2014 में जब
नरेन्द्र मोदी पूर्णं बहुमत लेकर सत्ता में आऐ, तो सारी
दुनिया के हिंदुओं ने खुशी मनाई कि लगभग 1000 साल बाद भारत
में हिंदू राज की स्थापना हुई है। नरेन्द्र भाई का व्यक्तिगत जीवन आस्थावान रहा
है। हिमालय में तप करने से लेकर भारत की सनातन परंपराओं के प्रति उनकी आस्था ने
भारत को हिंदू राष्ट्र बनने की संभावनाओं को बढ़ा दिया। पर आज हिंदू राष्ट्र का
सपना संजोने वाले बहुत से गंभीर वृत्ति के लोग भारत के विकास की दशा और दिशा को
देखकर चिंतित हैं। इनमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा से सहानुभूति रखने
वालों से लेकर, संघ से अलग रहने वाले हिंदूवादी तक शामिल
हैं। उन्हें लगता है कि जिस दिशा में मोदी जी बढ़ रहे हैं, ये
वो दिशा नहीं, जिसका सपना उन्होंने देखा था। इन लोगों की
मजबूरी ये है कि ये स्वयं राजनैतिक सत्ता हासिल करने में न तो सक्षम है और न ही
उनकी महत्वाकांक्षा है। ये तो वो लोग हैं,
जो इस बात की प्रतीक्षा करते हैं, कि कोई
सत्ताधीश इनकी पीडा को समझकर, अपने बलबूते पर, इनके विचारों को नीतिओं में लागू करें। ऐसी परिस्थितियां प्रायः नहीं बना
करतीं, अब बनी हैं, तो समय निकला जा
रहा है और कोई दूरगामी ठोस परिणाम आ नहीं रहे। इसलिए इनकी चिंता स्वभाविक है।
दूसरी तरफ प्रधानमंत्री
के पद की भी कुछ सीमाऐं होती हैं। राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय दबाव, सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक परिस्थितियां चाहकर भी
प्रधानमंत्री को बहुत से कदम नहीं उठाने देतीं। समस्या तब खड़ी होती है, जब जो संभव है, वो भी नहीं होता और जो कुछ हो रहा
होता है, वह अपेक्षाओं के विपरीत होता है। उदाहरण के तौर पर
दिल्ली की एक जानीमानी महिला बुद्धिजीवी जो अंगे्रजी में अपने लेख और शोधपत्रों के
माध्यम से गत 35 वर्षों से हिंदू विचारधारा की प्रबल
प्रवक्ता रही हैं, उनके स्वनामधन्य पिता देश के सबसे
प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक के वर्षों संपादक रहे और वे भी जीवन के अंतिम दशक में
कट्टर हिंदूवादी हो गये थे, आज ये महिला मौजूदा सरकार से
खिन्न है।
इनकी शिकायत है कि
हिंदूत्व के नाम पर मोदी सरकार में ऐसे लोगों को महत्वपूर्णं पदों पर बिठाया जा
रहा है,
जिनकी योग्यता सामान्य से भी निचले स्तर की है। ऐसे अयोग्य लोग उन
संस्थाओं का तो भट्टा बैठा ही रहे हैं, हिंदू हित का भी भारी
अहित कर रहे हैं। इन विदुषी महिला का आरोप है कि कई मंत्रालयों ने उनसे ऐसे पदों
पर चयन करने के पूर्व कुछ नाम सुझाने को कहा। इन्होंने अपनी ओर से देखे परखे,
ऐसे लोगों के नाम सुझाये, जिनकी योग्यता और
हिंदू संस्कृति के प्रति आस्था उच्चकोटि है।
पर उन्हें हर बार निराशा हुई, क्योंकि जिन्हें चुना
गया, वे इनके सामने खड़े होने के भी लायक नहीं थे। उनका कहना
था कि ऐसा नहीं है कि जो नाम उन्होंने सुझाये, वे उनके
परिचितों या मित्रों के थे। उनमें से कई लोगों को तो वे व्यक्तिगत रूप से कभी मिली
भी नहीं थीं। केवल उनकी योग्यता ने उन्हें प्रभावित किया। कम्युनिस्टों की घोर
विरोधी रही, ये विदुषी महिला कहतीं हैं कि हमसे गलती हुई,
जो हम सारी जिंदगी कम्युनिस्टों को कोसते रहे। भाजपा से तो
कम्युनिस्ट कहीं बेहतर थे, कि उन्होंने ऐसे चयन में योग्यता
की उपेक्षा प्रायः नहीं की। यही कारण है कि भारत की राजनीति में वे अल्पसंख्यक
होते हुए भी आज तक इतने प्रभावशाली रहे हैं कि उन्होंने भारत के मीडिया व अकादमिक
क्षेत्र को प्रभावित किया। जबकि मौजूदा सरकार द्वारा नियुक्त हिंदूवादी व्यक्ति,
जिस संस्था में भी जा रहे हैं, अपने अधकचरे
ज्ञान और अपरिपक्व स्वभाव के कारण संस्थाओं को बिगाड़ रहे हैं और अपना मखौल उड़वा
रहे हैं।
हिंदू संस्कृति के
क्षेत्रों को विकास के मामले में, मेरा भी अनुभव ऐसा ही रहा
है। कई बार मैंने इस सवाल को, इस कॉलम माध्यम से उठाया
है। मोदी जी ने अच्छी भावना से अनेक योजनाओं की घोषणा की, पर
उनकी नीतियां बनाने और क्रियान्वयन करने का काम उसी नौकरशाही पर छोड़ दिया, जो आज तक औपनिवेशिक मानसिकता के बाहर नहीं निकल पाई है। नतीजतन हिंदू
संस्कृति से जुड़े मुद्दों पर जो भी योजनाऐं बन रही हैं, उनसे
न तो व्यापक समाज का भला हो रहा है और न ही हिंदू संस्कृति का। पता नहीं क्यों हम
जैसे राष्ट्रप्रेमी और सनातन धर्मप्रेमियों के अच्छे सुझाव भी प्रधानमंत्री के
कानों तक नहीं पहुंचते। हमारी समस्या यह है कि पिछली सरकारों से हम हिंदू संस्कृति
के लिए इसलिए बहुत कुछ ठोस नहीं करवा पाए, क्योंकि वे
धर्मनिरपेक्षता की चश्मे के बाहर देखने को तैयार नहीं थीं। जबकि भाजपा की मौजूदा
सरकारें अपनी लक्ष्मण रेखा के बाहर नहीं देखना चाहतीं। लक्ष्मण रेखा के भीतर माने
भाजपा व संघ परिवार के बाहर उन्हें न तो कोई हिंदूवादी दिखता है और न ही कोई योग्य।
सत्ता और पद के लिए हम, न तो पहले झुके और न आगे झुकने की
इच्छा है। झुके होते तो कब के सत्ता पर काबिज हो गये होते। क्योंकि सत्ता ने कई
बार हमारा दरवाजा खटखटाया, पर हमने उसे घर में घुसने नहीं
दिया। हमारे जैसे लोग देश में लाखों की संख्या में हैं, जो
किसी की राजनीति का मोहरा बनने को तैयार नहीं है। पर देश व सनातन धर्म के लिए अपना
जीवन खपाते आऐ हैं और अगर मोदी सरकार, हमारे सुझावों को
गंभीरता से ले तो हिंदू संस्कृति के हित
में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। क्योंकि इन सब लोगों के पास अनुभव का लंबा
खजाना है, विचारों की स्पष्टता है और लक्ष्य हासिल करने का
जुनून भी।
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