Panjab Kesari 26-11-2004 |
गले तो उनके यह भी नहीं उतर रहा कि शंकराचार्य जैसा व्यक्ति हत्या की साजिश में शामिल हो सकता है। पर जो प्रमाण पुलिस ने देश के सामने प्रस्तुत किये हैं उन्हें देखकर शक की ज्यादा गुंजाइश नहीं रहती। अलबत्ता असलियत तो पुलिस जांच पूरी होने के बाद सामने आयेगी। आयेगी भी या नहीं यह भी दाबे से नहीं कहा जा सकता। क्यों कि इस देश में अनेक राजनैतिक हत्याओं और घोटालों की जांच दशकों में भी पूरी नहीं हुई है। खुफिया एजेन्सियों का जाल पालने वाला यह गरीब देश आज तक यह भी पता नहीं लगा सका कि इसके दो प्रधानमंत्रियों श्रीमती इन्दिरा गांधी और श्रीराजीव गांधी की हत्या के पीछे कौन था? पर यह भी सही है कि जिन धार्मिक संगठनों के पास धन और वैभव के भण्डार भरते जाते हैं वहाँ भ्रष्टाचार और हत्या जैसी घटनाएँ होना कोई अनहोनी बात नहीं। हर धर्म में ऐसा होता है। भारत में भी ऐसे कई उदाहरण हैं। इस सन्दर्भ मंे स्वामी विवेकानन्द के कथन को याद करना होगा। उन्होंने कहा था कि हर धार्मिक संस्था अन्ततः पतन की ओर बढ़ती है और उसका नाश हो जाता है। आदि शंकराचार्य, प्रभु यीशु, गुरुनानक देव, गौतम बुद्ध, श्रीचैतन्य महाप्रभु आदि सब ऐसे दिव्य पुरुष थे जिन्होंने गरीबी, त्याग, तप व विरक्तता में जीवन जिया और अपनी साधगी, करुणा व प्रेम से लाखों लोगों का जीवन बदल दिया। दुर्भाग्य से चाहे गिरिजाघर हों या मसजि़दें, चर्च और या मन्दिर आज सब धन और सत्ता के केन्द्र बनते जा रहे हैं। इसीलिए उनमें नैतिक पतन भी हो रहा है और आध्यात्म से हठकर उनका दुरुपयोग भी खुलेआम हो रहा है। शंकराचार्य का काची मठ इसका अपवाद नहीं। जानकार तो यह भी कहते हैं कि मठ का तलिमनाडु की मुख्यमंत्री सुश्री जय ललिता से जो मतभेद पैदा हुआ उसकी जड़ में वह करोड़ों रूपया जो मठ के पास चढ़ावें में जमा हुआ है। सच्चाई तो केवल भगवान जानता है या जांच एजेन्सियाँ।
भगवद्गीता में आस्था रखने वाला हर हिन्दू कर्म के सिद्धान्त को मानता है। वह मानता है कि हर व्यक्ति को अपने पूर्व में किये कर्म का फल भोगना ही पड़ता है। चाहे वह कितना ही ताकतवर, उच्च पदासीन, साधन सम्पन्न या प्रतिष्ठित व्यक्ति क्यों न हो। इस धर्म के अनुसार तो शंकराचार्य की गिरफ्तारी भी उनके पूर्व कर्मों का ही परिणाम है। कहते है कि जैसा खाओ अन्न तो वैसा बने मन। इसीलिए देश के तमाम विरक्त संत किसी का दिया अन्न नहीं खाते। पर शंराचार्यों को तो लगातार देश और विदेश का भ्रमण करना होता है। घाट-घाट का पानी और घाट-घाट का अन्न स्वीकारना पड़ता है। ऐसे ही दूषित अन्न को खाने का परिणाम शायद शंकराचार्य की गिरफ्तारी के रूप में सामने आया है।
कानून की अपनी प्रक्रिया है। उसमें अभी वक्त लगेगा, तब तक हिन्दू आहत मन को मरहम लगाने की जरूरत है। अगर तलिमनाडु की पुलिस ने किसी भी कारण से काची कामकोटि के शंकराचार्य पर हाथ डाला है तो देश के वाकी राज्यों की पुलिस और केन्द्र सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जघन्य अपराध में शामिल किसी भी धर्म के धर्मगुरु को छोड़ा न जाय ताकि हिन्दुओं के दिल पर मरहम लग जाये। उन्हें यह भ्रम न रहे कि हर मामले में हिन्दु ही पिटते हैं। पर यहाँ यह भी विचारणीय प्रश्न है कि क्या शंकराचार्य की गिरफ्तारी को राजनैतिक मुद्दा बनाकर किसी भी संगठन या दल का राजनीति करना उचित है? पिछले दिनों भाजपा और विहिप ने शंकराचार्य की गिरफ्तारी के विरोध में देशव्यापी आंदोलन शुरू किया। 21 नवम्बर को देश भर के मन्दिरों को भी बंद रखने की अपील की और कुछ शहरों में सफल भी रहे। पर जो विहिप अयोध्या मसले को हर चुनाव से पहले उछाल कर भाजपा की राजनीति करती रही और मन्दिर निर्माण नहीं हुआ। वहीं विहिप अब शंकराचार्य की गिरफ्तारी पर भारतभर के मन्दिरों के साथ आध्यात्मिक अपराध करने से नहीं चूकी। 21 नवम्बर को मथुरा के द्वारिकाधीश मन्दिर के सामने इस जबरदस्ती के बंद को लेकर श्रद्धालुओं और कुछ स्थानीय पण्डों की बीच गरमा-गर्मी हो गयी। गहवरवन बरसाना के विरक्त संत श्री रमेश बाबा जब 6500 भक्तों को ब्रज चैरासी कोस की पैदल परिक्रमा करवाते हुए द्वारिकाधीश के मन्दिर पहुँचे तो असमय मन्दिर के कपाट बंद देखकर उन्हें बहुत निराशा हुई। उन्होंने स्थानीय पण्डा समाज से मन्दिर खोलने का आग्रह किया जिसे केवल कुछ मन्दिरों के पण्डों ने स्वीकार कर मन्दिर खोल दिये जबकि द्वारिकाधीश के पट बंद ही रहे। बाबा का कहना है कि हिन्दू मन्दिरों में भगवान के विग्रह केवल पत्थर की मूर्ति नहीं है। प्राण प्रतिष्ठा के बाद वे जागृत विग्रह हो जाते हैं। किसी भी कीमत पर उनकी सेवा, पूजा, दर्शन बंद नहीं किये जा सकते। ऐसा करना दानवी कृत्य है। औरंगजेब और हिरण्यकश्यप जैसे शासक मन्दिर के द्वार बंद करवाते हैं। बाबा ने मंदिर के द्वार पर महाप्रभु बल्लभाचार्य के अनुयायियों को याद दिलाया कि जब स्वयं महाप्रभु ने, सूरदास जी ने, कुंभादास जी ने या भक्तिन मीराबाई ने महाप्रयाण किया। तब भी मन्दिरों के कपाट बंद नहीं किये गये थे। बाबा का कहना था कि शंकराचार्य की गिरफ्तारी से आहत लोगों को दुनिया की सर्वोच्च अदालत भगवान के मन्दिर में आकर प्रार्थना, भजन व कीर्तन करना चाहिए था। विहिप ने देश भर मन्दिरों को बंद करवा कर एक अपशगुनी परम्परा की शुरूआत की है। यह सनातन धर्म के प्रति अपराध है। ऐसे कृत्य से शंकराचार्य को लाभ नहीं होगा। क्यों कि देश भर के हजारों लाखों भक्त अपने आराध्य के दर्शनों से वंचित रह गये। भक्तों को भगवान से दूर रखना राक्षसों का कार्य है। विहिप और भाजपा ने मन्दिरों का राजनीति के लिए इस्तेमाल कर हिन्दू धर्म की अपूर्णनीय क्षति की है। इस विषय पर सारे देश के हिन्दू समाज को और संत समाज को विचार करना चाहिए। शास्त्रों का सहारा लेना चाहिए और यह बात स्पष्ट कर देनी चाहिए कि किसी भी हालत में कभी भी ठाकुर जी की सेवा और उनके दर्शनों को बंद करने की घिनौनी राजनीति नहीं की जायेगी। ऐसा करने वाले हिन्दू धर्म के शुभचिंतक कदापि नहीं हो सकते।