़कों पर रहने वाले कुत्ते अक्सर भोजन, पानी और चिकित्सा सुविधाओं की कमी से जूझते हैं, जिसके कारण वे आक्रामक हो सकते हैं। आश्रय स्थलों में उन्हें नियमित भोजन, चिकित्सा देखभाल और सुरक्षित स्थान मिलेगा, जो उनके जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाएगा।


वहीं सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए सरकार को कई महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे। यदि इसे सही ढंग से अमल में लाया जाए तो यह पूरे देश के लिए एक मॉडल बन सकता है। केवल दिल्ली में अनुमानित 10 लाख आवारा कुत्तों को देखते हुए, इसे अमल करना एक चुनौती हो सकती है। सरकार को बड़े पैमाने पर आधुनिक आश्रय स्थल बनाने होंगे, जो स्वच्छता, भोजन और चिकित्सा सुविधाओं से सुसज्जित हों। इन आश्रय स्थलों में पशु चिकित्सकों और प्रशिक्षित कर्मचारियों की नियुक्ति आवश्यक है।

पशु प्रेमियों की मानें तो इस आदेश जारी करते समय कुछ सावधानियों और वैकल्पिक उपायों पर विचार किया जाना आवश्यक था जैसे: स्थानीय आश्रमों की संख्या, संसाधन और देखभाल क्षमता का आकलन, कुत्तों की संख्या नियंत्रित करने के लिए आम लोगों में जागरूकता और सामाजिक समन्वय, नसबंदी और टीकाकरण के बाद ही कुत्तों को उनके इलाके में छोड़ने की नीति, कुत्तों के प्रति मानवीय व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक शिक्षा, पशु अधिकार समूहों, नगर निगम और प्रशासन के बीच संवाद और सहयोग को बढ़ावा।

भारत में आवारा कुत्तों की संख्या बहुत अधिक है, और प्रबंधन के लिए अलग-अलग राज्यों में ABC (Animal Birth Control) नियम चलाए जाते हैं, जिसमें नसबंदी, टीकाकरण और पुनः छोड़ना शामिल है। उदाहरण स्वरूप, जयपुर और गोवा जैसे शहरों ने इस विधि से कुत्तों से होने वाली बीमारियों को काफी हद तक नियंत्रण में रखा है।

दूसरी ओर, विश्व के कई देशों ने भी अपनी-अपनी रणनीतियाँ अपनायी हैं: सिंगापुर में सरकारी निकाय द्वारा कुत्तों को पकड़कर नसबंदी और टीकाकरण के बाद या तो पुनः छोड़ दिया जाता है या फिर उनका पुनर्वास किया जाता है, तुर्की के इस्तांबुल में मोबाइल वेटरनरी क्लीनिक और सार्वजनिक फीडिंग स्टेशन बनाए गए हैं, जिससे कुत्तों का प्रबंधन प्रभावी ढंग से हो रहा है, भूटान में 2023 में 100% आवारा कुत्तों की नसबंदी का लक्ष्य हासिल किया गया, रोमानिया में कुत्तों की संख्या नियंत्रित करने के लिए नसबंदी पर जोर दिया गया है, साथ ही सार्वजनिक प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए कुत्तों की हत्या से बचा गया है। 

उल्लेखनीय है कि दुनिया भर में केवल नीदरलैंड ही एक ऐसा देश है जहां पर आपको आवारा कुत्ते नहीं मिलेंगे। नीदरलैंड सरकार ने एक अनूठा नियम लागू किया। किसी भी पालतू पशु की दुकान से ख़रीदे गये महेंगी नसल के कुत्तों पर वहाँ की सरकार भारी मात्रा में टैक्स लगती है। वहीं दूसरी ओर यदि कोई भी नागरिक इन बेघर पशुओं को गोद लेकर अपनाता है तो उसे आयकर में छूट मिलती है। इस नियम के लागू होते ही लोगों ने अधिक से अधिक बेघर कुत्तों को अपनाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे नीदरलैंड की सड़कों व मोहल्लों से आवारा कुत्तों की संख्या घटते-घटते बिलकुल शून्य हो गई।

ये मॉडल भारत के लिए भी प्रासंगिक हैं, जहाँ मानवीय और वैज्ञानिक तरीके से आवारा कुत्तों की संख्या नियंत्रित करना अत्यंत आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश आवारा कुत्तों की समस्या पर कड़ा कदम है, लेकिन इसके अमल में स्थानीय प्रशासन, जानवर प्रेमी और स्थानीय समुदाय के बीच सामंजस्य और समझ जरूरी है। आवारा कुत्तों को हटाने के बजाय उन्हें स्थायी और मानवीय तरीके से नियंत्रित करने के लिए बेहतर नीतियों और जागरूकता की आवश्यकता है, ताकि न सिर्फ इंसानी सुरक्षा सुनिश्चित हो बल्कि पशु कल्याण भी बना रहे। भारत जैसे बहु-आयामी सामाजिक परिवेश में आवारा कुत्तों की समस्या का समाधान सामूहिक और संवेदनशील दृष्टिकोण से ही संभव है। इस लिहाज से यह आवश्यक होगा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के साथ पशु अधिकार संगठनों और स्थानीय निकायों की मदद से ऐसे उपाय किए जाएं, जो दोनों पक्षों के हित में हों और आवारा कुत्तों का हानिरहित प्रबंधन सुनिश्चित करें।