Monday, March 12, 2018

क्या नागरिक उड्डयन मंत्रालय का भ्रष्टाचार दूर करेंगे सुरेश प्रभु ?

नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कार्यभार सुरेश प्रभु को सौंप कर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सकारात्मक संकेत दिया है| उल्लेखनीय है कि यह मंत्रालय पिछले एक दशक से भ्रष्टाचार में गले तक डूबा हुआ है | हमने कालचक्र समाचार ब्यूरो के माध्यम से इस मंत्रालय के अनेकों घोटाले उजागर किये और उन्हें सप्रमाण सीबीआई और केन्द्रीय सतर्कता आयोग को लिखित रूप से सौंपा और उम्मीद की कि वे इस मामले में केस दर्ज कर जांच करेंगे| लेकिन यह बड़ी चिंता और दुःख की बात है कि पिछले तीन साल में बार बार याद दिलाने के बावजूद इन घोटालों की जांच का कोई गम्भीर प्रयास इन एज्नेसियों द्वारा नहीं किया गया| जबकि भ्रष्टाचार की जांच करने की ज़िम्मेदारी इन्ही दो एजेंसियों की है | मजबूरन हमें अपने अंग्रेजी टेबलायड ‘कालचक्र’ में सारा विस्तृत विवरण छापना पड़ा| जिसे हमने सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के न्यायधीशों, राष्ट्रिय मीडिया (टीवी व अखबार) के सभी प्रमुख लोगों, वरिष्ठ सरकारी अधिकारीयों, सभी सांसदों और कुछ महत्वपूर्ण लोगों को भेजा| आश्चर्य की बात है कि इस अखबार का वितरण हुए आज तीन हफ्ते से ज्यादा हो गए हैं और मीडिया में कोई हलचल नहीं हो रही| जो भी रिपोर्ट इसमें हमने तथ्यों के आधार पर छापी हैं वो हिला देने वाली हैं| जो भी इस अखबार को पढ़ रहा है वो हतप्रभ रह जाता है कि इतनी सारी जानकारी उस तक क्यों नहीं पहुंची | जबकि हर अखबार में प्रायः एक सम्वाददाता नागरिक उड्डयन मंत्रालय को कवर करने के लिए तैनात होता है | तो इन संवाददाताओं ने इतने वर्षों में क्या किया जो वो इन बातों को जनता के सामने नहीं ला सके ?
इसके अलावा संसद का सत्र भी चालू है पर अभी तक किसी भी सांसद ने इस मुद्दे को नहीं उठाया और शायद इस समबन्धित प्रश्न भी नहीं डाला है, आखिर क्यों ? उधर न्यायपालिका यदि चाहे तो इस मामले में ‘सुओ मोटो’ नोटिस जारी करके भारत सरकार से सारे दस्तावेज़ मंगा सकती है और सीबीआई को अपनी निगरानी में जांच करने के लिए निर्देशित कर सकती है | पर अभी तक यह भी नहीं हुआ है | चिंता की बात है कि कार्यपालिका अपना काम करेगी नहीं| विधायिका इस मुद्दे को उठाएगी नहीं| न्यायपालिका अपनी तरफ से पहल नहीं करेगी और मीडिया भी इस पर खामोश रहेगा | तो क्या भ्रष्टाचार को लेकर जो शोर टीवी चैनलों में रोज़ मचता है या अख़बारों में लेख लिखे जाते हैं वो सिर्फ एक नाटकबाज़ी होती है? इसमें कोई हकीकत नहीं है ? क्योंकि हकीकत तो तब होती जब इस तरह के बड़े मामले को लेकर हर संस्था उद्व्वेलित होती तब देश को इसकी जानकारी मिलती और दोषियों को सज़ा | लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ है |
कारण खोजने पर पता चला कि जेट एयरवेज भारी तादाद में महत्वपूर्ण लोगों को धन, हवाई टिकट या एनी फायदे देती है | जिससे ज्यादातर लोगों मूह बंद किया जाता है | कुछ अपवाद भी होंगे जो अन्य कारणों से खामोश होंगे |
हमारे लिए ये कोई नया अनुभव नहीं है| 1993 में जब हमने जैन डायरी हवाला काण्ड का भांडा फोड़ किया था तो अगले दो ढाई वर्ष तक हम अदालत में लड़ाई लड़ते रहे और साथ ही क्षेत्रीय अख़बारों व पर्चों के माध्यम से अपनी बात जनता तक पहुंचाते रहे | क्योंकि उस वक्त भी राष्ट्रिय मीडिया ने हवाला काण्ड को शुरू में महत्व नहीं दिया था| पर आगे चल कर जब 1996 में देश के 115 लोगों को, जिसमें दर्जनों केंद्रीय मंत्रियों, राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, विपक्ष के नेताओं और आला अफसरों को भ्रष्टाचार में चार्जशीट किया गया था तब के बाद सारा मीडिया बहुत ज्यादा सक्रीय हो गया| वही स्थिति इस उड्डयन मंत्रालय के काण्ड की भी होने वाली है| जब यह मामला कोर्ट के सामने आएगा तभी शायद मीडिया इसे गंभीरता से लेगा |
जब सुरेश प्रभु रेल मंत्री थे तो उनके बारे में यह कहा जाता था कि वे अपने मंत्रालय में किसी भी तरह कि ‘नॉन सेंस’ सहन नही करते थे | इस कॉलम के माध्यम से सुरेश प्रभु का ध्यान नागरिक उड्यन मंत्रालय में व्यप्त घोटालों की ओर लाना है जिसे उनसे पहले के सभी मंत्री व अधिकारी अनदेखा करते आये हैं |
सोचने वाली बात यह है कि इस मंत्रालय में हो रहे भ्रष्टाचार, जो मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार के समय से चल रहा था, उसे पूर्व मंत्री अशोक गजपति राजू ने तमाम सुबूत होने के बावजूद लगभग चार वर्षों तक अनदेखा क्यों किया ? यह सभी मामले नरेश गोयल की जेट एयरवेज से जुड़े हैं, जिसने देश के नियमों और कानूनों की खुलेआम धज्जियां उड़ाईं |
मिसाल के तौर पर अगर जेट एयरवेज के बहुचर्चित बीच आसमान के ‘महिला व पुरुष पायलट के झगड़े’ की बात करें तो उन दोनों पायलटों का इतिहास रहा है कि उन दोनों के ‘रिश्ते’ के चलते वे ज्यादातर ड्यूटी साथ साथ ही करते थे| यह नागरिक उड्यन मंत्रालय के कानूनों के खिलाफ है, लेकिन इसकी जांच कौन करेगा ? मंत्रालय के कई बड़े अधिकारी तो नरेश गोयल कि जेब में हैं | चौकाने वाली बात तो यह है कि यदि कोई सवारी विमान के पायलट या क्रू से बदसलूकी करता है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाती है और उसका नाम ब्लैकलिस्ट किया जाता है | लेकिन इस मामले में इन दोनों पायलटों के खिलाफ एफ.आई.आर का न लिखे जाना इस बात का प्रमाण है कि नागरिक उड्यन मंत्रालय के अधिकारी किसके इशारे पर काम कर रहे हैं |
अगर जेट एयरवेज की खामियों को गिनना शुरू करें तो वह सूची बहुत लम्बी हो जाएगी | हाल ही में चर्चा में रहे इसी एयरलाइन्स के एक विमान का गोवा के हवाई अड्डे पर हुए हादसे स्मरण आते ही उस विमान में घायल दर्जनों यात्रियों के रौन्कटे खड़े हो जाते हैं | यह हादसा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उस विमान को उड़ाने वाले पायलट हरी ओम चौधरी को जेट एयरवेज के ट्रेनिंग के मुखिया वेंकट विनोद ने किसी राजनैतिक दबाव के कारण से पायलट बनने के लिए हरी झंडी दे दी| जबकि वे इस कार्य के लिए सक्षम नहीं था | नतीजा आपके सामने है | अगर सूत्रों की माने तो उन्हीं हरी ओम चौधरी को इस हादसे की जांच के चलते रिलीज़ भी कर दिया गया है | यानि जांच की रिपोर्ट जब भी आए जैसी भी आए, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ये तो हवाई जहाज़ उड़ाते रहेंगे और मासूम यात्रियों की जान से खिलवाड़ करते रहेंगे|
अगर नागरिक उड्यन मंत्रालय के अधिकारीयों का यही हाल रहेगा तो हमें हवाई यात्रा करते समय इश्वर को याद करते रहना होगा और उन्ही के भरोसे यात्रा करनी होगी | इस डर और खौफ से बचने के लिए सभी यात्रियों की उम्मीद एक ऐसे मंत्री से की जानी चाहिए जो अपने अधिकारीयों को बिना किसी खौफ के केवल कानून के दायरे में रह कर ही कम करने की सलह दे किसी बड़े उद्योगपति या देशद्रोही के कहने पर नहीं |

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