राजनेताओं द्वारा जनता को नारे देकर, लुभाने का काम लंबे समय से चल
रहा है। ‘जय जवान-जय किसान’, ‘गरीबी हटाओ’, ‘लोकतंत्र बचाओ’, ‘पार्टी विद् अ डिफरेंस’ व पिछले
चुनाव में भाजपा का नारा था, ‘मोदी लाओ-देश बचाओ’। जब से मोदी
जी सत्ता में आऐ हैं, भारत को परिवर्तन की ओर ले जाने
के लिए उन्होंने बहुत सारे नये नारे दिये,
जिनमें से
एक है, ‘साफ नीयत-सही विकास’। पिछले 15 वर्षों से ब्रज क्षेत्र में
धरोहरों के जीर्णोंद्धार व संरक्षण का काम करने के दौरान जिला स्तरीय, प्रांतीय व केन्द्रीय सरकार से
बहुत मिलना-जुलना रहा है। उसी संदर्भ में इस नारे को परखेंगे।
भगवान श्रीराधाकृष्ण की लीलाओं से जुड़े पौराणिक कुण्डों, वनों और धरोहरों के जीर्णोंद्धार
का जैसा काम ‘ब्रज फाउंडेशन’ ने बिना सरकारी आर्थिक मदद के किया, वैसा काम देश के 80 फीसदी राज्यों के पर्यटन विभाग
नहीं कर पाये। यह कहना है-भारत के नीति आयोग के सीईओ. अमिताभ कांत का। इसी
तरह प्रधानमंत्री मोदी से लेकर प्रदेश के
मुख्यमंत्री तक और देश के सभी प्रमुख संतों ने व लाखों ब्रजवासियों ने ब्रज फाउंडेशन
द्वारा सजाये गये गोवर्धन के रूद्र कुंड,
ऋणमोचन कुंड
व संकर्षण कुंड, जैंत का जय कुंड व अजयवन, वृंदावन के ब्रह्म कुंड, सेवाकुंज व रामताल, मथुरा का कोईले घाट और बरसाना का
गहवन वन आदि लाखों तीर्थयात्रियों का मन लुभाते हैं। अवैध कब्जाधारियों से लड़ने, इनकी गंदगी साफ करने और इनको
बनाने में करोड़ों रूपया खर्च हुआ। जो देश के प्रमुख उद्योगपतियों जैसे- श्री कमल
मोरारका, श्री अजय पीरामल, श्री राहुल बजाज, श्री रामेश्वर राव और अनेकों
कम्पनियों ने अपने ‘सीएसआर. फंड’ से दान दिया। परंपरानुसार सभी दानदाताओं के नामों
के शिलालेख, इन स्थलों पर लगाये गये हैं।
पिछले दिनों योगी सरकार के एक छोटे अधिकारी ने अपने तुगलकी फरमान जारी कर, इन सभी शिलालेखों पर पेंट कर
दिया। ऐसा काम ब्रज में औरंगजेब के बाद पहली बार हुआ। प्रदेश में जब सरकारे बदलती
हैं, तो पिछली सरकार की बनाई ईमारतों
या शिलालेखों को हाथ नहीं लगाते। चाहे वे विरोधी दल के ही क्यों न हों। पूरी
दुनिया में इस तरह के शिलालेख लगाने की परंपरा बहुत पुरानी है। जिससे आनी वाली
पीढ़ियां इतिहास जान सकें।
इस दुष्कृत्य के पीछे उन स्वार्थीतत्वों का हाथ है, जो ब्रज फाउंडेशन की सफलता से
ईष्र्या करते रहे हैं। ब्रज फाउंडेशन ने मोदी जी के ‘सही नीयत-सही विकास’ और
’स्वच्छ भारत’ के नारे को शब्दसह चरितार्थ किया है। इस संस्था को छह बार भारत की
‘सर्वश्रेष्ठ वाटर एनजीओ’ होने का अवार्ड भी मिल चुका है। इन सार्वजनिक स्थलों का
जीर्णोंद्धार करने से पहले मौजूदा कानून की सभी प्रक्रियाओं को पारदर्शी रूप से
पूरा किया गया। जिला प्रशासन से लेकर प्रांत और केंद्र सरकार तक का प्रशासनिक
सहयोग, इन परियोजनाओं को पूरा करने में
बार-बार लिया गया। फिर भी ‘एनजीटी’ के एक सदस्य ने प्रमाणों को अनदेखा करते हुए
संस्था को इन स्थलों के रख-रखाव से अलग कर दिया। ये आदेश भी दिया कि ‘ भविष्य में
सारे कुंड सरकार बनाये’। ब्रजवासियों का
कहना है कि, ‘जो शासन गत 70 वर्ष में एक भी धरोहर का
जीर्णोंद्धार व संरक्षण ब्रज फाउंडेशन द्वारा बनाई गई स्थलियों के सामने 10 गुनी लागत लगाकर 10 फीसदी भी नहीं कर पाया। वो जिला
प्रशासन ब्रज के 800 सौ से भी ज्यादा वीरान और सूखे
पड़े कुंडों को आज तक क्यों नहीं बना पाया?
उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग के अनुदान पर अब तक कम से
कम 200 करोड़ रूपया पिछले 70 सालों में ब्रज में लग चुका
होगा। बावजूद इसके उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग एक भी धरोहर को दिखाने लायक नहीं बना
पाया। तो भविष्य में क्या कर पायेगा, उसका अनुमान लगाया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय के ‘हिंचलाल तिवारी केस’ मामले में सब जिलाधिकारियों को अपने
जिले के सभी कुंडों पर से कब्जे हटवाकर,
उनका
जीर्णोंद्धार करना था। पर आज तक इस आदेश का अनुपालन नहीं हुआ। यह सीधा सीधा अदालत
की अवमानना का मामला है।
इससे भी गंभीर प्रश्न ये है कि एक तरफ तो भारत सरकार
उद्योगपतियों से अपने सीएसआर फंड को समाज के कामों में लगाने के लिए आह्वान करती
है और दूसरी तरफ उसी भाजपा के मुख्यमंत्री की जानकारी में ऐसा काम करने वालों के नामों निशान तक मिटा दिये जाते हैं।
ऐसे में कोई क्यों सेवा करने सामने आऐगा?
नीयत साफ
वाले और ठोस काम करने वाले लोगों को अपमानित किया जाऐ और खोखले और नाकारा
सलाहकारों को लाखों रूपये फीस देकर, उनसे वाहियात् परियोजनाऐं बनवाई
जाऐ और उन पर बिना सोचे समझे, पानी की तरह पैसा बहा दिया जाऐ।
तो कैसे होगा सही विकास?
इस संदर्भ में एक और अनुभव बड़ा रोचक हुआ। उत्तर प्रदेश
पर्यटन विभाग ने ब्रज के 9 कुंडों के जीर्णोंद्धार के लिए 77 करोड़ रूपये का ठेका लखनऊ के
ठेकेदारों को दे दिया। जबकि हमने बढ़िया से बढ़िया कुंड बनाने में ढाई, तीन करोड़ रूपये से ज्यादा खर्च
नहीं किया। हमारे विरोध पर ठेका निरस्त करना पड़ा और हमसे कार्य योजना मांगी। अब
यही 9 कुंड मात्र 27 करोड़ रूपये में बनेंगे। जाहिर
है कि योगी सरकार के मंत्रीं और अधिकारी इस एक परियोजना में 50 करोड़ रूपये हजम करने की तैयारी
करे बैठे थे, जो हमारे हस्तक्षेप से बौखला गये
और साजिश करके उन्होंने पिछले हफ्ते इन सारी धरोहरों पर कब्जा कर लिया। जबकि ब्रज
फाउंडेशन वहां निःस्वार्थ भाव से बाग-बगीचे,
मंदिर आदि
की इतनी सुंदर सेवा कर रही थी कि हर आदमी उसे देखकर गद्गद् था। पिछले चार साल में
केंद्र सरकार और पिछले सवा साल में योगी सरकार तमाम शोर-शराबे के बावजूद एक भी
परियोजना नहीं बना पाई। इसका कारण है, भ्रष्ट नौकरशाही, राजनैतिक दलालों का हस्तक्षेप और
नाकरा सलाहकारों से परियोजनाऐं बनवाना।
हमने कई बार प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव केंद्र सरकार के मंत्रियों व
सचिवों और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी और आला अफसरों के साथ बैठकें
कर-करके प्रशासनिक व्यवस्था की खामियों को दूर करने के अनेक ठोस और व्यवहारिक
सुझाव दिये। जिससे काम बेहतर और कलात्मक हो और लागत आधी से भी कम आए। पर कोई सुनने
या बदलने को तैयार नहीं है। दावें और बातें बहुत बड़ी-बड़ी हो रही है, पर जिलास्तर पर हलातों में
कोई बदलाव नहीं। बाकी प्रदेश को छोड़ो, भगवान श्रीकृष्ण, राम और शिव की भूमि में भी वही हाल है। दीवाली और होली मनाने से राजनैतिक
प्रचाार तो मिल सकता है, पर जमीन पर ठोस काम नहीं होता है। ठोस काम होता है, ‘सही नीयत-सही विकास’ के
नारे को अमल में लाने से। जो अभी तक कहीं दिखाई नहीं दे रहा है।
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