Friday, October 20, 2000

नरसिंह राव को सजा के मायने


आखिरकार विशेष अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री श्री पी.वी. नरसिंह राव को झारखंड रिश्वत काण्ड में 3 वर्ष की सख्त सजा सुना ही दी। इस खबर को अलग-अलग हल्कों में अलग-अलग तरह लिया गया। जहाँ देश की जनता ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि चलो कम से कम बड़े राजनेताओं को भ्रष्टाचार के मामलों में सज़ा मिलने का सिलसिला शुरू तो हुआ। वहीं राव के राजनैतिक विरोधियों के बीच जाहिरन हर्ष की लहर दौड़ गयी। इस मुद्दे पर कांग्रेस समिति के अधिकृत प्रस्ताव में श्री राव का वह बहुप्रचारित जुमला जान-बूझ कर दर्ज किया गया कि कानून अपना काम करेगा। यह बात श्री राव ने जनवरी 1996 में तब कही थी जब हवाला-काण्ड में आरोपित दर्जनों केन्द्रीय मंत्रियों व विपक्ष के नेताओं ने उन पर हल्ला बोला था। इस पूरे मामले में कई दिलचस्प पहलू हैं।

सबसे अजीबो-गरीब बात यह है कि कांगे्रस सरकार को बचाने के लिये झारखण्ड-रिश्वत काण्ड में जिन लोगों ने श्री राव के साथ मिलकर रिश्वत देने का यह काम किया था उन्हें सी.बी.आई. के लचरपन के चलते छोड़ दिया गया। मसलन श्री भजन लाल, श्री ललित सूरी श्री सतीश शर्मा आदि। दूसरी रोचक बात यह है कि रिश्वत लेने वालों को सजा नहीं मिली। अलबत्ता न्यायाधीश अजीत भरिहोक के फैसले से इस रिश्वत काण्ड में दी गई रकम के बैंक खाते फिलहाल जब्त कर लिये गये हैं। इतना ही नहीं अदालत ने सी.बी.आई. को रिश्वत लेने वालों के खिलाफ पुनः ठीक से जांच करके आरोप पत्र दाखित करने की हिदायत दी है। इस काण्ड ने एक बार फिर तय कर दिया है कि सी.बी.आई. केवल सत्ताधारी दल के हाथ की कठपुतली की तरह काम करती है। इस झारखण्ड रिश्वत काण्ड के शुरू में ही सी.बी.आई. ने कुछ इस तरह की कारिस्तानियां की कि श्री राव व श्री बूटा सिंह को छोड़कर बाकी सब आरोपियों के निकल भागने का रास्ता बनाया जा सके। मसलन जब इस मामले में सर्वोच्च अदालत ने यह कहा कि अविश्वास प्रस्ताव पर मत देना संसद के भीतर की गयी कार्यवाही है और इस मामले में अदालत कोई दखलंदाजी नहीं कर सकती। उसी समय यदि लोक-सभा के अध्यक्ष से इस मामले को आगे बढ़ाने या ना बढ़ाने की अनुमति मांगी जाती तो शायद कोई भी इसमें नहीं फंसता। इतना ही नहीं रिश्वत लेने वाले श्री शिबू सोरेन को मुखबिर बनाने के बाद यह आश्चर्यजनक है कि उन्होंने केवल श्री राव व श्री बूटा सिंह को ही अपराधी बताया और बाकी के नाम दबा गये। इस काण्ड के लिए रिश्वत की रकम मुहैया कराने वालों को भी सी.बी.आई. ने नहीं पकड़ा। जबकि जिन्दल पाईप, वीडियोेकाॅन, एस्सार, रिलाइन्स व बिन्दल एग्रोे जैसे कई उद्योग समूहों के प्रतिनिधियों ने रकम दी थी यह बात सी.बी.आई. से कैप्टन सतीश शर्मा के अतिरिक्त निजी सचिव ई. सफाया ने अपने बयान में कही है। जबकि इस काण्ड में और कौन लोग शामिल थे यह बात जग जाहिर है फिर किसके निर्देश पर सी.बी.आई. ने इन राजनेताओं को बचाया है ?

लोग कयास लगा रहे हैं कि अब श्री राव का भविष्य क्या होगा ? यदि पिछले 5 वर्षों के इतिहास पर नज़र डालें तो यह साफ हो जायेगा कि बड़े स्तर के राजनैतिक अपराधियों को सजा देने का माहौल अभी नहीं बन पाया है। पेट्रोल पम्पों के अवैध आवंटनों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्री कैप्टन सतीश शर्मा को जो सज़ा सुनाई थी और उन पर जो 50 लाख रू. का जुर्माना ठोका था वह निर्णय खुद सर्वोच्च न्यायालय ने ही पलट दिया। इसी तरह जैन बंधुओं की जिन खाता पुस्तकों को इतना महत्वपूर्ण मानकर सर्वोच्च अदालत ने जिस हवाला काण्ड को पूरी दुनियां की खबरों में ला दिया थां उन्हीं खाता पुस्ताकें को उसी सर्वोच्च न्यायालय ने नाकाफी सबूत मानकर सभी हवाला आरोपियों के आरोप मुक्त होने के रास्ते साफ कर दिये। ऐसे ही तमाम दूसरे उदाहरण हैं इसलिये यह मानने का कोइ्र विशेष आधार नहीं है कि अन्ततोगत्वा श्री राव को सजा मिल ही जायेगी।

दरअसल अभिजात्य राजनैतिक वर्ग में एक गोपनीय आपसी समझौता होता है। राजनेता चाहे किसी भी दल का क्यों ना हो उसकी एक ही जात हो जाती है। कोई राजनेता नहीं चाहता कि दूसरे राजनेता को भ्रष्टाचार के मामले में सज़ा मिले। चूँकि हमाम में सभी नंगे हैं इसलिए उन्हें यह डर होता है कि आज अगर एक जेल गया तो कल मेरी बारी भी आ सकती है। राजनेता या दल केवल उन्हीं मामलों में शोर मचाते हैं जिनमें किसी एक दल के कुछ नेता फंसे हों। उनका मकसद अपने राजनैतिक विरोधियों को सजा दिलवाना नहीं बल्कि उस मुद्दे पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकना ही होता है। इसका सबूत वे दर्जनों घोटाले हैं जिनपर 50 वर्षों में वर्षों शोर मचा पर आज तक किसी भी राजनेता को अन्त में जाकर सजा नहीं मिल पाई। श्री राव के मामले में भी यही माना जा रहा है कि हवाला काण्ड के आरोपी राजनेताओं ने उनको आज इस स्थिति में लाकर खड़ा किया है ताकि वे श्रीराव के उस रवैये की उन्हें याद दिला सकें जब ये तमाम राजनेता हवाला-काण्ड मे आरोपित हुए थे और श्री राव ने यह कहकर इनकी मदद करने से इन्कार कर दिया था कि कानून अपना काम करेगा। वैसे राष्ट्र के हित में तो यही होगा कि न सिर्फ श्री राव बल्कि झारखण्ड-रिश्वत काण्ड मे शामिल हर व्यक्ति के खिलाफ ईमानदारी से जांच हो और  अपराधियों को कानून के मुताबिक सजा दी जाये। इससे एक लाभ और होगा कि हवाला-काण्ड जैसे जिन बड़े काण्डों को बहुत बेशर्मायी और बेईमानी से दबवा दिया गया उनके फिर से उठ खड़े होने का माहौल बन जायेगा। इस बात के तमाम सबूत हैं कि इन काण्डों में तथ्यों और सबूतों को दबाकर राजनेताओं के निकल भागने के रास्ते बनाए गये थे।

इतना ही नहीं श्री अटल बिहारी वाजपेयी भ्रष्टाचार को निर्मूल करने का वायदा करके प्रधानमंत्री के पद पर बैठे थे। आज उनका भी यह फर्ज है कि वे अपने आधीन सी.बी.आई. की कार्य प्रणाली को पारदर्शी बनाएं। सी.बी.आई. के कब्रगाह में सैकड़ों ऐसे मामले दबे पड़े हैं जिनमें देश के तमाम बड़े नेता शामिल हैं। इस तरह सी.बी.आई. के पास दर्ज मामलों पर एक श्वेत-पत्र जारी किया जाना चाहिये। पर यह सोचना कि ऐसा हो पाएगा एक स्वप्न से अधिक कुछ नहीं है। राजनीति आज भ्रष्टाचार की दलदल में जितनी गहराई तक डूब चुकी है उतनी गहराई तक जाकर उसकी सफाई करने की क्षमता, हौसला या इचछा आज किसी भी राजनेता में नहीं है। चाहे वह किसी भी दल का हो या उसकी निजी छवि कैसी भी हो। सब समझौते किये बैठे हैं। कोई दूसरे की फटी चादर में उंगली नहीं डालना चाहता। हर स्तर पर राजनेता भ्रष्टाचार का पोषण करने मं जुटा है जबकि जनता के सामने अपने भ्रष्टाचार विरोधी होने की तस्वीर पेश करता है। वैसे जनता को भी अब कोई भ्रम नहीं बचा है। इसलिये उसके मन में राजनेताओं के प्रति अब न तो आदर बचा है और न आकर्षण। इसका प्रमाण यह है कि आज राजनेताओं को जनसमर्थन खरीदना पड़ता है, उन्हें स्वतः नहीं मिलत। यही कारण है कि चुनाव जीतने के बाद राजनेता देश के 100 करोड़ लोगों को भूल जाते हैं। उन वायदों को भी भूल जाते हैं जिन्हें करके वे चुनाव जीते थे। उन्हें तो बस एक ही बात याद रही है कि राजनीति में शामिल वर्ग ही उनकी असली बिरादरी है और वे जो भी करें इसी बिरादरी के फायदे के लिये होना चाहिये। यही कारण है कि चुनाव के पहले जो राजनेता जनता के सामने अपने विरोधियों को हर तरह से नीचा दिखाने में जुटे रहते हैं वे ही राजनेता चुनाव के बाद उन्हीं प्रतिद्वन्द्वी राजनेता को गले से लगाकर हमजोली हो जाते हैं। चूंकि श्री राव के कार्यकाल में कुछ ऐसा माहौल बन गया कि बहुत से मंत्रियों व अन्य राजनेताओं को अदालतों के सामने नीचा देखना पड़ा इसलिए पारस्परिक संरक्षण की राजनैतिक परम्परा टूट गई और श्री राव पूरी राजनैतिक जमात की आंख की किरकिरी बन गये। ऐसा नहीं है श्री राव का दामन साफ था यूरिया घोटाला, सैंट-किट्स व हर्षद मेहता काण्ड ने भी उन पर काफी उंगलियां उठी थीं इसलिये भी उन्हें अपने साथी राजनेताओं के आक्रोश का शिकार होना पड़ा।

यह देश का दुर्भाग्य ही है कि यह जानते हुए भी कि हमारी राजनैतिक और प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह सड़कर चरमरा चुकी है फिर भी कोई इस स्थिति में सुधार करने की नहीं सोच रहा। जो ऐसा सोचते हुए टी.वी. के पर्दों पर दिखाई देते हैं वे प्रायः नाटक से ज्यादा कुछ नहीं करते। अगर करते होते तो इतने सारे लोग मिलकर अब तक हालात में कबका सुधार कर चुके होते। हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और। इसलिये चाहे छात्र तों या बेरोजगार युवा, किसान, मजदूर हों या जागरूक नागरिक, जो भी इस देश की बिगड़ी दशा सुधारना चाहता है उसे ही साझी पहल करनी होगी। सी.बी.आई., संसद, न्यायपालिका, व प्रधानमंत्री से उम्मीद करना कि वे भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े काण्डों में लिप्त राजनेताओं को सजा दिलवा पायेंगे, बचकानी सोच होगी। फिर चाहे वह नरसिंह राव की बात हो, लालू की हो या किसी और की। ये जेल भी जाते हैं तो एक पांच सितारा बंगले में रहते हैं। कहते हैं कि सफेदपोश अपराध वह अपराध होता है जिसे करने वाले को उसकी ताकतवर हैसियत के कारण सज़ा न दी जा सके। फिर भी हम हिन्दुस्तानी चाहतेे हैं कि भगत सिंह पैदा हो, पर पड़ौसी के घर।

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