गुजरात इंका प्रदेश इकाई के अध्यक्ष बनने के बाद श्री शंकर सिंह वाघेला का जिस गर्मजोशी से अहमदाबाद में स्वागत हुआ उससे भाजपा के खेमों में हड़कंप मच गया है। यूं हवा अभी भी भाजपा के पक्ष में बहती लग रही है। पर आने वाले दिनों में समीकरण तेजी से बदलने के आसार है। एक तरफ जहां इंका में नए रक्त और ऊर्जा का संचार हुआ है वहीं भाजपा के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने विधानसभा भंग करके अपनी हड़बडाहट का परिचय दिया है। अभी उनके पास पांच महीने का कार्यकाल और था जिसमें वे अपनी प्रशासनिक क्षमता का प्रदर्शन करके लोगों का विश्वास जीत सकते थे। तब उन पर यह आरोप भी नहीं लगता कि वे साम्प्रदायिक ंिहंसा को वोटों के लिए भुना रहे हैं। पर भाजपा में ही श्री मोदी के आलोचकों का कहना है कि अपने थोड़े से विवादास्पद कार्यकाल में श्री मोदी ऐसा कुछ भी नहीं कर पाए जिससे उनकी कुशल प्रशासनिक क्षमता का परिचय मिलता। अपने रूखे व्यवहार और तुरंत निर्णय न लेने की कमजोरी के कारण उन्होंने न सिर्फ लोगों को हतोत्साहित किया है बल्कि प्रशासनिक मशीनरी भी उनसे ना खुश है। जानकार बताते हैं कि श्री वाघेला के नाम की घोषणा होने के बाद गांधी नगर सचिवालय में अधिकारियों के बीच मिठाई बटी। प्रदेश का औद्योगिक और व्यापारिक वर्ग यह मानता है कि निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता और प्रशासन पर कड़ी पकड़ के कारण अपने छोटे से कार्यकाल में ही श्री वाघेला गुजरात के विकास के लिए कहीं ज्यादा उपयुक्त मुख्यमंत्री साबित हुए हैं और अब एक बार फिर उनसे लोगों को काफी उम्मीदें बंधने लगी हैं।
भाजपा और इंका का अगर ईमानदारी से मूल्यांकन किया जाए तो स्थिति इस प्रकार सामने आती हैं। एक तरफ भाजपा है जिसके पास समर्पित कार्यकर्ताओं की एक लंबी फौज है। पर वे सभी कार्यकर्ता अपने नेताओं से बुरी तरह नाराज हैं उनकी शिकायत है कि उन्हें हमेशा चुनाव के पहले काम में जोत दिया जाता है। पर जब भाजपा सत्ता में आती है तो मलाई उसके नेता खाते हैं। कार्यकर्ता धक्के खाते फिरते हैं। यही कारण है कि आने वाले दिनों में भाजपा नेतृत्व के लिए अपने कार्यकर्ताओं को चुनाव में जुटने के लिए प्रेरित कर पाना बहुत मुश्किल होगा। कहते हैं दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। दूसरी तरफ इंका के पास कार्यकर्ताओं की वैसी समर्पित फौज नहीं है। जबकि नेताओं की संख्या ज्यादा है। इसलिए उसे मतदाता को घर से निकालने में मुश्किल आ सकती है। पर गुजरात इंका के प्रवक्ता श्री हिमांशु व्यास इससे सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि अगर ऐसा होता तो पिछले दिनों पंचायत और नगर पालिकाओं के चुनावों में इंका को इतनी भारी विजय नहीं मिलती। इंका नेतृत्व को इस बात का पूरा विश्वास है कि पंचायतों और नगरपालिकाओं की उनकी यह फौज चुनाव को उनके पक्ष में मोड़ देगी।
वैसे भी सरकार चलाने की अपनी क्षमता और प्रशासनिक योग्यता को ही इंका मुद्दा बना रही है। गुजरात राज्य के प्रभारी व इंका के महासचिव श्री कमल नाथ ने गांधीनगर में खचा-खच भरे सम्वाददाता सम्मेलन में गुजरात के विकास को ही अपने चुनाव का मुख्य मुद्दा बताया। लोगों को पानी और बिजली की दिक्कत और भाजपा के शासन काल में गुजरात के उद्योग और व्यापार में आई भारी गिरावट का हवाला देते हुए श्री कमल नाथ ने भरपूर आत्मविश्वास के साथ चुनाव में इंका की जीत का दावा किया। हिंदू कार्ड के सवाल को उन्होंने यह कह कर उड़ा दिया कि यह तो भाजपा की बड़ी पुरानी रणनीति रही है कि वह चुनावों से पहले भावनात्मक मुद्दे उछालकर लोगों का ध्यान अपनी नाकामयाबी से हटाना चाहती है। उनका दावा था कि लोग भाजपा के इस चरित्र को अच्छी तरह समझ गए हैं इसलिए वे अब उसके बहकावे में नहीं आते। इसका प्रमाण पिछले महीनों में देश भर में हुए अलग-अलग किस्म के वे तमाम चुनाव हैं जिनमें भाजपा बुरी तरह हारती जा रही है। भाजपा के खेमे में इंका की गुजरात इकाई में चल रही गुटबाजी को लेकर काफी चर्चा रही। उन्हें विश्वास था कि अमर सिंह चैधरी गुट श्री वाघेला का साथ नहीं देगा। पर सम्वाददाता सम्मेलन में श्री अहमद पटेल, श्री कमल नाथ, श्री अमर सिंह चैधरी और श्री शंकर सिंह वाघेला की साझी उपस्थिति में यह घोषणा हुई कि आगामी चुनाव प्रचार के दौरान श्री चैधरी व श्री वाघेला साथ-साथ रैलियों को संबोधित करेंगे। श्री चैधरी ने भी इसका समर्थन किया। इस तरह गुटबाजी की बात फिलहाल गौण हो गए लगती हैं।
यह सही है कि गोधरा की घटना को लेकर हिंदुओं का आक्रोश न सिर्फ मुसलमानों के प्रति भड़का बल्कि उनमें एकजुटता भी आई। पर इसका ज्यादा प्रभाव केवल दंगों से प्रभावित क्षेत्रों में ही देखने को आ रहा है। मसलन, अहमदाबाद और बड़ौदा क्षेत्र के हिंदू जितना श्री मोदी को समर्थन कर रहे हैं उतना शेष प्रांत में उन्हें समर्थन नहीं मिल रहा हैं। इसमें शक नहीं है कि श्री मोदी ने गुजरात में हिंदुओं के रक्षक के रूप में एक लड़ाकू नेता की छवि बनाई है और लोग मानते हैं कि उनकी इस छवि से गुजरात की पतनशील भाजपा में भारी जान आई है। गोधरा कांड से पहले यह माना जा रहा था कि गुजरात में भाजपा का सफाया हो जाएगा। पर गोधरा और उसके बाद के दंगों ने ऐसी हवा बनाई कि सबको लगने लगा कि अब भाजपा की सफलता को कोई नहीं रोक सकता। शायद इसीलिए विपक्ष ने भी बार-बार श्री मोदी को हटाने की मांग की। यह बात दूसरी है कि इसी तरह की हिंसा के बाद पंजाब, दिल्ली और असम में चुनाव करवाए गए थे। पर श्री मोदी इस बार पूरी दुनिया की मीडिया के आलोचना का शिकार हो गए। इसलिए उन्हें हटाए जाने की मांग ने इतना जोर पकड़ा। जिस तरह भाजपा ने उत्तर प्रदेश में श्री विनय कटियार को प्रदेश अध्यक्ष बना कर भेजा और गुजरात में श्री नरेन्द्र मोदी को मुख्यमंत्री बना कर भेजा उससे यह तो साफ भी हो गया है कि भाजपा अब हिंदू कार्ड पर ही चुनाव लड़ने जा रही है। आश्चर्यजनक रूप से राजग के सहयोगी दल अब उसका वैसा प्रखर विरोध नहीं कर रहे जैसा पिछले वर्षों में करते आए हैं। कुछ लोग इसे भारत की राजनीति के दो शिखरों पर हुए ध्रुविकरण का प्रमाण मान रहे हैं पर इस बात में संशय ही लगता है कि श्री चन्द्र बाबू नायडु और सुश्री ममता बैनर्जी, श्री नीतीश कुमार और श्री करूणानिधि जैसे लोग आंख मूंद कर भाजपा के हिंदूवादी एजेंडे को बर्दाश्त कर लेंगे।
उधर पता चला है कि विहिप के महासचिव डा. प्रदीप तोगडि़या को भारी मात्रा में आर्थिक मदद पहुंचाई जा रही है। जिसका इस्तेमाल वे आने वाले चुनावों में भाले और त्रिशूल बांटने में करेंगे ताकि वातावरण को आक्रामक बनाया जा सके। शायद वे अपने इस अभियान में सफल हो जाते अगर श्री वाघेला मैदान में नहीं कूदते। पर संघ से ही उभर कर ऊपर उठे और अपने बलबूते पर गुजरात में भाजपा को खड़े करने वाले श्री शंकर सिंह वाघेला के बारे में ऐसा विश्वास है कि वे भाजपा, संघ और विहिप की सभी कमजोरियों से बखूबी वाकिफ हैं और इन संगठनों से अपने साथ हुए सौतेले व्यवहार का हिसाब एक घायल शेर की तरह चुकता करना चाहते हैं। इसलिए वे भी हर हथकंडा अपना कर इंका की विजय सुनिश्चित कराना चाहेंगे। गुजरात के पत्रकारों का मानना है कि विहिप के तमाम प्रयासों के बावजूद गुजरात का देहाती मतदाता हिंदू कार्ड से प्रभावित नहीं होगा। आज उनके सामने पानी, बिजली, सूखे और बेरोजगारी का जो भारी संकट खड़ा है वे उसका निदान चाहते हैं। धर्म उनकी प्राथमिकता कभी नहीं रही। यह सही है कि पिछले दिनों साम्प्रदायिक हिंसा को देहातों तक पहुंचाया गया। पर आज भी गुजरात का देहाती और व्यापारी समाज हिंसा की तुलना में शांति और सौहार्दपूर्ण वातावरण को ही प्राथमिकता देता है ताकि उनका कारोबार ठीक तरह से चल सके। गुजरात के दंगों के बाद वहां उद्योग और व्यापार लगभग ठप हो गए हैं। सैकड़ों करोड का माल और पैसा जगह-जगह अटक गया है। व्यापार में भारी मंदी छाई है। लोगों के भुगतान रूके पड़ें हैं। बाजार में ग्राहक नहीं हैं। ऐसे में गुजरात की व्यापारिक मानसिकता वाली जनता शांति और आर्थिक प्रगति चाहती हैं, दंगे और धर्म के भावुक नारे नहीं। उधर अहमदाबाद के उप महापौर रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता व शहर के अत्यंत सम्मानीय नेत्र विशेषज्ञ डा. सुरेन्द्र भाई पटेल एक अलग ही कहानी सुनाते हैं। उनका कहना है कि भाजपा में अच्छे और सक्षम लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। क्योंकि आरएसएस के लोग ऐसे किसी भी आदमी को भाजपा की सरकारों में काम नहीं करने देते जिस पर संघ की मोहर न लगी हो। डा. पटेल अहमदाबाद को साफ करने की भावना से राजनीति में आए। पर उनकी लाख कोशिश के बावजूद भाजपा नेतृत्व ने उनकी कर्तव्य परायणता की कद्र नहीं की और महत्वपूर्ण समितियों पर ऐसे नाकारा लोगों को बिठाया जिनकी कुल योग्यता यही थी कि वे संघ का ठप्पा लेकर आए थे। भाजपा से संबंधित रहे डा. पटेल जैसे तमाम लोग अनौपचारिक बातचीत में यह बताते नहीं थकते कि भाजपा का नेतृत्व कितना अदूरदर्शी, अकुशल और चाटुकारों से घिरा रहने वाला है। ऐसा नहीं है कि यह लोग कांग्रेस से बहुत खुश है या कांग्रेस के सर्मथन में जाने को तैयार हैं। पर यह निश्चित हैं कि इन्हें भाजपा से कोई उम्मीद नहीं। पूरे गुजरात में ऐसे बहुत सारे लोग हैं जिन्होंने वर्षों भाजपा की खिदमत तन, मन और धन से की। पर आज निष्क्रिय होकर घरों में बैठे हैं। भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व भी अब उन्हें घर से बाहर नहीं निकाल पाएगा। ऐसे में यह साफ है कि जैसा बताया जा रहा है कि गुजरात में भाजपा की हवा ह,ै वह सच नहीं है। उत्तर प्रदेश में भी ऐसे ही दावे किए गए थे। मीडिया में भाजपा ने अपनी सफलता के पक्ष में बढ़-चढ़ कर दावे करने वाले सर्वेक्षण छपवाए थे। पर विधानसभा में उसकी सीटें 80 का आंकड़ा पार नहीं कर पाईं। गुजरात में भी मुकाबला काफी कड़ा होगा और जो दल अपनी बात मतदाताओं तक तार्किक रूप से पहुंचा पाएगा वही विजयी होगा।