महाभारत में एक रोचक प्रसंग आता है। जब पांडव वन में प्यासे भटक रहे थे तब सरोवर के निकट यक्ष ने उनसे कुछ प्रश्न किए थे। जिसमें एक प्रश्न था, ‘संसार में सबसे आश्चर्यजनक बात क्या है ?’ युधिष्ठिर महाराज ने उत्तर दिया, ‘हम रोज लोगों को मृत्यु के मुंह में जाता हुआ देखते हैं फिर भी इस भुलावे में रहते हैं कि हमारी यह गति नहीं होगी।’ ठीक वैसे ही जैसे इस देश के मतदाता हर चुनाव के बाद राजनेताओं के झूठे वायदों से ठगे जाते हैं। फिर भी जब अगला चुनाव आता है तो पुरानी बाते भूल जाते हैं और राजनेताओं के नए जाल में फंस जाते हैं। राजनेता जनता की यह कमजोरी अच्छी तरह पहचान गए हैं इसलिए हर चुनाव में उसे मूर्ख बनाने के लिए कोई न कोई नया फार्मूला ढूंढ ही लाते हैं और उसे इस तरह पेश करते हैं मानो इससे बेहतर विकल्प उनके पास कोई दूसरा है ही नहीं। हालांकि उनके इस नए फार्मूले में नया कुछ भी नहीं होता। कहावत है कि, ‘नई बोतल में पुरानी शराब।’ ठीक वैसे ही जैसे डिटर्जेंट साबुन के निर्माता उसी साबुन या पाउडर के विज्ञापन में हर बार एक नया शब्द जोड़ देते हैं। जैसे ‘नया,’ ‘ज्यादा पावर वाला’ वगैरह वगैरह। जबकि साबुन वही पुराना होता है केवल उसका रंग और पैकिंग बदल जाती है।
गुजरात के मतदाता इतने मूर्ख नहीं कि उन्हें कोई भी बहका कर ले जाए। आखिर को गुजरात हजारों साल से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केंद्र रहा है। गुजरात का बहुसंख्यक समाज व्यापारिक बुद्धि और चातुर्य से भरा हुआ है। छोटी सी दुकान चलाने वाला दुकानदार भी ग्राहक के हाव-भाव, चाल-ढाल और बातचीत से अंदाजा लगा लेता है कि ये ग्राहक कुछ खरीदेगा कि नहीं या उसकी वृत्ति कैसी है? पर गुजरात के लोग सिर्फ छोटे दुकानदार नहीं हैं वे तो सिंधुघाटी की सभ्यता के काल से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करते आए हैं और आज भी कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करने वाले को विभिन्न भौगोलिक, सांस्कृति और आर्थिक परिवेशों के व्यापारियों से विनिमय करना पड़ता है। इससे उनकी दुनिया के बारे में समझ आम भारतीयों से कहीं ज्यादा होती है। वे उड़ती चिडि़या के पर देख कर उसका व्यक्तित्व जान सकते हैं। लोगों को पहचानने में गुजरातियों की समझ काफी तीक्ष्ण होती है। फिर भला राजनेता उनकी पारखी निगाहों से कैसे बच सकते हैं ? पर ये राजनेता शायद यह नहीं जानते या ये मानते हैं कि हम चाहे जो भी करें जनता के पास विकल्प ही क्या है ? वो हार कर हमारी ही तो शरण में आएगी। इसलिए हर चुनाव के पहले राजनेता झूठे आश्वासनों की बौछार कर देते हैं। यह जानते हुए भी कि वे उन्हें कभी पूरा नहीं कर पाएंगे। ऐसे मुद्दे उठाते हैं जिनसे लोगों की भावनाएं भड़क जाएं और उनका काम बन जाए। पर गुजरात की जनता ऐसी मूर्ख नहीं है। वह सब जानती है। इसलिए उसे बहुत परिपक्वता का परिचय देना होगा। आज श्री नरेन्द्र मोदी और श्री शंकरसिह बाघेला व इनके दलों के अन्य राजनेता और कार्यकर्ता जनता के बीच जिन भावनात्मक सवालों को लेकर अपना अभियान छेेड़े हुए हैं उससे न तो गुजरातियों को कोई लाभ होने वाला है और शेष भारत को। काम वो होना चाहिए जिससे जनता भी खुश हो और देश भी आगे बढ़े। इसलिए इन दोनों राजनेताओं और इनसे जुड़े दलों के कार्यकर्ताओं को उन मुद्दों को उठाना चाहिए जिनसे जनता को वास्तविक लाभ हो। दोनों राजनेता ऐसे बुनियादी सवालों को उठाएं इसके लिए गुजरात की जनता को इन्हें मजबूर करना चाहिए।
सब जानते हैं कि भारत में धन और संसाधनों की कोई कमी नहीं है। फिर भी अगर बहुसंख्यक लोगों को गरीबी और बेरोजगारी में जीना पड़ रहा है तो उसके लिए जिम्मेदार कौन है ? प्रशासन में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार। जिसे समाप्त किए बिना न देश का भला होगा न गुजरात का। पर राजनेता भ्रष्टाचार के सवाल पर शोर तब ही मचाते हैं जब उनका विरोधी दल इसमें फंसता है। सिर्फ शोर मचाते हैं पर उसे पकड़वाना या सजा दिलवाना नहीं चाहते। क्योंकि वो जानते हैं कि आज जो आरोप उनके विरोधी पर लग रहा है कल वो उन पर भी लग सकता है। इसलिए शोर मचा कर राजनैतिक लाभ तो कमा लेते हैं लेकिन जब सजा देने की बात आती है तो सब एकजुट होकर एक दूसरे की मदद करते हैं। जनता ठगी जाती है। इस मामले में दो ताजा उदाहारण काफी रहेंगे। हर घोटाले पर अपने विरोधियों के विरूद्ध शोर मचाने वाले राजनेता जैन हवाला कांड की जांच में हुई बेईमानी के खिलाफ आज तक नहीं बोले। क्योंकि सभी प्रमुख दल के नेता इसमें शामिल थे।
पिछले दिनों जब सर्वोच्च न्यायलय और चुनाव आयोग ने राजनीति में अपराध और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए उम्मीदवारों की सुपात्रता सुनिश्चित करने वाले कानून बनाने पर जोर दिया तो इंका और भाजपा ने अन्य दलों के साथ मिल कर इन सुधारों का विरोध किया। ऐसा कयों किया ? गुजरात की जनता को श्री वाघेला और श्री मोदी से यह भी पूछना चाहिए कि उनके दलों ने कश्मीर के आतंकवाद से जुड़े जैन हवाला कांड की जांच की मांग आज तक क्यों नहीं की ? क्या उन्हें देश की सुरक्षा की कोई चिंता नहीं है ? क्या वे अब इस मांग को करने को तैयार हैं ? उनसे यह भी पूछना चाहिए कि ऐनराॅन जैसी महाभ्रष्ट और जनविरोधी बिजली कंपनी को जनता के तमाम विरोध और चेतावनियों के बावजूद भारत लाने में दोनों ही दलों ने इतनी रूचि क्यों ली ? जबकि सत्ता में आने से पहले भाजपा उसका विरोध कर रही थी। अब जबकि ऐनराॅन के अधिकारियों ने अमरिका की सीनेट के सामने यह खुलासा कर दिया है कि इस काम के लिए उन्होंने भारत में पचासों करोड़ रूपए की रिश्वते बांटी तो क्या श्री मोदी और श्री वाघेला जनता को इस घोटाले की असलियत बताएंगे ? गुजरात की जनता को हर शहर में आम सभाएं बुलाकर प्रस्ताव पास करने चाहिए और श्री वाघेला व श्री मोदी से दो टूक कह देना चाहिए कि यदि उनके दल गुजरात के मतदाताओं के वोट लेना चाहते हैं तो गुजरात के चुनाव से पहले इन दोनों दलों के बड़े नेताओं को संसद का विशेष अधिवेशन बुलाकर चुनाव सुधारों के संबंध में चुनाव आयोग की सिफारिशों वाला विधेयक बिना लाग लपेट के फौरन पारित कर देना चाहिए ताकि भविष्य में चुनावों से अपराधियों और अवैध धन का प्रभुत्व समाप्त हो सके। इन दोनों राजनेताओं की जनसभाओं और संवाददाता सम्मेलनों में बार-बार ऐसे सवाल उठाए जाने चाहिए। अर्जेंटिना जैसे दुनिया के कई देश राजनैतिक औेर प्रशासनिक भ्रष्टाचार के चलते आज दिवालिया हो चुके हैं। कल तक संपन्नता का जीवन भोग रहे इन देशों के नागरिकों ने कभी सोचा भी न था कि कोठी, बंगले, कार होने के बावजूद एक दिन ऐसा भी आएगा जब उन्हें पेट की आग बुझाने के लिए दुकानें लूटनी पड़ेंगी। अगर द्वारकाधीश भगवान् श्रीकृष्ण, महात्मा गांधी और सरदार पटेल की कर्मभूमि गुजरात के नागरिकों को इस देश से जरा भी प्यार है तो उनका यह फर्ज है कि वे श्री मोदी व श्री वाघेला को कहीं भी भाषण देने से पहले ऐसे बुनियादी सवालों के सार्वजनिक मंचों से उत्तर देने को मजबूर करें। उनसे पूछें कि जब गुजरात के किसानों को और शहरों की बस्तियों में रहने वाले लोगों को पानी और बिजली की इतनी भारी किल्लत रहती है तो यह कहां तक उचित है कि गुजरात के राजनेता और अधिकारी वातानुकूलित कमरों में ऐश करें, छप्पनभोग खाएं, स्वीमिंगपूलों मंे जल क्रीड़ाएं करें और गुजरात की जनता के खून-पसीने कीे कमाई को हवाई यात्राओं में उड़ाते फिरें। सरकारी खर्च में भारी कटौती किए बिना जनता की सुविधाओं के विस्तार के लिए धन आ ही नहीं सकता। फिर चाहे अपनी सड़क मरम्मत करानी हो या अस्पतालों में दवा का इंतजाम करना हो। हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि कोई भी व्यापार तब तक कामयाब नहीं होता जब तक कि प्रशासनिक खर्चों पर नियंत्रण न रखा जाए। एक व्यापार के साल भर के सारे खर्चों में प्रशासनिक खर्च 10-15 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। जबकि आज भारत में केंद्र और प्रातीय सरकारों का खर्चा 60 से 80 फीसदी तक है। जनता जो कर देती है उसका एक बहुत बड़ा हिस्सा राजनेओं और नौकरशाही के रख-रखाव पर ही खर्च हो जाता है और जो विकास के लिए धन बचता है उसका एक बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार में चला जाता है। जनता के दुख-दर्द दूर करने को जो धन बचता है वह ऊंट के मुंह में जीरा बराबर भी नहीं होता। फिर तनख्वाहें बांटने और विकास के काम चलाने के लिए विश्व बैंक जैसी संस्थाओं से भारी ब्याज दर पर कर्जा लेना पड़ता है। शुरू में लगता है कि इस कर्जें से सब दुख दूर हो जाएंगे। शायद हो भी जाते अगर इसका सदुपयोग होता। पर अनुभव बताता है कि इस पैसे का बहुत बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। ब्याज व कर्ज चुकाने के लिए पेट्रोल व बिजली की कीमतें बढ़ा कर और कर लगा कर आम जनता से वसूली की जाती है। अर्जेंटिना डेढ सौ अरब डालर के कर्ज में फंस कर अपने को दिवालिया घोषित कर चुका है। एक महीने में चार राष्ट्रपति बदल गए। देश की राजधानी ब्यूनोस आयर्स तक में खाने-पीने की चीजें उपलब्ध नहीं हैं और धनी लोग भी लूट-पाट करने को मजबूर हो गए हैं। क्या श्री मोदी और श्री वाघेला ऐसे बुनियादी सवालों को उठाएंगे ? क्या गुजरात की जनता यात्राओं और भड़काऊं नारों में उलझ कर सच्चाई से आंख मूंद लेगी ? क्या भारत इसी तरह लुटता और बर्बाद होता रहेगा ? ऐसे तमाम सवालों का जवाब गुजरात की जनता को देना है। अगर वो समझदारी से काम लेती है और श्री मोदी और श्री वाघेला को इस बात के लिए मजबूर करती है कि भावनाएं भड़काने की बजाए असली मुद्दों पर बात करें तब तो भारत में परिवर्तन पर हवा बह सकती है। अगर जनता ऐसा नहीं करती तो न सिर्फ चुनाव के बाद गुजरात के लोग पछताएंगे बल्कि शेष भारत में भी बेहतरी के लिए बदलाव की हवा कभी कहीं से उठ नहीं पाएगी। फिर हम दोष किसे देंगे ?