Friday, April 30, 2004

चुनाव बाद होगा अमर सिंह का जलवा


अब तक के मतदान के रुख से यह संकेत मिल रहे हैं कि एनडीए अपने बूते पर सरकार नहीं बना पाएगी। सभी राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि ऐसी हालत में उसे मायावती या मुलायम सिंह यादव की मदद लेनी होगी। बसपा नेता का भरोसा अब किसी को नहीं रहा। कोई नहीं जानता कि वो कब पलटी मार जाएं। उनके साथ कोई भी गठबंधन टिकाऊ नहीं रह सकता। बावजूद इसके अगर बड़े दलों के नेता मायावती को पूछते हैं तो इसका कारण उनकी मायावती के प्रति श्रद्धा नहीं बल्कि उनके वोट बैंक पर नजर है। मायावती यह बात अच्छी तरह समझती हैं। इसलिए किसी को हाथ नहीं धरने देतीं। उत्तर प्रदेश में भाजपा दो बार उनके साथ सरकार बनाकर धोखा खा चुकी है। ऐसे में केंद्रीय सरकार चलाने के लिए मायावती का सहयोग लेना आत्मघाती होगा। न जाने कब वह रूठ जाएं और सरकार को टंगड़ी मारकर गिरा दें। ऐसी स्थिति में राजग के पास केवल एक ही विकल्प होगा और वो ये कि वह मुलायम सिंह की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाए। मुलायम सिंह विश्वसनीय साथी हैं। जमीन से जुड़े नेता हैं और पिछले अनुभवों ने उन्हें काफी परिपक्व राजनेता बना दिया है। सर्वविदित है कि उत्तर प्रदेश में उनकी वर्तमान सरकार भाजपा से जुगलबंदी के कारण ही चल रही है। भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखकर ही चुनाव पूर्व तालमेल नहीं किया। वे जानते हैं कि गठबंधन सरकारों के दौर में उनकी कितनी अहमियत है। हाल के दिनों में आए मुलायम सिंह व भाजपा नेताओं के बयानों का अगर बारीकी से विश्लेषण करें तो यह साफ हो जाता है कि दोनों और निकट आने का मन बना चुके हैं। 

अगर ऐसा होता है कि एनडीए की अगली सरकार मुलायम सिंह यादव के समर्थन के बिना नहीं बन पाएगी तो इसका सबसे ज्यादा फायदा मुलायम सिंह के बाद अगर किसी को होगा तो वह हैं अमर सिंह। उन्हें मुलायम सिंह यादव का भाई कहा जाए, सलाहकार कहा जाए या मित्र कहा जाए, वे और मुलायम सिंह अब अलग नहीं किए जा सकते। वे दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसमें शक नहीं है कि सपा को जमाने में अमर सिंह ने भी जी-तोड़ मेहनत की है। अगर राजग गठबंधन को इस चुनाव के बाद नए दलों को अपने से जोड़ने की जरूरत पड़ी, जिसकी पूरी संभावना है तो वह सबसे पहले मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह की तरफ दौड़ेंगे। अमर सिंह की यह खासियत है कि वह दुश्मन कम और दोस्त ज्यादा बनाते हैं। इस समय भाजपा में उनके बहुत दोस्त हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि उन्हें प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पूर्ण विश्वास प्राप्त है। वे काफी लंबे अरसे से वाजपेयी जी के निकट मित्रों में रहे हैं। इसलिए राजग के लिए भी अमर सिंह की मार्फत सपा से तालमेल जोड़ने में सुविधा रहेगी। यूं तो ये सारा मंथन एक बड़े अगरपर टिका हुआ है पर लगता यही है कि चुनाव के बाद की स्थिति ऐसी ही आने वाली है। अगर ऐसा होता है तो मुलायम सिंह यादव अपनी शर्तों पर ही राजग में शामिल होंगे। वे प्रधानमंत्री पद की मांग रखेंगे और अंततः उपप्रधानमंत्री पद से संतुष्ट हो जाएंगे, ऐसी चर्चा है। जहां तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का सवाल है। सपा के लोगों के मानना है कि वह उनके लिए समस्या नहीं होगा क्योंकि उसका फैसला पहले ही कर लिया गया है। लोग कयास लगा रहे हैं कि ऐसी दशा में मुलायम सिंह यादव लखनऊ की गद्दी पर अमर सिंह को बिठाएंगे या अखिलेश यादव को। दूसरी तरफ केंद्र में महत्वपूर्ण पदों के लिए भी वे दावा करेंगे, जिनमें रक्षा

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