मुल्क के गलत निजाम और बिगड़े हालात के विरूद्ध जाने तथा इन्हें बदलने की कोशिश करने का साहस बहुत ही कम व्यक्तियों मे होता है। आजादी से पहले ऐसे हिम्मतवाले कारनामें करने वालों को विद्रोही करार दिया जाता था और पत्रकार भी विद्रोही की श्रेणी में ही आते थे। अंग्रेज जानते थे कि विद्रोही उनके लिए अत्यंत खतरनाक हैं क्यांेकि वे आग पैदा कर रहे हैं, विद्रोह को हवा दे रहे हैं। इसलिए वे शुरू से ही इस चिंगारी को कुचल डालने की कोशिश मे लगे रहते थे। आजादी के बाद परिस्थितियांे में कुछ बदलाव जरूर आया है तथा पत्रकारिता के मायने व उद्देश्य भी बदल गए हैं मगर दुव्र्यवस्थाओं का विरोध करने वाले को विद्रोही करार देकर दबाने के प्रयासों में आज भी कोई कमी नहीं आई है, खासकर देश के छोटे शहरों और पिछड़े इलाकों में। परिस्थितियों तथा दुव्र्यवस्थाओं का विरोध करने की हिम्मत जुटाने वाले पत्रकार को धमकियां मिलना अथवा जानलेवा हमलों का शिकार होना हर इलाके में भले ही आम बात न हो मगर पंजाब में समझौता न करने तथा समाजहित को महत्व देने वाले पत्रकारों की स्थिति कुछ ज्यादा ही बदत्तर नजर आ रही है।
पंजाब के ही कुछ जुझारू पत्रकार यह देख कर काफी दुखी हैं कि उनके सूबे में बहुत से पत्रकार केवल सरकार के जनसंपर्क का जरिया बनते जा रहे हैं। कुछ अन्य राज्यों की तरह ही पंजाब में भी जो पत्रकार मंत्रियों के बयान तथा तारीफें बढ़-चढ़ कर छापते हंै उन्हें तमाम तरह की सरकारी एवं गैर सरकारी नियामतें बख्शी जाती है। जबकि सरकार की कुनीतियों तथा मंत्रियों व विधायकों की घपलेबाजियों का भंडाफोड़ करने वाले पत्रकारों को प्रायः तरह-तरह की मुसीबतों से गुजरना पड़ता है। पंजाब पुलिस भी सरकार की पिट्ठू बन कर ऐसे जुझारू पत्रकारों को प्रताडि़त करने का काम बेखौफ करती है। अभी हाल ही में एक ऐसे ही नौजवान पत्रकार के साथ घटे हादसों को सुनकर बहुत तकलीफ हुई। कहते हैं कि इंसान की आंखें उसके दिल का आइना होती हैं। इस नौजवान पत्रकार की आंखों में इस मुल्क के तेजी से बिगड़ते निजाम को लेकर तमाम सवाल तैर रहे हैं। उसके दिल में तमन्ना है कि वो हालात सुधारने का जरिया बने। शहीदे आजम भगत सिंह की सरजमी पर पैदा होने वाला यह नौजवान जानता है कि मुल्क की खिदमत और इबादत का रास्ता फूलों से नहीं कांटों से भरा होता है। फिर भी वह इस रास्ते पर ही चलना चाहता है। उसकी इसी जिद ने उसे न सिर्फ कई बार जानलेवा हमलों का शिकार बनाया बल्कि कई महीनों के लिए जेल के सींखचों के पीछे बंद करवा दिया।
पंजाब के एक छोटे से नगर के इस युवा पत्रकार से मेरा संपर्क जब खतों की मार्फत हुआ तब वह 18 वर्ष का था आज 26 वर्ष का है। पर इतनी कम उम्र में ही उसमें कुछ कर गुजरने का जज्बा था। बाद के वर्षों में इधर-उधर से खबर मिलती रही कि इस नौजवान ने पत्रकारिता के क्षेत्र में छोटी उम्र में ही नाम कमा लिया। इसकी भावुकता व अपने पेशे के प्रति ईमानदारी का उदाहरण देने के लिए एक घटना का जिक्र करना ही काफी होगा । पंजाब के जिस छोटे से समाचार पत्र के माध्यम से इसने पत्रकारिता में कदम रखा था उससे उसने जल्दी ही इसलिए इस्तीफा दे दिया क्योंकि अखबार के संपादक ने एक तत्कालीन राज्यमंत्री के भ्रष्टाचार को उजागर करने वाला उसका एक तथ्यपरख व मयसबूत समाचार प्रकाशित करने से इंकार कर दिया। अपनी ऐसी जिद के चलते वह ज्यादा देर तक एक अखबार में टिक नहीं सका। कुछ समय विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता करने के बाद जल्दी ही फिर एक अन्य हिंदी दैनिक के जरिए पत्रकारिता में अपना नाम रोशन करने लगा।
समाज के लिए कुछ करने की भावनाएं इसकी कलम में स्पष्ट झलकती थी। जबकि पंजाब पुलिस की गुंडागर्दी तथा भ्रष्टाचार इस पत्रकार का प्रमुख निशाना रहे। वर्दी में शराब पीते पुलिसकर्मियों के चित्र खींचकर प्रकाशित करवाना, पुलिस थानों में विभिन्न केसों के लिए निश्चित रिश्वत की सूची छापना तथा स्वास्थ्य एवं अन्य विभागों के भ्रष्टाचार के विरूद्ध भी खुलकर लिखना इसे भारी पड़ा। लिहाजा पुलिस के साथ-साथ कुछ एक ताकतवर सफेदपोशों को भी इसने अपना दुश्मन बना लिया। उस पर कुल चार बार हमले हुए। एक बार तो मौत के मुंह में जाते-जाते बचा और एक बार इसके पूरे परिवार को जान से मारने की कोशिश की गई। मगर तमाम घटनाक्रम की जांच करने के बाद भी हमलावरों के विरूद्ध पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। जैसा आमतौर पर होता है कि जब कोई व्यक्ति बिकने, झुकने या डरने से मना कर देता है तो उसका चरित्रहनन करना ही हुकमरानों की कोशिश होती है। उसे विदेशी खुफिया एजेंसी का एजेंट बता दो, देशद्रोही बता दो, किसी झूठे मुकदमें में फंसा दो या उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगा कर उसे बदनाम कर दो। शायद ऐसा ही कुछ इस नौजवान के साथ हुआ। जब उसके इलाके के ताकतवर लोग उसे खरीद नहीं पाए तो इस युवा पत्रकार के विरूद्ध एक औरत को छेड़ने के आरोप में केस दर्ज कर दिया गया। जबकि पुलिस अच्छी तरह से जानती थी कि यह औरत इस पत्रकार पर हमला करने वालों में से ही एक की पत्नी थी। हमलावरों को बचाने में जुटी पुलिस का ऐसा भ्रष्ट रवैया देखकर इस पत्रकार ने अपने परिवार पर हुए हमले के संबंध में अदालत में केस दायर कर दिए। इससे बौखलाई पुलिस और वहां के हुक्मरानों ने इस जुझारू पत्रकार को फंसाने का एक और तरीका ईजाद किया। 23 वर्षीय इस पत्रकार के खिलाफ 48 वर्षीय यानी इसकी मां से भी ज्यादा उम्र की एक अन्य औरत से अदालत में याचिका दायर करवाई गई जिसमें उसने शिकायत की कि इस पत्रकार ने उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की थी। ऐसा नहीं है कि 23 वर्ष का नौजवान 48 वर्ष की महिला के साथ बलात्कार नहीं कर सकता। पर माना जाता है कि कानून की आंख और कान ज्यादा चैकन्ने होते हैं। कानूनविद और पुलिस अगर ईमानदारी से पूरे हालात की सिलसिलेवार जांच करें तो यह पता चल जाता है कि आरोपी ने वास्तव में जुर्म किया है या उसे झूठे ही फंसाया जा रहा है। पर शायद ऐसी किस्मत इस नौजवान पत्रकार की नहीं थी। उसे इस छोटी सी उम्र में भरपूर यातनाएं दी गई पर इसकी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी कि इस पत्रकार ने इन सबके बावजूद भी हार नहीं मानी। शायद उसे विश्वास था कि अदालत से उसे एक दिन इंसाफ जरूर मिलेगा।
इसी बीच पता चला कि इस नौजवान को निचली अदालत ने एक वर्ष की कैद की सजा सुना दी। इतना ही कहर काफी न था कि एक और लड़की का अपहरण और बलात्कार करने के आरोप में इसे ही नहीं बल्कि इसके पूरे परिवार को भी फंसा दिया गया हैे। ऐसा यह नहीं कि कोई नौजवान गलत नहीं हो सकता मगर तथ्यों को नजरंदाज करना नाइंसाफी होगी। भुक्तभोगी यह जानते हैं कि पत्रकारिता के महंत बन कर बैठे दलाल किसी छोकरे पत्रकार की जाबांजी को बर्दाश्त नहीं कर पाते। उसे न सिर्फ हतोत्साहित करते हैं बल्कि अपने गाॅड-फादरों के इशारांे पर बदनाम करने से भी बाज नहीं आते। ऐसे दलालनुमा पत्रकार जुझारू पत्रकारों को अक्सर ब्लैकमेलर कह कर बदनाम करने की कोशिश करते हैं। पर सूरज को बादल हमेशा ढक कर नहीं रख सकते। सच्चाई सामने आ ही जाती है। इस पत्रकार का परिवार आज भी एक किराए के मकान में रह रहा है। औरत को छेड़ने के जिस आरोप में इसे एक वर्ष की सजा सुनाई गई है उसके बारे में मात्र इतनी टिप्पणी काफी है कि इस केस मे कोई स्वतंत्र गवाही नहीं है। दोनों गवाहियां उक्त औरत के रिश्तेदारों यानी पति और भाभी ने ही दीं थीं। यह आश्चर्यजनक बात है कि उसी औरत के पति के विरूद्ध, इसी पत्रकार के परिवार पर हमले के आरोप में चल रहे अदालती केसों को भी नजरंदाज किया गया।
मानवाधिकारों व पत्रकारों की स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले पंजाब के वकीलों, पत्रकारों, समाजकर्मियों व बुद्धिजीवियों के लिए इस पत्रकार की कहानी एक चुनौती है। अगर उनके सीने में इंसानी दिल धड़कता है तो उन्हें इस मामले की निष्पक्ष जांच करनी चाहिए। यदि उनकी जांच से यह सिद्ध हो जाए कि इस नौजवान पत्रकार के साथ वाकई नाइंसाफी की गई है या आज भी की जा रही है तो उन्हें इसकी रिपोर्ट छापकर इस पर हल्ला मचाना चाहिए। इस पत्रकार के साथ ही नहीं बल्कि पंजाब के कई शहरों में ऐसे हादसे हुए हैं, जरूरत उन सबकी जांच करने की है। ताकि न सिर्फ बेवजह यातना भोग रहे ये नौजवान पत्रकार चैन से जी सकें बल्कि भविष्य में ईमानदार और जुझारू पत्रकारों का हौसला न टूटे। शहादत और वतनपरस्ती के लिए मशहूर और हम सबके आदरणीय सिख गुरूओं के रास्ते पर चलने वालों और शहीदाने वतन भगत सिंह की हिम्मत और कुर्बानी की दाद देने वालों का यह नैतिक फर्ज है कि वे पंजाब की पाक जमीन को ऐसी नाइ्रंसाफी का ग्रहण न लगने दें। खासतौर पर समर्पित पत्रकारों की हौसला आफजाई करना उनका धर्म है क्योंकि पत्रकारिता लोकतंत्र का चैथा स्तंभ है और आज इसे तोड़ने की गहरी साजिश की जा रही है।
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