Sunday, September 13, 2009

राजस्थान कैसे बने हरित प्रदेश?


राजस्थान के मुख्यमंत्री राजस्थान को हरा-भरा बनाना चाहते हैं। रेगिस्तान और सूखे से घिरे राजस्थान के लिए यह अभियान संजीवनी बूटी की तरह सिद्ध हो सकता है बशर्ते इसकी योजना संजीदगी से बनाई जाए और इस अभियान के रास्ते में आने वाली रूकावटों को दूर किया जाए। यह निर्विवाद है कि पेड़ों से हमारे जीवन की रक्षा होती है। भू-जल स्तर ऊंचा होता है। वर्षा की मात्रा और निरंतरता बढ़ती है। वन्य उपज से रोजगार बढ़ता है। वन्य जीवन बढ़ता है। कुल मिलाकर खुशहाली आती है। अगर अशोक गहलोत अपने इस अभियान में सफल हो जाते हैं तो वे एक नया इतिहास रचेंगे। पर इसके लिए उन्हें कुछ क्रांतिकारी कदम उठाने पड़ेगें।

राजस्थान के भरतपुर जिले की डीग व कामा तहसील में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़े पर्वतों की श्रृखलायें हैं जिन पर गत कुछ वर्षां से भारी मात्रा में अवैध खनन चल रहा था। बरसाना के विरक्त संत रमेश बाबा की प्रेरणा से मानगढ़ के साधुओं, ब्रज रक्षक दल के स्वयं सेवकों, मीडिया, विधायकों व सांसदों के साझे प्रयास से एक लंबा संघर्ष चला। आखिर इस पूरे क्षेत्र को वन विभाग को सौंप दिया गया। पर चिंता की बात यह है कि इसके बावजूद यहां आज भी क्रेशर मशीनें हटी नहीं है। अवैध खनन कम हुआ है पर खत्म नहीं। साधू व स्थानीय जनता आज भी संघर्षरत है। पिछले दिनों ब्रज रक्षक दल के उपाध्यक्ष राधाकांत शास्त्री वनमंत्री रामलाल जाट से मिले थे। जिन्होंने इस दिशा में ठोस कार्यवाही करने का अश्वासन दिया है। उन्हें जानकर आश्चर्य हुआ कि ब्रज क्षेत्र से थोड़ा हटकर राजस्थान में ही पहाड़ी नामक गांव में ऐसे पहाड़ हैं जहां वैध खनन की अनुमति दी जा सकती है।

आवश्यकता है कि इन पर्वतों पर ही नहीं बल्कि पूरे राजस्थान में वृक्षारोपण के कार्य के लिए प्रतिष्ठित स्वयं सेवी संस्थाओं की मदद ली जाए। आज राजस्थान का हरित क्षेत्र मात्र 7 फीसदी है। जिसे श्री गहलोत 23 फीसदी तक ले जाना चाहते हैं। जबकि सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश का औसत हरित क्षेत्र 21 फीसदी है। देश को स्वस्थ रहने के लिए उसके 33 फीसदी भू-भाग पर हरित पट्टी होनी चाहिए। चूंकि मैदानों में ज्यादा जगह बची नहीं। कब्जे हो गये या पट्टे काट दिये गये या फिर बढ़ती आबादी जंगल की जमीन लील गई। पहाड़ एक ऐसी जगह है जहां पेड़ यदि लगाये जाए और कुछ समय तक जल खाद और सुरक्षा मुहैया कराई जाए तो मात्र 4 वर्ष में एक पहाड़ हरा-भरा जंगल बन जाता है। गुजरात की स्वयं सेवी संस्था समस्त महाजन ने अपने जैन गुरू की प्रेरणा से पालिताना जिले में अपने ही साधनों से 84 हजार हेक्टेयर सूखे पर्वतों को हरा-भरा जंगल बना दिया है। यह संस्था पश्चिमी राजस्थान में भी कार्य कर रही है। इसी तरह अनेक अन्य प्रतिष्ठित स्वयं सेवी संथाएं हैं जो इस काम में अनुभव प्राप्त हैं और राजस्थान सरकार के साथ सहयोग कर सकती है।

इस क्रम में देहरादून का उदाहरण काफी प्रेरणास्पद है। दो दशक पहले तक यहां के पहाड़ों पर चूना पत्थर का इतना बड़ा खनन हो रहा था कि सारी हरियाली नष्ट हो गई। देहरादून शहर के ऊपर सफेद प्रदूषक धूल की पर्त हमेशा जमी रहती थी। आम जनता में टीबी फैल रही थी। एक जनहित याचिका के जवाब में सर्वोच्च न्यायालय ने यहां खनन पर पाबंदी लगाई। फिर फौज से निकले अधिकारियों और जवानों की संस्था ईको टा¡स्क फोर्स को इन पहाड़ांे को हरा-भरा बनाने का जिम्मा दिया गया। इस फोर्स ने रात-दिन मेहनत से काम किया और कुछ ही समय में इस वीरान खनन क्षेत्र को सघन वन बना दिया। आज यहां फिर से हाथी जैसे बड़े-बड़े जंगली जानवर मस्ती में विचरण करते हैं। सैलानी पूरे वर्ष इन वनों का आनंद लेने आते हैं। जब यह देहरादून में हो सकता है तो राजस्थान में क्यों नहीं?

जमीन को हरा-भरा बनाने के लिए मिट्टी की जांच और उपयुक्त पौधों का चयन करना होगा। साथ ही ऐसे पौधे लगाने होंगे जिन्हें कम पानी की आवश्यकता हो और जिनके फलों, पत्तियों व छाल से औषधियां बन सके। मुश्किल यह आती है कि मुख्यमंत्री की चाहे कितनी भी सद्इच्छा क्यों न हों यदि वन विभाग के अधिकारी नकारात्मक, भ्रष्ठ या आलसी रवैया लेकर बैठे रहेंगे तो उत्साही संस्थाएं हताश होकर लौट जायेंगी। मुख्यमंत्री को यह सुनिश्चित करना होगा कि जो भी सामाजिक संस्था, स्वयं सेवी संस्था, औद्यौगिक घराना, शिक्षा संस्थान या जागरूक नागरिक अपने इलाके को अगर हरा-भरा करने के लिए आगे आते हैं तो उन्हें धक्के न खाने पड़े। उनके काम में रोड़े न अटकाये जाएं। उनकी समस्याएं प्राथमिकता से हल की जाए। इससे एक फिजा़ बनेगी। हरित प्रदेश का अभियान एक आन्दोलन का रूप ले लेगा। पिछले दो दशकों में बढ़ते पानी के संकट, घटते हरित क्षेत्र और बढ़ते प्रदूषण से त्रस्त होकर अब आम लोग भी पर्यावरण की रक्षा के महत्व को समझने लगे हैं।

अपने भाषणों व संदेशों के माध्यम से मुख्यमंत्री को प्रदेश की जनता को इस काम के लिए सक्रिय करना होगा। दिल्ली, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने लगातार जनता से सीधा संवाद कायम कर ऐसी हवा बनाई कि प्रशासन भी जिम्मेदारी से व्यवहार करने लगा। स्वयं सेवी संस्थाओं की भूमिका को इन मुख्यमंत्रियों ने काफी महत्व दिया। इससे सत्ता निरंकुश होने से बच गई और इन संगठनों व संस्थाओं ने निगेबान का काम किया। जिसका लाभ इन नेताओं को मिला जो दुबारा शानदार तरीके से जीतकर आए। सूखे इलाके को हरा बनाना सबाब का ही नहीं फायदे का भी काम है। इसलिए कोई किसी मज़हब या जात का हो इस काम में पीछे नहीं हटेगा। बशर्तें कि राज्य सरकार उसको प्रेरित कर सके।

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