जहां एक तरफ केंद्र और राज्य सरकारें अल्प संख्यकों के लिए हज राहत जैसी अनेक सुविधाए वर्षो से देती आई है, वहीं हिन्दुओं के तीर्थस्थलों की दुर्दशा की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। आए दिन इन तीर्थस्थलों पर दुर्घटनाऐं और हृदय विदारक हादसे होते रहते हैं। पर कोई सुधार नहीं किया जाता। ताजा मामला अमरनाथ यात्रा में इस साल मरे लगभग 100 लोगों के कारण चर्चा में आया। तीर्थस्थलों के प्रबन्धन को लेकर सरकारों की कोताही एक गम्भीर विषय है जिस पर हम आगे इस लेख में चर्चा करेंगे। पहले अमरनाथ शिराइन बोर्ड की नाकामियों की एक झलक देख लें।
इस हफ्ते सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर के अमरनाथ शिराइन बोर्ड को कड़ी फटकार लगाई। अदालत बोर्ड की नाफरमानी और निक्म्मेपन से नाराज है। उल्लेखनीय है कि इस बोर्ड का गठन अमरनाथ की पवि़त्र गुफा मे दर्शनार्थ जाने वाले तीर्थ यात्रियो की सुविधा और सुरक्षा का ध्यान रखना है। बोर्ड के अध्यक्ष जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल है और सदस्य देश की जानी मानी हस्तियां हैं। बताया जाता है कि बोर्ड के पास लगभग 500 करोड़ रूपया जमा है। बावजूद इसके व्यवस्थाओं का यह आलम है कि इस वर्ष तीर्थयात्रा पर गये लगभग 100 लोग मारे गये और सैंकड़ो घायल हुए। शर्म की बात तो यह है कि इतनी बड़ी तादाद में लोगों ने जान गंवाई पर बोर्ड ने न तो देशवासियों के प्रति कोई संवेदना संदेश प्रसारित किया और न ही अपनी लापरवाही के लिए माफी मांगी। मजबूरन सर्वोच्च न्यायालय को ’सूओ-मोटो’ नोटिस भेजकर अमरनाथ शिराइन बोर्ड को तलब करना पड़ा। अदालत ने उसे उच्च स्तरीय समिति से मौके पर मुआयना करके अपनी कार्य योजना प्रस्तुत करने का आदेश दिया। इतना सब होने के बावजूद अमरनाथ शिराइन बोर्ड अदालत में यह रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं कर पाया। उसने छः महीने का समय और मांगा। उसे फिर अदालत की फटकार लगी। माननीय न्यायधीशों ने तीन हफ्ते का समय दिया और साफ कह दिया कि रिपोर्ट नहीं कार्य योजना चाहिए, तीन हफ्ते में कार्य शुरू हो जाना चाहिए। ऐसा न हो कि बर्फबारी शुरू हो जाये और कोई काम हो ही न पाये।
जब सर्वोच्च अदालत में यह सब कार्यवाही चल रही थी तो मुम्बई के पीरामल उधोग समूह की ओर से एक शपथ-पत्र दाखिल किया गया। जिसमें कम्पनी ने अमरनाथ के यात्रियों के लिए सड़क मार्ग व पैदल रास्ते पर सुरक्षित आने-जाने की व्यवस्था व अदालत के निर्देशानुसार अन्य सुविधाए मुहैया कराने की अनुमति मांगी। कम्पनी ने अपने शपथ-पत्र में यह साफ कर दिया कि वह यह सब कार्य धमार्थ रूप से अपने आर्थिक संसाधनों और कारसेवकों की मदद से करेगी। इसके लिए कम्पनी जम्मू कश्मीर सरकार व अमरनाथ शिराइन बोर्ड से किसी तरह की आर्थिक मदद की अपेक्षा नहीं रखेगी। उल्लेखनीय है कि उक्त उधोग समूह आन्ध्रप्रदेश में स्वास्थ सेवा का, गुजरात व राजस्थान में प्राथमिक शिक्षा व पेयजल का व ब्रज में सास्ंकृतिक धरोहरों के संरक्षण का कार्य देश की जानी-मानी स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से कर रहा है। इसी क्रम में अमरनाथ के यात्रियों की सेवा का भी प्रस्ताव किया गया। सर्वोच्च अदालत नें अमरनाथ शिराइन बोर्ड की हास्यादपद स्थिति पर टिप्पणी की कि जब एक निजी संस्था यह सेवा देने को तैयार है तो बोर्ड को क्या तकलीफ है ?
उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद शिराइन बोर्ड की मदद के लिए जम्मू कश्मीर सरकार ने अपने मुख्य सचिव माधव लाल की अध्यक्षता में एक समिति गठित की। जिसने मौका मुआयना करके अपनी रिपोर्ट अमरनाथ शिराइन बोर्ड को सौंप दी है। अब देखना है कि बोर्ड अदालत के सामने क्या योजना लेकर आता है ?
यह बड़े दुख और चिन्ता की बात है कि हिन्दू धर्म स्थलों के प्रबन्धन के लिए बने शिराइन बोर्ड भक्तों से दान में अपार धन प्राप्त होने के बावजूद तीर्थ स्थलों की सुविधाओं के विस्तार की तरफ ध्यान नहीं देते। इन बोर्डो में अपनी पहुंच के कारण ऐसे लोग सदस्य नामित कर दिये जाते है जिनकी इन तीर्थ स्थलों के प्रति न तो श्रद्वा होती है, न ही समझ। केवल मलाई खाने और मौज उड़ाने के लिए इन्हें वहां बैठा दिया जाता है। नतीजतन न तो ऐसे लोग खुद कोई पहल कर पाते है और न ही किसी पहल को आगे बढ़ने देते हैं। पीरामल समूह के प्रतिनिधि व आस्था से सिक्ख हरिन्दर सिक्का जब अमरनाथ यात्रा पर गये तो उनसे इस विश्वप्रसिद्व तीर्थ की यह दुर्दशा नहीं देखी गई। वे आरोप लगाते हैं कि अमरनाथ शिराइन बोर्ड तीर्थयात्रियों को मिलने वाली हर सुविधा जैसे टैन्ट, टट्टू, व हैलीकॉप्टर आदि में से बाकायदा शुल्क लगाकर मोटा कमीशन खाता है। इस दौलत को अपने खाते में जमा कर चैन की नींद सोता है। जबकि इस पैसे का इस्तेमाल यात्रियों की सुविधाओं के विस्तार के लिए होना चाहिए था, जो नहीं किया जा रहा।
हमारा मानना है कि हर धर्म स्थल के प्रबन्धन की समिति का अध्यक्ष भले ही उस प्रान्त का राज्यपाल या मुख्य सचिव हो, पर इसके सदस्य उस तीर्थ में आस्था रखने वाले धनाड्य सम्मानित ऐसे लोग हों जो अपना समय और धन दोनों लगा सकें। इनके अलावा इस तरह के कार्यो में रूचि रखने वाले प्रतिष्ठित समाज सेवियों को भी इन बोर्डो में सदस्य बनाया जाना चाहिए। जिससे संवेदनशीलता के साथ कार्य हो सके। स्थानीय विवादों के चलते बहुत से धर्म स्थलों को कई अदालतों ने अपने नियंत्रण में ले रखा है। इनका भी हाल बहुत बुरा है। न तो न्यायधीशों और न ही प्रशासनिक अधिकारियों का यह काम है कि वे धर्म स्थलों का प्रबन्धन करें। सदियों से यह काम साधन सम्पन्न आस्थावान लोग करते आये हैं। चुनावी राजनीति ने यह संतुलन बिगाड़ दिया। अब राजनेताओं के चमचे प्रबन्धन में घुसकर भक्तों की भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हैं। इस पर सर्वोच्च न्यायालय को व भारत सरकार को स्पष्ट नीति की घोषणा करनी चाहिए। जिससे हमारी विरासत सजे-संवरे और देश की जनता सुख की अनुभूति कर सके।
जब सर्वोच्च अदालत में यह सब कार्यवाही चल रही थी तो मुम्बई के पीरामल उधोग समूह की ओर से एक शपथ-पत्र दाखिल किया गया। जिसमें कम्पनी ने अमरनाथ के यात्रियों के लिए सड़क मार्ग व पैदल रास्ते पर सुरक्षित आने-जाने की व्यवस्था व अदालत के निर्देशानुसार अन्य सुविधाए मुहैया कराने की अनुमति मांगी। कम्पनी ने अपने शपथ-पत्र में यह साफ कर दिया कि वह यह सब कार्य धमार्थ रूप से अपने आर्थिक संसाधनों और कारसेवकों की मदद से करेगी। इसके लिए कम्पनी जम्मू कश्मीर सरकार व अमरनाथ शिराइन बोर्ड से किसी तरह की आर्थिक मदद की अपेक्षा नहीं रखेगी। उल्लेखनीय है कि उक्त उधोग समूह आन्ध्रप्रदेश में स्वास्थ सेवा का, गुजरात व राजस्थान में प्राथमिक शिक्षा व पेयजल का व ब्रज में सास्ंकृतिक धरोहरों के संरक्षण का कार्य देश की जानी-मानी स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से कर रहा है। इसी क्रम में अमरनाथ के यात्रियों की सेवा का भी प्रस्ताव किया गया। सर्वोच्च अदालत नें अमरनाथ शिराइन बोर्ड की हास्यादपद स्थिति पर टिप्पणी की कि जब एक निजी संस्था यह सेवा देने को तैयार है तो बोर्ड को क्या तकलीफ है ?
उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद शिराइन बोर्ड की मदद के लिए जम्मू कश्मीर सरकार ने अपने मुख्य सचिव माधव लाल की अध्यक्षता में एक समिति गठित की। जिसने मौका मुआयना करके अपनी रिपोर्ट अमरनाथ शिराइन बोर्ड को सौंप दी है। अब देखना है कि बोर्ड अदालत के सामने क्या योजना लेकर आता है ?
यह बड़े दुख और चिन्ता की बात है कि हिन्दू धर्म स्थलों के प्रबन्धन के लिए बने शिराइन बोर्ड भक्तों से दान में अपार धन प्राप्त होने के बावजूद तीर्थ स्थलों की सुविधाओं के विस्तार की तरफ ध्यान नहीं देते। इन बोर्डो में अपनी पहुंच के कारण ऐसे लोग सदस्य नामित कर दिये जाते है जिनकी इन तीर्थ स्थलों के प्रति न तो श्रद्वा होती है, न ही समझ। केवल मलाई खाने और मौज उड़ाने के लिए इन्हें वहां बैठा दिया जाता है। नतीजतन न तो ऐसे लोग खुद कोई पहल कर पाते है और न ही किसी पहल को आगे बढ़ने देते हैं। पीरामल समूह के प्रतिनिधि व आस्था से सिक्ख हरिन्दर सिक्का जब अमरनाथ यात्रा पर गये तो उनसे इस विश्वप्रसिद्व तीर्थ की यह दुर्दशा नहीं देखी गई। वे आरोप लगाते हैं कि अमरनाथ शिराइन बोर्ड तीर्थयात्रियों को मिलने वाली हर सुविधा जैसे टैन्ट, टट्टू, व हैलीकॉप्टर आदि में से बाकायदा शुल्क लगाकर मोटा कमीशन खाता है। इस दौलत को अपने खाते में जमा कर चैन की नींद सोता है। जबकि इस पैसे का इस्तेमाल यात्रियों की सुविधाओं के विस्तार के लिए होना चाहिए था, जो नहीं किया जा रहा।
हमारा मानना है कि हर धर्म स्थल के प्रबन्धन की समिति का अध्यक्ष भले ही उस प्रान्त का राज्यपाल या मुख्य सचिव हो, पर इसके सदस्य उस तीर्थ में आस्था रखने वाले धनाड्य सम्मानित ऐसे लोग हों जो अपना समय और धन दोनों लगा सकें। इनके अलावा इस तरह के कार्यो में रूचि रखने वाले प्रतिष्ठित समाज सेवियों को भी इन बोर्डो में सदस्य बनाया जाना चाहिए। जिससे संवेदनशीलता के साथ कार्य हो सके। स्थानीय विवादों के चलते बहुत से धर्म स्थलों को कई अदालतों ने अपने नियंत्रण में ले रखा है। इनका भी हाल बहुत बुरा है। न तो न्यायधीशों और न ही प्रशासनिक अधिकारियों का यह काम है कि वे धर्म स्थलों का प्रबन्धन करें। सदियों से यह काम साधन सम्पन्न आस्थावान लोग करते आये हैं। चुनावी राजनीति ने यह संतुलन बिगाड़ दिया। अब राजनेताओं के चमचे प्रबन्धन में घुसकर भक्तों की भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हैं। इस पर सर्वोच्च न्यायालय को व भारत सरकार को स्पष्ट नीति की घोषणा करनी चाहिए। जिससे हमारी विरासत सजे-संवरे और देश की जनता सुख की अनुभूति कर सके।
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