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Monday, November 22, 2021

सीबीआई और ईडी निदेशकों का सेवा विस्तार


ताज़ा अध्यादेश के ज़रिए भारत सरकार ने सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के निदेशकों के कार्यकाल को 5 वर्ष तक बढ़ाने की व्यवस्था की है। अब तक यह कार्यकाल दो वर्ष का निर्धारित था। अब इन निदेशकों को एक-एक साल करके तीन साल तक और अपने पद पर रखा जा सकता है। पहले से ही विवादों में घिरी ये दोनों जाँच एजेंसियाँ विपक्ष के निशाने पर रही हैं। इस नए अध्यादेश ने विपक्ष को और उत्तेजित कर दिया है, जो अगले संसदीय सत्र में इस मामले को ज़ोर-शोर से उठाने की तैयारी कर रहा है।
 

इन दो निदेशकों के दो वर्ष के कार्यकाल का निर्धारण दिसम्बर 1997 के सर्वोच्च न्यायालय के ‘विनीत नारायण बनाम भारत सरकार’ के फ़ैसले के तहत किया गया था। इसी फ़ैसले की तहत इन पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया पर भी विस्तृत निर्देश दिए गए थे। उद्देश्य था इन संवेदनशील जाँच एजेंसियों की अधिकतम स्वायत्ता को सुनिश्चित करना। इसकी ज़रूरत इसलिए पड़ी जब हमने 1993 में एक जनहित याचिका के माध्यम से सीबीआई की अकर्मण्यता पर सवाल खड़ा किया था। क्योंकि तमाम प्रमाणों के बावजूद सीबीआई हिज़बुल मुजाहिद्दीन की हवाला के ज़रिए हो रही दुबई और लंदन से फ़ंडिंग की जाँच को दो बरस से दबा कर बैठी थी। उसपर भारी राजनैतिक दबाव था। इस याचिका पर ही फ़ैसला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने उक्त आदेश जारी किए थे, जो बाद में क़ानून बने। 



ताज़ा अध्यादेश में सर्वोच्च न्यायालय के उस फ़ैसले की भावना की उपेक्षा कर दी गई है। जिससे यह आशंका प्रबल होती है कि जो भी सरकार केंद्र में होगी वो इन अधिकारियों को तब तक सेवा विस्तार देगी जब तक वे उसके इशारे पर नाचेंगे। इस तरह यह महत्वपूर्ण जाँच एजेंसियाँ सरकार की ब्लैकमेलिंग का शिकार बन सकती हैं। क्योंकि केंद्र में जो भी सरकार रही है उस पर इन जाँच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगता रहा है। पर मौजूदा सरकार पर यह आरोप बार-बार लगातार लग रहा है कि वो अपने राजनैतिक प्रतीद्वंदियों या अपने विरुद्ध खबर छापने वाले मीडिया प्रथिष्ठानों के ख़िलाफ़ इन एजेंसियों का लगातार दुरुपयोग कर रही है। 


बेहतर होता कि सरकार इस अध्यादेश को लाने से पहले लोक सभा के आगामी सत्र में इस पर बहस करवा लेती या सर्वोच्च न्यायालय से इसकी अनुमति ले लेती। इतनी हड़बड़ी में इस अध्यादेश को लाने की क्या आवश्यकता थी? सरकार इस फ़ैसले को अपना विशेषाधिकार बता कर पल्ला झाड़ सकती है। पर सवाल सरकार की नीयत और ईमानदारी का है। सर्वोच्च न्यायालय का वो ऐतिहासिक फ़ैसला इन जाँच एजेंसियों को सरकार के शिकंजे से मुक्त करना था। जिससे वे बिना किसी दबाव या दख़ल के अपना काम कर सके। क्योंकि सीबीआई को अदालत ने भी ‘पिंजरे में बंद तोता’ कहा था। इन एजेंसियों के ऊपर निगरानी रखने का काम केंद्रीय सतर्कता आयोग को सौंपा गया है। 


प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री श्री अमित शाह व भाजपा के अन्य नेता गत 7 वर्षों से हर मंच पर पिछली सरकारों को भ्रष्ट और अपनी सरकारों को ईमानदार बताते आए हैं। मोदी जी दमख़म के साथ कहते हैं न खाऊँगा न खाने दूँगा। उनके इस दावे का प्रमाण यही होगा कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध जाँच करने वाली ये एजेंसियाँ सरकार के दख़ल से मुक्त रहें। अगर वे ऐसा नहीं करते तो मौजूदा सरकार की नीयत पर शक होना निराधार नहीं होगा। हमारा व्यक्तिगत अनुभव भी यही रहा है कि पिछले इन 7 वर्षों में हमने सरकारी या सार्वजनिक उपक्रमों के बड़े स्तर के भ्रष्टाचार के विरुद्ध सप्रमाण कई शिकायतें सीबीआई व सीवीसी में दर्ज कराई हैं। पर उन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। जबकि पहले ऐसा नहीं होता था। इन एजेंसियों को स्वायत्ता दिलाने में हमारी भूमिका का सम्मान करके, हमारी शिकायतों पर तुरंत कार्यवाही होती थी। हमने जो भी मामले उठाए उनमें कोई राजनैतिक एजेंडा नहीं रहा है। जो भी जनहित में उचित लगा उसे उठाया। ये बात हर बड़ा राजनेता जनता है और इसलिए जिनके विरुद्ध हमने अदालतों में लम्बी लड़ाई लड़ी वे भी हमारी निष्पक्षता व पारदर्शिता का सम्मान करते हैं। यही लोकतंत्र है। मौजूदा सरकार को भी इतनी उदारता दिखानी चाहिए कि अगर उसके किसी मंत्रालय या विभाग के विरुद्ध सप्रमाण भ्रष्टाचार की शिकायत आती है तो उसकी निष्पक्ष जाँच होने दी जाए। शिकायतकर्ता को अपना शत्रु नहीं बल्कि शुभचिंतक माना जाए। क्योंकि संत कह गए हैं कि, ‘निंदक नियरे  राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।’ 


इसलिए इस अध्यादेश के मामले सर्वोच्च न्यायालय को तुरंत दख़ल देकर इसकी विवेचना करनी चाहिए। इन महत्वपूर्ण जाँच एजेंसियों के निदेशकों के कार्यकाल का विस्तार 5 वर्ष करना मोदी जी की ग़लत सोच नहीं है, पर यहाँ दो बातों का ध्यान रखना होगा। पहला; ये नियुक्ति एकमुश्त की जाए, यानी जिस प्रक्रिया से इनका चयन होता है, उसी प्रक्रिया से उन्हें 5 वर्ष का नियुक्ति पत्र या सेवा विस्तार दिया जाए। दूसरा; अधिकारियों में सरकार की चाटुकारिता की प्रवृत्ति विकसित न हो और वे जनहित में निष्पक्षता से कार्य कर सकें इसके लिए उन्हें 60 वर्ष की आयु के बाद सेवा विस्तार न दिया जाए बल्कि इन महत्वपूर्ण पदों पर उन्हीं अधिकारियों के नामों पर विचार किया जाए जिनका सेवा काल अभी 5 वर्ष शेष हो। अगर सरकार ऐसा करती है तो उसकी विश्वसनीयता बढ़ेगी और नहीं करती है तो ये जाँच एजेंसियाँ हमेशा संदेह के घेरे में ही रहेंगी और नौकरशाही में भी हताशा बढ़ेगी।


प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी नोटबंदी जैसे बहुत सारे महत्वाकांक्षी फ़ैसले लेते आए हैं। जिससे उनकी उत्साही प्रवृत्ति का परिचय मिलता है। हर फ़ैसला जितने गाजे-बाजे और महंगे प्रचार के साथ देश भर में प्रसारित होता है वैसे परिणाम देखने को प्रायः नहीं मिलते। क्योंकि उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली है और समाज का एक वर्ग उन्हें बहुत चाहता है इसलिए शायद वे संसदीय परम्पराओं व अनुभवी और योग्य सलाहकारों से सलाह लेने की ज़रूरत नहीं समझते। अगर वे अपने व्यक्तित्व में ये बदलाव ले आएँ कि हर बड़े और महत्वपूर्ण फ़ैसले को लागू करने से पहले उसके गुण-दोषों पर आम जनता से न सही कम से कम अनुभवी लोगों से सलाह ज़रूर ले लें तो उनके फ़ैसले अधिक सकारात्मक हो सकते हैं। उल्लेखनीय है कि स्विट्ज़रलैंड में सरकार कोई भी नया क़ानून बनाने से पहले जनमत संग्रह ज़रूर कराती है। भारत अभी इतना परिपक्व लोकतंत्र नहीं है पर 135 करोड़ लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाले फ़ैसले सामूहिक मंथन से लिए जाएं तो यह जनहित में होगा।

Monday, May 6, 2019

सरकार का मौन रहना जैट ऐयरवेज व देश को मंहगा पड़ा

हाल ही में कैंसर से पीड़ित जैंट ऐयरवेज के एक कर्मी शैलेश सिंह ने अपने घर से कूदकर आत्महत्या कर ली। इस आत्महत्या के पीछे उनके शरीर के अंदर का कैंसर नहीं बल्कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय, डीजीसीए में लिप्त भ्रष्टाचार का कैंसर जिम्मेदार है। इस कॉलम के माध्यम से हम पाठकों को नागरिक उड्ड्यन मंत्रालय, डीजीसीए व जैट ऐयरवेज के बीच चल रही भ्रष्ट साजिश के विषय में गत चार वर्षों  से अवगत कराते रहे हैं। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री कार्यालय, सीबीआई, सीवीसी व नागरिक उड्डयन मंत्रालय को लगातार 2014 से इस मामले में मय प्रमाण के जैट ऐयरवेज द्वारा की गई खामियों का कच्चा चिट्ठा देते आऐ हैं। लेकिन न जाने किन कारणों से इन सभी के कुछ अधिकारी जैट ऐयरवेज व उनके मालिक नरेश गोयल के साथ अपनी वफादारी निभाने के चक्कर में इस निजी कम्पनी को बचाने में जुटे रहे। इस घोटाले के तार बहुत दूर तक जुड़े हुए हैं। वो चाहे यात्रियों की सुरक्षा की बात हो या देश की शान माने जाने वाले महाराजा एयर इंडिया की बिक्री की बात हो। ऐसे सभी घोटालों में जैट ऐयरवेज का किसी न किसी तरह से कोई न कोई हाथ जरूर है।

आश्चर्य की बात ये है कि जब हमने जैट ऐयरवेज के इतने घोटाले खोले तो सत्ता के गलियारों और मीडिया में उफ तक नहीं हुई। अब जब इस पर तूफान मच चुका है और जैट ऐयरवेज किसी भी तरह के हवाई ऑपरेशन को करने में नाकाबिल है, तो अचानक चारों ओर से इस घोटाले पर शोर मचना शुरू हो रहा है। गौरतलब है कि अभी भी इस घोटाले से संबंधित असल मुद्दे नदारद हैं। कुछ समय पहले दिल्ली उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गीता मित्तल व न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर की खंडपीठ ने नागरिक उड्ड्यन मंत्रालय, डीजीसीए व जैट ऐयरवेज को कालचक्र ब्यूरो के समाचार संपादक राजनीश कपूर की जनहित याचिका पर नोटिस दिया था। उन तमाम आरोपों पर इन तीनों से जबाव तलब किया जो कालचक्र ने इनके विरुद्ध उजागर लिए थे। याचिका में इन तीनों प्रतिवादियों पर सप्रमाण ऐसे कई संगीन आरोप लगे हैं, जिनकी जांच अगर निष्पक्ष रूप से होती है, तो इस मंत्रालय के कई वर्तमान व भूतपूर्व वरिष्ठ अधिकारी संकट में आ जाऐंगे। लेकिन ये तीनों किसी न किसी कारण से माननीय न्यायालय को जवाब देने में कोताही बरत रहे हैं। 

अब जब जैट ऐयरवेज पूरी तरह से ‘ग्राउंड’ हो गई है और इसके हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो चुके हैं, तो जाहिर सी बात है कि अन्य निजी ऐयरलाईन्स जैट ऐयरवेज के पायलेट व अन्य कर्मचारियों पर नजर गढ़ाऐं बैठे हैं। उम्मीद है कि इन ऐयरलाईन्स के ‘एचआर’ विभाग में तैनात अधिकारियों को इस बात का ज्ञान जरूर होगा कि जैट ऐयरवेज पर देश की विभिन्न अदालतों में मुकदमें विचाराधीन हैं। ऐसे में अगर जैट ऐयरवेज के दोषी पायलेटों/कर्मचारियों को किसी अन्य ऐयरलाईन्स में भर्ती होते हैं और अदालत उन्हें दोषी करार देते हुए, कोई सजा सुनाती है, तो फिर इन पायलेटों/कर्मचारियों का दूसरी ऐयरलाईन में न जाना एक समान हुआ। इतना ही नहीं वे पायलेट/कर्मचारी जिस भी ऐयरलाईन में जाऐंगे और दोषी पाऐ जाने पर सजा काटेंगे, तो वह उस ऐयरलाईन की साख पर एक कलंक से कम नहीं होगा।

उदाहरण के तौर पर दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर याचिका का एक आरोप जैट ऐयरवेज के एक ऐसे अधिकारी, कैप्टन अजय सिंह के विरुद्ध है, जो पहले जैट ऐयरवेज में उच्च पद पर आसीन था और दो साल के लिए उसे नागरिक उड्ड्यन मंत्रालय के अधीन डीजीसीए में संयुक्त सचिव के पद के बराबर नियुक्त किया गया था। यह बड़े आश्चर्य की बात है कि ‘कालचक्र’ की आरटीआई के जबाव में डीजीसीए ने लिखा कि ‘उनके पास इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि कैप्टन अजय सिंह ने डीजीसीए के ‘सी.एफ.ओ.आई.’ के पद पर नियुक्त होने से पहले जैट ऐयरवेज में अपना त्याग पत्र दिया है या नहीं‘। कानून के जानकार इसे ‘कन्फ्लिक्ट आफ इन्ट्रेस्ट’ मानते हैं। समय-समय पर कैप्टन अजय सिंह ने ‘सी.एफ.ओ.आई.’ के पद पर रहकर जैट ऐयरवेज को काफी फायदा पहुंचाया था। जब कालचक्र ने एक अन्य आरटीआई में डीजीसीए से यह पूछा कि कैप्टन अजय सिंह ने ‘सी.एफ.ओ.आई.’ के पद से किस दिन इस्तीफा दिया? उसका इस्तीफा किस दिन मंजूर हुआ? उन्हें इस पद से किस दिन मुक्त किया गया? और इस्तीफा जमा करने व पद से मुक्त होने के बीच कैप्टन अजय सिंह ने डीजीसीए में जैट ऐयरवेज से संबंधित कितनी फाइलों का निस्तारण किया? जवाब में यह पता लगा कि इस्तीफा देने और पद से मुक्त होने के बीच कैप्टन सिंह ने जैट ऐयरवेज से संबंधित 66 फाइलों का निस्तारण किया। ये अनैतिक आचरण है। ऐसे आचरण वाले जैट ऐयरवेज के पायलेट/कर्मचारी अनेक हैं।
अब जब जैट ऐयरवेज किसी भी तरह की उड़ान किसी भी सेक्टर में नहीं भर रहा है, तो जैट ऐयरवेज द्वारा खाली किये गऐ रूट, भारत के ‘राष्ट्रीय कैरियर ‘एयर इंडिया’ को न देना, एक और घोटाले का संकेत है। नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने एक अन्य निजी ऐयरलाईन में ऐसा क्या देखा कि जैट ऐयरवेज द्वारा किये जाने वाले मुनाफे वाले रूट घाटे में चल रहे भारत के ‘राष्ट्रीय कैरियर ‘एयर इंडिया’ को न देकर, उस निजी ऐयरलाईन को दे डाले।


प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने जैट ऐयरवेज के संकट पर एक आपातकालीन बैठक बुलाई और जैट ऐयरवेज को संकट से ऊबारने की कोशिश जरूर की। लेकिन सूत्रों की मानें तो, प्रधान मंत्री कार्यालय में तैनात कुछ अधिकारी जैट ऐयरवेज को इस संकट से बाहर आने देना नहीं चाहते। पता चला है कि जैट ऐयरवेज के मालिक नरेश गोयल को जैट साम्राज्य औने-पौने दाम में किसी निजी ऐयरलाईन्स को सौंपने के लिए कहा गया है। अब वो ऐयरलाईन भारतीय है या विदेशी ये तो समय आने पर ही पता चलेगा। लेकिन एक बात जरूर है कि हर साल करोड़ों रोजगारों वायदा करने वाली भाजपा सरकार जैट ऐयरवेज के मौजूदा हज़ारों कर्मचारियों की नौकरी बचा न सकी। अब देखना यह है कि 23 मई के बाद बनने वाली सरकार इस संकट से कैसे निपटेगी और न सिर्फ जैट ऐयरवेज के कर्मचारियों का क्या हित करेगी, बल्कि हवाई यात्रा करने वाले करोड़ों यात्रियों को इस संकट के दौरान महंगी टिकट लेकर यात्रा करने के कष्ट से भी क्या निदान मिलेगा?