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Monday, February 8, 2021

जो धर्मपाल जी को नहीं जानते वो भारत को नहीं जानते


यह सोशल मीडिया का कमाल है कि जो लोग राजीव दीक्षित के भाषणों को सराहते हैं वे भी धर्मपाल जी को नहीं जानते। जबकि दिवंगत राजीव दीक्षित ने जो कुछ बोला वो सब धर्मपाल जी के ही शोध पर आधारित था, जिनके राजीव सहायक थे। धर्मपाल जी भारत के ऐसे विचारक, इतिहासकार, दार्शनिक और लेखक थे, जिन्होंने वर्षों लंदन के ब्रिटिश म्यूज़ीयम में भारत के गौरवमयी इतिहास पर अभूतपूर्व शोध किया। अंग्रेजों से पहले भारत कैसा था - इस बात की खोज में उन्होंने भारत से लेकर ब्रिटेन तक 30 साल लगाए। हिन्दुस्तान में विज्ञान के इतिहास, पुराने समाज और लोगों के बारे में उन्होंने काफी लिखा है। उनकी कुछ किताबें हैं - इंडियन साइंस एण्ड टेक्नालॉजी इन एट्टीन्थ सेंचुरी (1971), द ब्यूटीफुल ट्री: इंडिजीनस इंडियन एजुकेशन इन द एट्टीन्थ सेंचुरी (1971), सिविल डिसओबिडियंस एंड इंडियन ट्रेडिशन (1971) आदि। भारतीय संस्कृति के पुरोधा, धर्मपाल जी का यह जन्मशती वर्ष है। 1922 में जन्मे धर्मपाल जी का 2006 में निधन हो गया। हर्ष की बात है की दशकों से आरएसएस से जुड़े रहे व महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, (मोतिहारी) के कुलाधिपति डॉ. महेश शर्मा उनकी जन्मशती वर्ष पर विशेष आयोजन कर रहे हैं।

धर्मपाल जी दिल्ली रहे हों या वर्धा सेवा ग्राम की कुटी में, हमेंशा दस्तावेजों के मकड़जाल में उलझे रहते थे। अपने समय की मशहूर साप्ताहिक पत्रिका, ‘इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया’ में उनपर मुख्य आलेख प्रकाशित हुआ था। वे पंचायती राज से लेकर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर भी राय रखते थे और ढेरों विषयों पर  उनकी मजबूत पकड़ थी। इसलिए उस समय का बौद्धिक जगत उनके आगे नतमस्तक था। आईआईटी, दिल्ली में आयोजित एक चर्चा में उन्होंने 10वीं शताब्दी में भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विषय पर आँखें खोलने वाली प्रस्तुति की थी । वे लोहा और इस्पात बनाने की देशज तकनीक के भी अच्छे जानकार थे। आज भी लोहे की ढलाई का वैसा काम छोटे-छोटे कारखानों में होता है जो देश भर में फैले हुए हैं। 



धर्मपाल जी ने 1982 में एक व्याख्यान में  कहा था कि अभी तक भारत में एक प्रतिशत लोग भी यूरोप के प्रभाव से मुक्त नहीं हुए हैं और बाकी के लोग जाने-अनजाने इन एक प्रतिशत लोगों के माया जाल में फंसे हुए हैं। उनका मानना था कि इन लोगों को उस समय के तंत्र का समर्थन हासिल था। धर्मपाल जी ने पहली बार सरकारी पशु आयोग का अध्यक्ष बनना स्वीकार किया था। गोवंश संरक्षण की भावना से प्रेरित इस आयोग में उनकी लिखी रिपोर्ट कई मायने में ऐतिहासिक है। अद्भुत तथ्यों के आधार पर तैयार की गई ये रिपोर्ट सांप्रदायिक सद्भाव की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यह उनका तैयार किया गया अंतिम दस्तावेज है। इसके बाद वे ज्यादा समय तक हमारे बीच नहीं रह पाए। उनका मानना था कि भारत में गोमांस की नियमित आपूर्ति अंग्रेज सैनिकों की जरूरत थी। इसीलिए गोहत्या शुरू हुई और कत्लखाने बढ़ते गए। अंग्रेजों ने अपनी चाल में इसके लिए मुस्लिम व्यापारियों को प्रेरित किया। धर्मपाल जी ने कई सरकारी आदेशों का विवरण देकर बताया कि ज्यादातर मुस्लिम शासकों ने अपने साम्राज्य की स्थिरता के लिए गोहत्या रोकने पर जोर दिया। डॉ. महेश शर्मा का मानना है कि हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच सद्भाव बढ़ाने का यह काम धर्मपाल जी ही कर सकते थे। अंग्रेजों के राज से संबंधित इतने  सारे दस्तावेज किसी और के पास नहीं थे। उनके अनुसार इस रिपोर्ट की सराहना होनी चाहिए। ग़लतफ़हमी यह है कि देश में अंग्रेजों के आने से गोहत्या कम हुई। जबकि सच्चाई यह है कि मुस्लिम समाज के पास पहले से ही मांसाहार के अन्य विकल्प मौजूद थे। तब बकरों का मांस प्रचलित था। अन्य पशु भी थे। वैसे भी अरब से आए लोगों में गोमांस का आमतौर पर प्रचलन नहीं था। 

 

अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस पर आयोजित एक परिचर्चा को सम्बोधित करते हुए धर्मपाल जी ने कहा था कि भारत की स्थिति अराजकता और अव्यवस्था की है। यह ऐसी स्थिति है जब कुछ काम नहीं होता। अयोध्या का मामला लंबे समय से भारतीय समाज के ध्यान में है। राम-राज्य की संकल्पना समूचे भारतवासियों और पूरी दुनिया में बसे हिन्दू समाज के लिए गहरी आस्था का विषय है। राम-राज्य की अवधारणा में धर्माधिष्ठित समाज-केंद्रित राज्य व्यवस्था है। यह गांधी के पंचायती-राज, लोहिया के चौखंबाराज, दीनदयाल उपाध्याय के पंचवलयी शासन के अनुकूल शासन और जेपी के सामुदायिक–प्रबंधन से पूरा मेल खाती है। लेकिन भारत की मौजूदा व्यवस्था विदेशी संकल्पना पर आधारित है। आज नहीं तो कल, देश को इस बेमेल ढांचे को भी ध्वस्त करना होगा। पर ये आसान नहीं है, क्योंकि वर्तमान नेताओं और अमीरों का इसे ही जारी रखने में स्वार्थ है।


धर्मपाल जी देशज तकनीकी अपनाने और आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थापना के पक्षधर थे। देश में आज फैली भयंकर बेरोज़गारी व आर्थिक समस्याओं का समाधान उनकी इसी सोच से निकलेगा, ऐसा देश में बहुत से विचारवान लोगों का विश्वास है। उनकी जन्म शताब्दी मनाकर डाक्टर महेश शर्मा एक बार फिर उस पुरोधा की याद ताज़ा करवा रहे हैं। धर्मपाल जी का हमारे घर कई बार आना हुआ। लंदन में बीबीसी संवाददाता उनकी पुत्री को आज से तीन दशक पहले दिल्ली में मैंने अपने सहयोगी पत्रकारों से मिलवाया था। धर्मपाल जी की लिखी और अब हिंदी में अनुवादित पुस्तकों का अध्ययन हर बुद्धिजीवी, पत्रकार, वकील, अफ़सर, नेता, किसान व व्यापारी को करना चाहिए। जिससे हमारी समझ साफ़ होगी और भारत की क्षमता के प्रति सम्मान व सच्चा स्वाभिमान जागृत होगा। जिससे बनेगा भारत एक आत्मनिर्भर सशक्त राष्ट्र।