अंडमान और निकोबार क्षेत्र में 7,43,419 वर्ग किलोमीटर में तेल और गैस के 16 डीप वाटर ब्लॉक्स हैं। जिनमे 22 से ज्यादा कुँए खोदने पर गैस मिल चुकी है। ओ.एन.जी.सी ने 11 डीप वाटर ब्लॉक्स को कम तेल मिलने की आशंका के मद्देनजर वहां से तेल निकलने का इरादा छोड़ दिया। इसके विपरीत शैव्रोन, ऐक्सोन मोबिल, इन्पेक्स, बीपी, स्टैटआयल, टोटल ई-पी, कोनोको फिलिप्स आदि कम्पनियां इंडोनेशिया में प्रतिदिन 10 लाख बैरल क्रूड आयल और अत्याधिक मात्रा में प्राकृतिक गैस निकालकर इंडोनेशिया को मालामाल कर रही हैं। प्रधानमंत्री जी से आग्रह है कि वह इन सक्षम कम्पनियों को आमंत्रित कर के अंडमान और निकोबार के 16 डीप वाटर ब्लॉक्स से तेल और गैस निकालने का मौका प्रदान करें। क्योकि हमें प्रतिवर्ष तेल और गैस की आयात में खर्च होने वाली 10 लाख करोड़ रूपए की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा बचानी है।
याद रहे कि अंडेमान और निकोबार के उत्तर में स्थित म्यांमार (बर्मा) भी 26 डीप वाटर ब्लॉक्स में से, तेल और गैस निकालने में अपनी राष्ट्रीय कम्पनियों के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियां जैसे कि टोटल एस ऐ, साइनो पेक, पेट्रोनास आदि का सहयोग ले रहा है। हमें यह काम युद्ध स्तर पर करने की आवश्यकता है, क्योंकि देश का आधा जीडीपी जो तेल और गैस के आयात में प्रतिवर्ष खर्च होता है, उसको हर हाल में बचाना है। भारत सरकार काला धन निकालने में जितना हो हल्ला मचा रही है, अगर उससे आधा प्रयास भी इस भारी भरकम विदेशी मुद्रा को बचाने में करें तो देश के वारे न्यारे हो सकते हैं। देश की जनता को अत्याधिक करों के बोझ और महंगाई की मार से मुक्ति मिल सकती है। अन्तराष्ट्रीय विनमय दर भारत के पक्ष में आ सकता है। भारतीय रूपए की स्थिति में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है। भारत की प्रगति को पंख लग सकते हैं। पेट्रोल पानी के भाव और गैस हवा के भाव बिकने लग सकती है।
भारत के 26 सैडीमैंनेटरी बेसिन में से सिर्फ 13 बेसिनों में से तेल और गैस प्राप्त हुई है। इसका यह कारण था कि आधुनिक विज्ञान की एक मूलभूत भूल में वैदिक विज्ञान की सहायता से सुधार आया है। याद रहे कि अथर्व वेद के गोपथ ब्राह्मण ग्रन्थ में मुनि वेद व्यास जी ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि भूलोक का स्वामी अग्नि है। वेदों में सक्रिय ज्वालामुखी के मुख से निकलने वाले लावा (मैग्मा) को अग्नि कहते हैं। विज्ञान की भाषा में इसे जियोथर्मल एनर्जी कहते हैं।
वैज्ञानिक सूर्यप्रकाश कपूर का कहना है कि जिस बेसिन में हीटफ्लोवैल्यू 67.4 मिलीवाट प्रतिवर्गमीटर प्रति सेकण्ड से ज्यादा होती है, सिर्फ उसी बेसिन में ऑरगैनिक सैडिमेंट्स पककर तेल या गैस में परिवर्तित होते हैं। चूंकि भारत के सिर्फ 13 बेसिनों में हीट फ्लो वैल्यू 67.4 मिलीवाट प्रति वर्गमीटर प्रति सेकण्ड से ज्यादा थी, इसलिए सिर्फ उन्हीं 13 बेसिनों में से तेल और प्राकृतिक गैस प्राप्त हुई है। इस प्राकृतिक गैस को वेदों में ‘पुरीष्य अग्नि‘ कहा गया है। आदरणीय अथर्वन ऋषि ने सर्वप्रथम इस गैस को खानों से खोदकर वैदिक काल में जनता के उपयोग के लिए निकाला था। यजुर्ववेद और ऋग्वेद में पुरीष्य अग्नि के ऊपर बहुत सारे मंत्र उपलब्ध हैं। पुरीष्य शब्द का अर्थ होता है मल-मूत्र। समुद्रों के अंदर तैरने वाली मछलियों और दूसरे प्राणियों के मल-मूत्र और अस्थिपंजर जब समुद्र के तल पर गिरते हैं, तो परतदार चट्टान बन जाती है। जिसके अंदर भूतापीय ऊर्जा की किरणों के प्रवेश से क्रूड आयल और प्राकृतिक गैस का निर्माण होता है। इसके अतिरिक्त धरती माता की गहरी सतह से आने वाली हाइड्रो कार्बन से विश्व का आधे से ज्यादा तेल और गैस बनता है।
विश्व में भूतापीय ऊर्जा का सघन रूप संबडक्शन जोन्स, सी-संप्रेडिंग सेंटरर्स, हाट्-स्पाट्स, रिफट्स में देखने को मिलता है। इसलिए विश्व के सबसे बड़े क्रूड आयल और प्राकृतिक गैस के भंडार इन्हीं क्षेत्रों में प्राप्त हुए हैं। इसके विपरीत जो आॅन लैंड ब्लाक्स हैं, उनमें क्रूड आयल और प्राकृतिक गैस के भंडारों में हाइड्रो कार्बन सीमित मात्रा में ही बन पाता है और तेल और गैस के कुंए जल्दी खाली हो जाते हैं। जबकि तेल और गैस के कुंए, जो संबडक्शन जोन्स, सी-संप्रेडिंग सेंटरर्स, हाट्-स्पाट्स और रिफट्स के पास खोदे जाते हैं, उनमें तेल और गैस अनंतकाल तक उपलब्ध होता रहता है। भारत के विध्यांचल पर्वत में भी एक रिफट् है, इसलिए सोन नर्मदा तापी भूतापीय क्षेत्र में तेल, गैस, कोयला की खानें प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। सोनाटा भूतापीय क्षेत्र गुजरात से शुरू होकर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार और पश्चिमी बंगाल तक फैला हुआ है। दूसरी तरफ संबडक्शन जोन जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल, नेपाल, नार्थ ईस्ट के सातों राज्यों को पार करता हुआ म्यांमार, अंडमान निकोबार से गुजरता हुआ इंडोनेशिया तक जाता है। जो आन लैंड ब्लाक्स हैं, उनमें क्रूड आयल और गैस के साथ-साथ ठोस अवस्था में शैल के रूप में भी हाइड्रो कार्बन खानों में उपलब्ध है। जबकि समुद्र में पानी और भूतापीय ऊर्जा ज्यादा होने की वजह से ठोस अवस्था से यह तरल अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
भारत के साथ अभी तक तेल निकालने वाली विदेशी कंपनियों के भेदभावपूर्ण और सौतेले रवैए की वजह से भारत के 7 भूतापीय क्षेत्रों से पूर्णरूपेण क्रूड आयल और गैस नहीं निकल पाई है। अभी तक जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल, नार्थ ईस्ट के कुछ राज्य, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, पश्चिमी बंगाल, पूरे के पूरे दक्षिण भारत कर्नाटका, केरला, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु से भी क्रूड आयल और गैस का पूर्णरूपेण खनन नहीं हो पाया है। अंडमान निकोबार तो भारत का सुपरमिडिल ईस्ट सिद्ध हो सकता है। इसके लिए प्रधानमंत्री को गंभीर प्रयास करने होंगे।
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