जहाँ
सारा देश मोदी सरकार के कश्मीर कदम से बमबम है वहीं अलगाववादी तत्वों के समर्थक
अभी भी मानते हैं कि घाटी के आतंकवादी फिलिस्तानियों की तरह लंबे समय तक आतंकवादी
घटनाओं को अंजाम देते रहेंगे। जिसके कारण अमरीका जैसे-शस्त्र निर्माता देश भारत और
पाकिस्तान के बीच तनाव को बढ़ाकर हथियारों बिक्री करेंगे। उनका ये भी मानना है कि
केंद्र के निर्देश पर जो पूंजी निवेश कश्मीर में करवाया जाएगा,
उसका सीधा लाभ आम आदमी को नहीं मिलेगा और इसलिए कश्मीर के
हालात सामान्य नहीं होंगे। पर ये नकारात्मक सोच है।
इतिहास
गवाह है कि मजबूत इरादों से किसी शासक ने जब कभी इस तरह के चुनौतीपूर्णं कदम उठाये
हैं, तो उन्हें अंजाम तक
ले जाने की नीति भी पहले से ही बना ली होती है।
कश्मीर
में जो कुछ मोदी और शाह जोड़ी ने किया, वो अप्रत्याशित और ऐतिहासिक तो है ही,
चिरप्रतिक्षित कदम भी है। हम इसी कॉलम में कई बार लिखते आए
हैं, कि जब कश्मीरी सारे
देश में सम्पत्ति खरीद सकते हैं, व्यापार और नौकरी भी कर सकते हैं, तो शेष भारतवासियों को कश्मीर में ये हक क्यों नहीं मिले?
मोदी
है, तो मुमकिन है। आज ये
हो गया। जिस तरह का प्रशासनिक, फौजी और पुलिस बंदोबस्त करके गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी
नीति को अंजाम दिया है, उसमें अलगावादी नेताओं और आतंकवादियों के समर्थकों के लिए
बच निकलने का अब कोई रास्ता नहीं बचा। अब अगर उन्होंने कुछ भी हरकत की,
तो उन्हें बुरे अंजाम भोगने होंगे। जहां तक कश्मीर की बहुसंख्यक आबादी का प्रश्न है,
वो तो हमेशा ही आर्थिक प्रगति चाहती है। जो बिना अमन-चैन
कायम हुए संभव नहीं है। इसलिए भी अब कश्मीर में अराजकता के लिए कोई गुंजाइश नहीं
बची।
कश्मीर
और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर, गृहमंत्री ने वहंा की कानून व्यवस्था पर अपना सीधा नियंत्रण
स्थापित कर लिया है। अब जम्मू-कश्मीर पुलिस की जबावदेही वहां के मुख्यमंत्रियों के
प्रति नहीं, बल्कि
केंद्रीय गृहमंत्री के प्रति होगी। ऐसे में अलगाववादी शक्तियों से निपटना और भी
सरल होगा।
जहां
तक स्थानीय नेतृत्व का सवाल है। कश्मीर की राजनीति में मुफ्ती मोहम्मद सईद और
मेहबूबा मुफ्ती ने सबसे ज्यादा नकारात्मक भूमिका निभाई है। अब ऐसे नेताओं को
कश्मीर में अपनी जमीन तलाशना मुश्किल होगा। इससे घाटी में से नये नेतृत्व के उभरने
की संभावनाऐं बढ़ गई हैं। जो नेतृत्व पाकिस्तान के इशारे पर चलने के बजाय अपने आवाम
के फायदे को सामने रखकर आगे बढ़ेगा, तभी कामयाब हो पाऐगा।
जहां
तक कश्मीर की तरक्की की बात है। आजादी के बाद से आज तक कश्मीर के साथ केंद्र की
सरकार ने दामाद जैसा व्यवहार किया है। उन्हें सस्ता राशन, सस्ती बिजली, आयकर में छूट जैसी तमाम सुविधाऐं दी गई और विकास के लिए
अरबों रूपया झोंका गया। इसलिए ये कहना कि अब कश्मीर का विकास तेजी से करने की
जरूरत है, सही नहीं
होगा। भारत के अनेक राज्यों की तुलना में कश्मीरीयों का जीवन स्तर आज भी बहुत
बेहतर है।
जरूरत
इस बात है कि कश्मीर के पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना वहाँ पर्यटन,
फल-फूल और सब्जी से जुड़े उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए और देशभर
के लोगों को वहां ऐसे उद्योग व्यापार स्थापित करने में मदद दी जाऐ। ताकि कश्मीर की
जनता शेष भारत की जनता के प्रति द्वेष की भावना से निकलकर सहयोग की भावना की तरफ
आगे बढ़े।
आज तक सबसे ज्यादा प्रहार
तो कश्मीर में हिंदू संस्कृति पर किया गया। जब से वहां मुसलमानों का शासन आया, तब से हजारों साल की
हिंदू संस्कृति को नृशंस तरीके से नष्ट किया गया। आज उस सबके पुनरोद्धार की जरूरत
है। जिससे दुनिया को एक बार फिर पता चल सके कि भारत सरकार कश्मीर में ज्यात्ती
नहीं कर रही थी, जैसा कि आज तक दुष्प्रचार किया गया, बल्कि मुस्लिम आक्रांताओं ने हिंदूओं पर अत्याचार
किये, उनके शास्त्र और धम्रस्थल नष्ट किये और उन्हें खदेड़कर कश्मीर से बाहर कर दिया।
जिसे देखकर सारी दुनिया मौन रही। श्रीनगर के सरकारी संग्रहालय में वहाँ की हिंदू
संस्कृति और इतिहास के अनेक प्रमाण मौजूद हैं पर वहाँ की सरकारों ने उनको उपेक्षित
तरीकों से पटका हुआ है। जब हमने संग्रहालय के धूप सेंकते कर्मचारियों से संग्रहालय
की इन धरोहरों के बारे में बताने को कहा तो उन्होंने हमारी ओर उपेक्षा से देखकर
कहा कि वहाँ पड़ी हैं, जाकर देख लो। वो तो गनीमत है कि प्रभु कृपा से ये
प्रमाण बचे रह गए, वरना आतंकवादी तो इस संग्रहालय को ध्वस्त करना चाहते
थे। जिससे कश्मीर के हिंदू इतिहास के सबूत ही नष्ट हो जाएँ। अब इस सबको बदलने का समय
आ गया है। देशभर के लोगों को उम्मीद है कि मोदी और शाह की जोड़ी के द्वारा लिए गए
इस ऐतहासिक फैसले से ऐसा मुमकिन हो पायेगा।
No comments:
Post a Comment