जनवरी 2006 में हैदराबाद के ‘प्रवासी
दिवस’ कार्यक्रम में विदेशी प्रतिनिधियों के सामने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री
और हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी से मेरा रोचक सामना हुआ।
मोदी जी गुजरात को भ्रष्टाचार मुक्त करने की बात कर रहे थे, तभी मेरे साथ बैठे
मेरे मित्र चंदू पटेल, जो पहले भारतीय हैं, जिन्होंने हिल्टन होटल, लास ऐंजेलस, खरीदा था, खड़े हो गये और बोले, ‘‘नरेन्द्र भाई! आपसे
विनीत भाई नारायण खुश नहीं हैं’’। मोदी जी एक क्षण को ठिठक गये। तभी चंदू भाई ने
बात पूरी की, ‘‘क्योंकि उन्हें आपके राज्य में कोई घोटाला नहीं
मिल रहा‘‘। इस पर मोदी जी और सारा हाल ठहाकों में गूंज गया। इससे पहले मेरा मोदी
जी से कोई व्यक्तिगत परिचय नहीं था।
मुझे आश्चर्य हुआ कि मोदी जी ने तुरंत मेरे बारे
में गुजराती में बोलना शुरू कर दिया। वे बोले,‘‘ विनीत भाई नारायण भारत के
बड़े पत्रकार हैं। उन्हें भ्रष्टाचार की जड़ में छाछ डालने में मजा आता है। मेरा
उन्हें निमंत्रण है कि वे गुजरात आकर मेरे घोटाले खोजें’’।
इस पर मैं खड़ा हो गया और बोला,‘‘ मैं ही विनीत नारायण
हूं, पर अब मैं घोटाले नहीं खोजता। अब तो मैं भगवान
श्रीराधाकृष्ण की लीला भूमि ब्रज को सजाने में जुटा हूं। हमारे ठाकुर जी ब्रज
छोड़कर आपकी द्वारिका में जा बसे थे। इसलिए आप सब ‘जय श्रीकृष्ण’ बोलते हैं। पुराने
जमाने में अनेक राजे-महाराजे ब्रज में आकर कुंड, घाट, वन बनवाते थे। आप आज
गुजरात के राजा हो। कहावत है- दुनियां के गुरू सन्यासी, सन्यासियों के गुरू
ब्रजवासी। मैं ब्रजवासी होने के नाते, आपको आर्शीवाद देता हूं कि
आप भारत के प्रधानमंत्री बनें और ब्रज सजाने में हमारी मदद करें।’’
यह सुनकर नरेन्द्र भाई मोदी भावुक हो गये और
बोले, ‘‘जब मैं दिल्ली भाजपा मुख्यालय में था, तब मेरे मन में
गोवर्धन की परिक्रमा सजाने का प्रबल भाव आया था। इससे पहले कि मैं कुछ कर पाता, मुझे गुजरात भेज
दिया गया। विनीत भाई आप गुजरात आओ, हम आपके प्रयास में पूरा
सहयोग करेंगे।’’
2014 में जब मैं
नरेन्द्र भाई मोदी को ब्रज विकास की अपनी पावर पाइंट प्रस्तुति दे रहा था। तब उन्हें
मैंने ब्रज फाउंडेशन की अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों की टीम द्वारा गोवर्धन के
सौन्दर्यीकरण के लिए तैयार की गई परिकल्पना की भी प्रस्तुति की थी। जिसे उन्होंने
बहुत सराहा।
आजकल गोवर्धन के विकास के नाम पर जो कुछ
प्रस्तावित किया जा रहा है, उसे पिछले दिनों अखबारों से जानकर हर कृष्णभक्त और गोवर्धन
प्रेमी बहुत विचलित है। गोवर्धन का विकास अमृतसर की तर्ज पर नहीं किया जा सकता।
क्योंकि स्वर्ण मंदिर पूरी तरह शहर के बीच स्थित एक शहरीकृत तीर्थस्थल है। जबकि
गोवर्धन का अर्थ है-गायों का सवंर्धन करने वाला पर्वत। जहां गायें स्वछन्दता से
चरती हों। गोवर्धन महात्म्य के सभी ग्रंथों में रसिक संतों ने गोवर्धन के नैसर्गिक
सौन्दर्य का दिव्य वर्णन किया है। जिससे पता चलता है कि यहां सघन वृक्षावली, फलों से लदे वृक्ष, चारों ओर दूध जैसे
लगने वाले जलप्रपात और स्वच्छ जल से भरे हुए सरोवर हुआ करते थे और वही यहां की
शोभा थी। गोवर्धन की तलहटी की रज में लोट-पोट होकर संत, भजनानंदी और
परिक्रमार्थी स्वयं को धन्य मानते थे। कलयुग के प्रभाव से गोवर्धन के इस स्वरूप का
तेजी से विनाश किया गया। आजादी के बाद सरदार बल्लभ भाई पटेल ने यहां कुछ
वृक्षारोपण करवाया था। उसके बाद किसी बड़े राजनेता ने गोवर्धन के महात्म्य को जानने
और गिर्राज महाराज की यथोचित सेवा करने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया।
2003 में जब इलाहाबाद
उच्च न्यायालय के प्रयास से मुझे गोवर्धन के दानघाटी मंदिर का मानद रिसीवर बनाया
गया, तब से मैंने स्थानीय विशेषज्ञों व जिला प्रशासन के साथ
नियमित विचार विर्मशकर गोवर्धन की समस्याओं को समझने का प्रयास किया। उसके बाद
देश-विदेश में पढ़े और धर्म में गहरी आस्था रखने वाले आर्किटैक्टों की मदद से
गोवर्धन के सौन्दर्यीकरण और यात्रियों के लिए आधुनिक आवश्यक्ताओं को ध्यान में
रखते हुए, एक विस्तृत कार्ययोजना की परिकल्पना तैयार की। जिसे तैयार
करने में 5 वर्ष लगे।
देखने वाला इसे देखता ही रहा जाता है। यह
परियोजना 2008 में हमने उ0प्र0 पर्यटन विभाग को
अधिकृत रूप से सौंपी। हमारी चिंता का विषय ये है कि गोवर्धन की मूल भावना को समझे
बिना, गोवर्धन के विकास के जिस स्वरूप की बात आज की जा रही है, उससे गोवर्धन का
स्वरूप बिगड़ेगा, बनेगा नहीं। प्रधानमंत्रीजी को इस पर ध्यान देना चाहिए और
हैदराबाद में हमसे किया वायदा निभाना चाहिए। जिससे गिरिराज महाराज की ऐसी सेवा हो
कि संत, भक्त और ब्रजवासी जय-जयकार करें, आहत न हों।
हमें आधुनिक व्यवस्थाओं से कोई परहेज नहीं हैं।
समय के साथ परिस्थितियां बदलती हैं। इसलिए दोनो विचार धााराओं के बीच संघर्ष न हो
और सौहार्दपूर्णं सामन्जस्य हो, तो बात बन सकती है। इस विषय
में प्रधानमंत्री जी के प्रमुख सचिव से लेकर उ.प्र. के मुख्यमंत्री व उनके
मंत्रीमंडलीय सहयोगियों तक हमने अपनी चिंता व्यक्त कर दी है। पर सही कदम तो तभी
उठेंगे, जब प्रधानमंत्री जी थोड़ी रूचि लें और गोवर्धन का विनाश न
होने दें।
Valid objections. Vikas ka matlab vinaash ho gaya hai.
ReplyDeleteThanks for your appreciation Radhey Radhey
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