देश में हर जगह कुछ लोग आपको ये कहते
जरूर मिलेंगे कि वे मोदी सरकार के कामकाज से संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि मजदूर किसान
की हालत नहीं सुधरी, बेरोजगारी
कम नहीं हुई, दुकानदार या मझले
उद्योगपति अपने कारोबार बैठ जाने से त्रस्त हैं, इन सबको लगता है कि 4 वर्ष के बाद भी उन्हें कुछ मिला नहीं बल्कि जो उनके पास था, वो भी छिन गया। जाहिर है इसकी खबर मोदी जी को भी होगी।
खुफिया तंत्र अगर ईमानदारी से मोदी जी को सूचनाऐं पहुंचा रहा होगा, तो उसकी भी यही रिर्पोट होगी। ऐेसे में 2019 का चुनाव भाजपा को बहुत भारी पड़ना चाहिए। पर ऐसा है नहीं।
इसके दो कारण हैं। ऐसी हताशा के बाद भी
शहर का मध्यम वर्गीय हिंदु ये मानता है कि और कुछ हुआ हो या न हुआ हो, पर मोदी सरकार या उनके योगी जैसे मुख्यमंत्रियों ने
अलपसंख्यकों को काबू कर लिया है। अगर ये दोबारा सत्ता में नही आऐ, तो अल्पसंख्यक फिर समाज पर हावी हो जायेंगे। मोदी पर
निर्भरता का दूसरा कारण ये है कि विपक्ष में बहुत बिखराव है और उसका किसी एक नेता
के साये तले इकट्टा होना आसान नहीं लगता।
यहां सोचने वाली बात यह है कि हिंदू
समाज के मन में ये भावना क्यों पैदा हुई? कारण स्पष्ट है कि गैर भाजपाई सरकारों ने अल्पसंख्यकों के
लिए कुछ ठोस किया हो या न किया हो, पर उन्हें विशेष दर्जा देकर निरंकुश तो जरूर बनाया। जबकि
भाजपा ने ये संदेश स्पष्ट दिया है कि भाजपा की सरकार दिखाने को भी अल्पसंख्यकों के
धर्म को अनावश्यक बढ़ावा नहीं देगी। जबकि हिंदू धर्म में त्यौहारों में खुलकर अपनी
आस्था प्रकट करेगी। जाहिर है कि ये भंगिमा हिंदूओं के लिए बहुत आश्वस्त करने वाली
है। इसलिए वे भाजपा के नेतृत्व में अपना भविष्य सुरक्षित देखते हैं। उनकी इसी
कमजोरी को भुनाने का काम भाजपा अगले चुनावों में जमकर करेगी।
मगर यहां एक पेंच है, मध्यम वर्गीय लोगों को तो धर्म के नाम पर आकर्षित किया जा
सकता है,
पर बहुसंख्यक किसान मजदूरों को धर्म के नाम पर नहीं उकसाया
जा सकता। सिवाय इसके कि उनकी वाजिब मांगे पूरी की जाऐ। जिससे उनकी जिंदगी में
खुशहाली आती। देश का किसान रात दिन जाड़ा गर्मी बरसात सहकर मेहनत करता है। फिर भी
उसकी तरक्की नही होती। जबकि बैंक लूटने वाले बिना कुछ किए रातों रात हजारो करोड़
कमा लेते हैं। इसलिए वे मन ही मन नाराज हैं और चुनावों को प्रभावित करने की सबसे
ज्यादा ताकत रखते हैं।
सरकारें तो आती-जाती है, पर चिंता की बात ये है कि असली मुद्दे हमारी राजनीतिक बहस
से नदारद हो गए हैं। किसानों को सिंचाई की भारी दिक्कत है। भूजल स्तर तेजी से नीचे
जा रहा है। जमीन की उर्वरकता घट रही है। खाद के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। फसल के
वाजिब दाम बाजार में मिलते नहीं। नतीजतन किसान कर्जे में डूबते जा रहे हैं और
कर्जा न चुका पाने की हालत में लगातार आत्महत्याऐं हो रही हैं। ये भयावह स्थिति
है।
उधर देश का युवा, जिसने अपने मां-बाप की गाढ़ी कमाई खर्च करके बीटैक और एमबीए
जैसी डिग्रियां हासिल की, उसे
चपरासी तक की नौकरी नहीं मिल रही। इससे युवाओं में भारी हताशा है और ये युवा कहते
हैं कि हम ‘पकौड़ी बेचकर‘ जीवन बिताना नहीं चाहते। यही हाल देश की शिक्षण और
स्वास्थ सेवाओं का है, जो देश
के ग्रामीण अंचलों में सिर्फ कागजों पर चल रही है। जिसमें अरबों रूपया बर्बाद हो
रहा है। पर जनता को लाभ कुछ भी नहीं हो रहा। ये भी भयावह स्थिति है।
बैंकों से अरबों रूपया निकालकर विदेश
भागने वाले नीरव मोदी जैसे लोगों ने आम भारतीय का बैंकिंग व्यवस्था में, जो विश्वास था, उसे तोड़ दिया है। इससे समाज में हताशा फैली है।
उधर न्यायपालिका के लिए जो लिखा जाए, सो कम। जिस किसी का भी न्यायपालिका से किसी भी स्तर पर
वास्ता पड़ा है, वो बता सकता है कि
वहां किस हद तक भ्रष्टाचार व्याप्त है। पर न्याय व्यवस्था को सुधारने के लिए किसी
सरकार ने आजतक कोई ठोस प्रयास नही किया गया।
ये कहना सही नही होगा कि किसी सरकार ने
कभी कुछ नही किया। पिछली सरकारों ने भी कुछ किया तभी भारत यहां तक पहुंचा और मोदी
सरकार भी बहुत से ऐसे काम करने में लग रही है, जिससे हालात बदलेंगे। पर बाबूशाही की प्रशासनिक व्यवस्था
इतनी जटिल और आत्म मुग्ध हो गयी है कि उसे इस बात की कोई चिंता नही है कि धरातल तक
उसकी योजनाओं का सच क्या है। इसलिए अच्छी भावना और अच्छी नीति भी कागजों तक ही
सीमित रह जाती हैं। इस रवैये को बदलने की जरूरत है।
पर इन सब मुद्दों पर आजकल बात नहीं हो
रही,
न मीडिया में और न राजनीति में। जिन मुद्दों पर बात हो रही
है,
वो मछली बाजार की बातचीत से ज्यादा ऊचे स्तर की नही है।
असली मुद्दों की बात हो और समाधान मूलक हो, तो देश का कुछ भला हो। आज जरूरत इसी बात की है कि देशवासी
इन बुनियादी सवालों के हल खोजें और उन्हें लागू करने के लिए माहौल बनाये।
अब बात करें अल्पसंख्यकों की, तो ये सच है कि किसी भी सरकार ने अल्पसंख्यकों का कोई ठोस
भला नहीं किया। केवल उनका प्रयोग किया और उन्हें सार्वजनिक महत्व देकर खुश करने की
कोशिश की गयी। जिसके विपरीत परिणाम आज सामने आ रहे हैं। बहुसंख्यक मध्यमवर्गीय
समाज के मन मे ये बात बैठ गयी है कि भाजपा ही अल्पसंख्यकों को उनकी सीमा में रख
सकती है,
अन्य कोई दल नही। यही बात मोदी जी के खाते में कही जा रही
है और इसलिए वे 2019 के
आम चुनावों में इसी मुद्दे पर जोर देंगे। ताकि बहुसंख्यकों की भावनाओं को वोट में
बदल सकें। काश हम सब देश में असली मुद्दों पर बात और काम कर पाते तो देश के हालात
कुछ बदलते।
मुद्दों का जोर-शोर वोट के बाद धीरे-धीरे और शोर में बंद हो जाता है
ReplyDeleteजागरूक प्रस्तुति