एक महीना पहले पेट्रोल मंत्रालय ने नोटिफिकेशन निकालकर भारत
में तेल और गैस निकालने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर छूट और सुविधाओं की घोषणा करते
हुए देशी और विदेशी कंपनियों को आमंत्रित किया। उसके फलस्वरूप एक सप्ताह पहले देश
के 85 प्रतिशत तेल और गैस
के बचे-खुचे भंडारों का ठेका अनेक कंपनियो को दे दिया गया और अभी हाल ही में पश्चिमी उ0प्र0 के बागपत क्षेत्र से तेल की खुदाई के लिए काम भी शुरू हो
गया। स्मरण रहे कि सेटेलाइट द्वारा ‘हाईपर स्पैक्ट्रल इमिजिंग’ की तकनीक के माध्यम
से पूरे धरती की 35
किमी. तक गहरी ^crustal layers* की ‘सिग्नेचर फाइल्स’ कई साल पहले विश्व के कई देशों ने
पहले से ही तैयार कर रखीं है। इन फाइल्स के अंदर धरती माता के गर्भ में कहाँ-कहाँ
तेल और गैस के कितने भंडार हैं, सोने-चाँदी के कितने भंडार हैं, हीरे-रत्नों के कितने भंडार हैं, तांबे-लोहे के कितने भंडार है, आदि को चिन्ह्ति किये जा चुका है। दुर्भाग्यवश कुछ देश अभी
तक इस सूचना से वंचित हैं।
अगर इन फाइलों को विश्व कल्याण हेतु सार्वजनिक कर दिया जाए,
तो विश्व के 771 करोड़ लोगों की गरीबी, भुखमरी, बदहाली 3 महीने के अंदर दूर हो सकती है। ये बहुत महत्वपूर्णं
‘कम्युनिकेशन गैप’ है, जिसके
कारण पूरे विश्व में एक अनिश्चितता और घबराहट का वातावरण छाया हुआ है। चूंकि ये
युग परिवर्तन की शुभ और पवित्र बेला है, इसलिए पिछले दिनों ‘ईलौन मस्क’ जैसे उदारशील महापुरूष ने
अपनी ‘टेस्ला कार’ का पेटेंट ‘पब्लिक इंट्रस्ट’ में मुफ्त में देने की घोषणा कर
दी। उधर बिल गेट्स और स्टीव जॉब जैसे ‘इंटरप्रन्यार्स’ ने जनहित में अपनी
फाउंडेशंस के माध्यम से धन के भंडार दान में दे दिये। हम आशा करते हैं अगर अमेरिका
भारत को तेल और गैस बेचने के लिए ऑफर कर सकता है, तो वो विश्व कल्याण हेतु जो ‘हाईपर स्पैक्ट्रल इमिजिंग’ की
जो सिग्नेचर फाइल्स हैं, उनको भी मुफ्त में सार्वजनिक कर दे। ऐसा करने से विश्व के
जितने विकासशील देश हैं, उनके प्राकृतिक संसाधन ‘पब्लिक डोमेन’ में आ जाने से डिमांड
और सप्लाई की रस्साकशी खत्म हो जाएगी। धरती माता जिसको वेदों में कामधेनु और
वसुंधरा के नाम से अलंकृत किया गया है, उसके 771 करोड़ बच्चे खुशहाल और संपन्न हो जाऐंगे।
पैट्रोलियम मंत्रालय ने पिछले महीने तेल और गैस की नीति
सुधारने के लिए जब अधिसूचना जारी की, तो उसमें ‘सिस्मिक सर्वे’ को तो 20 प्रतिशत ‘वेटेज’ दिया गया। मगर ‘हाईपर स्पैक्ट्रल इमिजिंग’
की ‘सिग्नेचर फाईल्स’ की चर्चा नहीं की गई। अगर भारत को ‘सुपर पॉवर’ बनना है,
तो ईसरो के सेटेलाईट के माध्यम से अपनी ‘पर्सनल सिग्नेचर
फाईल्स’ तुरंत तैयार करके अपने देश के प्राकृतिक संसाधानों का नियोजित दोहन करना
शुरू करना होगा। इस देव भूमि भारत में प्राकृतिक संसाधनों के अकूत भंडार विद्यमान
हैं। मगर ‘कम्युनिकेशन गैप’ होने की बजह से हम अपने देश का 10 लाख करोड़ रूपया हर साल तेल और गैस के आयात में फिजूल में
बर्बाद कर देते हैं। अगर ये पैसा बच जाऐ, तो देश विकसित देशों की श्रेणी में आ जाऐगा।
सर्वविदित है कि छत्तीसगढ़ में हीरों की विश्व की सबसे कीमती
और महत्वपूर्णं खान का ‘हाईपर स्पैक्ट्रल इमिजिंग’ की तकनीक के द्वारा ही पता लगा
है। हमें अब ‘सिस्मिक सर्वे’ जैसी कमजोर और अधूरी तकनीक के भरोसे नहीं रहना चाहिए।
याद रहे कि सर्जिकल स्ट्राइक और ओसामा के ऊपर हमले में भी इसी ‘हाईपर स्पैक्ट्रल
इमिजिंग’ की तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। अर्थर्वेद के भूमि सूक्त के बारहवें
मंत्र (यत्ते मध्यं पृथिवि यच्च नभ्यं यास्त ऊर्जस्तन्वः संबभूवुः। तासु नो
धेह्यभि नः पवस्व माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः।।) की दूसरी लाईन में अथर्वाऋषि ने धरती की नाभि
से निकलने वाली ‘इंफ्रा रैड रेडिएशंस’ के उद्गम स्थल के महत्व को सारगर्भित कहकर
प्रशंसा की है। यही ‘इंफ्रा रैड रेडिएशंस’ धरती की नाभि से चलते हुए धरती की सतह
को क्रॉस करके सेटेलाइट के कैमरे में पहुंचकर ‘हाईपर स्पैक्ट्रल इमिजिंग’ को अमलीय
जामा पहनाती हैं। इसलिए अर्थवा ऋषि ने धरती की नाभि के ऊपर सभी विद्वानों को अपना
ध्यान केंद्रित करने के लिए वाहरवें मंत्र में उपदेश दिया है। याद रहे इसी धरती की
नाभि से ^magnetosphere’ का उद्गम होता है। जोकि धरती की सतह से 70000 किमी की ऊँचाईं पर जाकर एक महत्वपूर्णं छाता तैयार करता
है। इस छाते की मदद से सूर्य से आने वाली घातक सोलर विंड’ के ‘इलैक्ट्रिकली चार्ज
पार्टिकल्र्स’ धरती के उत्तरी और दक्षिणी धु्रवों की तरफ डाईवर्ट हो जाते हैं। अगर
ये ‘मैग्नेटो सफियर’ छाता न हो, तो धरती के ऊपर बसने वाले 771 करोड़ आदमी एक दिन में चनों की तरह भुन जाऐंगे और धरती पर
बसी हुई सारी सृष्टि जलकर राख हो जाऐगी। इसलिए अथर्वा ऋषि ने भूमि सूक्त के
वारहवें मंत्र में धरती की नाभि से निकलने वाली ऊर्जा को धरती के अस्तित्व के लिए
और धरती पर बसने वाले धरतीवासियों के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्णं बताया है।
अब आगे पाठकों को हम हम बता दें कि इन्हीं ‘इंफ्रा रैड
रेडिएशंस’ से धरती की सतह जो है, वो पवित्र (स्टेरेलाईज) होती है। नहीं तो धरती के ऊपर बहुत
सारी काई जम जाती और धरतीवासी महामारियों से मर जाते। तो कुल मिलाकर भूमि का सबसे
महत्वूपूर्णं अंग उसकी नाभि और उससे निकलने वाली अनेक प्रकार की ऊर्जा ही है और
साथ ही साथ यह जो धरती फुटबॉल की तरह फूली हुई है, उसको फुलाऐ रखने में इसी ऊर्जा का सबसे महत्वपूर्णं योगदान
है। नहीं तो यह धरती जो फुटबॉल की तरह फूली हुई है, ये सिकुड़कर टेबिल टेनिस का बॉल बन जाती और पूरे के पूरे
विश्व के देश 6500 किमी.
नीचे धंस जाते। इसी तथ्य को भगवान श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन को उपदेश देते हुए
श्रीमद्भगवतगीता के 15वें
अध्याय के 13 वें
श्लोक की प्रथम पंक्ति में कहा है ‘गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा’। इसी
पंक्ति का सरलार्थ करते हुए आदि शंकराचार्य ने लिखा है कि ये ऊर्जा की मात्रा
संतुलित है। अगर ये ऊर्जा की मात्रा कम हो जाऐ, तो यह धरती नीचे धंस जाएगी और यदि ऊर्जा की मात्रा अधिक हो
जाऐ, तो धरती जरूरत से
ज्यादा फूलकर गुब्बारे की तरह फट जाऐगी। ये संतुलन सातवें आसमान में स्थित अमृत
पुंज द्वारा किया जाता है। जिसकी चर्चा अथर्वा ऋषि ने भूमि सूक्त के आंठवें मंत्र
की दूसरी पंक्ति ‘यस्या हृदयं परमे व्योमन्त्सत्येनावृतममृतं पृथिव्याः’ में की
है। इन सूचनाओं के स्रोत वैदिक वैज्ञानिक सूर्यप्रकाश कपूर इस गुप्त रहस्य या
पृथ्वी के अमृत पुंज से, जिसको
श्रीमद्भगवत्गीता में घन परमेश्वर कहा गया है, प्रार्थना करते हैं कि वो विश्व के कल्याण हेतु विकसित
देशों को ‘सिग्नेचर फाइल्स’ को सार्वजनिक करने की सद्बुद्धि प्रदान करें।
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