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Monday, July 27, 2020

पद्मनाभ स्वामी मन्दिर की गरिमा बची

पिछले हफ़्ते सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने तिरुवनंतपुरम के इस विश्वविख्यात मंदिर की गरिमा बचा दी। विश्व के सबसे बड़े ख़ज़ाने का स्वामी यह मंदिर पिछले 10 वर्षों से पूरी दुनिया के लिए कोतुहल बना हुआ था। क्योंकि इसके लॉकरों में कई लाख  करोड़ रुपए के हीरे जवाहरात और सोना चाँदी रखा है। पिछले 2500 वर्षों से जो कुछ चढ़ावा या धन यहाँ आया उसे त्रावणकोर के राज परिवार ने भगवान की सम्पत्ति मान कर संरक्षित रखा। उसका कोई दुरुपयोग निज लाभ के लिए नहीं किया। 


जबकि दूसरी तरफ़ केरल की साम्यवादी सरकार इस बेशुमार दौलत से केरल के गरीब लोगों के लिए स्कूल, अस्पताल आदि की व्यवस्था करना चाहती थी। इसलिए उसने इसके अधिग्रहण का प्रयास किया। चूँकि यह मंदिर त्रावणकोर रियासत के राजपरिवार है, जिसके पारिवारिक ट्रस्ट की सम्पत्ति यह मन्दिर है। उनका कहना था कि इस सम्पत्ति पर केवल ट्रस्टियों का हक है और किसी भी बाहरी व्यक्ति को इसके विषय में निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है। राजपरिवार के समर्थन में खड़े लोग यह कहने में नहीं झिझकते कि इस राजपरिवार ने भगवान की सम्पत्ति की धूल तक अपने प्रयोग के लिए नहीं ली। ये नित्य पूजन के बाद, जब मन्दिर की देहरी से बाहर निकलते हैं, तो एक पारंपरिक लकड़ी से अपने पैर रगड़ते हैं, ताकि मन्दिर की धूल मन्दिर में ही रह जाए। इन लोगों का कहना है कि भगवान के निमित्त रखी गयी यह सम्पत्ति केवल भगवान की सेवा के लिए ही प्रयोग की जा सकती है। 


इन सबके अलावा हिन्दू धर्मावलंबियों की भी भावना यही है कि देश के किसी भी मन्दिर की सम्पत्ति पर नियन्त्रण करने का, किसी भी

राज्य या केन्द्र सरकार को कोई हक नहीं है। वे तर्क देते हैं कि जो सरकारें मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों अन्य धर्मावलंबियों के धर्मस्थानों की सम्पत्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकतीं, वे हिन्दुओं के मन्दिरों पर क्यों दांत गढ़ाती हैं? खासकर तब जबकि आकण्ठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई सरकारें और नौकरशाह सरकारी धन का भी ठीक प्रबन्धन नहीं कर पाते हैं। 


यह विवाद सर्वोच्च न्यायालय तक गया, जिसने अपने फ़ैसले में केरल सरकार के दावे को ख़ारिज कर दिया और त्रावणकोर राज परिवार के दाव को सही माना। जिससे पूरे दुनिया के हिंदू धर्मावलंबियों ने राहत की साँस ली है। ये तो एक शुरुआत है देश अनेक मंदिरों की सम्पत्तिपर राजनैतिक दल और नौकरशाह अरसे से गिद्ध दृष्टि लगाए बैठे हैं। जिन राज्यों में धर्मनिरपेक्ष दलों की सरकारें हैं उन पर भाजपा मंदिरों के धन के दुरुपयोग का आरोप लगाती आई है और मंदिरों केअधिग्रहण का ज़ोर शोर से संघ, भाजपा विहिप विरोध करते आए हैं। जैसे आजकल तिरुपति बालाजी के मंदिर को लेकर आंध्र प्रदेश की रेड्डी  सरकार पर भाजपा का लगातार हमला हो रहा है, जो सही भी है और हम जैसे आस्थावान हिंदू इसका समर्थन भी करते हैं। पर हमारे लिए चिंता की बात यह है कि उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने ही अनेक हिंदू मंदिरों का अधिग्रहण कर लिया है। और भाजपा अन्य राज्यों में भी यही करने की तैयारी में है। जिससे हिंदू धर्मावलंबियों में भारी आक्रोश है।   


दरअसल धार्मिक आस्था एक ऐसी चीज है जिसे कानून के दायरों से नियंत्रित नहीं किया जा सकता। आध्यात्म और धर्म की भावना रखने वाले, धर्मावलंबियों की भावनाओं को तो समझ सकते हैं और ही उनकी सम्पत्ति का ठीक प्रबन्धन कर सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि जहाँ कहीं ऐसा विवाद हो, वहाँ उसी धर्म के मानने वाले समाज के प्रतिष्ठित और सम्पन्न लोगों की एक प्रबन्धकीय समिति का गठन अदालतोंको कर देना चाहिए। इस समिति के सदस्य बाहरी लोग हों और वे भी हों जिनकी आस्था उस देव विग्रह में हो। जब साधन सम्पन्न भक्त मिल बैठकर योजना बनाएंगे तो दैविक द्रव्य का बहुजन हिताय सार्थक उपयोग ही करेंगे। जैसे हर धर्म वाले अपने धर्म के प्रचार के साथ समाज की सेवा के भी कार्य करते हैं, उसी प्रकार से पद्मनाभ स्वामी जी के भक्तों की एक समिति का गठन होना चाहिए। जिसमें राजपरिवार के अलावा ऐसे लोग हों, जिनकी धार्मिक आस्था तो हो पर वे उस इलाके की विषमताओं को भी समझते हों। ऐसी समिति दैविक धन का धार्मिक कृत्यों समाज विकास के कृत्यों में प्रयोग कर सकती है। इससे उस धर्म के मानने वालों के मन में तो कोई अशांति होगी और कोई उत्तेजना। वे भी अच्छी भावना के साथ ऐसे कार्यों में जुड़ना पसन्द करेंगे। अब वे अपने धन का कितना प्रतिशत मन्दिर और अनुष्ठानों पर खर्च करते हैं और कितना विकास के कार्यों पर, यह उनके विवेक पर छोड़ना होगा। 


हाँ, इस समिति की पारदर्शिता और जबावदेही सुनिश्चित कर देनी चाहिए। ताकि घोटालों की गुंजाइश रहे। इस समिति पर निगरानी रखने के लिए उस समाज के सामान्य लोगों को लेकर विभिन्न निगरानी समितियों का गठन कर देना चाहिए। जिससे पाई-पाई पर जनता की निगाह बनी रहे। हिन्दू मन्दिरों का धन सरकार द्वारा हथियाना, हिन्दू समाज को स्वीकार्य नहीं होगा। अदालतों को हिन्दुओं की इस भावना का ख्याल रखना चाहिए। अभी तो एक पद्मनाभ मन्दिर का फ़ैसला आया है। देश में ऐसे हजारों मन्दिर हैं, जहाँ नित्य धन लक्ष्मी की वर्षा होती रहती है। पर इस धन का सदुपयोग नहीं हो पाता। आस्थावान समाज को आगे बढ़कर नई दिशा पकड़नी चाहिए और दैविक द्रव्य का उपयोग उस धर्म स्थान या धर्म नगरी या उस धर्म से जुड़े अन्य तीर्थस्थलों के जीर्णोद्धार और विकास पर करना चाहिए। जिससे भक्तों और तीर्थयात्रियों को सुखद अनुभूति हो। इससे धरोहरों की रक्षा भी होगी और आने वालों को प्रेरणा भी मिलेगी।