एड्स को लेकर देश में फैलाए जा रहे आतंक पर पिछले वर्ष इसी कालम में हमने दो लेख लिखे थे। इसी क्रम में जो ताजा जानकारी हाथ लगी है वो बेहद चैकाने वाली है। जैसा कि सर्वविदित है देश में एड्स के मामलों की खोज करना और रोकथाम करना सरकारी एजेंसी ‘नेशनल एड्स कन्ट्रोल आरगेनाइजेशन’ (नाको) की जिम्मेदारी है। नाको ही समय-समय पर एड्स सम्बन्धित आंकड़े प्रसारित करता रहता है। इन्हीं आंकड़ों को आधार मानकर एड्स की रोकथाम के नाम पर विदेशों से भारी मात्रा में ऋण लिया जाता है। यानी एड्स को लेकर देश में जो कुछ आज चल रहा है वह सब नाको के आधार पर ही है। पर अगर यह पता चले कि नाको झूठे आंकड़े प्रसारित करके न सिर्फ जनता में आतंक पैदा कर रहा है बल्कि एड्स नियंत्रण के नाम पर हो रहे सैकड़ों करोड़ के फर्जी खर्चों के लिए भी जिम्मेदार है, तो यह बहुत गम्भीर मामला है।
पिछले वर्षों में पूरी दुनिया में यह शोर मचाया जा रहा था कि भारत में 85 लाख लोग एड्स से पीडि़त हैं और तीन करोड़ लोगों को एड्स होने की सम्भावना है। इस तरह का प्रचार कोई सड़क छाप एजेंसी नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र के महासचिव श्री कोफी अनान व भारत के विदेश सचिव श्री ललित मानसिंह तक करते आए हैं। इतना ही नहीं संसद की ‘स्टैंडिग कमेटी’ ने दो वर्ष अध्ययन करने के बाद संसद में यह बताया कि देश में 81 लाख 30 हजार लोग एच.आई.वी. पोजिटिव हैं। पर पिछले दो वर्षों में भारत के कुछ जागरूक नागरिकों ने व एड्स के पीछे की साजिश को बेनकाब करने में जुटी संस्थाओं ने जब इन आंकड़ों का स्रोत पूछा और उनके सर्वेक्षण के वैज्ञानिक आधार को चुनौती दी तो घबरा कर नाको के निदेशक श्री प्रसाद राव ने घोषणा कर डाली कि दरअसल भारत में एच.आई.वी. पोजिटिव लोगों की संख्या 85 लाख नहीं हैं बल्कि कुल 35 लाख लोगों के एच.आई.वी. पोजिटिव होने की सम्भावना है। यह अपने आप में एक बहुत बड़ा घोटाला है। इससे यह साफ जाहिर है कि एड्स के आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर बताकर देश के साथ एक खतरनाक साजिश की गई।
देश के साथ ऐसा धोखा पहली बार नहीं हुआ। साक्षरता अभियान, समेकित ग्रामीण विकास योजना, नसबन्दी कार्यक्रम जैसे तमाम कार्यक्रमों में उपलब्धियों के लम्बे चैड़े झूठे दावे पेश करके अरबों रूपए के घोटाले किए जाते रहे हैं। चूंकि एड्स के मामले में बहु-राष्ट्रीय कंपनियों के हित शामिल हैं इसलिए इसमें और भी बड़े घोटाले करने की गुंजाइश है। एड्स का झूठा आतंक फैला कर अनेक अन्तर्राष्ट्रीय एजेंसिया इंजेक्शन की सूई, कन्डोम व मंहगी दवाओं का कारोबार फैला रही हैं। चूंकि भारत की आबादी लगभग 100 करोड़ हो चुकी है इसलिए यह एड्स के नाम पर अरबों खरबों का कारोबार किया जा सकता है। अगर बात सिर्फ झूठा डर दिखा कर भारत की गरीब जनता से अरबों रूपया कमाने तक ही सीमित होती तो भी एक बात थी। पर इससे ज्यादा खतरनाक बात यह है कि एड्स के मामले में धीरे-धीरे भारत की सरकार पर विदेशी सरकारों का नियंत्रण बढ़ाया जा रहा है। इससे भी ज्यादा खतरनाक बात यह है कि समाज के एक बहुत बड़े हिस्से को एच.आई.वी. पोजिटिव बताकर आकारण ही अछूत बना दिया जा रहा है। जिससे न सिर्फ उनमें हीन भावना पैदा हो रही है बल्कि एक पूरी पीढ़ी को कुंठित कर दिया गया है। इस संदर्भ में पूर्वोत्तर भारत के कुछ राज्यों की कहानी बहुत बेचैन कर देने वाली है।
इन अन्तर्राष्ट्रीय बाजारी शक्तियों के हित साधने में नाको किस तरह जुटा हुआ है और अपना पूरा सरकारी तंत्र उनकी सेवा में झोंक दे रहा है उसका भी उदाहरण पूर्वोत्तर राज्यों खासकर मणिपुर की घटनाओं से समझा जा सकता है। 1996 में नाको ने बड़े दम-खम के साथ अपने आंकड़ों के आधार पर यह प्रचारित किया कि मणिपुर में प्रति हजार व्यक्तियों पर 177 लोग एच.आई.वी. पोजिटिव हैं यानी लगभग 18 फीसदी। जो जाहिरन एक बहुत ही खतरनाक स्थिति को दर्शाती थी। जब हर पांचवां व्यक्ति एच.आई.वी. ग्रसित हो ही गया तब तो मणिपुर में एड्स एक महामारी का रूप ले चुका है, ऐसा माना गया। नतीजा यह हुआ कि पूर्वोत्तर राज्यों को खासकर मणिपुर के लोगों पूरी दुनिया में एड्स ग्रस्त बताकर प्रचारित किया गया। जिसका भारी मनोवैज्ञानिक असर उन पर पड़ा। पूरे देश में मणिपुरी लोगों की छवि खराब हो गई। लोग उनसे बचने लगे। यह हाल हो गया कि पूर्वोत्तर राज्यों के खासकर मणिपुर के लोग अपने राज्य के बाहर जैसे दिल्ली, मुम्बई में अगर मामूली बुखार से भी पीडि़त हों तो डाक्टर उन्हें एच.आई.वी. टेस्ट करवाने के लिए मजबूर करने लगे। जिन्होंने इस त्रासदी को भोगा है वही इसका असर जान सकते हैं। पर जब जे.ए.सी. कन्नूर नाम की एक स्वयं सेवी संस्था ने पूर्वोत्तर राज्यों को लेकर नाको द्वारा प्रचारित किए जा रहे है एच.आई.वी. पोजिटिव के आंकड़ों को बाकायदा चुनौती दी तो नाको प्रशासन हिल गया। घबराकर उन्होंने केन्द्रीय मंत्री डा. सी.पी. ठाकुर से बयान दिलवाया कि पिछले 15 वर्षों से पूर्वोत्तर राज्यों को लेकर नाको जिन आंकड़ों को प्रचारित करता आया था दरअसल वे आंकड़े इतने वैज्ञानिक नहीं है इसलिए अब नाको नए आंकड़े दे रहा है जो ज्यादा वैज्ञानिक आधार पर इकट्ठा किए गए हैं। अपने बयान पर विश्वसनीयता का मुल्लमा चढ़ाने के लिए नाका ने श्री सी.पी. ठाकुर से यह भी बयान दिलवाया कि उसके ताजा आंकड़ों को क्वालालमपुर में हुए वैज्ञानिकों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में स्वीकृति मिल चुकी है। अगर ताजा आंकड़े सही माने जाएं तो यह बात साफ हो जाऐगी कि मणिपुर देश का सबसे ज्यादा एड्स ग्रस्त राज्य न होकर सबसे कम एड्स ग्रस्त राज्य है। यह बात सही है तो पिछले 15 वर्ष से पूर्वोत्तर राज्यों खासकर मणिपुर के बारे में गलत आंकड़े प्रचारित करके नाको ने उन लोगों पर जो कहर ढाया गया उसका खामियाजा कौन भुगतेगा ?
एक तो वैसे ही पूर्वोत्तर राज्यों के मन में यह टीस रहती है कि उन्हें देश की मुख्य धारा से अलग-थलग पटक दिया गया है ऊपर से एच.आई.वी. के नाम पर नाको ने जो फरेब उनके साथ किया उससे उनका विश्वास केन्द्र की सरकार के प्रति बुरी तरह हिल गया है। अगर वह यह माने कि केन्द्र सरकार उन्हें बलि का बकरा बनाकर अपना उल्लू सीधा करना चाहती है तो इसमें गलत क्या होगा ? इसलिए सरकार की यह जिम्मेदारी है कि इसके लिए नाको के दोषी अधिकारियों को तलब किया जाना चाहिए और उनका अपराध सिद्ध हो जाने पर उनको सजा दी जाए। नाको के अधिकारियों ने आंकड़ों का जाल कैसे बुना इसका एक नमूना देख लेने से सारी साजिश साफ हो जायेगी।
1986 से 1996 तक नाको देश में एच.आई.वी. पोजिटिव की स्थिति पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट में सारे देश एकीकृत आंकड़े छापता आया था। इसलिए यह सम्भव नहीं था कि उसके आंकड़ों को क्षेत्र में जाकर परखा जा सके। ऐसा करने के लिए नाको जैसे ही एक समानान्तर राष्ट्रव्यापी संगठन की जरूरत होती। पर 1996 में नाको ने पहली बार हर प्रान्त के बारे में अलग-अलग आंकड़े प्रकाशित करने शुरू किए। जिनके आधार पर किसी एक इलाके में जाकर नाको के आंकड़ों की विश्वसनीयता को परखना सम्भव था। मणिपुर के मामले में वही किया गया और नाको अपनी जालसाजी में रंगे हाथ पकड़ा गया। घबड़ा कर उसने देश के सामने नए आंकड़े पेश कर दिए। पर एड्स की साजिश का पर्दाफाश करने में जुटे जागरूक लोग अब चुप बैठने वाले नहीं हैं। उनके कई सवाल हैं। वे पूछते हैं कि 1996 की वार्षिक रिपोर्ट में नाको ने यह दावा किया है कि 1986 से 1996 तक नाको ने मणिपुर में 40,557 लोगों की जांच की जिनमें से 3,712 लोगों को एच.आई.वी. पोजिटिव पाया गया। इस संयुक्त आंकड़े के आधार पर मणिपुर में हर 1000 लोगों पर 91.52 लोग एच.आई.वी. पोजिटिव माने गए। लेकिन 1998 में नाको ने जो अपनी वार्षिक रिपोर्ट दी उसमें जो 1986 से 1998 तक के संयुक्त आंकड़े (क्यूमेलेटिव) दिए उसमें कहा गया कि मणिपुर में 1986 से 1998 के बीच केवल 29,975 लोगों को ही एच.आई.वी. के लिए जांचा गया जिसमें से 5,327 लोग एच.आई.वी. पोजिटिव पाए गए। यानी प्रति 1000 में 177.71 लोग नाको के अनुसार एच.आई.वी. पोजिटिव थे। बिना आंकड़ों के मकड़जाल में फंसे अगर ऊपर की इन तीन पंक्तियों को ध्यान से पढ़ा जाए तो नाको की जालसाजी का पर्दाफाश हो जाता है। अगर 1986 से 1996 तक नाको ने कुल 40,557 लोगों को जांचा था तो 1986 से 1998 के दौरान जांचे गए कुल लोगों की संख्या जाहिरन 1996 के मुकाबले कहीं ज्यादा होनी चाहिए, क्योंकि इसमें 1996 तक के परखे गए लोगों के अलावा 1996-98 के दौरान परखे गए अतिरिक्त लोगों की संख्या भी जुड़ जाएगी। जाहिरन यह आंकड़ा 40,557 से कहीं ज्यादा होना चाहिए। पर विडम्बना देखिए कि नाको 1986 से 1998 तक के कुल परखे गए लोगों की संख्या बता रहा है 29,975। देशवासियों की आंख में धूल झोंकने का इससे बड़ा नमूना और क्या हो सकता है।
पूर्वोत्तर राज्यों की सीमाएं अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं से मिलती हैं इसलिए हमेशा से विदेशी ताकतों की रूचि इन राज्यों में रही है चाहे वह किसी धर्म के प्रचार के नाम पर हों या पिछड़ी जातियों के सेवा के नाम पर। विदेशी ताकतों की इन साजिशों का काफी खामियाजा भारत को उठाना पड़ा है। इसलिए पूर्वोत्तर राज्यों में विदेशी एजेंसियों की घुसपैठ पर सरकार की निगरानी और नियंत्रण क्रमशः बढ़ा दिया गया था। पर नाको ने उन विदेशी ताकतों के हाथ में खेलकर देश के साथ गद्दारी की है। पूर्वोत्तर राज्यों के बारे में एड्स के झूठे आंकड़े प्रचारित करके पहले तो नाको ने वहां एड्स का आतंक पैदा किया फिर विदेशी ताकतों को यह मौका दिया कि वे एड्स से निपटने के नाम पर पूर्वोत्तर राज्यों में नई-नई स्वयंसेवी संस्थाओं का जाल खड़ा कर सकें। इन संस्थाओं और एजेंसियों के मार्फत एड्स के नाम पर हजारों तथाकथित अध्ययन और सर्वेक्षण करवाए गए। इस तरह विदेशी एजेंसियां पूर्वोत्तर राज्यों में जो साजिश नहीं कर पा रही थीं वे नाको के सहयोग से करने में कामयाब हो गईं।
इस पूरी जालसाजी का सबसे बुरा असर मणिपुर की महिलाओं पर पड़ा। उनके मन में ये बैठ गया कि मणिपुर के नौजवान एड्स ग्रस्त हैं इसलिए उनसे शादी करना खतरे का सौदा रहेगा। दूसरी तरफ एड्स के भय से त्रस्त मणिपुर के अभिभावकों ने यह बेहतर समझा कि उनके बेटे आवारा घूमने के बजाय किसी छोटे-मोटे जुर्म के नाम पर जेलों में बन्द रहें तो बेहतर होगा। कम से कम वे सामाजिक तिरस्कार और कुंठाओं से तो बच सकेंगे। इस तरह एक पूरी नौजवान पीढ़ी को बिना अपराध इस त्रासदी को भोगना पड़ रहा है। जिसके के लिए पूरी तरह से सिर्फ नाको के आला अफसर जिम्मेदार हैं। जिन्हें मानवता के विरूद्ध ऐसे जघन्य षड्यंत्र के लिए बक्शा नहीं जाना चाहिए। ताकि फिर कोई सरकारी संस्था से जुड़े आला अफसर चांदी के चन्द टुकड़े कमाने के लिए देश को गिरवी रखने की गुस्ताखी न कर सकें। देखना यह होगा कि संसद के शीतकालीन सत्र में कितने सांसद नाको की इस बदमाशी के विरूद्ध आवाज उठाते हैं। विदेशी एजेंसियों के हाथ देश र्की अस्मता और संसाधनों के दोहन के प्रति चिंतित और जागरूक लोगों को भी नाको की इस साजिश के खिलाफ जमकर आवाज उठानी चाहिए ताकि न सिर्फ पूर्वोत्तर राज्यों को इन विदेशी एजेंसियों के षड्यंत्र से बचाया जा सके बल्कि शेष भारत में भी इनके खतरनाक पंजे को फैलने से पहले ही रोका जा सके। इस लेख में तो हमने केवल मणिपुर और पूर्वोत्तर के मामले में नाको की साजिश का खुलासा किया है पर आने वाले दिनों में हम बाकी के राज्यों में आम जनता के विरूद्ध किए जा रहे नाको के षड्यंत्रों का पर्दाफाश करने से संकोच नहीं करेंगे। ताकि जनता भी इन साजिशों से सावधान रहे।
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