अटल जी को जो पूरे देश
और दुनिया का प्यार मिला, वो उनके पद के कारण नहीं है।
मेरा मानना है कि कोई व्यक्ति अपने पद, यश, ज्ञान या वैभव से बड़ा नहीं होता बल्कि उसके संस्कार उसे बड़ा और सम्माननीय
बनाते हैं। अटल जी में ऐसे संस्कार थे। पत्रकारिता, साहित्य
और राजनीति से जुड़े हर उस व्यक्ति के साथ अटल जी का आत्मीय संबंध होता था, जो उन्हें जानता था।
मेरे परिवार का एक नाता
और भी था। अटल जी की बेटी नमिता, जिसने उन्हें मुखाग्नि दी,
वो हमेशा बड़े स्नेह से मुझे विनीत भैया कहती है। उसकी बेटी निहारिका,
हमारे छोटे बेटे ईशित नारायण के साथ सरदार पटेल विद्यालय, दिल्ली में सहपाठी थी और अभिभावकों की बैठकों में हम अक्सर मिलते थे। अटल
जी के दामाद रंजन भट्टाचार्य भी हमारे प्रिय रहे हैं। क्योंकि इन तीनो से हमारा
तीन दशकों का संबंध रहा है।
अटल जी से जुड़े इतने
संस्मरण हैं कि सबको याद करूं, तो एक पुस्तक लिख जाऐगी। 1989 में जब मैंने भारत की पहली हिंदी टीवी पत्रिका ‘कालचक्र’ जारी की,
तो पूरे मीडिया जगत में हलचल मच गई। सरकारी नियंत्रण वाले दूरदर्शन
के मुकाबले स्वतंत्र टीवी समाचार के मेरे प्रयास से विपक्ष के नेता बहुत उत्साहित
थे। जिनमें से रामविलास पासवान, अजीत सिंह, जार्ज फर्नाडीज और अटल बिहारी बाजपेयी ने हृदय से प्रयास किया कि मुझे
आर्थिक मदद दिलवाई जाए। पर अपनी सम्पादकीय स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए
मैंने उनके प्रस्ताव स्वीकार नहीं किये। हलांकि उनका ये भाव बहुत अच्छा लगा।
1999 में
प्रकाशित मेरी पुस्तक ‘भ्रष्टाचार, आतंकवाद और हवाला
कारोबार’ में अटल जी के साथ हवाला कांड के दौर में 1993 से 2000 के बीच हुई वार्ताओं और घटनाओं का खट्टा मीठा विस्तृत ब्यौरा है। जो vineetnarain.net पर ऑनलाइन किताब में पढा जा
सकता है।
1995 में जिन
दिनों हवाला कांड में राजनेताओं के घर सीबीआई के छापे पड़ने शुरू हुए, उन्हीं दिनों एक दिन अखबार में खबर छपी कि अटल बिहारी बाजपेयी का नाम भी
जैन डायरी में है। उस दिन बाजपेयी जी के कई फोन मुझे आए। मैं जब मिलने पहुंचा,
तो कुछ चिंतित थे, बोले, ‘‘ क्या तुम मेरे घर भी छापा डलवाओगे?’’ मैंने हंसकर
पूछा- क्या आपने जैन बंधुओ से पैसे लिए थे, चिंता मत कीजिए,
आपका नाम जैन डायरी में नहीं है। तब वे मुस्कुराए और गरम-गरम जलेबी
और पकौड़ी के साथ नाश्ता करवाया।
अटल जी अपने विरोधी
विचारधारा के राजनेताओं और लोगों का पूरा सम्मान करते थे और उनके सुझावों को
गंभीरता से लेते थे। विनम्रता इतनी कि हम जैसे युवा पत्रकारों को भी वे हमारी कार
तक छोड़ने के लिए चलकर आते थे। जो राजनैतिक कार्यकर्ता आज अटल जी के गुणगान में एक
दूसरे को पीछे छोड़ने में जुटे हैं,क्या वे अटल जी
के व्यक्तित्व से अपने विरोधियों का भी सम्मान करना और सबके प्रति सदभाव रखने का
गुण सीखेंगे या आत्मश्लाघा और अहंकार में डूबे रहकर लोकतंत्र को रसातल में ले
जाएंगे ?
अटल जी ने प्रधानमंत्री
पद पर रहते हुए, देश के लिए कई बड़े काम किये। उनका चलाया
सर्व शिक्षा अभियान एक ऐसी ही पहल थी,
जिसे 2001 में लॉन्च किया गया था। इस योजना
में 6 से 14 वर्ष उम्र के बच्चों को
मुफ्त प्राथमिक शिक्षा देने का प्रावधान किया गया था। इस योजना की बदौलत 4 साल में ही स्कूल नही जाने वाले बच्चों की संख्या में 60 फीसदी की कमी आई। आज भी सर्व शिक्षा अभियान के तहत देश के करोड़ों बच्चों
को मुफ्त में बेसिक शिक्षा दी जा रही है।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क
योजना उनकी ऐसी ही दूसरी पहल थी। इस योजना में देश के दूर-दराज के गावों को सड़कों
से जोड़ने का काम किया गया। पूर्व प्रधानमत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रधानमंत्री
ग्राम सड़क योजना ने गावों तक सड़क पहुंचाने का काम किया। इसके अलावा अटल जी द्वारा
शुरू की गई स्वर्णिम चतुर्भुज योजना ने चेन्नई, कोलकाता,
दिल्ली और मुंबई को हाइवेज के नेटवर्क से जोड़ने में मदद की।
संचार क्रांति के
क्षेत्र में भी उन्होंने क्रांति की। उन्होने ही टेलिकॉम फर्म्स के लिए फिक्स्ड
लाइसेंस फीस को हटा कर रेवेन्यू-शेयरिंग की व्यवस्था लाए थे। जिसके बाद भारत संचार
निगम लिमिटेड (BSNL) का गठन किया गया था।
अटल बिहारी वाजपेयी ने
सरकार का दखल कम करने के लिए निजीकरण को अहमियत दी। जिसके बाद सरकार ने एक अलग
विनिवेश मंत्रालय का गठन किया था। इसी के तहत भारत एल्युमीनियम कंपनी (Balco),
हिंदुस्तान जिंक, इंडिया पेट्रोकेमिकल्स
कॉरपोरेशन लिमिटेड और वीएसएनएल का विनिवेश किया गया था।
वायपेजी सरकार वित्तिय
उत्तरदायित्व अधिनियम भी लेकर आई थी। इस अधिनियम में देश का राजकोषीय घाटा कम करने
का लक्ष्य रखा गया था। इस कदम के जरिए ही पब्लिक सेक्टर में सेविंग्स को बढ़ावा
दिया गया।
कविता और साहित्य के
क्षेत्र में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। कहते हैं कि' वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान'। कवि भावुक हृदय होता है। ऐसे अच्छे इंसान को भी डॉ सुब्रमनियन स्वामी ने
धोखा दिया, जब भाजपा सरकार को उन्होंने गिरवा दिया। जिससे
वाजपेयी जी को बहुत धक्का लगा। अपनी लिखी पुस्तक में डा. स्वामी ने बाजपेयी जी को
खूब गरियाया है। दुश्मन की भी मौत पर संवेदना प्रकट करने वाली हिंदू संस्कृति के
रक्षक होने का दावा करने वाले डा. स्वामी के मुंह से अटल जी के निधन पर
श्रद्धाजंलि का एक भी शब्द नहीं निकला।
ऐसे धोखेबाज व्यक्ति को
भाजपा क्यों ढो रही है? अगले चुनावों में जब वाजपेयी जी
भाजपा का ब्रांड बनकर मतदाता को दिखाये जाऐंगे, तब मतदाता और
विपक्षी दल ये सवाल करेंगे कि अगर वाजपेयी जी को भाजपा और संघ इतना मान देता है,
तो उन्हें धोखा देने वाले और उनसे घृणा करने वाले डा. स्वामी को
अपने साथ कैसे खड़ा रख सकता है?