दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में ई-मेल और एसएमएस के जरिए पूर्वोत्तर राज्यों के नौजवानों को दहशतगर्द मुसलमानों द्वारा जिस तरह डराया-धमकाया गया, उससे वहां अफरा-तफरी मच गई। जिस पर देशभर के मीडिया में खूब शोर मचा। मजबूरन सरकार को कुछ सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर प्रतिबन्ध लगाना पड़ा। जिससे अफवाहों को फैलने से रोका जा सके। इसका कुछ सामाजिक संगठनों ने विरोध किया तो उनको नेतृत्व देने के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी मैदान में उतर पड़े। उन्होंने अपने ट्व्टिर पर अपनी फोटो पर खुद ही स्याही पोतकर लिखा कि यह आदेश आपातकाल के काले दिनों की याद दिलाने वाला है। गत दो वर्ष से जो माहौल देश में बनाया जा रहा है उसे अंग्रेजी के एक शब्द मे यदि समेटा जाये तो कहा जायेगा कि यह ’रिकैपुचुलेशन’ जैसा है। मतलब यह कि पहले आपातकाल जैसे हालात बनाये जाये और फिर यह कहा जाये कि देखो देश की हालत किस तरह आपातकाल के पूर्व की हो रही है।
बाबा रामदेव और अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम तो अब कहीं हाशिये पर धकेल दी गई। अब तो यह लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच लड़ी जा रही है। हर मुददे पर शोर मचाकर सरकार को घेरा जा रहा है। इस उम्मीद में कि 2013 तक चुनाव हो जायें और कंाग्रेस विरोधी लहर बनाकर भाजपा व उसके सहयोगी दल सत्ता में आ जायें। यह पूरी परिस्थिति 1971 की याद दिलाती है। जब बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद इन्दिरा गांधी के विरूद्व देशव्यापी माहौल खड़ा किया गया। हालात ऐसे बन गये कि श्रीमति गांधी को कोई रास्ता नहीं सूझा। स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए उन्होंने आपातकाल लागू कर दिया। नतीजतन 1977 के चुनाव में उनकी भारी पराजय हुई। राजनैतिक दृष्टिकोण से और लोकतंत्र के नजरिये से यह एक उपलब्धि मानी गई। पर क्या जय प्रकाश नारायण का सम्पूर्ण क्रांन्ति का सपना सच हो पाया ?
1980 में जनता ने पुनः श्रीमति गांधी को देश की बागडोर सौंप दी। इसी तरह पिछले दिनों अन्ना हजारे को जय प्रकाश नारायण बनाने की असफल कोशिश की गई। अन्ना हजारे और रामदेव दोनों के समर्थन में भाजपा और संघ ने अपनी ताकत झौंक दी। पर जब लगा कि इन दोनों का पूरा उपयोग हो गया तो इनके नीचे से चादर खींच ली गई। अब चाहे अन्ना के लोग कितना ही निष्पक्ष दिखने का प्रयास करें, उनका असली स्वरूप, जो छिपाकर रखने की नाकाम कोशिश की जा रही थी, खुलकर सामने आ गया है। ऐसे में यह लोग हों या बाबा रामदेव, कांग्रेस के विरूद्व भाजपा के हाथ में शतरंज के मौहरे बनकर रह गये हैं। जिनका काम कांग्रेस की छवि खराब करना व उसके वोट काटना ही रह गया है।
इस मामले में भाजपा ने कुशल राजनैतिक चाल चली और आज वह उसमें सफल होती दीख रही है। इसमें भाजपा का कोई दोष नहीं। राजनीति सत्ता के लिए जब की जाये तो साम-दाम दंड-भेद कुछ भी अपनाकर सत्ता हासिल करनी होती है। जब कांग्रेस अपनी रक्षा खुद नहीं कर पा रही तो भाजपा उसका फायदा क्यों न उठाये ? पर अभी यह कहना जल्दीबाजी होगी कि लोकसभा के चुनाव 2013 में होंगे और उसमें भाजपा बढ़त हासिल कर सरकार बनायेगी। कारण साफ है कि दावा चाहे जितना करें भाजपा की कमीज कांग्रेस की कमीज से ज्यादा साफ नहीं है।
तो क्या यह माना जाये कि सभी क्षेत्रिय दलों को जोड़कर और भाजपा व कांग्रेस के नेताओं को तोड़कर विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसा तीसरा मोर्चा बनाने की जो छुटपुट कोशिश की जा रहीं है, वह सफल होगी ? कहा नहीं जा सकता। क्योंकि इस गुट के पास न तो विश्वसनीय नेता है और न ही इसके घटकों के नेताओं की ऐसी छवि है कि लोग उन्हें आंख मीचकर गददी सौंप दें। यूं राजनीति में मतदान के आखिरी दिन तक क्या होगा, किसी को पता नहीं होता। जहां तक सवाल अन्ना के लोगों के नये बनने वाले राजनैतिक दल का है, तो अभी तो ऊंट पहाड़ के नीचे आया ही नहीं, ऐसे में क्या भविष्यवाणी की जाये ? उन्हें शुभकामनाएं दी जा सकती है कि वे सभी प्रमुख राजनैतिक दलों को हराकर सत्ता हासिल करें और अपनी मान्यता के अनुसार नये कानून बनाकर देश की तस्वीर बदले। पर उनके अबतक के कारनामे और बयान उनसे ऐसे किसी गम्भीर काम की सम्भावना का संकेत नहीं देते।
इस तरह बात वहीं लोकतंत्र में राजनैतिक दलों की भूमिका पर आ जाती है। मान लें कि भाजपा अपने लक्ष्य को 2013 या 2014 में पाने में सफल हो जाती है तो क्या इस बात की गारंटी है कि मौजूदा हालात में सरकार की जो भी कमियां और गल्तियां बताई जा रही हैं उनसे भाजपा की नई सरकार मुक्ति दिला देगी और देश के हालातों में क्रांन्तिकारी परिवर्तन कर देगी। उसका अबतक का रिकार्ड, केन्द्र या राज्यों में, ऐसे प्रमाण प्रस्तुत नहीं करता। फिर उस मतदाता की क्या दुर्दशा होगी जो इन बदलावों के लिए सड़कों पर उतरा है या उतरने को तैयार था ? कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि हम एक नाजुक दौर से गुजर रहे हैं। चीन घात लगाये बैठा है। पाकिस्तान भारत में कटटरपन्थी माहौल बनवाकर और दहशतगर्दी फैलाकर देश को कमजोर करने की कोशिश में जुटा है। पर कांग्रेस व भाजपा सहित किसी भी दल को इस खतरनाक परिस्थिति का या तो एहसास नहीं है या यह दोनों ही दल हालात पूरी तरह बिगड़ने देना चाहते हैं, जिससे इनके नेता अपनी राजनैतिक रोटियां सेकते रहे। देश के करोड़ों नौजवानों की महत्वाकांक्षा की उपेक्षा कर अगर राजनीति इसी तरह आरोप प्रत्यारोप की कीचड़ फैंकती रहेगी और समाधान नहीं देगी, तो वास्तव में देश के हालात बेकाबू हो सकते हैं। वह भयावह स्थिति होगी।