आतंकवादियों के हौसले बुलंदी पर हैं। आये दिन कश्मीर में हमारे सैनिक प्रतिष्ठानों पर जिस तरह बेखौफ होकर आतंकवादी हमले कर रहे हैं, उससे यह बात और भी पुख्ता हो जाती है। इंडियन एयरलाइंस के हवाई जहाज को बंधक बनाकर रखने के बाद मिली कामयाबी से तो उनके आगे का रास्ता भी खुल गया। जिस देश में पुलिस का महकमा भ्रष्टाचार के चलते जनता का विश्वास खो बैठा हो, जहां लगभग हर पुलिसिये की कीमत लगाई जा सकती हो वहां आतंकवादियों के लिए अपने काम को बिना दिक्कत के अंजाम देना कितना सरल है इसका कोई भी अंदाजा लगा सकता है। मसलन अगर किसी शहर में आतंकवादी आर डी एक्स के साथ पकड़े जायें तो क्या यह संभव नहीं है कि वे इलाके के दरोगा को उसकी हैसियत से पांच दस गुना ज्यादा रिश्वत देकर पिछले दरवाजे से चुपचाप भगा दिये जायें। मुम्बई बम कांड में जो आर.डी.एक्स. इस्तेमाल हुआ था वह मुम्बई के ही सीमा शुल्क विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों की नाक तले शहर में लाया गया था। इस घातक पदार्थ को ले जाने की छूट देने के एवज में सीमा शुल्क विभाग के अधिकारियों को कुछ लाख रुपये मिले होंगे। मगर उनकी इस कमजोरी ने शेयर बाजार में काम कर रहे सैकड़ों नौजवानों की जान ले ली। ऐसे हादसे देश के हर हिस्से में कभी भी हो सकते हैं।
भारत सरकार एक बार फिर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. की भारत में चल रहीं भूमिगत गतिविधियों के बारे में जल्दी ही श्वेत-पत्र लाने की बात कर रही है। इससे पहले दिसम्बर 1998 में भी भारत के मौजूदा गृहमंत्री श्री लालकृष्ण आडवानी ने बार-बार इसी तरह का श्वेत-पत्र लाने की घोषणा की थी। किन्तु अनजान कारणों से ऐन मौके पर यह श्वेत-पत्र नहीं लाया गया। खैर देर आयद दुरुस्त आयद। अब भी अगर आतंकवादियों के बारे में सरकार श्वेत-पत्र ले आती है तो कम से कम जनता को उन नग्न तथ्यों की जानकारी मिलेगी जिन्हें गोपनीयता के नाम पर जनता से यूं ही छिपा कर रखा जाता है। आखिर जनता को यह हक है कि वह हुक्मरानों से पूछे कि क्या वजह है कि आतंकवादी इतनी आसानी से तरक्की कैसे कर पा रहे हैं? उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रस्तावित श्वेत-पत्र आतंकवाद से जुड़े किसी भी पहलू पर जानकारी को छिपायेगा नहीं। यहां यह उल्लेख करना बहुत महत्वपूर्ण है कि आतंकवादियों को वित्तीय मदद पहंुचाने के कई खतरनाक कांड सी.बी.आई. की निगाह में आये हैं। पर शर्म की बात है कि इन कांडों की पूरी तहकीकात करने के बजाय सी.बी.आई. लगातार इन्हें दबाने का काम करती आई है। कश्मीर के आतंकवादियों को दुबई और लंदन से आ रही वित्तीय मदद के सबसे ज्यादा चर्चित और राजनैतिक रूप से संवेदनशील जैन हवाला कांड का भी यही हश्र हुआ है। ऐसा क्यों होता है? लोकतंत्र में जनता को यह हक है कि वह जाने कि जिन खुफिया या जांच एजेंसियों को आतंकवाद की जड़ें खोजने का काम करना चाहिए वे आतंकवादियों को गैर कानूनी संरक्षण देने का काम क्यों करती आईं हैं। जैन हवाला जैसे तमाम कांड जो देश में आतंकवाद से जुड़े हैं उनका विस्तृत ब्यौरा सरकार के प्रस्तावित श्वेत-पत्र में आना ही चाहिए। इस श्वेत-पत्र में इस बात का विस्तृत उल्लेख होना चाहिए कि ऐसे हर कांड की जांच को किस राजनैतिक दबाव के तहत ठंडे बस्ते में डाला गया। इसमें इस बात का भी जिक्र होना चाहिए कि उन कांडों की जांच के लिये जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों या दूसरे जांच अधिकारियों ने इन केसों से सम्बन्धित फाइलों पर क्या टिप्पणियां लिखी थीं। अगर यह पता चले कि एक डी.आई.जी. ने तो टिप्पणी की थी, ’’जांच तेजी से बढ़ाई जाए और सभी सम्बन्धित लोगों के घर छापे डाले जाएं’’ वहीं उससे बड़े अधिकारी ने उसी केस के सम्बन्ध में फाइल पर टिप्पणी की हो, ’’छापे डालने की कोई जरूरत नहीं है जांच रोक दी जाए’’ इस तरह की गैर जिम्मेदाराना टिप्पणी करने वाले वरिष्ठ अधिकारियों का पर्दाफाश किया जाए ताकि जनता को पता चले कि हमारी पुलिस व्यवस्था में कौन से अधिकारी हैं जो चांदी के टुकड़ों या पदोन्नति के लालच में अपने ईमान को बेच कर देश द्रोह की सीमा तक जाने से संकोच नहीं करते। इस तरह पहचाने गये अधिकारियों के खिलाफ अगर सख्त प्रसाशनिक कार्यवाही नहीं की जाती और उन्हें देश द्रोह की इस आपराधिक साजिश के लिये कड़ी सजा नहीं दी जाती तो आतंकवाद पर काबू नहीं पाया जा सकता। चाहे कितने ही श्वेत-पत्र लाये जायें और आतंकवाद से ’’कड़ाई से निपटने’’ के कितने ही दावे क्यों न किये जायें।
इसके साथ ही देश की खुफिया एजेंसियों की भूमिका का मूल्यांकन होना भी निहायत जरूरी है। राॅ और आई.बी. जैसी दो बहुत बड़ी खुफिया एजेंसियां भारत की जनता के खून पसीने की कमाई पर पल रही हैं। फिर क्या वजह है कि कारगिल हो या इंडियन एयरलाइंस का हवाई जहाज, कोयम्बटूर की जनसभा हो या मुम्बई का बम विस्फोट, हम धमाके सुनने के बाद ही जाग पाते हैं। प्रश्न किया जा सकता है कि क्या ये खुफिया एजेंसियां नाकारा हैं? क्या इन्हें काम करना नहीं आता? क्या इनके पास साधन नहीं है? क्या राजनैतिक हित साधने के लिये इनका दुरुपयोग किया जाता है? क्या इनमें तैनात अधिकारी सरकारी दामाद बनकर सैर-सपाटों और मौज मस्ती में ही लगे रहते हैं और अपना काम बहुत नीचे के स्तर के कर्मचारियों के जिम्मे छोड़कर बेफिक्र हो जाते हैं? इन सब प्रश्नों के उत्तर हां में हो सकते हैं और शायद हैं भी। यदि ऐसा है तो यह एक चिंता की बात है। देश की दो प्रमुख खुफिया एजेंसियां अगर यह कहती हैं कि इन प्रश्नों के उत्तर हां में नहीं हैं। वे तो अपना काम मुस्तैदी से करती हैं पर उनके राजनैतिक आका उनकी समय पर दी गई चेतावनियों को नजर अंदाज कर देते हैं तो इसमें उनका क्या दोष? अगर यह बात सही है तो प्रस्तावित श्वेत-पत्र में ऐसे तमाम गृहमंत्रियों के नामों की सूची जरूर छपनी चाहिए जिन्होंने समय-समय पर आतंकवाद के बारे में देश की प्रमुख खुफिया एजेंसियों द्वारा दी गई चेतावनियों को नजर अंदाज किया है। इससे जनता को अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के असली चेहरे देखने का मौका मिलेगा। इन सब मुद्दों को मद्देनजर रखते हुए प्रस्तावित श्वेत-पत्र का भारी महत्व है और देशवासी उत्सुकता से इसकी प्रतीक्षा करेंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि मौजूदा गृह मंत्री आतंकवाद व आई.एस.आई. की गतिविधियों पर जो श्वेत-पत्र जल्दी ही प्रस्तुत करने की बात कर रहे हैं, उसमें इन सभी तथ्यों को बिना किसी लापरवाही के ठीक-ठीक उजागर किया जाएगा। अन्यथा उस श्वेत-पत्र का महत्व सरकारी रद्दी से ज्यादा कुछ नहीं होगा।
इसके साथ ही यह बात भी महत्वपूर्ण है कि धर्म निरपेक्षता का ढिंढोरा पीटने वाली शबाना आजमी और दिलीप कुमार जैसे कलाकार, राजेन्द्र सच्चर जैसे न्यायविद्, रोमिला थापर जैसे इतिहासकार, राजेन्द्र यादव जैसे साहित्यकार और तमाम दूसरे कलाकार, रंगकर्मी और पत्रकार जो आये दिन धर्म निरपेक्षता के नाम पर रैली, सेमिनार, नुक्कड़ नाटक व प्रदर्शन करते रहते हैं इस्लामी आतंकवाद के बारे में मौन क्यों हैं? क्यों नहीं ये उतने ही मुखर होते? उड़ीसा में एक ईसाई धर्म प्रचारक की दर्दनाक हत्या पर पूरे देश में तूफान मचा देने वाले इस्लामी आतंकवाद को सिर्फ आतंकवाद कहकर कैसे बच निकलते है। जबकि बिन लादेन से लेकर तमाम इस्लामी अतिवादी संगठन बार-बार यह घोषणा करते हैं कि उनकी भारत से लड़ाई सिर्फ इसलिए है कि भारत इस्लामी मुल्क नहीं है। उनके प्रभाव वाले इलाकों में स्थित मस्जिदों में जब इन अतिवादी संगठनों की राजनैतिक बैठकें होती हैं तो उनमें भारत के विरुद्ध जेहाद को और तेज करने की कसमें खाई जाती हैं। एक तरफ तो हम भारत के बहुसंख्यक हिन्दू समाज के मुट्ठी भर अराजक तत्वों की यदा कदा होने वाली अराजक वारदातों पर इतने उत्तेजित हो जाते हैं कि आसमान सिर पर उठा लेते हैं और दूसरी ओर धर्मान्धता से निर्देशित होने वाले एक सुव्यवस्थित, सुसंगठित और लगभग पूर्ण रूप से सैनिक हमलों को मात्र आतंकवाद कहकर टाल देते हैं। हाल के वर्षों में यह साफ हो गया है कि भारत में आतंकवाद दो किस्म का है। एक आतंकवाद तो उन नौजवानों द्वारा फैलाया जा रहा है जो देश की राजनैतिक और आर्थिक व्यवस्था से नाराज हैं और विकास की प्रक्रिया में अपने क्षेत्र की उपेक्षा को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं और दूसरा आतंकवाद इस्लामी आतंकवाद है। जिसका देश की अंदरूनी स्थिति से कोई सरोकार नहीं। यह आतंकवाद भारत की सीमाओं के बाहर, विदेशी शक्तियों की मदद से बाकायदा योजनाबद्ध तरीके से विकसित किया जा रहा है। इसे देश के भीतर छिपे गद्दारों और भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहयोग मिल रहा है। इस आतंकवाद के पीछे की मानसिकता किसी को भी उसका हक दिलाने की नहीं है चाहे वह कश्मीर के बहुसंख्यक मुसलमान हों या देश के दूसरे प्रांतों में बसे अल्पसंख्यक मुसलमान। इस इस्लामी आतंकवाद का एक ही लक्ष्य है भारत को इस्लामी राज्य बनाना। इसलिए बिना किसी धर्मान्धता या भावुकता के यह मानने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि इस्लाम की बुनियाद ही विधर्मियों को तलवार के जोर पर अपना धर्म कबूल करवाने के लिए मजबूर करने की रही है। जबकि भारत की भूमि में पनपे वैदिक या वैदिकोत्तर धर्मों ने अपनी दार्शनिक श्रेष्ठता के बल पर लोगों के दिल जीते हैं। चीन, जापान, थाईलैण्ड, श्रीलंका, अफगानिस्तान और रूस तक बुद्ध धर्म का प्रचार करने कोई फौजें नहीं गई थीं। कोई आतंकवादी संगठन भी नहीं बनाये गये थे। शस्त्रहीन, सिर मुड़े बौद्ध भिक्षु भगवान बुद्ध की शिक्षा और भिक्षा पात्र लेकर इन सुदूर देशों में गये और वहां के पूरे समाज को बदल दिया। बीसवीं सदी मे भी भारत के अनेक संतों ने पूरे विश्व में जाकर सनातन धर्म का प्रचार बड़ी विनम्रता, प्रेम व सद्भावना के साथ किया और हर धर्म के लाखों लोगों को अपनी वाणी से अभिभूत कर दिया। इनमें से किसी ने भी किसी भी देश के खिलाफ कभी जेहाद की घोषणा नहीं की। फिर भी वैदिक दर्शन और सनातन धर्म की ध्वजा आज पूरी दुनिया में लहरा रही है। इसलिए भारत भूमि में पनपे दार्शनिक सिद्धांतों को मानने वालों के विरुद्ध आयातित धर्मों के लोगों द्वारा थोपा गया यह युद्ध या जेहाद भत्र्सना के योग्य है। देश के सनातन धर्मावलम्बियों को ही नहीं, बल्कि विधर्मियों को भी भारतीय नागरिक होने के नाते इस जेहाद का डटकर विरोध करना चाहिए। सबसे ज्यादा खुलकर तो उन धर्म निरपेक्षवादियों को सामने आना चाहिए जो आज तक धर्म निरपेक्षता के नाम पर भारतीयता पर हमले करते आये हैं। केन्द्र व राज्य की सरकारों को भी चाहिए कि वह देश के ऐसे पुलिस अधिकारियों को इकट्ठा करे जो आतंकवाद से लड़ने में सक्षम हैं या जिन्हें इस काम का अनुभव है। ऐसे पुलिस अधिकारियों को देश के आतंकवाद से निपटने की जिम्मेदारी सौंपी जाये, उन्हें सब साधन, सहयोग और अधिकार दिये जायें। उनके काम में राजनैतिक दखलंदाजी बिल्कुल की जाये। तब जाकर कहीं आतंकवाद के बेलगाम घोड़े को काबू किया जा सकेगा। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो आतंकवाद पिछले वर्षों की तरह ही घटने की बजाय बढ़ेगा ही। चाहे कितने ही श्वेत-पत्र लाये जायें। राजनेता और बड़े अफसर तो ब्लैक कैट कमांडो के सुरक्षा घेरे में अपनी जान बचा लेंगे पर देश की करोड़ों जनता आतंकवादियों के रहमोकरम पर जिंदगी बसर करने को लावारिस छोड़ दी जाएगी।