सुषमा स्वराज को निकट से जानने वाले यह जानते हैं कि वे उन राजनेताओं में नहीं हैं जो सिर्फ गाल बजाते हैं। विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में आने वाली सुषमा स्वराज एक तेजतर्रार, जागरूक और कर्मठ महिला के रूप में जानी जाती रही हैं। 1996 में जब वे 13 दिन की भाजपा सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्राी बनीं तो उन्होंने संवाददाताओं के सामने घोषणा की कि वे दूरदर्शन की संस्कृति में अपेक्षित सुधार करेंगी। दिल्ली की मुख्यमंत्राी बनाये जाने से पहले भी वे सूचना प्रसारण मंत्राी थीं। इस रूप में उनका यह तीसरा कार्यकाल है। सूचना प्रसारण मंत्राी के काम के दायरे में केवल दूरदर्शन ही नहीं होता, बहुत कुछ और भी होता है। पर सामान्य जन यही मानते हैं कि सूचना प्रसारण मंत्राी का मुख्य काम दूरदर्शन पर नियंत्राण रखना है। आज जब देश में तीन दर्जन से ज्यादा सैटेलाइट टेलीविजन चैनल काम कर रहे हैं तो केवल दूरदर्शन पर दर्शकों की निर्भरता नहीं रही। इसलिये यह और भी जरूरी हो जाता है कि दूरदर्शन वह सब करे जिसके लिये इसकी स्थापना भारत में की गई थी। गरीब देश के सीमित संसाधनों को इस उम्मीद से दूरदर्शन में लगाया गया था कि इससे आम आदमी को शिक्षा और सूचना देने का काम तेजी से आगे बढेगा। क्या हुआ इसके इतिहास में जाने की जरूरत नहीं है। क्योंकि सब जानते हैं कि दूरदर्शन जैसा सशक्त माध्यम, तमाम संसाधनों के बावजूद आज भी सरकार का भोंपू ही है, उससे ज्यादा कुछ नहीं। यह भी सर्वविदित है कि सौ करोड़ के इस मुल्क में, जहां एक से बढ़कर एक प्रतिभायें हैं वहां दूरदर्शन आज भी उन्हीं पिटे-पिटाये पुराने चेहरों से घिरा है जो अपने ऊंचे सम्पर्कों या दूसरे तरीकों से कभी दूरदर्शन के सर्किट में घुस गये थे। इसलिये दूरदर्शन के कार्यक्रमों में न तो पैनापन है और न आकर्षण। अब जबकि दूरदर्शन का मुकाबला तमाम दूसरे निजी चैनलों से हो रहा है तो यह बात आम दर्शक को भी बड़ी आसानी से समझ में आ चुकी है। दूरदर्शन के कार्यक्रमों के चयन में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार के तमाम कांड उजागर होने के बाद भी कुछ नहीं बदला है। नीचे के अफसर ऊपर के अफसरों को दोषी ठहराते हैं और ऊपर के अफसर सूचना प्रसारण मंत्रालय को। मंडी हाउस के गलियारों में दखल रखने वाले दलाल यह बात दावे से कहते हैं कि लाख प्रसार भारती बोर्ड बन गया हो पर दूरदर्शन मंे स्वायत्तता नाम की चीज दूर तक दिखाई नहीं देती। स्वायत्तता का ढिंढोरा पीटने के बाद जो कुछ हुआ है वह नई बोतल में पुरानी शराब ही है। प्रसार भारती बोर्ड के सदस्य सूचना प्रसारण मंत्रालय के जी-हुजूर बने हुए हैं। मंडी हाउस के ये दलाल दावे से कहते हैं कि दूरदर्शन में आज भी सूचना प्रसारण मंत्राी का पूरा दखल चलता है। जो काम योग्यता के आधार पर वहां न हो सके उसे दूसरे किस्म की ‘योग्यता’ का प्रदर्शन करके मंत्राी महोदय से करवाया जा सकता है।
जब दूरदर्शन के संचालन की प्रशासनिक व्यवस्था इतनी सड़ गल चुकी हो तो जाहिर है कि उसके कार्यक्रमों की गुणवत्ता गिरेगी ही। यही कारण है कि किसी भी निजी चैनल से पचास गुना ज्यादा संसाधन और नेटवर्क के बावजूद दूरदर्शन प्रभाव नहीं छोड़ पा रहा। पर दूरदर्शन के अधिकारियों को इसकी कोई परवाह नहीं। उधर प्रसार भारती बोर्ड के सदस्य भी लगता है चैन की नींद सो रहे हैं। या फिर बोर्ड की सदस्यता पाने के बाद उनका उत्साह और ऊर्जा ठंडा पड गया है। आज देश में जिन सवालों को लेकर जनमानस उद्वेलित है उनका दूरदर्शन पर कितना सतही प्रदर्शन होता है यह कोई भी आम दर्शक बता सकता है। इस तरह न तो दूरदर्शन वांछित मनोरंजन ही दे पा रहा है और न ही सूचना और शिक्षा देने का काम ठीक से कर पा रहा है। भारत की अन्य सरकारी व्यवस्थाओं की तरह दूरदर्शन की व्यवस्था भी पूरी तरह सड़ गल चुकी है। इसे एक बडी शल्य चिकित्सा, हृदय प्रत्यारोपण व रक्त परिवर्तन की आवश्यकता है। ऐसे माहौल में सुषमा स्वराज का सूचना प्रसारण मंत्राी बनना बहुत मायने रखता है।
श्रीमती स्वराज की छवि उस घरेलू महिला की है जिसके लिये बाहर का जीवन जितना महत्वपूर्ण है उससे कम महत्वपूर्ण घर का जीवन भी नहीं है। अपनी किशोर पुत्राी के विकास में दूरदर्शन के प्रभाव या कुप्रभाव का उन्हे वैसा ही अनुभव है जैसा किसी भी दूसरी संवेदनशील मां को हो सकता है। राजनीति में रहकर भी भारतीय सांस्कृतिक परिवेश से अपने को जोड़े रखने में कामयाब रहीं श्रीमती स्वराज यह जानती हैं कि दूरदर्शन पर क्या दिखाया जाना चाहिये और क्या नहीं। इसके लिये उन्हें किसी भी आयोग या समिति के गठन की जरूरत नहीं है। उन्हें इस मामले में बहुत सारे सलाहकारों की भी जरूरत नहीं है। खासकर उन सलाहकारों की जो विशेषज्ञ सलाहकार का आवरण ओढ़कर दूरदर्शन की दलाली से ज्यादा कुछ नहीं करते। जरूरत इस बात की है कि सुषमा जी उन समस्याओं पर सबसे पहले ध्यान दें जिनसे दूरदर्शन की गुणवत्ता में बुनियादी सुधार आ सके। इसके साथ ही दलालनुमा सलाहकारों या भ्रष्ट नौकरशाहों से अपना पिण्ड अगर छुड़ा सकें तो न सिर्फ दूरदर्शन का भला करेंगी बल्कि अपना और देश का भी कुछ भला कर पायेंगी। यह बात कहने में जितनी सरल है व्यवहार में उतनी ही कठिन भी। जिस देश में शिखर की राजनीति से लेकर पंचायत के चुनाव तक में झूठ, फरेब, दलाली और बदमाशी चलती हो वहां यह उम्मीद करना कि सुषमा स्वराज राजनीति की दलदल में कमल सा खिल जायेगी, बचपना होगा। उन्हें उन्ही घडि़यालों के बीच रहना है और काम करना है जो किसी भी मंत्राी को हफ्ते भर में उसकी औकात बता देते हैं। इस व्यवस्था में संचार मंत्रालय को झकझोरने की ताकत हुए बिना कोई दूरगामी बदलाव नहीं किये जा सकते। ऐसे बदलाव किये बिना सुषमा स्वराज अपनी श्रेष्ठता और योग्यता के झंडे नहीं गाड़ पायेंगी। इसमें शक नहीं कि देश उन्हें और उन जैसे सभी मेधावी राजनेताओं को भविष्य के शिखर के नेताओं के रूप में देखता है। सुषमा ये जानती हैं कि भीड इकट्ठी करने वाले नेता नहीं होते। नेता तो वह है जो अपने नेतृत्व की क्षमता से समय की धारा को मोड़ सके। वैसे जब कभी भी सुषमा स्वराज को मंत्राी बनने का मौका मिला उन्होंने कुछ अनूठा करने की अपनी कसक को दबने नहीं दिया। उदाहरण के तौर पर दिल्ली की मुख्यमंत्राी के रूप में उन्होंने दीपावली पर पटाखों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाकर दिल्ली को उस रात प्रदूषण मुक्त रहने का तोहफा दिया। मजे की बात तो यह है कि इस प्रयास में उन्होंने स्कूली बच्चों का सहयोग लिया और कामयाब रहीं।
सूचना प्रसारण मंत्रालय अनेक ऐसे विभागों को समेटे हुए है जो देश की नब्ज पर नजर रखते हैं। इतना ही नहीं यह मंत्रालय उस सूचना का भी उद्गम है जिसे आधुनिक तकनीकी के सहारे हर घर तक पहंुचाया जाता है। इसलिये इस मंत्रालय के ऊपर देश को दिशा देने की जिम्मेदारी दूसरे मंत्रालयों के मुकाबले बहुत ज्यादा है। कृषि मंत्रालय कृषि की ही बात करेगा, उद्योग मंत्रालय उद्योगों की बात करेगा, स्वास्थ्य मंत्रालय स्वास्थ्य की बात करेगा पर सूचना और प्रसारण मंत्रालय अपने विभिन्न अंगों की मदद से पूरे समाज की बात करता है। पूरे समाज को दिशा देने का काम करता है। इसलिये इसका बहुत महत्व है। यह गृहणियों और माताओं का सौभाग्य ही है कि उनके घरों तक में पैठ रखने वाले इस मंत्रालय के सदर के रूप में उनकी ही सी एक महिला बिठा दी गई है। जो उनके दर्द भी समझती है और उनकी आकांक्षाओं से भी वाकिफ है। इसलिये एक बहन, बहूरानी या मां सरीखी शख्सियत जब इस मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रही हो तो यह उम्मीद की जानी चाहिये कि दूरदर्शन अपने रूप रंग में वांछित निखार लायेगा। पर ऐसा हो सके इसके लिये श्रीमती स्वराज को अपने पारम्परिक सलाहकारों के शिकंजे से मुक्त होकर उन लोगों की राय लेनी होगी जिन्होंने इस माध्यम को समझा है और जिनके पास इसकी गुणवत्ता सुधारने के लिये बहुत कुछ संरक्षित है। पर ऐसे लोग मंडी हाउस के दलालों के चक्कर नहीं काटा करते।वैसे आज तक प्यासे के इंतजार में बैठे यह कुएं अब बेकार नहीं हैं। तमाम सैटेलाइट चैनल वाले उनके दरवाजे पर लाइन लगाकर खडे हैं। उन्हें उनकी योग्यता के अनुरूप वाजिब दाम भी मिल रहे हैं और वांछित सम्मान भी। इतना ही नहीं सैटेलाइट टेलीविजन के व्यापक प्रसार के कारण आज उनके हुनर के कद्रदान पूरी दुनिया मंे फैले हैं। आज मेधावी लोग सैटेलाइट टीवी पर आते हैं, देखते ही देखते तमाम लोगों के दिलोदिमाग पर छा जाते हैं। सूचना प्रसारण मंत्रालय की भ्रष्ट और निकम्मी नौकरशाही के चलते पहले ऐसा होना संभव नहीं था। अफसरों और राजनेताओं की बहू बेटियां, सुपुत्रा या कुपुत्रा, चहेते या चहेतियां ही प्रसारण के माध्यमों पर छाये रहते थे। यह सब अब बंद होना चाहिये। योग्यता और प्रतिभा को उसका सही स्थान मिलना चाहिये। सैटेलाइट टेलीविजन पूरी तरह व्यवसायिक प्रतिष्ठान होने के कारण अपने सामाजिक दायित्वों से कंधा झाड़ सकते हैं। पर दूरदर्शन ऐसा नहीं कर सकता। दूरदर्शन को समाज के उस वर्ग की तेजी से बदलती जरूरतों का भी ध्यान रखना है जो आज सूचना प्रोद्योगिकी की दौड़ में शामिल हैं और समाज के उस विशाल वर्ग को भी ध्यान रखना है जिसे आज भी बुनियादी सुविधायें तक उपलब्ध नहीं हैं। गनीमत यह है कि यह वर्ग अभी सैटेलाइट टेलीविजन की पहंुच से दूर है। पर दूरदर्शन की पहुंच से नहीं। सैटेलाइट टेलीविजन के कार्यक्रमों का वितरण केबिल टीवी से होता है जो अभी केवल शहरों तक ही सीमित है। जबकि दूरदर्शन गांव-गांव तक पहंुच चुका है। इसलिये तमाम सैटेलाइट चैनल आ जाने के बावजूद इसकी ताकत और क्षमता कहीं ज्यादा है। देश की चिंता करने वाले बार-बार एक ही बात कहते हैं कि भारत गरीब देश नहीं है, इसके संसाधनों की कुव्यवस्था ने इसे गरीब और काहिल बना दिया है। किसी देश के संसाधनों को सही दिशा में लगाने का काम उसके राजनेताओं के जिम्मे होता है। पर दुर्भाग्य से आज बहुत कम राजनेता हैं जो अपनी इस सामाजिक जिम्मेदारी को महसूस करते हैं। ज्यादातर राजनेताओं का आचरण अगर अनुकरणीय नहीं है तो समाज में दिशाहीनता फैलती है। क्योंकि कहा गया है कि यथा राजा तथा प्रजा। सूचना प्रसारण मंत्रालय जनता को सूचना कम देता है गुमराह ज्यादा करता है। सरकार की उन तथाकथित उपलब्धियों का बखान करना इसके अंगों का काम है, जिन उपलब्धियों को जनता केवल अखाबारों और टेलीविजन पर ही देखती है। इससे हटकर अगर देश के संसाधनों, मानवीय क्षमताओं और जन अपेक्षाओं के अनुरूप दिशा देने का काम यह मंत्रालय करने लगे तो राजनीति में राजनैतिक नेतृत्व से पनपी शून्यता को कुछ सीमा तक भरा जा सकता है।
आज पूरी दुनिया में यह माना जाता है कि पैसे और बल की ताकत से ज्यादा सूचना की ताकत काम करती है। इस युग को सूचना युग कहा जा रहा है। ऐसे युग में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रा में सूचना प्रसारण मंत्रालय अपने देशवासियों को ंकैसी सूचना दे पाता है यह निर्भर करेगा उसकी नवनियुक्त मंत्राी पर जो चाहे तो रेत पर अपने कदमों के निशान छोड़कर जा सकती हैं और न चाहें तो कोई उनका क्या बिगाड़ लेगा। बहुत आये और आकर चले गये, सुषमा स्वराज भी क्या उन भूतपूर्वों की कतार में खड़ी होंगी या उनकी जिन्हें लोग भूला नहीं करते।
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