मैं जीवन में पहली बार यूनान (ग्रीस) आया हूँ। जिसे पश्चिमी दुनिया की सभ्यता का पालना कहते हैं। यहाँ आज भी 2500 साल पुराने संगेमरमर के विशाल मंदिर और 30 मी. की ऊँची देवी-देवताओं की मूत्र्तियों के अवशेष या प्रमाण मौजूद हैं। जिन्हें देखकर पूरी दुनिया के लोग हतप्रभ हो जाते हैं। हमारा टूरिस्ट गाईड एक बहुत ही पढ़ा लिखा व्यक्ति है। जिसने पुरातत्व पर पीएचडी. की है और लंदन से मास्टर की डिग्री हासिल की है। उसने हमें 2 घंटे में यूनान का 3000 साल का इतिहास तारीखवार इतना सुंदर बताया कि हम उसके मुरीद हो गऐ। जब हमने इन भव्य इमारतों के खंडहरों को देखकर आश्चर्य व्यक्त किया, तो उसने पलटकर एक ऐसा सवाल पूछा, जिसे सुनकर मैं सोच में पड़ गया। उसने कहा, ‘‘ये इमारते तो 2500 साल बाद भी अपनी संस्कृति और सभ्यता का प्रमाण दे रही हैं, पर क्या आज की दुनिया में हम कुछ ऐसा छोड़कर जा रहे हैं, जो 2500 वर्ष बाद भी दुनिया में मौजूद रहेगा’’। उसने आगे कहा,‘‘हम प्रदूषण बढ़ा रहे हैं, जल, जमीन और हवा जितनी प्रदूषित पिछले 50 साल में हुई है, उतनी पिछले 1 लाख साल में भी नहीं हुई थी। आज ग्रीस गर्मी से झुलस रहा है, हमारे जंगलों आग लग रही है, रूस के जंगलों में भी लग रही है, कैलिफोर्निया के जंगलों में भी लग रही है। ये तो एक ट्रेलर है। अगर ‘ग्लोबल वाॅर्मिंग’ इसी तरह बढ़ती गई,तो उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव के ग्लेश्यिर अगले 2-3 दशकों में ही काफी पिघल जाऐंगे। जिससे समुद्र का जलस्तर ऊँचा होकर, दुनिया के तमाम उन देशों को डूबो देगा, जो आज टापुओं पर बसे हैं’’।
उसे संस्कृति में आई गिरावट पर भी बहुत चिंता थी। उसका कहना था कि जिस संस्कृति को आज दुनिया अपना रही है, यह भक्षक संस्कृति है। जो भविष्य में हमें लील जाऐगी।
दुनिया के सबसे पुराने ऐतिहासिक सांस्कृतिक केंद्र ऐथेंस नगर का यह टूरिस्ट गाईड हर रोज दुनिया के कोेने-कोने से आने वाले पर्यटकों को घुमाता है और इसलिए इस तरह की बातचीत वह दुनियाभर के लोगों से करता है। जाहिर है कि दुनिया के हर हिस्से में विचारवान लोगों की सोच इस टूरिस्ट गाईड की सोच से बहुत मिलती है। पर प्रश्न है कि सब कुछ जानते-बूझते हुए भी हम इतना आत्मघाती जीवन क्यों जी रहे हैं? जबाव सरल है। किसी देश में सही सोचने वाले मुट्ठीभर लोग होते हैं। ज्यादातर लोग भेड़ों की तरह ताकतवर या पैसे वाले लोगों का अनुसरण करते हैं। अब वो ताकत जिसके पास होगी, वो अपनी मर्जी से दुनिया का नक्शा बनायेगा। फिर वो चाहे राज सत्ता के शिखर पर बैठा व्यक्ति हो या फिर कुबेर के खजाने पर बैठा हुआ। दोनों की ही सोच समाज से बिल्कुल कटी हुई या यूं कहे कि जनहित के मुद्दों से हटी हुई होती है। इसलिए वे एक से एक वाहियात् और फिजूल खर्ची वाली योजनाऐं लेकर आते हैं। चाहे उससे देश के प्राकृतिक या आर्थिक संसाधनो का दोहन हो या समाज में विषमता फैले। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
ग्रीस का इतिहास दुनिया के तमाम दूसरे देशों की तरह है, जहां राज सत्ताओं ने या आक्रांताओं ने बार-बार तबाही मचाई और सबकुछ पूरी तरह नष्ट कर दिया। ये तो आम आदमी की हिम्मत है कि वो बार-बार ऐसे तूफान झेलकर भी फिर उठ खड़ा होता है और तिनके-तिनके बीनकर अपना आशियाना फिर बना लेता है। पिछली सदियों में जो नुकसान हुआ, उसमें जनधन की ही हानि हुई। पर अब जो पाश्विक वृत्ति की सत्ताऐं हैं, वो लगभग दुनिया के हर देश में है। ऐसी तबाही मचा रही है, जिसका खामियाजा आने वाली पीढ़िया बहुत गहराई तक, महसूस करेंगी। पर उससे उबरने के लिए उनके पास बहुत विकल्प नहीं बचेंगे।
जलवायु परिवर्तन के शिखर सम्मेलन में फ्रांस में दुनियाभर के राष्ट्राध्यक्ष इकट्ठे हुए और सबने ‘ग्लाबल वाॅर्मिंग’ पर चिंता जताई और गंभीर प्रयास करने की घोषणाऐं की ।पर अपने देश में जाकर मुकर गऐ, जैसे अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने पेरिस में कुछ कहा और वाॅशिंग्टन में जाकर कुछ और बोला। राष्ट्राध्यक्षों की ये दोहरी नीति समाज और पर्यावरण के लिए घातक सिद्ध हो रही है। सूचनाक्रांति के इस युग में हर देश की जागरूक जनता को इस नकारात्मक प्रवृत्ति के विरूद्ध मिलकर जोरदार आवाज उठानी चाहिए और अपने जीवन में ऐसा बदलाव लाना चाहिए कि हम प्रकृति का दोहन न कर, उसके साथ संतुलन में जीना सीखे। तभी हमारी भावी पीढ़ियों का जीवन सुधर पाऐगा।
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