पिछले
दिनों जब उ.प्र. में निर्माण संबंधी हुई अनेक दुर्घटनाओं के बाद उ.प्र. के सिविल
इंजीनियरों ने एक खुला पत्र मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को संबोधित करते हुए
लिखा। जिसका मसौदा निम्न प्रकार है-‘‘आज उत्तर प्रदेश में एक्सप्रेसवे धंस रहे
हैं। बनारस में ब्रिज के बीम डिस्प्लेसड हो रहे हैं। सड़कों पर गढ्ढो के कारण
दुर्घटनाएं हो रही हैं। नहरें टूट रही हैं। खेतों को समुचित पानी नहीं मिल पा रहा।
बाँध पानी से लबालब भर नहीं पा रहे। किसी शहर का भी ड्रेनेज सही नहीं हैं। इन
प्रोजेक्ट्स का पूरा फायदा लोगों को नहीं मिल पा रहा। शहरों के सीवर जाम हैं। आखिर क्यों ? कभी किसी इंजीनयर से पूछा जाएगा या उन्हें केवल दण्डित किया
जाएगा ?
बच्चा भी 9
माह पेट में पलता है तभी स्वस्थ पैदा होता
है और आगे जीवन में स्वस्थ रहने की संभावना ज्यादा होती है। यहां तो इंजिनीयरों को
बस डेट दी जाती है और फिर शुरू होता है समीक्षा - समीक्षा का टी 20 खेल। यह नही पूछा जाता की प्रोजेक्ट कब तक पूरा हो सकता
है। दबाव होता है कि फलां तारीख तक प्रोजेक्ट पूरा हो जाए। ना तो मैनपावर मिलेगी
ना आवश्यक सुविधाएं।
महाराज
जी यह निर्माण का कार्य है। विध्वंस की तरह मत करवाइये। समय दीजिये। डी.पी.आर.
बनाने में बहुत समय चाहिए होता है। एस्टीमेट बनाने में बहुत सारी जानकारियां
चाहिए। दरों की एनालिसिस करना आसान काम नही है। कोई भी स्ट्रक्चर एक इंजीनयर के
लिए उसकी कलात्मक अभिव्यक्ति है। उसका निर्माण एक सुखद पर पीड़ादायक घटना है। समय
पूर्व प्रसव की तरह का व्यवहार किसी भी संरचना के साथ मत कीजिये। इंजिनीयरों ने
राष्ट्र के विकास में बहुत योगदान दिया है। उनको पार्टी कार्यकताओं की हठधर्मिता
के सहारे मत छोड़िये। नहीं तो कोई भी निर्माण मात्र विध्वंस का कारण ही बनेगा।
विकास की आड़ में ठेकेदारी और जेब भरने का उपक्रम नही चलना चाहिए न। ना तो भारत रत्न विश्वशरैया जी ने ना ही
श्रीधरन जी ने दबाव में काम किया था। तभी उन्होंने मेट्रो जैसी धरोहरों का निर्माण
किया।
हर
राजनैतिक दल सत्तारूढ दल को भ्रष्टाचारी बताकर अपना चुनाव अभियान चलाता है और जनता
से भ्रष्टाचारमुक्त शासन देने का वायदा करता है। पर हकीकत यह है कि हाथी के दांत
खाने के और दिखाने के और। ऐसा कभी नहीं सुना जाता कि किसी निर्माण कंपनी को उसके
अनुभव और गुणवत्ता के आधार पर योनजाओं के क्रियान्वयन के लिए चुना जाए। यों चुनने
की प्रक्रिया अब काफी पारदर्शी बना दी गई है। जिसमें ऑनलाईन निविदाऐं भरी जाती है
और टैक्निकल व फायनेंसियल बिडिंग का तुलनात्मक अध्ययन करके ठेके आवंटित किये जाते
हैं। पर ये सब भी एक नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं है। सरकार किसी भी दल की क्यों न
हो,
उसके मंत्री सत्ता में आते ही मोटी कमाई के तरीके खोजने
लगते हैं और नौकरशाही के भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से सभी परियोजनाऐं अपने
चहेतों को दिलवाते हैं।’’
मंत्री
के चहेते का मतलब होता है, जो
मंत्री के घर जाकर निविदा दाखिल करने से पहले ही मंत्री को अग्रिम रूप से मोटी रकम
देकर,
इस बात को सुनिश्चित कर ले कि जो भी ठेका मिलेगा, वो उसे ही मिलेगा। इसके बाद निविदा की सारी प्रक्रिया एक
ढकोसला मात्र होती है। और वही होता है जो, ‘जो मंजूरे मंत्री जी होता है’।
योगी
जी जब सत्ता में आए थे, तो
उन्होंने भी बहुत कोशिश की कि भ्रष्टाचारविहीन शासन दें। पर आज तक कुछ भी नहीं
बदला। जो कुछ पहले चल रहा था। उससे और ज्यादा भ्रष्टाचार आज सार्वजनिक निर्माण के
क्षेत्र में अनुभव किया जा रहा है। मैंने कई बार इस मुद्दे उठाया है कि भ्रष्टाचार
का असली कारण ‘करप्शन इन डिजाईन’ होता है। यानि योजना बनाते समय ही मोटा पैसा खाने
की व्यवस्था बना ली जाती है। जैसा उ.प्र. के पर्यटन विभाग में हमें अनुभव हुआ। जब
उसने पिछले वर्ष ब्रज के 9 कुंडों
के जीर्णोंद्धार का ठेका 77 करोड़
रूपये में उठा दिया। हमने इसका पुरजोर विरोध किया और परियोजना में तकनीकी खामिया
उजागर की,
तो अब यही काम मात्र 27 करोड़ रूपये में होने जा रहा है। यानि 50 करोड़ रूपया सीधे किसी की जेब में जाने वाले थे। इतना ही
नहीं योगी जी ने बड़े प्रचार के साथ जिस ‘ब्रज तीर्थ विकास परिषद्’ की स्थापना की
है,
उसके मूल संविधान में छेड़छाड़ करके वर्तमान उपाध्यक्ष
शैलजाकांत मिश्र ने उसे भारी भ्रष्टाचार करने के लिए सुगम बना दिया है। मूल
संविधान में परिषद् में पर्यटन से संबंधित अनेक विशेषज्ञों को लेने का प्राविधान
था,
जिसे श्री मिश्रा ने बड़े गोपनीय तरीके से हटवाकर, ऐसी व्यवस्था बना ली कि अब किसी भी साधारण सामाजिक
कार्यकर्ता या दलालनुमा व्यक्ति को बोर्ड में लाया जा सकता है। इसी तरह ‘सी.ई.ओ’
की ताकत भी इतनी बढ़ा दी कि अब कोई उन्हें ब्रज को बर्बाद करने से नहीं रोक सकता।
केवल दो लोगों के अहमकपन से भगवान श्रीकृष्ण के ब्रज का विकास नियंत्रित हो गया
है। जिसके निश्चित रूप से घातक परिणाम सामने आऐंगे और तब ये योगी सरकार के लिए
‘ताज कोरिडोर’ जैसा घोटाला खुलेगा।
अभी
पिछले दिनों बनारस में निर्माणाधीन पुल की बीम गिरी और 18 लोग मर गऐ। आगरा में ‘रिंग रोड’ धंस गई। मथुरा के गोवर्धन
रेलवे स्टेशन का नवनिर्मित चबूतरा बैठ गया। बस्ती जिले में पुल गिर गया। ऐसी
दुर्घटनाऐं आए दिन हो रही है, पर
सरकार कोई सबक नहीं ले रहीं। इससे उ.प्र. के मतदाताओं की जान जोखिम में पड़ गई है।
पता नहीं कब, कहां, क्या हादसा हो जाऐ?
You are right veenit Narayan sir West of luck
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