केंद्र
और राज्य की सरकारें, हमारे धर्मक्षेत्रों को सजाए-संवारे तो सबसे ज्यादा
हर्ष, हम जैसे करोड़ों धर्म प्रेमियों को होगा। पर धाम सेवा के नाम पर, अगर
छलावा, ढोंग और घोटाले होंगे, तो भगवान तो रूष्ट होंगे ही, भाजपा की भी छवि
खराब होगी। इसलिए हमारी बात को ‘निंदक नियरे राखिए’ वाली भावना से अगर
उ.प्र. के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी जी सुनेंगे, तो उन्हें लोक और परलोक
में यश मिलेगा। यदि वे निहित स्वार्थों की हमारे विरूद्ध की जा रही
लगाई-बुझाई को गंभीरता से लेंगे तो न सिर्फ ब्रजवासियों और ब्रज धाम के कोप
भाजन बनेंगे बल्कि परलोक में भी अपयश ही कमायेंगे।
वर्तमान
संदर्भ में यह चिंता वृंदावन के विश्व प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी जी के
मंदिर को लेकर व्यक्त की जा रही है। पिछले हफ्ते अखबारों में पढ़ा कि उ.प्र. प्रदेश पर्यटन विभाग, मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण और ब्रज तीर्थ विकास
परिषद् मिलकर विश्व बैंक के 27 करोड़ रूपये के कर्ज से बिहारी जी की तीन
गलियां सजायेंगे। यह सब ब्रज की गरीबी दूर करने के नाम पर, ‘प्रो-पूअर
टूरिज्म’ योजना के तहत होगा। उल्लेखनीय है कि 27 करोड़ रूपया उ.प्र. की जनता
पर कर्ज होगा, अनुदान नही, जो उसे भविष्य में बढे़ हुए टैक्स देकर चुकाना
पड़ेगा। यह समाचार हर धर्मप्रेमी को विचलित करने के लिए काफी है।
पहली
बात तो ये कि विश्व बैंक के कर्ता-धर्ता गोमांसभक्षी और ईसाई धर्म के
सर्वोच्च केंद्र वैटिकन से संचालित होते हैं। जो शुद्ध रूप से हमारे हिंदू
धर्म को नष्ट कर ईसाईयत फैलाने के काम पर लगा रहता है। ऐसे हिंदू धर्म
विरोधी लोग, हिंदू धर्म की आस्था के केंद्रों पर क्यों कब्जा करना चाहते
हैं? क्या उन्हें हिंदू मंदिर ही गरीबी दूर करने के लिए सबसे उपयुक्त स्थान
लगे? या उनकी निगाह बैंकों में जमा बिहारी जी के 100 करोड़ रूपये और भविष्य
की आमदनी पर है? क्या इसीलिए वे पिछले दरवाजों से घुसकर, हमारे
धर्मक्षेत्रों पर कब्जा करना चाहते हैं? क्या बांके बिहारी जी के भक्त इतने
दरिद्र हो गये कि उन्हें बिहारी जी की गलियां सजाने के लिए भी इन ईसाइयों
से कर्ज लेगा पड़ेगा? क्या तीन गलियों के सजाने के लिए 1 करोड़ रूपया काफी
नहीं है? चूंकि मैं 2003-05 में बांके बिहारी मंदिर का रिसीवर रहा हूं,
इसलिए मुझे खूब पता है कि कितने कम पैसों में कितना काम हो सकता है और
अंतिम प्रश्न यह है कि साधन संपन्न लोगों से युक्त इन गलियों पर 27 करोड़
रूपया खर्च करके ब्रजवासियों की गरीबी कैसे दूर होगी? क्या इस रूपये से
ब्रज के गांवों में हजारों बेरोजगार नौजवानों को रोजगार मिलेगा या गरीबों
को मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ सेवाऐं मिलेंगी?
दुनिया
की समझ रखने वाला हर व्यक्ति जानता है कि विश्व बैंक जहां भी गया, उसने उस
क्षेत्र को लूटा और बर्बाद किया है। अफ्रीका के तमाम देश इसका उदाहरण हैं,
जो दशकों से विश्व बैंक के चंगुल में फंसकर अपनी प्राकृतिक संपदा लुटवा
रहे हैं और उनकी लाखों जनता भुखमरी और अकाल झेल रही है। इस ज्ञान में हमें
ताजा वृद्धि तब हुई, जब खुद हमारा विश्व बैंक से समाना हुआ। हमने सबूतों के
साथ इस बात को पकड़ा कि विश्व बैंक किस तरह प्रो-पूअर टूरिज्म के नाम पर
उ.प्र. शासन में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा था। ब्रज के प्राचीन 9 कुंडों
के जीर्णोंद्धार के लिए विश्व बैंक की इसी योजना के तहत 77 करोड़ रूपये के
ठेके इसी वर्ष उठा दिये गये थे। पर जब हमारी ब्रज फाउंडेशन की तकनीकी टीम
के प्रबुद्ध प्रोफेशनल्स ने शोर मचाया, तो ये ठेका रूका और अब हमने जो
योजना बनाकर सरकार को दी है, वह कहीं बेहतर, आकर्षक और मात्र 27 करोड़ रूपये
की है। मतलब 50 करोड़ रूपया विश्व बैंक नाहक स्वीकृत करने जा रहा था। जो
केवल भ्रष्टाचार की बलि चढ़ जाता। जिसे हमने रोका और हम निहित स्वार्थों के
आखों की किरकिरी बन गये।
बिहारी
जी की गलियों की दुर्दशा के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार मथुरा-वृंदावन
विकास प्राधिकरण के वे अधिकारी हैं, जो गत 20 वर्षों से इस ऐजेंसी के
मुखिया रहे हैं। फिर भी उन्होंने इन तंग गलियों में पुराने छोटे मकानों को
तोड़कर बनने वाले बहुमंजलिय व्यवसायिक भवनों को अवैध रूप से बनने दिया और इन
गलियों में आना जाना और भी कठिन कर दिया। विश्व बैंक की हिंदू धर्म
क्षेत्रों में अवैध दखल की साजिश का पर्दा फाश हमने इसी कॉलम 24 अप्रैल
2017 को किया था। जिसे हमारी वेबसाइट पर ऑनलाइन पढ़ा जा सकता है।
आश्चर्य
है कि कुछ महीनों की शांति के बाद निहित स्वार्थों ने फिर उस साजिश को
अंजाम तक पहुंचाने की खुराफात शुरू कर दी है। जिसका कड़ा विरोध बिहारी जी के
भक्तों, सेवायतों, ब्रजवासियों द्वारा किया जाना चाहिए। इस विरोध को प्रखर
करने में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद् की अहम भूमिका
होनी चाहिए। इन सशक्त संस्थाओं के रहते और मोदी और योगी जैसे शासकों की
मौजूदगी में भी अगर हिंदू धर्म क्षेत्रों में विश्व बैंक दखल देने में सफल
हो जाता है, तो ये हम सब हिंदुओं के लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने की
स्थिति होगी। विश्व बैंक पूरी दुनियां में हमारा मजाक उड़ायेगा कि हिंदू
धर्म का डंका पीटने वाले अपने तीर्थों तक को नहीं सजा सकते। इसके लिए भी
ईसाईयों से कर्ज मांग रहे हैं। क्या हम विश्व बैंक के हाथों लुटने और
अपमानित होने को तैयार हैं?
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