Rajasthan Patrika 2Jan2012 |
दरअसल सरकार के जिस लोकपाल विधेयक को कमजोर बताकर दरकिनार किया जा रहा है, उस बिल में अनेक ऐसे प्रभावी प्रावधान किये गये हैं जिनसे भ्रष्टाचार को रोकने में कुछ सीमा तक मदद मिलेगी और बाकी का सुधार आने वाले वर्षों में अनुभव के आधार पर किया जा सकता है।
लेकिन विपक्ष इसका राजनैतिक लाभ लेना चाहता है। विशेषकर भाजपा। जिसने सिविल सोसायटी के मंचों पर तो लोकायुक्त की माँग का समर्थन किया था और संसद में इसका विरोध। सी बी आई की स्वायत्तता को लेकर जितना हल्ला भाजपा मचा रही है, उसके पर कतरने का काम उन्हीं की एन डी ए सरकार ने 2003 में सीवीसी एक्ट के माध्यम से किया था। इसलिये भाजपा के पास इस बिल पर हमला करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। दूसरी तरफ यूपीए सरकार ने भी भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन को निपटाने का काम बिना संजीदगी के किया। जिससे उसके इरादों पर शक पैदा होने लगा। अन्ना के पहले धरने से लेकर और संसद में फ्लोर मैनेजमेंट तक ऐसा नहीं लगा कि काॅग्रेस की रणनीति स्पष्ट हो। ऐसे में अब दो ही रास्ते बचते हैं, एक तो यह कि बजट सत्र में यूपीए सरकार संसद के दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाकर इस बिल को फिर से पेश कर सकती है, जैसा कि वो कह भी रही है। दूसरा यह कि वह सीबीआई की स्वायत्तता केा सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार स्थापित कर दे। जिससे जन लोकपाल बिल के काफी प्रावधानों की जरूरत ही नहीं बचेगी और न ही राजनैतिक दलों को इस बिल के ऊपर ज्यादा विरोध करने की। इससे प्रमुख दलों की यह माँग भी पूरी हो जायेगी कि सरकार सी बी आई को अपने शिकंजे से मुक्त करे।
जहाँ तक जन आन्दोलन का प्रश्न है, श्री हजारे का मुम्बई और दिल्ली का उपवास उनकी अपेक्षा के विपरीत विफल रहा और वह धैर्य खो बैठे। इससे यह स्पष्ट हो गया कि जनता का विश्वास टीम अन्ना के नेतृत्व से हट गया हैं। जनता उनसे भ्रष्टाचार के मुददे पर जुड़ी थी पर टीम अन्ना ने उसे राजनैतिक रंग दे दिया है। यह जानते हुए भी कि लोकपाल विधेयक को पारित करने में कोई भी दल गंभीर नहीं है, टीम अन्ना एक ही दल के विरोध में खड़ी दिखायी दे रही है। इससे उसकी साख काफी गिरी है। लोगों को समझ में आ गया है कि भ्रष्टाचार के विरोध के झण्डे के पीछे व्यक्तिगत राजनैतिक महत्वाकांक्षा छिपी है।
पहले बाबा रामदेव और फिर अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के असफल होने से भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को गहरा आघात लगा है। जनता बदलाव चाहती है, इसलिये यह लड़ाई तो कभी धीमी और कभी तेज चलती रहेगी, पर व्यावहारिक ज्ञान, सही दृष्टि और अनुभव से युक्त नेतृत्व ही इस संघर्ष को सही दिशा दे पायेगा। अन्यथा टीम अन्ना तो अपना रूख साफ कर चुकी है कि वह आगामी चुनावों में काॅग्रेस का विरोध करेगी और जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा। भाजपा टीम अन्ना के सदस्यों को मालायें पहनाकर एवं जिन्दा शहीद घोषित कर अपने मंचों पर ले जायेगी और उनसे अपना चुनावी प्रचार करवा लेगी। पर इससे टीम अन्ना की रही सही साख भी समाप्त हो जायेगी। इसलिये देश के चिन्तनशील और अनुभवी लोगों के जाग्रत होने की जरूरत है। आवश्यकता इस बात की है कि देश के समझदार और संघर्षशील लोग खुले दिल व दिमाग से, इकट्ठा होकर एक मंच पर आयें। उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मुहिम को और आगे ले जाना चाहिये। इससे धीरे-धीरे देश की परिस्थितियाँ सुधरेंगी एवं भ्रष्टाचार के विरूद्ध मुहिम को सही दिशा व गति मिलेगी।
पहले बाबा रामदेव और फिर अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के असफल होने से भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को गहरा आघात लगा है। जनता बदलाव चाहती है, इसलिये यह लड़ाई तो कभी धीमी और कभी तेज चलती रहेगी, पर व्यावहारिक ज्ञान, सही दृष्टि और अनुभव से युक्त नेतृत्व ही इस संघर्ष को सही दिशा दे पायेगा। अन्यथा टीम अन्ना तो अपना रूख साफ कर चुकी है कि वह आगामी चुनावों में काॅग्रेस का विरोध करेगी और जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा। भाजपा टीम अन्ना के सदस्यों को मालायें पहनाकर एवं जिन्दा शहीद घोषित कर अपने मंचों पर ले जायेगी और उनसे अपना चुनावी प्रचार करवा लेगी। पर इससे टीम अन्ना की रही सही साख भी समाप्त हो जायेगी। इसलिये देश के चिन्तनशील और अनुभवी लोगों के जाग्रत होने की जरूरत है। आवश्यकता इस बात की है कि देश के समझदार और संघर्षशील लोग खुले दिल व दिमाग से, इकट्ठा होकर एक मंच पर आयें। उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ इस मुहिम को और आगे ले जाना चाहिये। इससे धीरे-धीरे देश की परिस्थितियाँ सुधरेंगी एवं भ्रष्टाचार के विरूद्ध मुहिम को सही दिशा व गति मिलेगी।
टीम अन्ना केवल लोकपाल बनाने की माँग पर अड़ी रही है। जबकि हकीकत यह है कि दुनिया में कोई भी अपराध कानून बनाने से मात्र 5 फीसदी तक कम होता है। भ्रष्टाचार के संदर्भ में भी यही बात लागू होती है। इसके अलावा अन्य मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक उपाय भी करने पड़ते हैं जिनका कि कोई जिक्र टीम अन्ना ने अपने आंदोलन में नहीं किया। उनका दुराग्रह देश के लोगों को अच्छा नहीं लगा। भविष्य में जन-आंदोलनों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि वे सामाजिक सारोकार के मुद्दों को राजनैतिक जामा न पहनायंे। तभी बात आगे बढेगी वरना देश में फिर हताशा फैल जायेगी।
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