Friday, May 3, 2002

क्या रवि सिद्धू ही गुनहगार है ?


 पंजाब लोक सेवा आयोग के गिरफ्तार अध्यक्ष रवि सिद्धू मीडिया से बहुत नाराज हैं। रवि का कहना है कि इस ख्ेाल में जो दूसरे लोग शामिल थे उनका नाम क्यों नहीं लिया जा रहा है ? क्या इसलिए कि वे सब लोग ताकतवर नेता, बड़े अफसर या न्याय व्यवस्था से जुड़े लोग है ? रवि अपने ‘‘विरूद्ध चलाए जा रहे अभियान’’ से लड़ाई लड़ने का ऐलान कर रहे है। ठीक वैसे ही जैसे जैन हवाला कांड में सीबीआई का छापा डलने के बाद एक नेता ने बहराइच से दिल्ली तक की लंबी सत्याग्रह यात्रा निकाली थी। इस यात्रा का उद्देश्य अपने को पाक-साफ सिद्ध करना नहीं बल्कि यह बताना था कि हमाम में सब नंगे हैं तो फिर कुछ व्यक्तियों को ही क्यों बलि का बकरा बनाया जाता है? सिद्धू की गिरफ्तारी और टीवी चैनलों पर सिद्धू के बैंक लाॅकरों में रखी करोड़ों रूपए के नोेटों की गड्डियां सारे देश ने देखी हैं। देश में इस कांड की चर्चा हो रही है। छापे में, इतनी बड़ी मात्रा में किसी अधिकारी के घर से नकद धन की प्राप्ति पहले कभी नहीं हुई, इसलिए ये एक बड़ी खबर बन रही है। पर  उन नेता और रवि सिद्धू के तर्क में काफी वजन है। जो सवाल इससे खड़े हुए हैं उसके जवाब देने की स्थिति में कोई भी नहीं हैं। मसलन, जैन हवाला कांड में जब दर्जनों नेताओं और अधिकारियों के नाम थे तो फिर केवल चै. देवी लाल, आरिफ मोहम्मद खान व ललित सूरी के घर और प्रतिष्ठानों पर ही क्यों छापा डाला गया, बाकी के क्यों नहीं ? क्या इस देश में एक जैसा अपराध करने पर सजा अलग-अलग तरह से मिलती है ? उत्तर होगा हां।
पिछले वर्षों में जितने भी ऐसे घोटाले सामने आए जिनमें बड़े राजनेता या अधिकारी पकड़े गए उन सब केसों का आज क्या हुआ ? क्या किसी को सजा हुई ? अगर नहीं तो रवि सिद्धू कांड पर शोर मचाने का क्या फायदा? देश के मुख्य न्यायाधीश ने सार्वजनिक मंच पर स्वीकारा कि न्यायपालिका में 20 फीसदी भ्रष्ट है और उनसे निपटने के मौजूदा कानून नाकाफी हैं। इसका क्या मतलब हुआ कि उच्च न्यायालयों या सर्वोच्च न्यायलय में जाने वाला याचिकाकर्ता पहले यह पता लगाए कि उसका मुकदमा उन न्यायधीशों के सामने तो नहीं लग रहा जो भ्रष्ट हैं, क्योंकि तब तो उसे न्याय बिलकुल नहीं मिलेगा। ऐसा भ्रष्ट न्यायधीश पैसे के लालच में सच को दबा कर निर्णय देने से नहीं हिचकेगा। लेकिन किसी याचिकाकर्ता को यह पता कैसे चले कि कौन सा न्यायधीश भ्रष्ट है और कौन सा ईमानदार ? ये फर्ज तो न्यायमूर्ति एस.पी. भरूचा का था, जिन्होंने यह घोषणा की। अगर उन्हें इतना सही पता है कि उच्च न्यायपालिका के बीस फीसदी न्यायधीश भ्रष्ट हैं तो उन्हंें उनके नामों का भी खुलासा करना चाहिए था। जब नीचे से ऊपर तक न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का कैंसर फैल चुका हो तो जाहिर है कि साधन संपन्न और ऊंची पहुंच वाले अपराधियों को सजा कभी नहीं मिलेगी। दिवंगत कवि काका हाथरसी कहा करते थे- क्यूं डरता है बेटा रिश्वत लेकर, छूट जाएगा तू भी रिश्वत देकर।
पत्रकार होने के नाते रवि सिद्धू जानते हैं कि आज पत्रकारिता में क्या हो रहो है इसीलिए उनका हमला मीडिया पर भी है। क्या यह सच नहीं है कि अक्सर जब ताकतवर लोग किसी घोटाले में फंसते हैं तो कई पत्रकार उनकी मदद को सामने आ जाते हैं। वे तथ्यों की उपेक्षा करके, घोटाले उजागर करने वाले के ऊपर ही हमला बोल देते हैं ताकि अपने राजनैतिक आका को खुश करके फायदे लिए जा सकें। दरअसल, सिद्धू को अपने वक्तव्य में थोड़ा संशोधन करना चाहिए। उन्हें कहना चाहिए कि, ‘यह सच है कि मैंने पैसे लिए, पर मेरे साथ और भी लोग इस खेल में शामिल थे, जिन्हें छोड़ा नहीं जाना चाहिए।सिद्धू को ऐसे सभी लोगों की सूची बे-हिचक मीडिया को सौंप देनी चाहिए ताकि पूरा खेल खुलकर सामने आ जाए। भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे सिद्धू जैसे अफसरों और नेताओं को उन सारे घोटालों की सूची छापकर बांटनी चाहिए जो राजनैतिक प्रभाव के चलते बिना तार्किक परिणिति के ठंडे बस्ते में डाल दिए गए। उनकी ताजा स्थिति बताते हुए प्रश्न पूछना चाहिए कि इन मामलों को किसके कहने पर और क्यों दबाया गया ?
सिद्धू का यह कहना  गलत है कि मीडिया उन्हें नाहक बदनाम कर रहा है। मीडिया जो कुछ लिख रहा है या टीवी पर दिखा रहा है वो तो जांच एजेंसियों के छापों में बरामद अवैध संपत्ति का ब्यौरा ही तो है। कोई मनगढ़त कहानी तो नहीं। दरअसल, सिद्धू को अपना हमला करते वक्त कुछ ऐसे तर्क देने चाहिए जिनका उत्तर कोई आसानी से न दे सके। मसलन, उसे पूछना चाहिए कि क्या हर अखबार में, हर भ्रष्ट आदमी के पकड़े जाने पर, इसी तरह कवरेज किया जाता है ? क्या यह सच नहीं है कि अखबार मालिक या उसके संपादकों के निजी संबंधों के दायरे में आने वाले ताकतवर लोग जब पकड़े जाते हैं तो ये अखबार पूरी तरह से खामोश रहता है या दबी छिपी जुबान में खबर छाप कर औपचारिकता निभाता है ? क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है ? क्या यह सही नहीं है कि वही अखबार फिर उस ताकतवर व्यक्ति से खबर दबाने की मोटी कीमत वसूलता है। यह कीमत बड़े फायदे के रूप में हो सकती है या नकद राशि के रूम में या फिर राजनैतिक लाभ लेने की जैसे राज्य सभा में मनोनयन। क्या यह सही नहीं है कि जो लोग मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता करते हैंचाटुकारिता से बचते हैं और सच कहने में संकोच नहीं करते उन्हें मीडिया के मठाधीश साजिश करके मीडिया की मुख्य धारा से अलग रखते हैं। क्या ऐसा आचरण भ्रष्टाचार और अनैतिकता की परिधि में नहीं आता ? सिद्धू को जांच एजेंसियांे से पूछना चाहिए कि क्या यह सच नहीं है कि अतीत में जितने घोटाले उन्होंने पकड़े उनमें इन्हीं परिस्थितियों में जब ताकतवर लोग पकड़े गए तो इन जांच एजेंसियों को ऊपर से आदेश आ गया कि मामले को वहीं रफा-दफा कर दो और उन्होंने किया भी? क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है ?
सिद्धू को पूछना चाहिए कि ऐसा कैसे होता है कि बजट बनाते समय वित्तमंत्री की मिलीभगत से किसी औद्योगिक घरानों को सैकड़ों करोड़ रूपए का मुनाफा रातो-रात हो जाता है। यदि यह पैसा राजकोष में जाता तो गरीबों का भला होता। बजट में इस तरह की हेरा-फेरी करना क्या भ्रष्टाचार नहीं है ? सभी राजनैतिक दल चुनाव के लिए सैकड़ों करोड़ रूपए उद्योग जगत से वसूलते हैं। जाहिर सी बात है कि कोई भी औद्योगिक घराना किसी राजनेता के त्यागमय जीवन या सात्विक आचरण से प्रभावित होकर तो इतनी मोटी रकम दान में देता नहीं, न ही उस उद्योगपति का किसी राजनैतिक दल की विचारधारा में कोई विश्वास होता है। इन उद्योगपतियों के लिए तो यह धन भविष्य में फल प्राप्ति के उद्देश्य से किया विनियोग ही है। उन्हें पता है कि जब उनके पैसे से चुनाव जीता हुआ दल सत्ता में आएगा तो वे इसका कई गुना ज्यादा पैसा बना लेंगे। इस तरह क्या सभी राजनैतिक दल भ्रष्टाचार की परिधि में नहीं आ जाते ? सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार का यह कोई पहला मामला नहीं है। हां, अभी तक प्रकाश में आया सबसे बड़ा जरूर  है। फौज में भर्ती हो या पुलिस में, रेल में भर्ती हो या और किसी महकमें में, जहां भी जाइए नौकरियां इसी तरह खरीदी और बेची जाती हैं। कोई घोटाला उजागर हो जाता है तो ज्यादातर दबा दिए जाते हैं। सिद्धू के मामले ने लोगों की कल्पना की सभी सीमाओं को भले ही तोड़ दिया हो पर ऐसा कुछ नहीं किया जो पहले न होता आया हो। जहां तक भ्रष्टाचार की बाता है पंजाब के ही राज्यपाल, सुरेन्द्र नाथ और उनका परिवार जब हवाई दुर्घटना में मरे थे तो उनके हवाई जहाज से नोट भरे बक्सा की बारिश हुई थी। बाद में इसकी कोई भी सफाई दी गई हो पर जनता समझ गई कि मामला क्या है।
जब तक देश में गरीबी और बेराजगारी है तब तक सरकारी नौकरियों के लिए ऐसी ही आपा-धापी मचती रहेगी। अभ्यार्थियों से फीस लेकर आवेदन फार्म भरवाए जाएंगे, उन्हें परीक्षा में बैठाया जाएगा और बाद में फेल बताकर उन्हें बैरंग लौटा दिया जाएगा, क्योंकि जो पैसा देगा वहीं नौकरी पाएगा। सिद्धू के मामले पर शोर कितना ही क्यों न मच ले पर सबको पता है कि अंत में होना कुछ नहीं है। जनता यह मानने को तैयार नहीं है कि इस देश के आला अफसरों और बड़े नेताओं पर कानून का शिकंजा कभी कस भी पाएगा। इसका यह अर्थ नहीं कि रवि सिद्धू के दुराचरण का समर्थन किया जाए या उसे अनदेखा कर दिया जाए। पर हर घटना को उसकी संपूर्णता में देखने की जरूरत होती है। पंजाब के वर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्दर सिंह शाही खानदान से हैं। धनी हैं, इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि वे राजनीति को लूट का नहीं, सेवा का माध्यम बनाएंगे। वे स्वयं भ्रष्ट हुए बिना पंजाब प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को निर्मूल करने का कठिन प्रयास करेंगे। अगर ऐसा कर सके तो इसका शुभ संदेश देश में जाएगा वरना यह उबाल भी कुछ दिनों में ठंडा पड़ जाएगा। तब लोगों को टीवी चैनलों और अखबारों में किसी ओैर सनसनीखेज घोटाले को देखनी की उत्सुकता होगी। तब कोई नहीं पूछेगा कि सिद्धू घोटाले का परिणाम क्या हुआ ? जैसे अब कोई नहीं जानना वाहता कि बाकी घोटाले कैसे दबा दिए गए। जब तक हम सच्चाई से आंख छिपाते रहेंगे तब तक हालात नहीं बदलेंगे। हर खबर एक मनोरंजन से ज्यादा कुछ भी नहीं होगी।

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