तहलका के बाद से विपक्ष और मीडिया के एक बड़े हिस्से का रवैया केन्द्रीय रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडीज की उपेक्षा करने का या उनकी तरफ हिकारत से देखने का रहा है। तहलका कांड के तथ्य क्या हैं और रक्षा मंत्रालय में भ्रष्टाचार है या नहीं, यह एक महत्वपूर्ण विषय है किन्तु जब तक सब तथ्य सामने न आ जाएं, कुछ भी निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। कहने वाले तो यह खुलेआम कहते हैं कि रक्षा मंत्रालय में अंग्रेजों के जमाने से लेकर आज तक बिना भ्रष्टाचार के कुछ होता ही नहीं। अगर यह सच है तो बड़ी अजीब बात है कि जार्ज फर्नांडीज का विरोध करने वालों में वे लोग भी हैं जो खुद कभी रक्षा मंत्री रह चुके हैं। पर इसमें नया कुछ भी नहीं है। राजनीति में यह कहावत पूरी तरह चरितार्थ होती है कि ‘सूप बोले तो बोले छलनी भी बोले जिसमें बहत्तर छेद’। अक्सर भ्रष्टाचार के मामले में शोर मचाने वाले राजनेता वही होते हैं जिनका खुद का दामन कीचड़ में सना होता है। जब हमाम में सभी नंगे हैं तो फिर शोर केवल शोर मचाने के लिए ही मचाया जाता है, किसी को सजा दिलवाने के लिए नहीं। तहलका के विवाद के कारण रक्षा मंत्री के रूप में जार्ज फर्नांडीज के अच्छे कामों को भी अनदेखा किया जा रहा है।
पिछले दिनों एक खबर छपी कि जार्ज फर्नांडीज ने फ्लाइट पायलट की यूनीफार्म पहन एक लड़ाकू विमान के काॅकपिट में बैठकर आसमान की खतरनाक ऊंचाइयों पर उड़ान भरी। जार्ज देखना चाहते थे कि इस तरह की सेवा करने वाले लड़ाकू पायलटों की जिंदगी कितने जोखिम से भरी होती है। ऐसा उन्होंने पहली बार नहीं किया। पिछले चार वर्षों में सेना के जवानों के प्रति अपनी सहृदयता का परिचय देते हुए श्री फर्नांडीज ने कई काम ऐसे किए हैं जो किसी रक्षामंत्री ने आज तक नहीं किए। मसलन, सियाचिन ग्लेशियर पर जाने वाले वे पहले रक्षामंत्री हैं। एक बार नहीं कई बार उन्होंने सियाचिन ग्लेशियर की यात्रा की। बर्फ से ढकी इन पहाडि़यों पर आॅक्सीजन की कमी के कारण हट्टे कट्टे नौजवान तक वहां नहीं टिक पाते। भारतीय सेना के जाबांज सिपाहियों की सबसे कठिन परीक्षा सियाचिन ग्लेशियर की तैनाती पर ही होती है। स्नो व्हाइट के कारण उनकी उंगलियों का मांस गल जाता है। खाल फट जाती है। नाक से खून बहता है। दमे और दिल की बीमारी हो जाती है। चिड़चिड़ापन और पागलपन तक हो जाता है और दिमाग की नस भी फट सकती है। इतनी विषम परिस्थितियों में रहने वाले जवानों की सुविधा के लिए सेना जब जब अतिरिक्त सहूलियतों की मांग करती थी, तो दिल्ली स्थित रक्षा मंत्रालय के वातानुकूलित कमरों में बैठने वाली अफसरशाही उस पर रोक लगा देती थी। महीनों निर्णय नहीं लेती थी। श्री फर्नांडीज को भी नौकरशाही ने ऐसे मामलों में जल्दबाजी न करने की सलाह दी। पर, लीक से हटकर चलने वाले जार्ज केवल नौकरशाहों की बात पर चुप बैठने वाले नहीं थे। वे खुद मौके पर जाकर पड़ताल करना चाहते थे। सो, सियाचिन गए और वहां से लौटकर रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों को कड़ी झाड़ पिलाई। आनन-फानन में निर्णय लिया और सेना के जवानों के लिए आवश्यक सामग्री पहंुचाने में काफी तेजी दिखाई।
इतना हीं नहीं, वे जब भी सेना के दौरे पर जाते हैं तो पूर्व रक्षा मंत्रियों की तरह किसी पांच सितारा होटल जैसे माहौल में आला अफसरों के साथ मिलकर जाम से जाम नहीं टकराते बल्कि छोटे स्तर के सैनिकों के साथ पंगत में बैठकर खाना खाते हुए उनकी हौसला अफजाई करते हैं। उनका मकसद पहाड़ों की खूबसूरती का लुत्फ लेना नहीं होता, वे अपनी जान जोखिम में डालकर इसलिए वहां जाते हैं ताकि कठिन परिस्थितियों में रहते हुए देश की सीमाओं की रक्षा करने वाले सैनिकों का मनोबल बढ़ सके और वे जोशोखरोश के साथ दुश्मनों के नापाक मंसूबों को विफल कर सकें।
रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीज देश की रक्षा करने वाली सेनाओं को और मजबूत बनाना चाहते हैं। इसके लिए वे जितना कर सकते हैं, करने की कोशिश में जुटे हैं। पिछले दस-पन्द्रह सालों से सेना में आधुनिकीकरण के नाम पर कुछ ज्यादा नहीं था, परंतु राजग सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के इस महत्वपूर्ण मुद्दे की ओर ध्यान दिया और पिछले दस सालों की सम्मिलित राशि से ज्यादा धन आवंटित किया। सेना को हर तरह से सक्षम बनाने के लिए वर्ष 2003-04 में 65,300 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई। सेना की मारक क्षमता बढ़ाने के लिए कई नए हथियार और मिसाइलें तैयार की गईं। इनमें से कुछ सेना में शामिल होने के लिए तैयार हैं जबकि कुछ अभी परीक्षण के दौर में हैं। दो हजार किलोमीटर तक मार करने वाली मिसाइल अग्नि-2, रूस के सहयोग से तैयार की जा रही मिसाइल ब्रह्मोस, अत्याधुनिक हल्के हेलीकाॅप्टर (एएलएच), हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए), मल्टी बैरल राॅकेट सिस्टम पिनाक, एंटी टैंक मिसाइल नाग, मानव रहित विमान निशांत तथा सुखोई विमान देश के लिए बड़ी उपलब्धि साबित हांेगे, इसमें कोई शक नहीं है। इसके अलावा नए हथियारों का परीक्षण तथा उनके निर्माण के लिए रूस तथा अमेरिका के साथ समझौते किए गए हैं।
यही नहीं, सेना में कार्यरत और सेवानिवृत्त हो चुके लोगों के लिए भी विभिन्न योजनाएं चालू की गई हैं। सरकार ने सैनिकों के लिए 18 हजार करोड़ रुपये की लागत से नए घर बनाने का फैसला किया है। योजना के तहत चार साल में पूरी होने वाली इस योजना के पहले चरण में 61,658 घर बनाए जाएंगे। इसके अलावा 15 लाख रिटायर्ड सैनिकों के लिए स्वास्थ्य योजना शुरू की गई है। विश्व के सबसे ऊंचे युद्ध स्थल सियाचिन में तैनात जवानों के वेतन-भत्ते में भी बढ़ोत्तरी कर सरकार ने यह संकेत दिया है कि वह देश की रक्षा पंक्ति को मजबूत बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती।
रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडीज को ऐसे काम करने में ज्यादा दिलचस्पी है, जो औरों से अलग हों। इसीलिए वह कभी सुखोई में उड़ान भरते हैं, तो कभी सियाचिन की हाड़ कंपा देने वाली सरदी में सैनिकों से रूबरू होने जाते हैं। व्यक्तिगत जीवन में भी जार्ज फर्नांडीज पर आज तक लोहियावाद का असर है। वे साधारण कुर्ता पायजामा पहनते हैं जिसे रोजाना खुद धोते हैं। उनका घर सबके लिए खुला रहता है। वहां गोपनीय कुछ भी नहीं। हां, तहलका के बाद मिली धमकियों के कारण सुरक्षा व्यवस्था जरूर की गई है। पर आज भी बिना ज्यादा जांच पड़ताल के अंदर जाया जा सकता हैै। देश के अनेक सामाजिक कार्यकर्ता अक्सर श्री फर्नांडीज के घर में इस तरह फैैले पसरे मिलेंगेे मानो किसी नेता का नहीं, सामाजिक कार्यकर्ता का घर हो। यह दूसरी बात है कि घोर लोहियावादी, श्री फर्नांडीज के समझौतावाद से नाखुश हैं। उन्हें लगता है कि भाजपा के संग सरकार बनाकर श्री फर्नांडीज ने धर्मनिरपेक्षत ताकतों के साथ ठीक नहीं किया। पर श्री फर्नांडीज के अपने कारण हैं। सेना के जवानों के लिए जो कुछ ठोस काम वो आज कर पा रहे हैं, वो एक साधारण सांसद रहकर कभी नहीं कर सकते थे। वैसे भी यह जरूरी नहीं कि जो जवानी में आग उगलने वाला वक्ता या क्रातिकारी रहा हो, वो बुढ़ापे तक उसी तेवर के साथ जी सके। समय और अनुभव व्यक्ति को बहुत कुछ सिखा देता है। उसकी दृष्टि ज्यादा परिपक्व और व्यवहारिक हो जाती है। हो सकता है कि श्री फर्नांडीज को लगा हो कि मात्र धर्मनिरपेक्षता का बैनर उठाकर चलने से कहीं बेहतर होगा कि वे सरकार का हिस्सा बनें। वैसे भी धर्मनिरपेक्षता का बैनर उठाने वाले बहुत से लोग राष्ट्रहित के अन्य दूसरे मामलों पर जिस तरह की खतरनाक खामोशी साध लेते हैं, उससे उनकी नैतिकता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। जर्मनी की एक कहावत है ‘कि जब आप मुट्ठी भींचकर एक उंगली उठाकर सामने वाले पर दोषारोपण करते हैं तो तीन उंगलियों आपकी तरफ स्वतः ही उठ जाती हैं और वे वैसे ही सवाल आपसे भी पूछती हैं’। वे पूछती हैं कि जो आरोप तुम सामने वाले पर लगा रहे हो क्या तुम खुद उस दोष से मुक्त हो? अक्सर जवाब होगा, नहीं। अगर यह बात है तो फिर जार्ज फर्नांडीज पर उंगली उठाने वालों को उनके सद्गुणों को भी सराहना चाहिए। इसका अर्थ ये नहीं कि उनके किसी गलत काम पर टिप्पणी न की जाए, पर यह भी ठीक नहीं कि एक ही बात को लेकर व्यक्ति के पूरे कृतित्व को अनदेखा कर दिया जाए।
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