देश के प्रथम सीडीएस जनरल बिपिन रावत व अन्य सैनिकों की शहादत से पूरा देश सदमे में है। कुन्नुर में हुआ यह दर्दनाक हादसा पहला नहीं है। भारत के इतिहास में ऐसे दर्जनों हादसे हुए हैं जिनमें देश के सैनिक, नेता व अन्य अति विशिष्ट व्यक्तियों ने अपनी जान गवाई है। सवाल यह है कि क्या हम इन हादसों से कुछ सबक़ ले पाए हैं? जिस एमआई सीरिज़ के रूसी हेलिकॉप्टर में जनरल रावत सवार थे वो एक बेहद भरोसेमंद हेलिकॉप्टर माना जाता है। दुर्घटना का कारण क्या था यह तो जाँच के बाद ही सामने आएगा। परंतु जिस तरह हम अन्य विषयों में तकनीक की मदद से तरक़्क़ी कर रहे हैं उसी तरह वीआईपी हेलिकॉप्टर यात्रा में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहे ?
इस हादसे के कारण पर तमाम तरह के क़यास लगाए जा रहे हैं। पिछले कुछ हादसों की सूची को देखें तो ऐसा भी माना जा रहा है कि वीआईपी उड़ानों में, ख़राब मौसम के चलते, पाइलट के मना करने पर भी वीआईपी द्वारा उड़ान भरने का दबाव डाला जाता रहा है। फिर वो चाहे 2001 का कानपुर का हादसा हो, जिसमें माधवराव सिंधिया ने अपनी जान गवाईं थी या फिर 2011 में अरुणाचल प्रदेश के तवांग में हुआ हादसा जिसमें मुख्य मंत्री खंडू की मौत हुई थी। जानकारों की मानें तो रूस में बने इस अत्याधुनिक हेलिकॉप्टर को यदि ख़तरा हो सकता था तो वो केवल ख़राब मौसम का ही। ग़ौरतलब है कि वीआईपी उड़ानों में इस हेलिकॉप्टर को केवल अनुभवी पाइलट ही उड़ाते हैं और ऐसा ही इस उड़ान के लिए भी किया गया।
वीआईपी यात्राओं के लिए विभिन्न हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल वायुसेना व नागरिक उड्डयन दोनों में होता है। परंतु भारत में अभी तक इन उड़ानों के लिए ‘विज़ूअल फ़्लाइट रूल्ज़’ (वीएफ़आर) ही लागू किए जाते हैं। वीएफ़आर नियम और क़ानून के तहत विमान उड़ाने वाले पाइलट को कॉक्पिट से बाहर के मौसम की स्थिति साफ़-साफ़ दिखाई देनी चाहिए जिससे कि वह विमान के बीच आने वाले अवरोध, विमान की ऊँचाई आदि का पता चलता है। इन नियम को लागू करने वाले नियंत्रक नियम लागू करते समय इन बातों को सुनिश्चित करते हैं कि विमान की उड़ान के लिए मौसम की स्थिति, विज़िबिलिटी, विमान की बादलों से दूरी आदि उड़ान के लिए अनुरूप हैं। मौसम के मुताबिक़ इन सभी परिस्थितियों के अनुसार विमान की उड़ान जिस इलाक़े में होनी है वह उस इलाक़े के अधिकार क्षेत्र के मुताबिक़ बदलती रहती है। कुछ देशों में तो वीएफ़आर की अनुमति रात के समय में भी दी जाती है। परंतु ऐसा केवल प्रतिबंधात्मक शर्तों के साथ ही होता है।
वीएफ़आर पाइलट को इस बात का विशेष ध्यान देना होता है कि उसका विमान न तो किसी अन्य विमान के रास्ते में आ रहा है और न ही उसके विमान के सामने कोई अवरोध हैं। यदि उसे ऐसा कुछ दिखाई देता है तो अपने विमान को इन सबसे बचा कर उड़ाना केवल पाइलट की ज़िम्मेदारी होती है। ज़्यादातर वीएफ़आर पाइलट ‘एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल’ या एटीसी से निर्धारित रूट पर नहीं उड़ते। लेकिन एटीसी को वीएफ़आर विमान को अन्य विमानों के मार्ग से अलग करने के लिए वायुसीमा अनुसार, विमान में एक ट्रान्सपोंडर का होना अनिवार्य होता है। ट्रान्सपोंडर की मदद से रेडार पर इस विमान को एटीसी द्वारा देखा जा सकता है। यदि वीएफ़आर विमान की लिए मौसम व अन्य परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं होती हैं तो वह विमान 'इंस्ट्रुमेंट फ़्लाइट रूल्ज़' (आईएफ़आर) के तहत उड़ान भरेगा। आईएफ़आर की उड़ान ज़्यादा सुरक्षित मानी जाती है।
जिन इलाक़ों में मौसम अचानक बिगड़ जाता है वहाँ पर उड़ान भरने के लिए पाइलट को विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। अन्य देशों में जिन पाइलट्स के पास केवल वीएफ़आर की उड़ानों की योग्यता होती है उन्हें बदलते मौसम वाले क्षेत्र में उड़ान भरने की अनुमति नहीं दी जाती।
जनरल रावत के हेलिकॉप्टर को वायुसेना के विंग कमांडर पृथ्वी सिंह चौहान उड़ा रहे थे। वे सुलुर में 109 हेलिकॉप्टर यूनिट के कमांडिंग ऑफ़िसर भी थे। उन्हें इस तरह की उड़ानों का अच्छा-ख़ासा अनुभव था। विषम परिस्थितियों में उन्होंने इस तरह के हेलिकॉप्टर को कई बार सुरक्षित उड़ाया। हेलिकॉप्टर को ख़राब मौसम का सामना करना पड़ा या उसमें कुछ तकनीकी ख़राबी हुई इसका पता तो जाँच के बाद ही लगेगा। लेकिन आमतौर पर ऐसे में जाँच आयोग पाइलट की गलती बता देते हैं। लेकिन जानकारों की माने तो इस हादसे में पाइलट की गलती नहीं लगती।
ऐसे हादसों में जाँच को कई पहलुओं से गुजरना पड़ता है। इनमें तकनीकी ख़राबी, पाइलट की गलती, मौसम और हादसे की जगह की स्थिति महत्वपूर्ण होती हैं। इन सभी विषयों की गहराई से जाँच होती है तभी किसी निर्णय पर पहुँचा जा सकता है। जाँच का केवल एक ही मक़सद होता है, आगे से ऐसे हादसे फिर न हों।
जब भी कोई हादसा होता है तो तमाम टीवी चैनलों पर स्वघोषित विशेषज्ञों की भरमार हो जाती है जो इस पर अपनी राय व्यक्त करते हैं। परंतु कोई भी इस बात पर ध्यान नहीं देता कि भारत में अन्य देशों की तरह वीआईपी हेलिकॉप्टर उड़ानों के लिए वीएफ़आर को लागू क्यों किया जा रहा? भारत के नागर विमानन निदेशालय (डीजीसीए) और वायुसेना को इस बात पर भी गौर करना चाहिए। कब तक हम ऐसे और हादसों के साक्षी बनेंगे?
यह हादसा पिछले हादसों से अलग नहीं है। बल्कि उन्हीं हादसों की सूची में एक बड़ता हुआ अंक है। बरसों से वीएफ़आर के नियम, जिन्हें केवल हवाई अड्डों के नियंत्रण वाली सीमा में ही प्रयोग में लाया जाता है, के द्वारा ही हवाई अड्डों के बाहर व अन्य स्थानों में प्रयोग में लाया जा रहा है। जबकी होना यह चाहिए कि डीजीसीए और वायुसेना के साझे प्रयास से वीएफ़आर की समीक्षा होनी चाहिए और ऐसे हादसों को रोकने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।