कुछ हफ्ते पहले टीवी समाचार चैनलों पर मुंबई के एक अद्भुत अस्पताल की खबर देखने को मिली। उसमें यह नहीं बताया गया था कि अस्पताल कहां स्थित हैं। पिछले हफ्ते मुंबई में इस अस्पताल के बारे में जब पता चला तो उत्सुकतावश इसे देखने गया। देखकर इतनी सुखद अनुभूति हुई कि उसे पाठकों से बांटने की इच्छा हुई। विश्व के तमाम देशों का मैंने भ्रमण किया है। पर ऐसा अस्पताल आज तक नहीं देखा। मुंबई की सीमा के बाहर थाणा जिले में मीरा रोड पर स्थित यह अस्पताल सारे देश के चिकित्सकों के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा का केन्द्र है। हर डाक्टर को कम से कम एक बार इस अस्पताल को देखने जरूर जाना चाहिए।
क्या आपने दुनिया में कोई ऐसा अस्पताल देखा है जहां अस्पताल की एक विशेष किस्म की गंध या दुर्गंध न आती हो ? पर इस अस्पताल में सबसे पहला अजूबा तो यही है कि अस्पताल की दवाइयों की दुर्गंध की बजाए पूरे अस्पताल में एक मनमोहक सुगंध आती है। इसका कारण यहां की बहुत उच्च कोटि की सफाई व्यवस्था तो है ही पर असली कारण ये है कि भाक्तिवेदांत नाम के इस अस्पताल की सारी संरचना और व्यवस्था एक मंदिर के रूप में की गई है। यूं यहां सवा सौ से ज्यादा डाक्टर और चार सौ के करीब नर्स और कंम्पाउंडर हैं और एलोपैथी, नैचुरोपैथी आदि से जुड़ी चिकित्सा पद्धतियों के अनुरूप तमाम आधुनिक यंत्र एवं उपकरण मौजूद हैं। अस्पताल के संस्थापक श्री राधानाथ गोस्वामी महाराज का अपने शिष्य डाक्टरों को यह स्पष्ट निर्देश रहा है कि मरीजों के तन के इलाज के साथ ही उनकी आत्मा का भी इलाज किया जाए। इसीलिए इस आधुनिक अस्पताल का निर्माण एक मंदिर जैसी आकृति का किया गया है। अस्पताल में घुसते ही सुंदर बाग-बगीचे के साथ स्वागत हाॅल के बीचों-बीच विराजी भक्तिवेदांत स्वामी की सजीव सी प्रतिमा आगंतुकों का मन मोह लेती है। हर सुबह अस्पताल के डाक्टर, कर्मचारी और नर्स आदि इस प्रतिमा के चारों ओर खड़े होकर सामुहिक प्रार्थना करते हैं। अस्पताल के किसी भी कोने में आप चले जाइए, चाहे मरीज का कमरा हो, चाहे आप्रेशन थिएटर, चाहे कैफिटेरिया हो या लिफ्ट, चाहे स्वागत कक्ष हो या दवा खरीदने वालों की लंबी कतार, हरेक के कानों में, हर समय हरे कृष्ण महामंत्र सुनाई देती है। पूरे अस्पताल में हर कोने में स्पीकर लगे हैं। मरीज या उसके तीमारदारों को दो विकल्प हैं- या तो वे भजन सुने या आध्यात्मिक प्रवचन।
अस्पताल के ज्यादातर कर्मचारी माथे पर वैष्णव तिलक लगाकर रहते हैं और खाली समय में या तो जप करते हैं या गीता जैसे आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन। किसी भी मरीज को मांसाहार या अंडा आदि खाने की सलाह नहीं दी जाती। इसलिए अस्पताल की कैंटीन में बननेवाला सभी भोजन पहले भगवान को अर्पित किया जाता है और फिर उसे खाया जाता है। मरणासन्न लोगों को उनके अंत समय पर अस्पताल की स्प्रीचुअल केयर यूनिट के सुपूर्द कर दिया जाता है। इस यूनिट के सदस्य डाक्टर और नर्से उस मरणासन्न व्यक्ति को तुलसी और गंगाजल दे कर गीता पढ़कर सुनाते हैं।
चूंकि इस अस्पताल में आने वाले मरीजों की एक बहुत बड़ी संख्या मुसलमानों की है इसलिए ऐसा करने से पहले हर धर्म के तीमारदारों को अपने धर्मानुसार आचरण करने की छूट होतीे है। यानी मुसलमान चाहे तो अपने मरीज के पास बैठ कर कुरान पढ़ता रहे और ईसाई बाइबल। आश्चर्य की बात ये है कि अस्पताल के डाक्टर, नर्सों की विनम्रता देखकर और भक्तिमय व्यवहार देखकर मुसलमान तीमारदार तक यही कहते हैं कि अगर उनके मरीज को तुलसी, गंगाजल दिया जाता है या उसे गीता सुनाई जाती है तो इसमें उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी।
पिछले दिनों उसी इलाके की एक मुसलमान लड़की रूबीना ने आत्महत्या का प्रयास किया। उसे 90 फीसदी जली हुई हालत में अस्पताल लाया गया। अस्पताल वालों ने उसके घर वालों को साफ बता दिया कि ये लड़की दो दिन से ज्यादा जिंदा नहीं रहेगी। आप इसके पास बैठकर कुरान शरीफ का पाठ करें। उन्हीं की अनुमति से अस्पताल वालों ने रूबीना के सिरहाने गीता का पाठ भी शुरू कर दिया। जब अट्ठारह अध्याय पढ़ लिए गए और कुरान का भी पाठ पूरा हो गया तो रूबीना को नींद आ गई। सुबह आंख खुलते ही उसने दुबारा गीता सुनने की इच्छा व्यक्ति की। बड़े ध्यान से उसने फिर अट्ठारह अध्याय सुने और इस तरह गीता सुनते-सुनते उसका देहांत हो गया।
इस अस्पताल के मैनेजमेंट में वे डाक्टर जुटे हैं जो अपने स्कूली जीवन से ही निर्धन लोगों के बीच जाकर स्वास्थ्य चेतना का काम करते आए थे। इन्हीं के मुखिया डाक्टर विश्वरूप का कहना है कि हम शरीर का इलाज तो करते ही हैं- आत्मा का भी इलाज करते हैं, इसलिए हमारे यहां आने वाले मरीज न सिर्फ प्रसन्नचित्त रहते हैं बल्कि उनके स्वास्थ्य में भी तेजी से सुधार होता है। जिसकी आत्मा ही बीमार है यानी जो हरि से विमुख है और भोगों में लिप्त है वो कितना भी इलाज कर ले तब तक ठीक नहीं हो सकता जब तक उसे आध्यात्मिक खुराक न मिले। यूं तो अस्पताल के भीतर बलदेव, सुभद्रा और जगन्नाथ जी का सुंदर मंदिर है। पर जो मरीज पलंग से उठकर मंदिर नहीं जा सकते उन पर कृपा करने के लिए भगवान जगन्नाथ खुद हर रोज उनके पलंग तक आते हैं। यह अत्यंत रोचक दृश्य होता है। उड़ीसा में तो साल में एक बार ही जगन्नाथ जी की सवारी निकलती है। जबकि यहां हर शाम 6 बजे जगन्नाथ जी की सवारी अस्पताल के भीतर निकली है। यह सवारी एक ट्रालीनुमा रथ पर सवार होती है और नर्सें इस छोटे से रथ को धकेलती हुई हर मरीज के विस्तर तक आती हैं। मरीज को एक फूल देती हैं जिसे वह जगन्नाथ जी पर चढ़ाता है और फिर उसे प्रसाद मिलता है। इसी तरह यह रथ अस्पताल के हर मरीज तक जाता है। इससे मरीजों को अत्यंत सुख की अनुभूति होती है। गुजरात का भूंकप हो या मुंबई की झुग्गी-झोपड़ी ऐसे सभी क्षेत्रों में जाकर भक्तिवेदांत अस्पताल के डाक्टर गरीबों की निस्वार्थ सेवा करते हैं। इस अस्पताल में मेडिकल साइंस से जुड़ी सभी आधुनिक मशीने और डाक्टर मौजूद हैं फिर भी यह अस्पताल नहीं मंदिर ही लगता है। एक ऐसा मंदिर जहां जाकर बीमारी अपने आप पीछा छोड़ देती है।
मेडिकल व्यवसाय में आजकल कमीशन की प्रथा काफी आम बात हो गई है। हर मरीज को डाक्टर तमाम तरह के टेस्ट करने के लिए भेज देते हैं। इससे जो बिल बनता है उसका एक मोटा कमीशन डाक्टरों को मिलता है। किंतु भक्तिवेदांत अस्पताल के सभी डाक्टर इस नीच कर्म से पूरी तरह मुक्त हैं। वे चिकित्सा व्यवसाय को पेशा नहीं सेवा का माध्यम मानते हैं। उनके चेहरों पर सदैव प्रसन्नता और संतोष का भाव झलकता है। इस अस्पताल में इलाज कराने वाला हर मरीज और उसका परिवार अस्पताल की व्यवस्था और सेवा से इतना अभिभूत हो जाता है कि ठीक होने के बाद भी अस्पताल से नियमित संपर्क बनाए रखता है। ऐसे सभी ठीक हुए मरीज अपने घर जाकर भी आध्यात्मिक कार्यक्रम चालू रखते हैं और हर महीने अस्पताल में अपना मिलन आयोजित करके खुद के और संसार के सुख के कामना के लिए भक्ति करते हैं।
आज के युग में अनैतिकता, भ्रष्टाचार, संवेदनशून्यता आम बात हो गई है तो अस्पताल किसी कसाइखाने का स्मरण दिलाए तो अजीब बात नहीं। पर यह अस्पताल नहीं एक मंदिर है। जहां जाकर जन्म-जन्मांतर के रोगों से मुक्ति मिलती हैै। यह अस्पताल नहीं तीर्थ है। हिन्दुस्तान के हर डाक्टर को इस तीर्थ का दर्शन करने जरूर जाना चाहिए। इससे उन्हें सद्कार्य की प्रेरणा मिलेगी और समाज का अकल्पनीय लाभ होगा। आज जब यह माना जा रहा है कि शहरों में ज्यादातर लोग मानसिक तनाव का शिकार होते जा रहे हैं और यही तनाव बीमारियों को जन्म दे रहा है तो ऐसे में जब मेडिकल इलाज के साथ आध्यात्मिकता जुड़ जाती है तो मरीज का मन-मस्तिष्क दोनों स्वस्थ्य हो जाते है। इसलिए ऐसा अस्पताल अंधकार के बीच में एक दीए की तरह जगमगा रहा है।
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