अपनी सनातनी आस्था और
अंतराष्ट्रीय समझ के सम्मिश्रण से मोदी जी ने 2014 में
‘स्वच्छ भारत’ या ‘हृदय’ जैसी चिरप्रतिक्षित नीतियों को लागू किया। इनके शुभ
परिणाम दिखने लगे हैं और भविष्य और भी ज्यादा दिखाई देंगे। हृदय योजना की
राष्ट्रीय सलाहकार समिति का मैं भी पांच में से एक सदस्य था। इस योजना के पीछे
मोदी जी का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारत के प्राचीन नगरों की धरोहरों को
सजा-संवाकर इस तरह प्रस्तुत किया जाय कि विकास की प्रक्रिया में कलात्मकता और
निरंतरता बनी रहे। ऐसा न हो कि हर आने वाली सरकार या उस नगर में तैनात अधिकारी
अपनी सीमित बुद्धि और अनुभहीनता से नये-नये प्रयोग करके ऐतिहासिक नगरों को विद्रुप
बना द, जैसा आजतक करते आये हैं ।
जिन बारह प्राचीन नगरों
का चयन ‘हृदय योजना’ के तहत भारत सरकार के शहरी विकास मंत्रालय ने किया, उनमें से मथुरा भी एक था। राष्ट्रीय स्तर पर एक पारदर्शी चयन प्रक्रिया के
तहत ‘द ब्रज फाउंडेशन’ को मथुरा का ‘सिटी एंकर’ बनाया गया। जिसकी जिम्मेदारी है
मोदी जी की इस सोच को धरातल पर उतारना। इसलिए कार्यदायी संस्थाओं और प्रशासन की यह
जिम्मेदारी रखी गई कि वे ‘सिटी एंकर’ के निर्देशन में ही कार्य करेंगे।
आजादी के बाद पहली बार
किसी प्रधानमंत्री ने योग्यता और अनुभव को इतना सम्मान दिया। ये बात दूसरी है कि
इस अनूठी योजना से उन अधिकारियों और कर्मचारियों को भारी उदर पीड़ा हुई, जो विकास के नाम पर आजतक कमीशनखोरी और कागजी योजनाऐं लागू करते आए हैं।
उन्हें ‘सिटी एंकर’ की दखलअंदाजी से बहुत चिढ़ मचती है। फिर भी हमने वृंदावन के
यमुना घाटों को व मथुरा के पोतरा कुंड जैसे कई पौराणिक स्थलों को मलवे के ढेर से
निकालकर अत्यन्त लुभावनी छवि प्रदान की है, ऐसा हर
तीर्थयात्रियों व दर्शक का कहना है।
दुख की बात ये है कि
पुराना ढर्रा अभी भी चालू है। ‘ब्रज तीर्थ विकास परिषद्’ से जुडे़ अधिकारी ब्रज
विकास के नाम पर एक से एक फूहड़ योजनाऐं लागू करते जा रहे हैं। मोदी सरकार और योगी
सरकार द्वारा प्रदत्त शक्ति और अपार धन की सरेआम बर्बादी हो रही है, जिसे देखकर ब्रजवासी और तीर्थयात्री ही नहीं संतगण भी बेहद दुखी हैं। पर
कोई सुनने को तैयार नहीं।
कुछ उदाहरणों से स्थिति
स्पष्ट हो जाऐगी। वृंदावन में 400 एकड़ में ‘सौभरि ऋषि
पार्क’ बनने जा रहा है। जबकि सतयुग के
सौभरि ऋषि का द्वापर में वृंदावन
की श्रीकृष्ण लीला से कोई संबंध नहीं है। वृंदावन तो श्रीराधारानी और भगवान
श्रीकृष्ण की नित्यविहार स्थली है, जहां उनकी लीला के अनुरूप
कुँज-निकुँज का भाव और उससे संबंधित नामकरण किया जाना चाहिए ।
इतना ही नहीं , पता चला है कि इस पार्क का स्वरूप ‘डिज्नीलैंड’ जैसा होने जा रहा है। पहले
जब वृंदावन में प्रवेश करते थे, तो राष्ट्रीय राजमार्ग से
मुड़ते ही एक अद्भुत आध्यत्मिक भावना पनपती थी। पर मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण
ने अब वृंदावन का प्रवेश वैसा ही कर दिया, जैसा आज गुडगाँव
का है, जहां बहुमंजलीय इमारतें हैं जिनकी वास्तुकला में
वृंदावन की कोई छाप नहीं है। जबकि 300 वर्ष पहले मिर्जा
इस्माइल ने जयपुर और मैसूर जैसे शहरों को कलात्मकता के साथ योजनाबद्ध किया था।
इतना ही नहीं इस कॉलोनी का नाम भी ‘रूकमणि विहार’ रखा गया है। रूकमणि जी
द्वारिकाधीश भगवान की रानी थीं। उनका ब्रज ब्रजलीला से कोई नाता नहीं था। जबकि
ब्रजलीला में ऐसी सैंकड़ों गोपियां हैं, जिनके नाम पर इस कॉलोनी
का नाम रखा जा सकता था।
इसी हफ्ते गुरू
पूर्णिंमा के अवसर पर श्री गोवर्धन पर्वत की हैलीकॉप्टर से परिक्रमा प्रारंभ की गई
है। इससे बड़ा अपमान गोवर्धन भगवान का हो नहीं सकता, जिनके
चारों ओर राजे-महाराजे तक नंगे पाव चलकर या दंडवती लगाकर परिक्रमा करते आऐ हों,
जिन्हें अपनी अंगुली पर धारणकर बालकृष्ण ने देवराज इंद्र का
मानमर्दन किया हो, उन गिर्राज जी के ऊपर उड़कर अब ‘ब्रजतीर्थ
विकास परिषद्’ गिर्राज जी का मानमर्दन करवा रही है।
राधारानी के श्रीधाम
बरसाना में चार पर्वत शिखर हैं, जिन्हें ब्रह्माजी का
मस्तक माना जाता है। इन पर राधारानी की लीलाओं से जुड़े चार मंदिर हैं-भानुगढ़,
विलासगढ़, दानगढ़ व मानगढ़ । ज़रूरत इन पर्वतों
के प्राकृतिक सौंदर्य को सुधारने और इनकी पवित्रता सुनिश्चित करने कीं है पर
‘ब्रजतीर्थ विकास परिषद्’ इन पर रेस्टोरेंट बना रही है । जहां हर दम हुड़दंग मचेगा,
प्लास्टिक की बोतलें व थर्माकोल जैसे जहरीले कूड़े के ढेर जमा होंगे
और 5000 साल से यहां की संरक्षित पवित्रता नष्ट हो जायेगी,
जो हाल केदारनाथ और बद्रीनाथ का हुआ। जहां की पवित्रता और प्रकृति
से विकास के नाम पर विवेकहीन छेड़छाड़ की गई।
एक लंबी सूची है, जो ये सिद्ध करती है कि मोदीजी और योगीजी की श्रद्धायुक्त धामसेवा की उच्च
भावना को अनुभवहीन, भावहीन, अहंकारी और
आयतित अधिकारी किस तरह से ब्रज में पलीता लगा रहे हैं।
‘ब्रजतीर्थ
विकास परिषद्’ की संरचना करते समय हमने यह प्रावधान रखा था कि ब्रज संस्कृति के
विशेषज्ञ और अनुभवी लोगों की सामूहिक व पारदर्शी सलाह के बिना कोई योजना नहीं बनाई
जायेगी। पर आज इसका उल्टा हो रहा है। ब्रज संस्कृति के विशेषज्ञ, संतगण, ब्रजवासी और ब्रज को सजाने में अनुभवी लोगों
को दरकिनार कर करोड़ों रूपये की ऐसी वाहियात योजनाऐं लागू की गई है, जिनसे न तो धाम सजेगा और न ही संत और भक्त प्रसन्न होंगे। हां ठेकेदारों
की और कमीशनखोरों की जेबें जरूर गर्म हो जाऐंगी।
इसलिए प्रधानमंत्री श्री
नरेन्द्र मोदी जी की ‘हृदय योजना’ को और प्रभावशाली तरीके से लागू करने की तुरंत
आवश्यक्ता है। जिससे सरकार की सद्इच्छा के बॉवजूद तीर्थों में हो रहा विकास के नाम
विनाश और धरोहरों की बर्बादी रूक सके। क्या प्रधानमंत्रीजी कुछ पहल करेंगे ?
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