नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक हरगोविन्द खुराना और चन्द्रशेखर की बेकद्री करके उन्हें अमरीका की गोद में फेंकनेवाली भारतीय नौकरशाही और विज्ञान माफिया आज भी बदला नहीं है। पिछले कुछ महीनों से यह माफिया सूर्य प्रकाश कपूर नाम के एक ऐसे वैज्ञानिक को फुटबाल की तरह उछाल रहा है जिसके शोध को देखकर खुद भारत के बड़े-बड़े वैज्ञानिक ही नहीं बल्कि मानव संसाधन विकास मंत्री डाॅ. मुरली मनोहर जोशी तक हैरान हैं। देश के कई प्रतिष्ठित अखबारों में श्री कपूर के अनूठे शोध की खबरे छप चुकी हैं। श्री कपूर ने चक्रवात को रोकने की तकनीकी विकसित की है। उनकी इस खोज का मूल्यांकन और उस पर गम्भीर चर्चा करने वालों में भारत सरकार के सर्वोच्च वैज्ञानिक संस्थान जैसे वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सी.एस.आई.आर.), राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, गोवा, सीमैक्स, व महासागर विकास विभाग आदि शामिल हैं।
दुनिया में प्राकृतिक आपदाओं से जो तबाही होती है उसका 64 फीसदी से ज्यादा केवल चक्रवात से होती है। 1970 में बांग्ला देश में 3 लाख लोग मरे थे। अक्टूबर 1999 में उड़ीसा में आये चक्रवात से 1 लाख लोग व 5 लाख पशु मरे, आधा उड़ीसा पूरी तरह ध्वस्त हो गया, पेड़ तक नहीं बचे और कुल नुकसान 7 हजार करोड़ रूपये का हुआ। चक्रवात की मार केवल गरीब देशों पर पड़ती हो ऐसा नहीं। दुनिया का धनी और विकसित देश अमरीका तक चक्रवात की मार लगातार सहता रहता है। 21 अगस्त 1992 को अमरीका के फ्लोरिडा इलाके में 320 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से आने वाले चक्रवात से वहाँ 1200 अरब रूपये की तबाही हुई थी। फिर भी अमरीका समेत कोई भी देश आजतक चक्रवात को रोकने की तकनीकी विकसित नहीं कर पाया।
भारत के एक भौतिक वैज्ञानिक सूर्य प्रकाश कपूर ने पिछले 7 वर्ष के अथक परिश्रम के बाद चक्रवात को रोकने की नायाब तकनीकी विकसित की है। वे अपनी खोज से सम्बन्धित तमाम शंकाओं का वैज्ञानिक समाधान देश के सर्वोच्च वैज्ञानिकों व नौकरशाहों के समक्ष प्रस्तुत कर चुकेे हैं और इन सबके बीच एक आम सहमति भी बन चुकी है कि श्री कपूर के शोध पर समुद्र में जाकर प्रयोग करना घाटे का सौदा नहीं रहेगा। अपने शोध को भारत सरकार में सर्वोच्च स्तर पर स्वीकार्य बनाने की इस अग्नि परीक्षा से गुजरने के बावजूद श्री कपूर को आगे नहीं बढ़ने दिया जा रहा है। उन्हेें भारत के बडे वैज्ञानिकों द्वारा यह प्रलोभन दिया जा रहा है कि वे दो-चार करोड़ रूपया लेकर अपना शोध उन्हें बेच दें ताकि राष्ट्रीय और अन्तर्राट्रीय अवार्ड लेने के आदी ये वैज्ञानिक श्री कपूर की मेहनत के बलबूते पर अपने सीने पर तमगे लटका सकें। पर श्री कपूर बिकने को तैयार नहीं हैं। वे अपनी निगरानी व निर्देशन में ही यह प्रयोग करवा कर पूरी दुनिया को दिखा देना चाहते हैं कि भारत में आज भी अनूठी वैज्ञानिक मेधा उपलब्ध है। अफसरशाही और विज्ञान माफिया की लालफीताशाही और सौदेबाजी से आहत श्री कपूर ने स्वदेशी के समर्थक व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक श्री के.सी. सुदर्शन जी का द्वार खटखटाया। स्वयं इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि के सुदर्शन जी ने सूर्य प्रकाश कपूर के शोध पर उन्हें एक घन्टे सुना। कई बार विशेषज्ञों के साथ उनकी बैठक करवाई और जब श्री कपूर की तार्किक व प्रभावशाली प्रस्तुति से सुदर्शन जी सन्तुष्ट हो गये तो उन्होंने इस काम में काफी रुचि ली। श्री कपूर मानते हैं कि अगर सुदर्शन जी ने उनकी गुहार न सुनी होती तो नौकरशाह और विज्ञान माफिया कब का उन्हें दफन कर चुका होता। पर श्री कपूर को दुःख है कि इस सबके बावजूद भारत के नौकरशाह मामले को आगे नहीं बढ़ने दे रहे। सुदर्शन जी व डाॅ. मुरली मनोहर जोशी के बारे में उनका श्री कपूर से कहना है कि ये राजनेता तो ‘टेम्परेरी’ (अस्थाई) हैं। आज हैं कल हट जायेंगे। अपना भला चाहते हो तो दो-चार करोड़ रूपये का अनुदान लेकर घर बैठ जाओ। हम ये नहीं पूछेंगे कि तुमने इस धन का क्या किया। पर अपना शोध हमें देकर उसे भूल जाओ। इसके बावजूद श्री कपूर हताश नहीं हैं। उन्हें दैविक शक्ति पर पूरा विश्वास है। उनका कहना है कि जिस आध्यात्मिक शक्ति के बल पर उन्होंने अपने शोध में इतनी उपलब्धि प्राप्त की है वही शक्ति उनकी सहायक बनकर उनका काम आगे बढ़ायेगी।
श्री कपूर बतातेे हैं कि उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र के महासागरों के एक बड़े इलाके में सूर्य की गर्मी जमा हो जाने पर जब समुद्र की ऊपरी सतह का तापमान साढ़े छब्बीस डिग्री सेंटीगे्रट को पार कर जाता है और यदि उस स्थान पर इन्टर ट्रापिकल कन्वर्जेन्स जोन हो तभी चक्रवात बनता है। इसमें ऊपर हवाओं का सहयोग भी उसे मिलना चाहिए। शुरू में तो चक्रवात में हवा की गति 20 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से भी कम और सीमित होती है। इसकी नाभि का व्यास केवल 20 किलोमीटर ही होता है। शुरू में चक्रवात अपने उद्गम स्थल पर लगभग 48 घंटे तक खड़ा रहता है। इसके बाद बरसात से निकली गुप्त ऊष्मा के कारण इसकी नाभि का तापमान बढ़ने लगता है। जिससे वायु का दबाव नाभि के अन्दर बढ़ जाता है। नतीजतन हवा बहुत तेज गति से नाभि की तरफ खिची चली आती है और चक्रवात की तीव्रता बढ़ जाती है। इसके साथ ही चक्रवात बहती हवाओं के साथ तैरता हुआ समुद्र के किनारे की तरफ बढ़ने लगता है। इस सब प्रक्रिया में इसे एक भीषण तूफान में बदलने में 6-7 दिन लग जाते हैं। श्री कपूर का शोध यह बताता है कि अगर शुरू के 48 घंटों के भीतर ही चक्रवात के उद्गम स्थल पर उनकी तकनीकी का प्रयोग किया जाय तो चक्रवात को बढ़ने से पहले ही समाप्त किया जा सकता है।
उनका दावा है कि उनकी यह तकनीकी बड़ी सरल और सम्भव है। इसकी पे्ररणा उन्हें कैलिफोर्निया और पेरू के समुद्र तट का अध्ययन करने से मिली। जहाँ प्राकृतिक रूप से समुद्र की सौ मीटर गहराई से 8 डिग्री सेंटीगे्रट के ठन्डे पानी का चश्मा फूट पड़ता है। जो समुद्र की ऊपरी सतह के तापक्रम को 10 डिग्री सेंटीगे्रट तक घटा देता है। नतीजतन ऐसे इलाकों में कभी भी चक्रवात पैदा नहीं होता। चक्रवात रोकने के लिए श्री कपूर द्वारा विकसित तकनीकी भी कुछ इसी तरह की है। उनका दावा है कि यदि चक्रवात के उद्गम स्थल पर उसकी नाभि के बढ़े हुए तापमान को वहीं एक या दो डिग्री कम कर दिया जाय तो वह चक्रवात कभी पनप नहीं सकेगा। इसके लिए वहीं समुद्र की ऊपरी सतह से सौ मीटर नीचे बहने वाले ठन्डे पानी की पर्त से कुछ पानी खींच कर ऊपरी सतह पर चक्रवात की नाभि में छिड़क दिया जाय तो उसका तापमान साढ़े छब्बीस डिग्री सेंटंीग्रेट से घटाना सम्भव हो जायेगा। इसके लिए तीन चार पानी के जहाज, जिन पर डीजल से चलने वाले 145 मेगावाट क्षमता के पानी निकासी पम्प लगे हों, काफी होगे। चूंकि शुरू के 48 घंटों में चक्रवात की तीव्रता बेहद कम होती है इसलिए इस अभ्यास में कोई खतरा नहीं है। वैसे भी अब तो अमरीका में यू-2 नाम के ऐसे हवाई जहाज बन गये हैं जो भीषण चक्रवात की भी नाभि में जाकर आंकड़े इकट्ठे करते हैं। आम आदमी को शायद यह असम्भव लगे कि समुद्र के नीचे से ठन्डा जल खींच कर उसकी सतह पर अगर डाला भी जाय तो आखिर कितना पानी या वक्त लगेगा घ् पर श्री कपूर का कहना है कि चूंकि चक्रवात की नाभि का व्यास मात्र 20 किलोमीटर होता हैए जिसे ठन्डा करने के लिए उतना ही पानी चाहिए जितना 145 मेगावाट के पम्प 48 घंटे में खीच कर छिड़केंगे। श्री कपूर यहाँ यह भी स्पष्ट करते हैं कि जब ये पम्प इस तरह छिड़काव शुरू कर देंगे तो चक्रवात के बढ़ने की स्वभाविक प्रक्रिया में व्यवधान उत्पन्न हो जायेगा और वह क्रमशः कमजोर पड़ता जायेगा। नतीजतन न तो वह बढ़ेगा और न ही समुद्र तट की ओर चलेगा। इस तरह चक्रवात से होने वाली जान-माल की भारी तबाही रोकी जा सकेगी। चक्रवात बनने के इलाके और वर्ष में इनके बनने का समय लगभग निश्चित है। बंगाल की खाड़ी में ऐसा प्रायः अक्टूबर, नवम्बर, दिसम्बर में ही होता है। जिसकी सूचना समय रहते मिल सके इसके लिए विभिन्न देशों ने मौसम विज्ञान के 16 उपग्रह तैनात कर रखे हैं। जो इन्टरनेट पर त्वरित सूचना भेजते रहते हैं। उड़ीसा के चक्रवात की सूचना भी इसी तरह इन्टरनेट पर 5 दिन पहले ही आ गई थी। श्री कपूर का कहना है कि इन तीन महीनों में अगर डीजल पम्पों से लैस पानी के 2 जहाज अंडमान स्थित पोर्ट ब्लेयर में तैनात रहें व बाकी 2 जहाज दक्षिणी चीन सागर में पोर्ट ब्रूनाई में तैनात रहें तो चक्रवात शुरू होने की सूचना मिलते ही मौके पर मात्र 2 घंटे में पहुंच जायेंगे। पहुंचते ही इनके पम्प नीचे का ठन्डा पानी खींच कर उसके फुहारे समुद्र सतह पर चक्रवात की नाभि में फेकना शुरू कर सकते हैं। इस तरह सदियों से चली आ रही इस प्राकृतिक आपदा से बचा जा सकता है। इस पूरे अभियान पर कुल एक करोड़ रूपये का डीजल खर्च होगा। जबकि चक्रवात से तबाही और राहत कार्यों पर अरबों रूपया खर्च होता है। अगस्त का महीना समाप्त होने जा रहा है। अक्टूबर मात्र 6 हफ्ते दूर है। पर सब बातें तय हो जाने के बावजूद भारत सरकार के नौकरशाह श्री कपूर को इस प्रयोग के लिए हरी झंडी नहीं दे रहे। उधर पिछले दिनों भारत के एक अत्यन्त ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक ने पूना के इंडियन इंस्टीच्यूट आॅफ ट्रापिकल मैट्रोलाॅजी में बोलते हुए श्री कपूर के शोध को इस तरह प्रस्तुत किया मानों यह उनका मौलिक विचार हो। जाहिर है कि पिछले दो वर्षों से भारत सरकार के विभिन्न विभागों से चल रही श्री कपूर की खतो-किताबत ऊंचे स्तर के इन वैज्ञानिकों की नज़रों से कई बार गुजरी है। इसलिए श्री कपूर को और भी चिन्ता है कि कहीं उनके साथ धोखा न हो। देखना यह है कि डाॅ. मुरली मनोहर जोशी और उनके अधीन सम्बन्धित विभाग कब श्री कपूर के शोध को अमली जामा पहनाते हैं। कहीं ऐसा न हो कि पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी श्री कपूर फरियाद ही करते रह जायें और बंगाल, उड़ीसा या आन्ध्रप्रदेश फिर किसी चक्रवात के रौद्ररूप का शिकार बन जाऐं।
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