Sunday, February 6, 2011

लोकपाल बिल क्या कर लेगा

 
Rajasthan Patrika 6 Feb 2011
महात्मा गाँधी की शहादत वाले दिन दिल्ली के रामलीला ग्राउण्ड सहित देश के साठ शहरों में भ्रष्टाचार के विरूद्ध जनसभाऐं की गयीं। जिसमें बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर के अनुयायियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इसके आयोजकों में प्रमुख पूर्व पुलिस अधिकारी किरण बेदी व सूचना के अधिकार के लिए मेगासे पुरूस्कार पाने वाले अरविन्द केजरीवाल शामिल थे। केजरीवाल ने
दिल्ली की जनसभा में बोलने का न्यौता मुझे भी दिया। आमतौर पर ऐसे प्रयासों का प्रभाव पिछले 36 वर्षों में बार-बार देख चुकने के बाद, मुझे कोई मुगालता नहीं रहता। फिर भी मित्रों का बुलावा था,  इसलिए चला गया। मंच पर एक से एक विभूतियाँ बैठी हुयी थीं। किरण बेदी तो बड़ी गर्मजोशी से मिलीं और बाकी सबने भी अभिवादन किया। पर मैं 5 मिनट में ही मंच से उतर गया और बिना भाषण दिये लौट आया। उसके बाद मुझे अंग्रेजी पत्रकारों के कारणपूछने के लिए फोन आये। कारण साफ है। प्रशांत भूषण और शान्ति भूषण के बनाये जन-लोकपाल विधेयक से अगर भ्रष्टाचार रूक सकता है, तो जरूर इसका समर्थन करना चाहिए। पर ऐसा होगा नहीं।
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जब हर्षद मेहता घोटाला हुआ था, तो शोर मचा कि सेबी का गठन कर देना चाहिए। सेबी बना, पर उसके बाद केतन पारिख जैसे कितने ही शेयर घोटाले हुए। शेयर मार्केट पर निगाह रखने वाले क्या नहीं जानते कि सेबी शेयर मार्केट के घोटालों को रोकने में नाकाम रही है ? भ्रष्टाचार के विरूद्ध सी.बी.आई. कबसे काम कर रही है, पर क्या भ्रष्टाचार को रोकने में या आरोपियों को सजा देने में सी.बी.आई. ने कोई झण्डे गाढे हैं? देश के 115 ताकतवर राजनेताओं, अफसरों, हवाला डीलरों, हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकवादियों के विरूद्ध जैन हवाला काण्डमें तमाम सबूत मौजूद थे। पर उन सब सबूतों की अनदेखी कर, बिना रीढ़ के केन्द्रीय सतर्कता आयोगके गठन का फैसला सुना दिया गया। आज सर्वोच्च अदालत में उसी विनीत नारायण केसका सुबह से शाम तक दर्जनों बार हवाला देकर सी.वी.सी. की नियुक्ति और भ्रष्टाचार पर बहसें की जा रही हैं। 1997 में जब इस केस की मुख्य प्रार्थनाओं और आरोपियों के विरूद्ध उपलब्ध सबूतों को अनदेखा कर सी.वी.सी.के गठन जैसे मुद्दों पर बहस शुरू हुई, तो मैंने जमकर इसका विरोध किया। अखबारी बयानों में ही नहीं, बल्कि अदालत में शपथपत्र दाखिल करके भी। मेरा कहना था कि जब भारत सरकार सी.बी.आई. को स्वायŸाता नहीं देती तो कैसे माना जाये कि वो सी.वी.सी. को एक स्वायŸा संस्था बना देगी? पर उस वक्त मेरे सहयाचिकाकर्ता प्रशांत भूषण, उनके पिता शांति भूषण, उनके मार्गनिर्देशक रामजेठमलानी, उनकी ही मित्रमण्डली के सदस्य अरूण जेटली, सबके-सब बड़े उत्साह से सी.वी.सी. के गठन के मामले में जोर लगाने लगे और हवाला काण्डकी याचिका की मुख्य प्रार्थनाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया। बल्कि अदालत का ध्यान उनसे हटाने का उपक्रम चलाया। इस तरह उच्च राजनैतिक स्तर पर भ्रष्टचार के विरूद्ध, आजादी के बाद लड़ी जा रही सबसे बड़ी लड़ाई को इन लोगों ने अपने निहित स्वार्थों के कारण पटरी पर से उतार दिया। मजे की बात यह है कि आज 13 साल बाद जब हवाला कारोबार, राजनैतिक भ्रष्टाचार और आतंकवाद सिर से ऊपर गुजर चुका है, तो वही लोग देश के सामने इसे रोकने का नाटक कर रहे हैं। अगर वास्तव में इनके दिल में ईमानदारी है और ये चाहते हैं कि देशवासी भ्रष्टाचार से मुक्त हों, तो पहले तो इन्हें अपने किये पर सार्वजनिक पछतावा व्यक्त करना चाहिए और फिर एकजुट होकर माँग करनी चाहिए कि जैन हवाला काण्डसे लेकर ‘2जी स्पैक्ट्रमतक, जो भी आठ-दस बड़े घोटाले अदालतों के बावजूद बेशर्मी से दबा दिए गये हैं, उनकी तेज गति से, खुली अदालत में जाँच और कार्यवाही चले। ताकि देश के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत हो सके। स्कूल के बच्चों से एक प्रश्न पूछा जाता था कि पेड़ पर 100 चिड़ियाँ बैठी हैं। एक को छर्रा मारो तो कितनी बचेंगी ? जब हाईप्रोफाइल केसों में बड़े लोगों को सजा मिलेगी, तभी समाज के आगे उदाहरण प्रस्तुत होगा। पर ये लोग ऐसा कभी नहीं करेंगे। चाणक्य पण्डित ने कहा है कि व्यवस्था कोई भी बना लो, अगर उसको चलाने वाले ईमानदार नही, तो परिणाम ठीक नहीं आयेगा। तब ये लोग सी.वी.सी.के गठन को लेकर कूद रहे थे। थामस रहें या जायें, क्या पिछले 10 वर्षों में सी.वी.सी. ने भ्रष्टाचार के विरूद्ध कोई कमाल करके दिखाया है? जन-लोकपाल बिल बनाने से ये लड़ाई नहीं जीती जा सकेगी। कार्यक्रम के बाद मुझे अरविन्द केजरीवाल और किरण बेदी दोनों ने फोन पर मेरी नाराजगी का कारण पूछा तो मैंने बिना लाग-लपेट के कहा कि जिन लोगों के कारण हवाला संघर्ष की सबसे बड़ी लड़ाई बिगड़ गयी, उनको साथ लेकर तुम महात्मा गाँधी की समाधि पर श्रद्धाजंली अर्पित करोगे तो तुम्हें कुछ हासिल होने वाला नहीं। गाँधी जी ने साध्य की प्राप्ति के लिए साधन की शुद्धता पर जोर दिया था।
यहाँ इंका के युवा नेता राहुल गाँधी के हालिया बयान का जिक्र करना भी सार्थक रहेगा। अपनी एक जनसभा में उन्होंने युवाओं से कहा कि मैं जानता हूँ कि देश में भ्रष्टाचार से आप सब त्रस्त हैं। हमें इसे दूर करना है। इसलिए मैं आपका आव्हान करता हूँ कि आप सब राजनीति में आयें और मैं वायदा करता हूँ कि मुझे 10 वर्ष का समय दीजिए, मैं हालात बदल दूंगा। राहुल गाँधी की भावना सही हो सकती है। पर सोच सही नहीं। कहावत है, ‘काल करै सो आज कर, आज करै सो अब, पल में परलै होयेगी, बहुरी करैगो कब। बिना प्रधानमंत्री बने ही राहुल गाँधी के पास काफी ताकत है। अपने चाचा संजय गाँधी की तरह उनकी छवि एक गरम जोश युवा की नहीं, बल्कि राजनीति के एक संजीदा विद्यार्थी की है। जो ज़मीन से राजनीति को समझने का प्रयास कर रहा है। राहुल गाँधी को मालूम होना चाहिए कि हालात जिस तेजी से बिगड़ रहे हैं, इस देश का नौजवान 10 वर्ष इंतजार नहीं करेगा। ऐसे वायदे तो देशवासी पिछले 60 सालों से सुनते आ रहे हैं। जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति के आव्हान के बाद 1977 में जो जनता दल की सरकार बनी, उसने भी यही कहा कि अभी तो हम नई दुल्हन हैं। मुल्क में 30 साल से जो गन्दगी जमा है, पहले उसे साफ करेंगे, फिर आपको घर चमकाकर देंगे। पर ढाई साल में ही सब ढेर हो गया। राहुल गाँधी के बयान को भी गम्भीरता से नहीं लिया जायेगा।
इसी तरह मेरा मानना है कि जन-लोकपाल बिल का शोर केवल सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए मचाया जा रहा है। इससे न तो भ्रष्टाचार रूकेगा और न ही इसका कोई प्रभाव देश की स्थिति पर पड़ेगा।

1 comment:

  1. aapase purnata asahamati darj karate hain. ye sach hai ki isase koi krantikari pariwartan nahi ayega vyawastha me, par aam adami bhi saree sthitiyon ko soch-samajh raha hai aur waqt ane par khada ho sakata hai, netao ko yah sandesh bhi chala jaye to kafee hai.

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