इतने शोर शराबे के बाद पद्मावत फिल्म
देखी, तो तबियत बाग-बाग हो गई। राजपूतों की संस्कृति, उनके
संस्कार, उनका वैभव, उनके सिद्धांत,
उनकी मान-मर्यादा, हर बात का इतना भव्य
प्रर्दशन संजय लीला भंसाली ने किया है कि देखने वाला देखता ही रह जाता है। समझ में
नहीं आता कि किन लोगों की मूर्खता के कारण इस पर इतना बवाल मचा।
मीडिया के बाजार में चर्चा है कि
भाजपा ने गुजरात चुनाव के पहले राजपूत स्वाभिमान के नाम पर हिंदू ध्रुवीकरण की
मंशा से इस आंदोलन को हवा दी। पर इस अफवाह का हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है।
दूसरी अफवाह यह है कि संजय लीला
भंसाली समय पर इस फिल्म को पूरा नहीं कर पाये थे और उन पर वितरकों का भारी दबाव
था। अगर वे समय पर इसे रिलीज न कर पाते, तो बहुत लंबे कानूनी लफड़े में फंस जाते।
इसलिए उन्होंने ये सब होने दिया। इस अफवाह का भी कोई प्रमाण हमारे पास नहीं है।
अब एक नया विवाद खड़ा किया जा रहा है
कि फिल्म में सती प्रथा को गौरवान्वित किया गया है। इस विवाद को खड़ा करने वाली वे
महिलाऐं हैं, जो महिला मुक्ति आंदोलन के आधुनिक संदर्भों को लेकर
उत्साहित रहती हैं। मुझे उनकी विचारधारा पर कोई टिप्पणी नहीं करनी। पर यह जरूर
कहना है कि राजस्थान में सती प्रथा को भारी सामाजिक मान्यता प्राप्त रही है। रानी
पद्मावती का जौहर हुआ था या नहीं, पर लोकगाथाओं में खूब
लोकप्रिय रहा है। यहां तक कि 64 साल पहले बनी फिल्म जागृति
का मशहूर गाना ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाए, झांकी हिंदुस्तन की,
इस मिट्टी से तिलक करो, यह धरती है बलिदान की,
वंदे मातरम्-वंदे मातरम', की आगे एक पंक्ति है
‘कूद पड़ी थीं यहां हजारों पद्मिनियां अंगारों में’। इन 64
साल में महिला मुक्ति की झंडाबरदार महिलाओं ने कभी इस गाने का विरोध नहीं किया।
दरअसल इतिहास अच्छा हो या बुरा, एक कलाकार का, साहित्यकार का या फिल्मकार का कर्तव्य
होता है कि उसे प्रभावशाली रूप् में प्रस्तुत करें। समय के साथ जीवन मूल्य बदलते
रहते हैं। पहले सती प्रथा गौरान्वित होती थी, आज नहीं होती।
इसका मतलब ये इतिहास के पन्नों से थोड़े ही गायब हो गई ? इसलिए
एक बार फिर मैं संजय लीला भंसाली को बधाई देना चाहूंगा कि उन्होंने बड़ी खूबसूरती
से राजपूत महिलाओं के दृढ़ चरित्र को दर्शाया है। जिसे देखकर हर दर्शक के मन में
राजपूतों के प्रति सम्मान बढ़ा है।
जिन लोगों ने इसके नाम पर हिंसा या
तोड-फोड़ की, फिल्म देखने के बाद वे मुझे मानसिक रूप से दिवालिये नजर
आते हैं। यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हम बिना पड़ताल के भावनाओं के अतिरेक में
भड़क कर राष्ट्रीय सम्पत्ति का नुकसान करने लगते हैं और बाद में यह पता चलता है कि
हमारे उत्पात मचाने का कोई ठोस कारण ही नहीं था। तो क्या माना जाए के उत्पात मचाने
वाले किसी प्रलोभनवश ऐसा करते हैं?
जो भी हो यह दुखद स्थिति है। समाज की
हर जाति, धर्म व सम्प्रदाय के लोगों को इस तालिबाना प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना
चाहिए। लोकतंत्र में सबको अपना दृष्टिकोण रखने की आजादी सुनिश्चित की गई है। हमारा
देश एक लोकतंत्र है। जहां विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में, विभिन्न धर्मों के मानने वाले, विभिन्न प्रजातियों
के लोग रहते हैं। उनके अपने रस्मों-रिवाज हैं, पहनावा है,
खानपान है, मान्यताऐं हैं, इतिहास है और यहां तक कि उनके रूप, रंग और नाक-नक्श
भी अलग-अलग तरह के हैं। नागालैंड, बंगाल, कश्मीर, हिमाचल, पंजाब,
राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र,
कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल,
उड़ीसा जैसे राज्यों में जाकर देखिए, तो ये
विभिन्नता स्पष्ट नजर आती है। पर इस विभिन्नता में एकता ही भारत की खूबसूरती है।
यह बात हमें भूलनी नहीं चाहिए। मैं बृजवासी हूं, शाकाहारी
हूं, तामसी भोजन से परहेज करता हूं, गोवंश
के प्रति भारी श्रद्धा रखता हूं, तो इसका अर्थ ये बिल्कुल
नहीं कि मेरी इच्छा और मेरे संस्कारों को नागालैंड के लोगों पर थोपा जाए।
बहुत पुरानी बात नहीं है जब 1960 के दशक में पश्चिमी पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान पर अपनी भाषा और
संस्कृति थोपनी चाही, तो एक ही इस्लाम धर्म के मानने वाले
होकर भी, वहां के लोग विरोध में उठ खड़े हुए। हिसंक क्रांति
हुई और बांग्लादेश का जन्म हो गया।
हम भारतवासी कभी नहीं चाहेंगे कि 1947 की पीड़ा फिर से भोगी जाए। भारत और पाकिस्तान का बंटवारा दुनिया के इतिहास
की सबसे दर्दनाक घटना थी। दूसरों के विचारों, कलाओं और
संस्कृति के प्रति अहिसहिष्णुता प्रगट कर, हम सामाजिक विघटन
की जमीन तैयार करते हैं और वहीं बाद में राजनैतिक विघटन का कारण बनती है। इसलिए
पद्मावत के तर्कहीन विरोध से जो दुखद स्थिति पैदा हुई वैसी भविष्य में न हो,
इसका हम सबको प्रयास करना चाहिए।
बात पद्मावत फिल्म की करें, तो अब यह तथ्य सबके सामने है कि पूरी दुनिया में जहां भी यह फिल्म रिलीज
हुई है, दर्शकों ने इसे खूब सराहा है। दीपिका पादुकोण,
शाहिद कपूर और रणवीर सिंह तीनों का अभिनय बहुत प्रभावशाली है और
फिल्म में जान डालता है। जहां तक फिल्म के सैट की बात है, संजय
लीला भंसाली अति प्रभावशाली सैट निर्माण के लिए मशहूर हैं। इस फिल्म में उन्होंने
सिंहल (श्रीलंका), राजपूताना और खिलजी वंश की संस्कृति के
अनुरूप भव्य सैटों का निर्माण कर फिल्म के कैनवास को बहुत आकर्षक बना दिया है। हर
दृश्य एक पेंटिंग की तरह नजर आता है। आप फिल्म देखकर प्रभावित हुए बिना नहीं
रहेंगे।