Sunday, March 30, 2008

वायु सेवा में कोहराम

 Rajasthan Patrika 30-03-2008
उतर प्रदेश की मुख्य मंत्री मायावती ने जब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के निकट नोयडा में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने की बात कही थी तो उनकी तीखी आलोचना हुई। आलोचकों का मानना था कि दिल्ली में जब पहले से ही हवाई अड्डा मौजूद है तो मात्र 50 कि.मी. दूर एक और हवाई अड्डा बनाने की क्या जरूरत ? पर आज इस दूसरे हवाई अड्डे की जरूरत हर हवाई यात्री महसूस कर रहा है। वजह साफ है दिल्ली का हवाई अड्डा अब मछली बाजार से भी बदतर हो चुका है। हवाई यात्रा करने वालों को इस हवाई अड्डे पर रोजाना ढेरों दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली से अगर हवाई जहाज पकड़ना हो तो यह किसी जंग लड़ने से कम नजर नहीं आता। हवाई अड्डे तक पहुंचने वाले सारे मार्ग हर वक्त ट्रैफिक जाम से अवरुद्ध रहते हैं। पहले दक्षिणी दिल्ली में रहने वालों को लगता था कि आधा घंटा पहले घर से निकलने पर भी समय से हवाई अड्डा पहुंच जाएंगे। दूरी वही है पर अब समय लगाता है दो से ढाई घंटा। इसलिए अब ज्यादातर लोग अपनी गाडी से न जाकर टैक्सी से जाते हैं। फिर भी गाडियों का इतना बड़ा जाम वहां लगता है कि अब तो हवाई यात्री ओटो रिक्शा भी लेने लगे है।

हवाई अड्डे पर पहुंचने के बाद टिकिट काउंटरों के आगे भी काफी भीड़ रहती है। हर एअर लाइंस के काउंटर कम है और टिकिट खरीदने वाले बहुत ज्यादा। टिकिट काउंटर और चैकइन काउंटर ना काफी है और वहां एक यात्री को औसतन 45 मिनट खराब करने पड़ते हैं। एक्सरे मशीन पर यात्रियों में धक्का-मुक्की और गाली गलौज तक हो जाती है। चैकइन काउंटर के सामने भी चींटियों सी लंबी कतार लगी होती है। लोग अधीर होते हैं और ग्राउंड स्टाफ फुर्ती से काम कर नहीं पाता। लोगों का रक्त चाप बढ़ जाता है इस तनाव में कि कहीं फ्लाइट न छूट जाए। दो बार तो इस अव्यवस्था का शिकार होकर मेरी फ्लाइट भी छूट चुकी हैं। प्रस्थान लाउंज में इतनी भीड़ रहती है कि अक्सर लोग मूर्च्छित तक हो जाते है। जबसे वायु सेवायें सस्ती हुई हैं तब से हवाई यात्रियों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है। आज से पांच साल पहले भारत में एक वर्ष में मात्र तीन करोड़ लोग हवाई यात्रा करते थे आज उनकी संख्या बढ़कर छः करोड़ हो गयी है। सबसे ज्यादा यात्री दिल्ली और मुंबई के बीच यात्रा करते हैं। इसलिए इन हवाई अड्डों पर सबसे ज्यादा अफरातफरी मची है। वैसे आजकल दिल्ली हवाई अड्डे का जीर्णोद्धार कार्य भी चल रहा है। पर यह कार्य केवल दिन में होता है। जबकि इन हालातों में यह कार्य चैबीस घंटे चलना चाहिए ताकि हवाई अड्डा जल्दी अपना बोझ सहने के लिए तैयार हो जाए। दरअसल उड्डयन से जुड़े सभी आला अधिकारियों को अपने पांच सितारा दफ्तरों से बाहर निकल कर दिल्ली हवाई अड्डे पर फैली अव्यवस्था का खुद जायजा लेना चाहिए। खास कर रात में जब सबसे ज्यादा कोहराम मचा होता है।

पिछले वर्षों में जाड़ों के महीनों में जब उत्तर भारत में कोहरा ज्यादा होता था तो हवाई जहाज उतर नहीं पाते थे और उन्हें दूसरे शहरों की ओर भेज दिया जाता था। कभी कभी जब प्रधान मंत्री, राष्ट्रपति या दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्षों के विशेष वायुयान उतरते थे तो भी पैसेंजर वायुयानों को आकाश में ही रोककर रखा जाता था। पर आजकल बिना कोहरे के भी अक्सर हवाई जहाज समय पर उतर नहीं पाते। क्योंकि हवाई पट्टियों पर भी टैªफिक बहुत बढ़ गया है और दिल्ली हवाई अड्डे पर हवाई जहाजों को खड़ा करने के लिए पार्किंग की जगह की भारी कमी है। आज भारत में 10 एअर लाइंस औपरेट कर रही हैं। जिनके वायुयानों की संख्या गत वर्ष 310 थी। जो तीन वर्ष के बाद 500 सौ तक पहुंचने वाली है। खुले आकाश की नीति के तहत हमारी सरकार ने प्राइवेट औपरेटरों को लाइसेंस तो जारी कर दिए पर यह आंकलन नहीं किया कि उनके हवाई जहाज उतरेंगे कहां और कैसे ? नतीजतन आज दिल्ली हवाई अड्डे के ऊपर अक्सर हवाई जहाजों को उतरने से पहले रोक दिया जाता है। क्योंकि एयर टैफिक कंट्रोल टावर इतना ट्रैफिक हैंडिल नहीं कर पाती। नतीजतन रोजाना
हवाई जहाजों को एक-एक घंटे आसमान में चक्कर लगाने पड़ते हैं या फिर उन्हें अहमदाबाद भेज दिया जाता है। इस प्रक्रिया में काफी ईंधन की बर्बादी होती है और लगभग डेढ़ सौ करोड़ रूपया हर साल बर्बाद होता है। अगर यही पैसा हवाई अड्डे की सुविधाओं के विस्तार पर लगाया जाय तो यात्रियों को आराम मिलेगा और पैसे की बर्बादी भी नहीं होगी। दरअसल एअर ट्रैफिक कंट्रोल करने का प्रशिक्षण केवल इलाहाबाद और हैदराबाद में दिया जाता है। इन संस्थानों में जितने तकनीशियन एक वर्ष में तैयार होते हैं उससे चैगुने तकनीशियनों की हर वर्ष आवश्यकता पड़ रही है। इसलिए वायु सेवाओं के विस्तार के साथ जुड़े विभिन्न आयामों पर प्रशिक्षण के लिए संस्थानों के विस्तार की भी बहुत आवश्यकता है। इसमें खास सावधानी बरतनी होगी। कहीं ऐसा न हो कि मांग की पूर्ति करने के चक्कर में व्यवसायिक संस्थानों की लाइन लग जाए और गुणवत्ता की उपेक्षा कर दी जाए। ऐसा हुआ तो हवाई ट्रैफिक में खतरे बढ़ जाएंगे।

ए. पी. दत्त की जांच बताती है कि सारे देश के हवाई अड्डों पर रडार कवरेज एक सा न होने के कारण भी हवाई यात्रा संचालन में काफी दिक्कत आ रही है। पहली बात तो देश के सभी 82 हवाई अड्डे रडार कवरेज में नहीं है। जो हैं भी उनके रडार अलग-अलग माॅडल के होने के कारण उनमें आपस में तालमेल नहीं बन पाता। नतीजतन एक दूसरे की जानकारी का हवाई अड्डे फायदा नहीं उठा पाते। अगर यह तालमेल होता तो पूरे देश के आकाश पर मंडराने वाले हवाई जहाजों का आंकलन रखना सरल और संभव होता। उससे काफी बर्बादी बच जाती। नागरिक उड्डयन मंत्रालय को इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाना चाहिए। दरअसल वायुसेवा का विस्तार एक खर्चीला कार्यक्रम है। देश में जब एक बड़ा हिस्सा पीने के पानी को तरस रहा हो। बिजली नहीं मिल रही हो। तब वायुसेवा विस्तार या मैट्रो रेल निर्माण आलोचना का शिकार तो बनते ही हैं। पर शायद समय के साथ चलना देश की भी मजबूरी होती है। इन सेवाओं का विस्तार करने में राजनेताओं की अनेक कारणों से विशेष रूचि भी रहती है। ऐसे में जब यह होना ही है तो क्यों ना सही तरीके से हो। पैसे की बर्बादी कम से कम हो। सेवाओं का विस्तार इस कुशलता से हो कि वे लंबे समय तक प्रभावी रहे। नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल के सामने काफी चुनौतियां हैं। उनकी सरकार का यह आखिरी साल है। पर वे सक्षम व्यक्ति हैं। उन्हें कुछ ऐसे फैसले करने चाहिए कि इन समस्याओं काहल निकले और वायु सेवायें बेहतर हो सके।


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