सब जानते है कि देश में आयकर कानून है। एक सीमा से अधिक आया होने पर हम सभी को आयकर देना पड़ा है। समय पर आयकर भुगतान न करने वाले के दण्ड दिया जाता है। आयकर की चोरी व्यापारी और कारखानेदार तो करते ही है, पर सरकारी अधिकारियों या मंत्रियों को अपनी आय पर तो कर देना ही पड़ता है क्योंकि उसे छिपाया नहीं जा सकता। हां, रिश्वत से होने वाली अवैध आय जरूर कर के जाल से बच जाती है। पर भारत में एक राज्य ऐसा भी है जहां के अधिकारी और मंत्री अपने सरकारी वेतन में से भी आयकर नहीं कटवाते। देश के दूसरे हिस्सों में रहने वाले आम हिन्दुस्तानी यह सवाल कर सकते हैं कि एक ही देश में एक ही कानून को दो तरह से क्यों लागू किया जा रहा है?
दरअसल, 1989 में वित्तीय अध्यादेश के खण्ड 26 के अनुसार आयकर कानून को सिक्किम राज्य पर लागू कर दिया गया था। पर यह आश्चर्य की बात है कि सिक्किम में रहने वाले लोग पिछले 15 वर्षों से आयकर जमा नहीं कर रहे हैं। आयकर जमा न करने वालों में केवल स्थानीय नागरिक ही नहीं बल्कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, सिक्किम राज्य सरकार के मंत्री, उद्योगपति व व्यापारी शामिल हैं। इस तरह भारत सरकार को हर वर्ष करोड़ों रूपए के राजस्व की हानि हो रही है। बावजूद इसके न तो प्रत्यक्ष कर विभाग, न वित्त मंत्रालय और न ही भारत सरकार कुछ कड़े कदम उठा रही है। सिक्किम के प्रति इस पक्षपातपूर्ण व्यवहार का कोई तार्किक कारण वित्तमंत्री श्री पी. चिदाम्बरम नहीं दे सकते। मौजूदा वित्तमंत्री ही क्यों पिछले 15 वर्षों में भारत सरकार के जो भी वित्तमंत्री रहे हैं उन सबकी जवाबदेही बनती है।
सिक्किम गणराज्य के भारत में विलय के बाद स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी ने वहां की आर्थिक तरक्की को ध्यान में रखकर सिक्किम पर भारत का आयकर कानून लागू नहीं किया था, जिसका खूब नाजायज फायदा उठाया गया। 1987 में जब मैं गंगटोक (सिक्किम) गया तब मुझे इसकी जानकारी मिली। मैंने दिल्ली लौटकर टाइम्स आफ इंडिया के तत्कालीन संपादक श्री गिरीलाल जैन को अपनी रिपोर्ट दी तो उन्होंने उसे तुरंत प्रमुखता से छापा। इस रिपोर्ट में मैंेने बताया कि किस तरह सिक्किम की इस विशिष्ट स्थिति का प्रभावशाली लोगों द्वारा दुरूपयोग किया जा रहा है। सिक्किम के नागरिक ही नहीं बल्कि देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले साधन संपन्न लोगों ने आयकर कानून की दृष्टि से कागजों में अपना स्थायी निवास सिक्किम में दिखा रखा था ओर इस तरह आयकर की छूट का लाभ ले रहे थे। इस तरह का अवैध लाभ लेने वालों में बाॅलीबुड की अनेक हीरोइने और हीरों शामिल हैं। सिगरेट और शराब बनाने वाली कुछ मशहूर कंपनियों ने तो अपना उत्पादन केन्द्र ही सिक्किम में दिखा रखे थे। इन कंपनियों का उत्पादन हकीकत में तो देश के दूसरे प्रांतों में होता था पर रिकार्ड में उसे सिक्किम में हुआ दिखा कर आबकारी शुल्क और आयकर आदि से छूट ले ली जाती थी। अगर उस समय के दस्तावेजों की जांच कराई जाए तो कई बड़ी सिगरेट और शराब कंपनियों के मालिक धोखाधड़ी के आरोप में जेल जा सकते हैं। क्योंकि जितना माल इन्होंने सिक्किम से निर्यात हुआ अपने खातों में दिखा रखा है उतने माल के उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल और पैकिंग मैटीरियल आदि की सिक्किम में आमद का कोई प्रमाण नहीं है। तो क्या बिना तम्बाकू और कागज आए ही वहां सिगरेट बन रहीं थी, वो भी करोड़ों रूपए कि हर साल ?
टाईम्स आफ इंडिया में छपी मेरी इस रिपोर्ट ने दिल्ली में सोए हुए वित्तमंत्रालय को जगा दिया। मैं यह दावा नहीं करता कि मेरी इस रिपोर्ट छपने के कारण ही पर यह सत्य है कि 1989 में सिक्किम में भी शेष भारत की तरह भारत का आयकर कानून लागू कर दिया गया। इसके बाद सिक्किम में रहने वाले हर व्यक्ति को अपना आयकर समय से जमा कराने चाहिए था। सिक्किम राज्य पर आयकर के मामले में निगरानी रखने का काम वित्त मंत्रालय ने सिल्चर स्थित अपने आयकर कार्यालय को सौप दिया। आश्चर्य की बात है कि पिछले 15 वशर्¨ं में इस विभाग ने आयकर वसूलना तो दूर यह सूची बनाने की भी कोशिश नहीं कि कि सिक्किम में कौन-कौन व्यक्ति आयकर देने की क्षमता रखता है। नतीजा यह कि सिक्किम में आज 15 वर्ष वाद भी आयकर नहीं वसूला जा रहा है। आयकर न देने वालों में व्यपारी ओर उद्योगपति तो है कि केन्द्र व राज्य सरकार के कर्मचारी और राज्य के मुख्यमंत्री व मंत्री आदि सभी शामिल हैं। एक बार को रिश्वत की आय को तो छुपा भी लिया जाए पर सरकार से मिलने वाले वेतन को छिपाना संभव नहीं होता। फिर भी सिक्किम के लगभग सभी सरकारी कर्मचारी धड़ल्ले से आयकर की चोरी कर रहे हैं और भारत सरकार के वित्त मंत्रालय का प्रत्यक्षकर विभाग आँखें पर पट्टी बांधे बैठा है। इस तरह केन्द्र सरकार को प्रति वर्ष कर¨ड रूपए की हानि हो रही है। आश्चर्य की बात है कि टेलीविजन और अखबारों में आर्थिक मुुद्दों पर बड़े-बड़े भाषण झाड़ने वाले विशेषज्ञ भी इस मुद्दे पर खामोश हैं। ऐसे में यह जवाबदेही वित्त मंत्री की ही बनती है कि वे इतने बड़े अपराध को क्यों होने दे रहे हैं ?
दरअसल आयकर कानून का पालन देश के किसी भी हिस्से में ठीक से नहीं हो रहा हैं। सब जानते है कि इस वक्त देश में सबसे ज्यादा पैसा भ्रष्ट नेताओं, अफसरों और उद्योगपतियों के पास हैं। अगर इनके द्वारा दिए जा रहे टैक्स की मात्रा का अध्ययन करें तो सुनने वाला दंग रह जाएगा। जितना बड़ा आदमी उतना कम आयकर। इसी तरह सभी राजनैतिक दल आयकर की चोरी करते हैं। शायद यही वजह है कि वे आयकर कानून को ठीक से लागू नहीं करना चाहते। जबकि आयकर लगाने का उद्देश्य सरकार चलाने के राजस्व की वसूली करना है। सिक्किम जैसे राज्य को तो विकास के लिए केेन्द्र सरकार से सैकड़ो करोड़ रूपए का अनुदान मिलता है। फिर वहां के लोग आयकर क्यों नहीं देते ? अक्सर देखने में आया है कि इस तरह के कानून या उन्हें लागू करने में दी जाने वाली छूट के पीछे असली मकसद कुछ और ही होता है। इस तरह के पोल वाले कानून बना कर देश के सत्ताधीश या उनके नातेदार अपने काले धन को धोने का काम करते हैं। इसलिए सिक्किम जैसे राज्य पर किसी निगाह नहीं जा रही है। जबकि यह संगीन मामला है और एक बहुत बड़ा घोटाला भी जिसकी जांच सीबीआई को सौप देनी चाहिए। पर आज देश का माहौल बदल गया है, आज सूचना तेजी से फैलती है इसलिए जब देश के दूसरे हिस्सों में आयकरदाताओं का सिक्किम की इस विशेष स्थिति पर ध्यान जाएगा तो वे शोर जरूर मचाएंगे। हो सकता है उनका शोर सुनकर श्री पी. चिदाम्बरम जाग जाएं और सिक्किम में रहने वाले लोगों से अगला पिछला सभी आयकर वसूल करें और आज तक आयकर न देने वाले सिक्किम के अधिकारियों के विरूद्ध दण्डात्मक कार्यवाही करें।